Nanha Krantikari Children's Story Collection Book by Parshuram Shukla in Hindi, Kids Moral Stories, Inspirational Hindi Kahani.
Nanha Krantikari : Prerak Bal Kahani
बाल कहानी नन्हा क्रांतिकारी : बाल कहानी - बाल साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। बाल कहानियां बच्चों को बहुत अच्छी लगती हैं, जब रात होते ही बच्चे दादा दादी, नाना नानी या घर के बड़े बुजुर्गों को घेरकर कहानी सुनाने की जिद करते हैं। कहानियों का असीमित भंडार बुजुर्गों के पास होता था, वह हमेश बच्चों को योग्य और नए कहानियां सुनाते थे। बच्चे बड़े उत्साह के साथ कहानियां सुनते थे, आज भी भारत के गांव में यह परंपरा देखने को मिलता है, आज आपके लिए प्रस्तुत है प्रेरणादायक कहानी नन्हा क्रांतिकारी, पढ़े और आनंद लें।
Children's story Little Revolutionary
नन्हा क्रांतिकारी
भारत में अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों की याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अंग्रेज अधिकारी भारत पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिए एक ओर अहिंसा के पुजारियों पर लाठियाँ बरसा रहे थे तो दूसरी ओर उग्र विचारधारा वाले क्रांतिकारियों को बेरहमी से गोलियों का निशाना बना रहे थे या फाँसी पर लटका रहे थे। भारत में चारों ओर भय और आतंक का साम्राज्य था, किन्तु फिर भी बच्चों, युवकों और वृद्धजनों में, स्त्रियों और पुरुषों में समाज के सभी वर्गों में आजादी के लिए ऐसा उत्साह दिखाई दे रहा था, जिससे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि अब अंग्रेजों का भारत में अंतिम समय आ गया है। भारत में एक ओर महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन सुदृढ़ होता जा रहा था तो दूसरी ओर अनेक क्रांतिकारी दल अन्दर ही अन्दर, अंग्रेजी शासन को ध्वस्त करने के लिए संगठित हो रहे थे। इन्हीं क्रांतिकारी दलों में से एक था - कालाबाज । कालाबाज के मुखिया सरदार हरीसिंह एक बहुत बड़े पुलिस अधिकारी थे, किन्तु इस रहस्य को उनके क्रांतिकारी साथी भी नहीं जानते थे। उनका संगठन अत्यन्त गुप्त रूप से अपनी योजनाएँ बनाता था और रात के अंधेरे में सर अंजाम देता था। कालाबाज के लोग कभी किसी अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर देते तो कभी किसी सरकारी इमारत को बम से उड़ा देते थे। इस संगठन के लोग पुलिस के हाथ आ जाते तो एक तेज विष खाकर तुरन्त आत्म हत्या कर लेते थे।
सरदार हरीसिंह अपने संगठन के लोगों से केवल विशेष अवसरों पर ही मिलते थे और वह भी वेश बदलकर । उनके दल में उनका जवान बेटा अमृतसिंह भी था, लेकिन उसे भी यह नहीं मालूम था कि उसके पिता ही संगठन के मुखिया हैं।
सन् 1942 की बात है। महात्मा गांधी 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का आन्दोलन छेड़ चुके थे। यह आंदोलन सफलता की ओर बढ़ रहा था। किन्तु ऐसा लग रहा था, मानो सत्ता नागनाथ के हाथों से निकल सांपनाथ के हाथों में आ जायेगी। सरदार हरीसिंह महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे, किन्तु कभी भी उन्होंने गांधीजी का खुल कर विरोध नहीं किया था।
'भारत छोड़ों आंदोलन' का पूरे भारत पर प्रभाव पड़ा। देश के अधिकांश नेता जेलों में ठूस दिये गये या छिप गये। क्रांतिकारी संगठनों ने भी अपनी गतिविधियाँ बन्द कर दीं और कुछ समय के लिए चुप बैठना ही ठीक समझा। किन्तु सरदार हरीसिंह ने इसी समय कुछ कर दिखाने का निश्चय किया। उन्होंने अपने सभी साथियों को एक खण्डहरनुमा इमारत के प्रांगण में एकत्रित होने का आदेश दिया और रात्रि के ठीक एक बजे स्वयं भी पहुँच गये।
सरदार हरीसिंह ने अपने सभी साथियों की ओर एक बार सरसरी दृष्टि से देखा और फिर ऊँची आवाज में बोले- "दोस्तों ! अब समय आ गया है कि हम लोग अंग्रेजों पर खुलकर वार करें और भारत माता को आजाद करायें। मुझे गांधी जी पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। गांधीजी अंग्रेजों के आदमी हैं। अंग्रेज भी इस बात को जानते हैं कि जब तक भारत में गांधीजी सुरक्षित हैं, तब तक वे भी सुरक्षित हैं। इसलिए अंग्रेज, जहाँ हम क्रांतिकारियों को चुन-चुनकर गोलियों से भून रहे हैं, वहीं गांधी जी को विशेष सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं।" इतना कहकर हरीसिंह ने एक गहरी सांस ली और फिर कहने लगे - "दोस्तों ! गांधीजी और अंग्रेज सरकार में सांठगांठ है। हो सकता है गांधीजी के प्रभाव में आकर अंग्रेज भारत को आजाद कर दें, किन्तु ऐसी आजादी किस काम की; जिसमें आम आदमी का कोई हित न हो। गांधीजी जिन लोगों का नेतृत्व कर रहे हैं, वे सब राजा-महाराजा, जमींदार जागीरदार और समाज के उच्च वर्ग के लोग हैं। ये सब भी अंग्रेजोंकी तरह आम जनता का खून पीने वाले हैं। गाँधी जी सत्ता स्वयं अपने हाथों में नहीं लेंगे। वह अपने किसी चहेते को सत्ता सौपेंगे, ऐसा मेरा विचार है।"
सरदार हरीसिंह बड़े जोश में अपनी बातें कह रहे थे। तभी पीछे बैठा हुआ नाटे से कद का व्यक्ति उठा और पीछे से बाहर निकल गया। उसे बाहर जाते हुए किसी ने नहीं देखा।
इधर सरदार हरीसिंह बड़े जोश में बोल रहे थे-"इसीलिये अब आप सब लोग आजादी की अंतिम जंग के लिये तैयार हो जाइये।"
“हम सब तैयार हैं। हम सब तैयार हैं।" एक साथ आजादी के दीवानों ने हुंकार भरी और फिर 'भारत माता की जय' के उद्घोष से खण्डहर गूंज उठा।
"दोस्तों ! शांत हो जाइये और मेरी बात ध्यान से सुनिये। मैंने अपनी पूरी योजना युवा साथी अमृत सिंह को समझा दी है। वह आपको......" सरदार हरीसिंह की बात पूरी भी नहीं हो पायी थी कि पूरा खण्डहर गोलियों की आवाज से गूंज उठा।
खण्डहर को चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया था, अतः क्रांतिकारियों को भागने का कोई अवसर नहीं मिला और सब मारे गये।
अगले दिन अंग्रेज अंधिकारियों को मारे गये क्रांतिकारियों के मध्य सरदार हरीसिंह की लाश भी मिल गयी, जिससे उनका भेद खुल गया।
अंग्रेज अधिकारियों ने सरदार हरीसिंह के मामले को गम्भीरता से लिया और उन्होंने उसकी सारी संपत्ति जब्त कर ली तथा घरवालों को देशद्रोह के अपराध में सलाखों के पीछे पहुँचा दिया।
हरीसिंह के परिवार में अब केवल एक सदस्य बचा था-उनके बेटे अमृतसिंह का पांच वर्ष का बेटा अजय । अजय को बचपन से पोलियो था, अतः वह चल फिर नहीं सकता था।
जिस समय अंग्रेज अधिकारियों ने सरदार हरीसिंह के घरवालों को गिरफ्तार किया, उस समय अजय चौकीदार के घर में उसके बेटे गोपाल के साथ खेल रहा था। गोपाल अजय को बहुत प्यार करता था। उसने बांस के टुकड़ों को जोड़कर अजय के लिए दो पहियों की एक गाड़ी बनायी थी। इसके आगे वाले सिरे पर एक रस्सी बंधी थी। गोपाल अजय को अपनी बनायी गाड़ी पर बैठाकर जब इधर- उधर घुमाता तो मासूम अजय का चेहरा खुशी से खिल उठता था।
सरदार हरीसिंह की मौत और उसके परिवार वालों की गिरफ्तारी की बातें गोपाल ने ही अजय को समझायीं। अजय ने अपनी माँ, दादी और घर के अन्य लोगों को पुलिस द्वारा ले जाते हुए देखा था, लेकिन उस समय वह कुछ समझ नहीं पाया था। गोपाल के द्वारा पूरी बातें मालूम होने पर नन्हें बच्चे का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। उसने गोपाल को अपने पास बुलाया और भरे गले से बोला-गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! मेरी गाड़ी सड़क पर ले चलो।"
"सड़क पर मत चलो, अजय ! वहाँ अंग्रेज पुलिस आ जायेगी!" गोपाल ने समझाया। "नहीं गोपाल भैया ! मेरी बात सुनो और सड़क पर चलो !" अजय ने जिद की।
"क्यों ? तुम सड़क पर चलने की जिद क्यों कर रहे हो?" गोपाल ने प्रश्न किया !
“गोपाल भैया ! मैं क्रांतिकारी बनूँगा। मैं देश को आजाद कराऊँगा। मैं अंग्रेजों से लदूँगा और उन्हें देश के बाहर निकालूंगा।" कहते हुए छोटे से अजय ने पास पड़ा हुआ तिरंगा उठा लिया। इस समय उसका चेहरा एक अलौकिक आभा से चमक रहा था।
गोपाल ने हमेशा अजय की जिद पूरी की थी। इस समय उसे लगा, मानो अजय कोई बहुत बड़ी बात कह रहा है, अतः उसने बाँस की गाड़ी की रस्सी पकड़ी और उसे खींचते हुए सड़क पर आ गया।
"भारत माता की जय ! भारत माता की जय ! अचानक सड़क पर आते ही अजय की तोतली आवाज से वातावरण गूंज उठा।"
अजय से कुछ दूरी पर शीघ्र ही भीड़ जमा हो गयी। भीड़ में कुछ पुलिस वाले भी थे, जो अजय को जानते थे। सभी आपस में खुसुर- फुसुर कर रहे थे-"अब भारत को आजाद होने से कोई नहीं रोक सकता। भारत अब जल्दी ही आजाद हो जायेगा। देखते नहीं ? नन्हें क्रांतिकारी ने हाथों में तिरंगा उठा लिया है। मुझे तो यह बच्चा क्रांतिदूत सा लगता है।
आओ चलें इसके साथ।"
और फिर कुछ ही क्षणों में भीड़ में सभी लोगों के पास तिरंगे आ गये तथा पूरा इलाका 'भारत माता की जय ! भारत माता की जय !' के उद्घोष से गूंज उठा।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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