Bina Das : भारत के स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी वीरांगना बीना दस

Dr. Mulla Adam Ali
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वीरांगना वीणादास : अतुलनीय साहस और वीरतापूर्ण कार्यों से अंग्रजों से लोहा लेने वाली स्वतंत्रता संग्राम की महान वीरांगना बीना दास, अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों का जमकर विरोध करते हुए छोटी उम्र में ही नौ वर्ष तक कारावास की यातनाएं सही महिला क्रांतिकारी की पूरी कहानी पढ़िए।

Bina Das : Freedom Fighter

भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन की महत्वपूर्ण शख़्सियत : बीना दास

भारत की आजादी की लड़ाई में बंगाल का विशिष्ट योगदान रहा है। बंगाल में सुभाष चन्द्र बोस, अरविन्द घोष, खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस, जतिन मुखर्जी, यतीन्द्र दास जैसे बहुत से क्रान्तिकारी हुए जिनसे ब्रिटिश सरकार हमेशा भयभीत रहती थी। बंगाल की महिलाएँ भी पुरुषों से कम न थीं। बंगाल में ऐसी न जाने कितनी स्कूली छात्राएँ हुईं, जिन्होंने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्हें अपनी गोली का निशाना बनाया। ऐसी ही एक छात्रा थी-वीणादास ।

वीणदास के पिता श्री वेणीमाधव दास। कलकत्ते के एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। वेणीमाधव दास यूँ तो एक साधारण व्यक्ति थे, किंतु उनमें असाधारण प्रतिभा थी। विश्वविख्यात भारतीय क्रान्तिकारी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस उनके शिष्य थे और उनका बड़ा सम्मान करते थे। सुभाष चन्द्र बोस को धर्म, नैतिकता और देशप्रेम की शिक्षा वेणीमाधव दास से ही मिली थी।

वेणीमाधव दास के घर पर भारत की आजादी के समर्थक बुद्धिजीवी लोग प्रायः आते रहते थे और अंग्रेज सरकार के अमानुषिक अत्याचारों की चर्चा करते रहते थे। उनके घर पर कभी-कभी क्रान्तिकारी भी आ जाते थे। किंतु वेणी माधवदास हमेशा इतने सतर्क रहते थे कि उन पर अंग्रेजों को कभी किसी प्रकार शक नहीं हुआ।

बालिका वीणादास पर उसके पारिवारिक परिवेश का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ा और वह बचपन से ही भारत की आजादी की कट्टर समर्थक बन गयी। उन दिनों अंग्रेज सरकार की दमन नीतियाँ अपनी चरम सीमा पर थीं। अंग्रेज, थोड़ा-सा भी शक हो जाने पर बड़ी बेरहमी से देशभक्त क्रान्तिकारियों को पकड़ कर ले जाते, उन्हें कोड़े लगाते तथा इसी तरह की अन्य यातनाएँ देते। इतना ही नहीं, वे महिलाओं को भी नहीं छोड़ते थे। भोली-भाली युवतियों का अपहरण कर लेना एवं उनका शारीरिक शोषण करना तो बड़ी साधारण-सी बात हो गयी थी। इस प्रकार की खबरें प्रतिदिन ही कलकत्ते के अखबारों में प्रकाशित होती रहती थीं।

वीणादास यह सब बचपन से ही सुनती और देखती आ रही थी। वह जब कभी भी अंग्रेजों के अत्याचार का कोई नया कारनामा सुनती तो उसके मन में बगावत की आग धधक उठती। किंतु वह बहुत छोटी थी, अतः मन मसोस कर रह जाती।

अंग्रेजों का दमन चक्र बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। उन्होंने चटगांव और मिदनापुर में क्रान्तिकारियों को दबाने के लिए जो घृणित दमन चक्र चलाया, उससे बंगाल के लोगों के रोंगटे खड़े हो गये। अंग्रेजों ने खेतों में खड़ी फसलें नष्ट कर दी, घरों में तलाशी लेने के बहाने घुसे और पूरा का पूरा घर तहस-नहस कर डाला, महिलाओं की इज्जत लूटी और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया और यदि कोई क्रान्तिकारी मिल गया तो उसे बुरी तरह तड़पा-तड़पा कर मार डाला।

वीणादास के लिए अब स्थिति असहनीय हो चुकी थी। उसने एक कठोर निर्णय लिया और एक स्थानीय क्रान्तिकारी संगठन की सदस्य बन गयी। इस संगठन के सभी सदस्य बंगाली थे तथा इसने कुछ ही समय में बहुत बड़े-बड़े कारनामे करके अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी। वीणादास इस संगठन की सक्रिय सदस्या थी तथा अंग्रेज सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध अत्यंत कठोर शब्दों में खुल कर बोलती थी। परिणाम स्वरूप उसकी गतिविधियाँ अधिक समय तक अंग्रेज सरकार से छिपी न रह सकीं। अंग्रेजों ने उसे बागी घोषित कर दिया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

वीणादास साहसी होने के साथ ही बुद्धिमान भी थी। अंग्रेजों ने उसे बागी सिद्ध करने के लिए उसके विरुद्ध सबूत एकत्रित करने के बहुत प्रयास किए, किंतु उन्हें कोई सबूत नहीं मिला। अंग्रेज पुलिस अधिकारी जानते थे कि वीणादास के हृदय में भारत की आजादी की आग दहक रही है और वह जेल से बाहर निकलते ही अंग्रेज सरकार के विरुद्ध कोई न कोई दिल दहला देने वाला कार्य अवश्य करेगी। अतः उन्होंने वीणादास को जेल के भीतर ही मरवा डालने का षड्यंत्र रचा। किंतु अंग्रेजों का भाग्य अच्छा न था। उनका षड्यंत्र विफल रहा और वीणादास बच गयी।

अंग्रेज पुलिस अधिकारियों ने वीणादास को जेल के भीतर बहुत प्रताड़ित किया। वह उसे प्रताड़ित करके उससे उसके संगठन के क्रान्तिकारी साथियों के नाम पते उनकी योजनाएँ तथा इसी तरह की अन्य जानकारी प्राप्त करना चाहते थे, किंतु असफल रहे। इसके बाद उन्होंने वीणादास को पुनः जेल में ही मरवाने का प्रयास किया, किंतु इस बार वे फिर असफल रहे। वीणादास के विरुद्ध पुलिस के पास कोई ठोस सबूत नहीं था, अतः जब वीणादास को अदालत में पेश किया गया तो वह निर्दोष सिद्ध हो गयी और न्यायाधीश ने उसे सम्मान सहित बरी कर दिया।

वीणादास को जेल के भीतर बहुत कुछ देखने को मिला अंग्रेजों द्वारा क्रांतिकारियों पर किए जाने वाले अत्याचार, उन्हें कोड़े लगाना, सर्दियों में बर्फ पर लिटाना, रात में सोने न देना, बात-बात पर उन्हें अपमानित करना और जूतों की ठोकरें मारना तथा ऐसा भोजन देना जिसे जानवर भी न खायें। स्त्रियों का शारीरिक शोषण तो बड़ी साधारण बात थी और जेल के भीतर हमेशा ही इस तरह की घटनाएँ होती रहती थीं। जेल के भीतर अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले अमानुषिक अत्याचारों का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोज ही किसी न किसी क्रान्तिकारी की मौत हो जाती थी।

वीणादास पर जेल में होने वाले शोषण और अत्याचारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और वह पूरी तरह क्रान्तिकारी बन गयो। उसने यह निश्चय कर लिया कि अब वह अंग्रेजों के विरुद्ध खुल कर बगावत करेगी तथा अंग्रेज सरकार को ऐसा सबक सिखाएगी, जिसे भुलाया न जा सके। वीणादास बहुत छोटी आयु से ही भारत की आजादी और भारत की आजादी की जंग लड़ने वालों में रुचि लेने लगी थी तथा शीघ्र ही उसने एक स्थानीय क्रान्तिकारी संगठन की सदस्या बनकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेना भी आरम्भ कर दिया था। किंतु इन सबके साथ उसकी पढ़ाई भी चलती रही। वीणादास का मानना था कि व्यक्ति और देश दोनों के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षा मानव जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शिक्षा व्यक्ति को नीतिवान तथा चरित्रवान बनाती है और उसका मार्गदर्शन करती है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति कभी पूर्ण नहीं होता। यही कारण था कि उसने जेल में रहते हुए भी अपनी पढ़ाई जारी रखी।

वीणादास के क्रान्तिकारी जीवन के साथ ही उसकी पढ़ाई भी व्यवस्थित रूप से चल रही थी। उसने अपनी सभी परीक्षाओं में बड़े अच्छे अंक प्राप्त किए और स्नातक बन गयी। यह वही समय था, जब वह जेल से छूट कर आयी थी और उसने अंग्रेजों को सबक सिखाने का दृढ़ संकल्प बनाया था।

वीणादास के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था। उसके भीतर एक प्रकार का दहकता हुआ लावा सा भरा हुआ था, जो किसी तरह बाहर निकलना चाहता था। वीणादास को एक अवसर की प्रतीक्षा थी। एक ऐसा अवसर जब वह कुछ ऐसा कर दिखाये, जिससे अंग्रेज सरकार पर दहशत सी छा जाये। वीणादास को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। बहुत जल्दी ही वह घड़ी निकट आ गयी, जिसकी उसे लंबे समय से प्रतीक्षा थी।

सन उन्नीस सौ बत्तीस, छः फरवरी ।

कलकत्ते के सीलेट हाउस में विश्वविद्यालय द्वारा उपाधि वितरण समारोह आयोजित किया गया था। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में गर्वनर स्टेनली जैक्सन को आमंत्रित किया गया था। उन्हें ही स्नातक छात्र-छात्राओं को उपाधियां देनी थी। वीणादास ने भी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी, अतः उसे भी इस समारोह में सम्मिलित होना था और स्टेनली जैक्सन के हाथों से उपाधि ग्रहण करना था।

वीणादास को जब यह समाचार मिला तो उसकी आँखों में चमक-सी आ गयी और उसके सीने की आग और तेज हो उठी। वीणादास कुछ समय तक सोच-विचार करती रही और फिर उसने एक साहसिक निर्णय ले लिया। स्टेनली जैक्सन की हत्या का निर्णय।

छः फरवरी को वह प्रातःकाल कुछ जल्दी ही उठ गयी और सबसे पहले उसने ईश्वर ने सहयोग की प्रार्थना की और फिर अपने सभी घरेलू कार्यों से निवृत्त होकर तैयार हो गयी। उसने अपनी योजना की सूचना अपने संगठन के सभी सदस्यों को पहले से दे दी थी। उसे रिवाल्वर भी उसके संगठन के एक साथी से मिल गया था।

वीणादास समारोह आरम्भ होने के कुछ समय पहले ही पहुँच गयी और चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गयी। इस समय उसके चेहरे पर दैवी तेज था। वीणादास ने एक ढीला-ढाला गाउन पहन रखा था, जिसके भीतर रिवाल्वर को सरलता से छिपाया जा सके।

स्टनेली जैक्सन ठीक समय पर सीलेट हाउस पहुँचा। उसके आने के बाद कुछ औपचारिक भाषण हुए और फिर उपाधि वितरण आरम्भ हुआ। वीणा दास अपने स्थान पर शांत बैठी अपना नाम पुकारे जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। कुछ समय बाद उसका नाम पुकारा गया।

वीणादास अपना नाम सुनते ही बड़े शांत भाव से उठी और धीरे-धीरे चलती हुई मंच पर आ गयी। उसका उद्देश्य पूरा ही होने वाला था, अतः उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गयी थी।

वीणादास ने मंच पर पहुँचते ही गवर्नर जनरल स्टेनली को जलती आँखों से देखा। इस समय उसकी मुस्कराहट न जाने कहाँ गायब हो गयी थी। वीणादास ने बिना समय बरबाद किए अपने गाउन के भीतर से रिवाल्वर निकाली और स्टेनली जैक्सन पर गोलियाँ चला दीं। किंतु यहाँ पर उसके भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया। वीणादास का निशाना चूक गया और उसकी एक भी गोली स्टेनली जैक्सन को नहीं लगी। वीणादास की रिवाल्वर से निकली एक गोली उसके अपने विश्वविद्यालय के ही श्री दिनेशचन्द्र सेन को लगी।

वीणादास ने हिम्मत से काम लिया और पुनः स्टेनली जैक्सन पर निशाना साधा, किंतु इसी समय अंग्रेज भक्त कर्नल सोहरावर्दी बीच में आ गया और उसने वीणादास के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया। वीणादास को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया।

इस बार वीणादास पर अंग्रेज गवर्नर स्टेनली जैक्सन की हत्या के प्रयास का मुकदमा चलाया गया। वीणादास को अपने गिरफ्तार होने पर जेल जाने का कोई दुख न था, बल्कि उसे स्टेनली जैक्सन के बच जाने का बड़ा अफसोस था। वीणादास के मुकदमे की सुनवायी के समय अदालत हमेशा खचाखच भरी रहती थी। बहुत से लोग तो केवल इस साहसी वीरांगना के दर्शन करने के लिए अदालत आते थे।

वीणादास ने अपनी पहली ही पेशी में अदालत के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही उसने भरी अदालत में अंग्रेज न्यायाधीश के सामने अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले क्रूरतापूर्ण अमानवीय दुष्कर्मों की दिल दहला देने वाली ऐसी घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया कि न्यायाधीश का सिर शर्म से झुक गया। फिर भी अंग्रेजी कानूनों के अनुसार अदालती कार्यवाही की खानापूरी की गयी और वीणादास को मृत्युदंड न दे कर तेरह वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनायी गयी।

आज वीणादास हमारे बीच नहीं है। किंतु वीणादास का नाम अमर है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इस वीरांगना को आज भी बंगाल ही नहीं संपूर्ण भारत के लोग आजादी की देवी के रूप में बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ याद करते हैं।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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