Hindi Educational Children Stories, Saphalata Ka Rahasya Hindi Story Collection Book by Parshuram Shukla in Hindi, Kids Moral Stories in Hindi.
Shikshaprad Bal Kahani in Hindi
बाल कहानी अकाट्य तर्क : यह वर्तमान में प्रतिभावान बच्चे की बुद्धि और तर्कशक्ति पर केंद्रित शिक्षाप्रद बाल कहानी है अकाट्य तर्क। परशुराम शुक्ल का बाल कहानी संग्रह सफलता का रहस्य से बच्चों के लिए शिक्षाप्रद हिन्दी बाल कहानियां।
Moral Story in Hindi
अकाट्य तर्क
गौरव ने इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। उसके पास किसी चीज की कमी न थी। पापा दीनानाथ बैंक अधिकारी थे और मम्मी राधिका स्कूल में टीचर। दीनानाथ को बैंक की तरफ से एक अच्छा सा बँगला मिला था और जब जरूरत होती तो बैंक की कार भी आ जाती थी।
गौरव को उसके मम्मी पापा बहुत प्यार करते थे। वे उसकी सभी फरमाइशें पूरी करते और दो-चार दिन में कोई न कोई गिफ्ट लाकर देते थे। दीनानाथ हमेशा खाने-पीने की चीजें लाते, जबकि राधिका किताबें देती थी।
इतना सब होते हुए भी गौरव खुश नहीं था। उसे जब कभी भी एकान्त मिलता तो वह घंटों बैठा सोचता रहता - पापा मम्मी मुझे इतना प्यार करते हैं, लेकिन घूमने-फिरने या किसी के घर मिलने क्यों नहीं जाने देते ?
एक बार उसने एन.सी.सी. कैम्प में जाने की जिद की थी, तो दीनानाथ ने तो केवल कठोर शब्दों में जाने से मना कर दिया था, लेकिन राधिका ने दिनभर खाना नहीं खाया था और रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया था।
गौरव के सभी दोस्त पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छे थे। वे मन लगाकर पढ़ते और शाम को अकेले ही या मम्मी-पापा के साथ घूमते फिरते। छुट्टी वाले दिन कोई क्रिकेट खेलता तो कोई फुटबाल । उनके माता-पिता उन्हें कैम्प में जाने की भी सहर्ष अनुमति दे देते थे। गौरव के अधिकांश दोस्तों को स्कूटर चलाना आ गया था, लेकिन गौरव को साइकिल चलाना भी नहीं आता था। एक बार उसने एक दोस्त की साइकिल चलाने की कोशिश की तो गिर पड़ा। यह तो अच्छा हुआ कि उसे कोई चोट नहीं आयी, वरना उसके मम्मी-पापा न जाने क्या कर डालते।
गौरव यदि कभी अपने मम्मी-पापा से साइकिल लेने को कहता, दोस्तों के साथ घूमने-फिरने या खेलने की अनुमति मांगता, तो मम्मी तुरन्त समझा देती-बेटा, आजकल के नये लड़के अच्छे नहीं हैं, इनके साथ रहकर तुम बिगड़ जाओगे और फिर महानगर की सड़कों का ट्रेफिक बड़ा खतरनाक होता है। कोई देखकर तो गाड़ी चलाता नहीं, ऐसे में मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूँगी। यदि तुम्हारा घूमने का ही मन हो तो कल पापा बैंक की कार मँगवा लेंगे, फिर तुम्हें जितना घूमना हो, हम लोगों के साथ घूम लेना। दीनानाथ भी राधिका की बातों का समर्थन करते और बेचारा गौरव मन मारकर रह जाता। उसकी समझ में नहीं आता था कि वह मम्मी-पापा को कैसे समझाये, कि मम्मी पापा के साथ घूमना तो ठीक है, लेकिन अपने दोस्तों के साथ घूमने और गपशप करने का मजा ही कुछ और होता है।
धीरे-धीरे एक वर्ष बीत गया।
एक दिन गौरव के एक दोस्त ने उसे बताया कि वह नेवी आफिसर के लिए फॉर्म भर रहा है। गौरव को फौजी जीवन से बड़ा लगाव था। उसने टी.वी. पर नेवी के शिप और उन पर काम करते हुए अधिकारियों की एक फिल्म देखी थी। उनके रहन-सहन से वह बड़ा प्रभावित हुआ था, अतः उसने बिना मम्मी-पापा की अनुमति के फॉर्म भर दिया।
गौरव ने लिखित परीक्षा पास की और इन्टरव्यू भी दे दिया। दीनानाथ और राधिका को इसकी भनक भी न लग पायी।
मई का महीना था। एक दिन दीनानाथ बैंक जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनके कानों में एक आवाज टकरायी- "दीनानाथ जी! बी.एस.सी पार्ट वन का रिजल्ट आ गया है। आपके बेटे को रिजल्ट में सैकेंड स्थान मिला है।" आवाज चोपड़ा जी की थी, जो उनके बगल वाले बंगले में रहते थे और उन्हीं के साथ बैंक में काम करते थे।
दीनानाथ ने सुना तो एक पैर में जूता पहने हुए ही भागे और चौपड़ा जी से अखबार ले आये। मुख्य पृष्ठ पर मैरिट में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों के फोटो छपे थे। गौरव का फोटो देखकर राधिका भी खुशी से उछल पड़ी।
गौरव अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था। उसे शायद पहलें से ही यह उम्मीद थी कि वह मेरिट में आयेगा।
दीनानाथ गौरव की इस उपलब्धि से इतना खुश हुए कि उन्होंने बैंक फोन करके दो दिन की छुट्टी ले ली और खंडाला में पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बना डाला।
राधिका ने भी दो दिन की छुट्टी की एप्लिकेशन अपने स्कूल भेज दी और पिकनिक की तैयारी में जुट गयी।
गौरव को जब मालूम हुआ कि मम्मी पापा ने दो दिन की छुट्टी ले ली है और खंडाला में पिकनिक का कार्यक्रम बनाया है, तो उसे भी अच्छा लगा।
पिकनिक की तैयारी करते-करते बारह बज गये। सारा सामान कार की डिक्की में रखा गया और कार स्टार्ट होने जा रही थी कि पोस्टमैन आ गया।
गौरव के नाम का एक रजिस्टर्ड लिफाफा था।
गौरव ने तुरन्त हस्ताक्षर किये और लिफाफा ले लिया। उसने लिफाफा फाड़कर पत्र देखा तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा। वह नेवी आफिसर्स ट्रेनिंग के लिए चुन लिया गया था।
तभी दीनानाथ ने हाथ बढ़ाकर पत्र ले लिया। उन्होंने पत्र पढ़ा, तो उन्हें धरती घूमती सी दिखाई दी।
"सुनो ! तुम्हारा लाडला नेवी में नौकरी करेगा।" वह राधिका की ओर पत्र बढ़ाते हुए बोले और कार के बारह आ गये।
राधिका ने पत्र लिया और एक नजर में पूरा पढ़ गयी।
"अरे! तूने नेवी का फॉर्म कब भरा ? रिटेन कब दिया ? इण्टरव्यू कब दिया ? मुझे तो तूने कुछ बताया नहीं।" राधिका उसे घूरती हुई बोली।
गौरव सर झुकाये, अभी भी कार की पिछली सीट पर बैठा था। उसे पहले से अनुमान था कि उसका नेवी में जाना मम्मी-पापा कभी सहन नहीं करेंगे। वह बैठा-बैठा मम्मी पापा से बात करने का साहस बटोरने लगा।
"अरे! बोलता क्यों नहीं? तू फौज में लड़ने जायेगा ? क्या इसी दिन के लिए तुझे पाल-पोसकर बड़ा किया है ?" गौरव के चुप रहने से राधिका की झुंझलाहट बढ़ गयी।
वह भी बड़बड़ाती हुई कार के बाहर आ गयी और सिसकने लगी।
गौरव भी चुपचाप कार के बाहर निकला और अपने कमरे में आ गया। उसके पीछे- पीछे दीनानाथ और राधिका भी आ गये।
"गौरव ! तुम नेवी में नहीं जाओगे।"
"लेकिन पापा.........।"
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं। सीधी तरह अपनी पढ़ाई करो और घर में रहो। अगर फिर कभी इस तरह के फार्म भरे तो पढ़ाई बन्द करके घर में बैठा दूँगा, समझे ?" हमेशा की तरह दीनानाथ ने वार्निंग दी।
"पापा, मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ।"
गौरव में अचानक न जाने कहाँ से हिम्मत आ गयी। उसकी आवाज में दृढ़ता थी।
"पूछो।"
"मेरे परदादा जी कहाँ हैं ?"
"यह क्या बकवास है ? तू पागल तो नहीं हो गया ? कैसी बेकार की बातें कर रहा है ?"
"पापा! प्लीज, मेरी बात का उत्तर दीजिये।" गौरव की गम्भीरता और बढ़ गयी।
"उनकी डेथ हो गयी। करीब तीस साल पहले पैरालेसिस हुआ था। तब तुम पैदा भी नहीं हुए थे।"
"मेरे दादा जी कहाँ हैं ?"
"उनकी भी डेथ हो गयी। उन्हें दमा की बीमारी थी। वह चौबीस साल की उम्र में ही चल बसे थे।"
"मेरी दादी जी कहाँ हैं ?"
"तेरे दादा-दादी, नाना-नानी सब मर चुके हैं। किसी न किसी बीमारी से या फिर ऐसे ही। इस संसार में जो भी आता है उसे एक न एक दिन मरना पड़ता है। लेकिन तू यह सब क्यों पूछ रहा है ?" दीनानाथ झुंझना उठे।
"पापा! आप जीवन की वास्तविकता जानते हैं, फिर जानबूझकर अनजान क्यों बन रहे हैं। मृत्यु एक अटल सत्य है। जो आया है, वह जायेगा। मरने की कोई आयु नहीं होती जिसकी जब मौत होना होती है, हो जाती है। फिर मेरी इतनी चिन्ता क्यों ? क्या आप चाहते हैं कि मैं भी अपने बुजुर्गों की तरह बीमार होकर, घिसट-पिसट कर मर जाऊँ ? मैं मातृभूमि की सेवा करते हुए एक सैनिक की मौत मरना चाहता हूँ। यदि दुश्मन से लड़ते-लड़ते मरा तो मुझे कोई न कोई वीर चक्र या शौर्य चक्र मिलेगा और यदि जीवित रहा तो...." गौरव ने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
दीनानाथ की आँखें खुल गयी। उन्हें पहली बार लगा कि गौरव बड़ा हो गया है। उसके अकाट्य तर्कों ने उन्हें निरुत्तर कर दिया था।
उन्होंने आगे बढ़कर गौरव की पीठ थपथपाई और भीतर आ गये।
अगले दिन जब गौरव नेवी आफिसर्स की ट्रेनिंग पर जा रहा था तो दीनानाथ और राधिका के चेहरे पर न कोई आशंका थी न घबराहट। हाँ आँखों में कुछ नमी थी, क्योंकि उनका लाडला पहली बार लम्बे समय के लिए उनसे दूर जा रहा था।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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