Nanha Krantikari Hindi Children's Story Collection Book by Parshuram Shukla, Kids Stories in Hindi, Prerak Bal Kahaniyan.
Vidyawati Badal Gayi : Bal Kahani
बाल कहानी विद्यावती बदल गयी : नैतिक एवं चारित्रिक विकास के साथ, बच्चों के बौद्धिक विकास में सहयोगी कहानियां नन्हा क्रांतिकारी बाल कहानी संग्रह से परशुराम शुक्ल की प्रेरक बाल कहानी विद्यावती बदल गयी। पढ़े ये कहानी और बच्चों को सुनाएं।
Hindi Moral Story : Vidyawati Changed
विद्यावती बदल गयी
रामू और महेश बहुत अच्छे मित्र थे। वे दोनों सोनपुर के प्राइमरी स्कूल में पाँचवीं कक्षा में पढ़ते थे। रामू और महेश साथ-साथ स्कूल जाते और साथ-साथ ही घर लौटते ।
रामू और महेश दोनों पढ़ाई में बहुत तेज थे। वे दोनों खूब मन लगाकर पढ़ते थे और अच्छे नम्बरों से पास होते थे, किन्तु कभी- कभी कुछ पारिवारिक कारणों से महेश पढ़ने- लिखने में रामू से पीछे छूट जाता था।
रामू और महेश के घर आमने-सामने थे। दोनों के परिवारों में बहुत अच्छी पटती थी। रामू की माँ कलावती कभी महेश के घर पहुँच जाती, तो कभी महेश की माँ विद्यावती के घर आ जाती। दोनों अपने-अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को लेकर अच्छी-अच्छी बातें करती रहतीं, लेकिन कभी-कभी दोनों में थोड़ी- बहुत नोक-झोंक भी हो जाती थी। महेश की "माँ विद्यावती पुराने विचारों की थी। वह पुरानी मान्यताओं और रीति-रिवाजों पर आँखें बन्द करके विश्वास करती थीं, जबकि रामू की माँ कलावती अंधविश्वासों को बिल्कुल भी नहीं मानती थीं।
विद्यावती के अंधविश्वास के कारण कई बार उनका तथा महेश का भारी नुकसान हो चुका था। एक बार महेश को जिलास्तरीय खेलों में चुने जाने के बाद भी विद्यावती ने नहीं जाने दिया, क्योंकि पंडित जी ने उन्हें बताया कि बेटे के लिये यात्रा शुभ नहीं है। इसी तरह उन्होंने एक बार महेश के पिताजी को स्टेशन जाने से रोक लिया, क्योंकि उनके घर से निकलते ही पड़ोसन ने छींक दिया था। विद्यावती को यदि छोटा सा भयानक सपना भी दिखाई दे जाता, तो वे घबरा उठती थीं और दुनिया भर के पूजा-पाठ करवा डालती थीं।
विद्यावती यूँ तो सभी तरह के अपसगुनों से घबरा उठती थीं, लेकिन काली बिल्ली के रास्ता काट जाने पर तो वे उस रास्ते से न तो स्वयं जाती थीं और न ही अपने घर के किसी व्यक्ति को जाने देती थीं। उनके अनुसार काली बिल्ली का रास्ता काटना सर्वाधिक अनिष्टकारी था।
एक बार की बात है रामू और महेश की बोर्ड की परीक्षाएँ चल रही थीं। हमेशा की तरह इस बार भी महेश और रामू ने साथ- साथ पढ़ाई की थी और परीक्षा की बहुत अच्छी तैयारी की थी।
रामू और महेश की परीक्षा का अन्तिम दिन था। दोनों मित्र ठीक समय पर अपने- अपने घरों से स्कूल जाने के लिए बाहर निकले।
कलावती और विद्यावती भी अपने-अपने बेटों को छोड़ने के लिए घर से बाहर आयीं। रामू और महेश ने अपनी-अपनी माताओं के पैर छुए और स्कूल की ओर चल पड़े। दोनों मित्र अभी कुछ ही कदम आगे बढ़े थे कि न जाने कहाँ से एक काली बिल्ली प्रकट हुई और उनका रास्ता काटती हुई पास के मकान में घुस गयी।
काली बिल्ली के रास्ता काटते ही विद्यावती के चेहरे पर चिन्ता और घबराहट की रेखाएं उभर आयीं। उन्होंने तुरन्त आवाज देकर महेश को बुलाया और उसे एक गिलास पानी पिलाया और दूसरे रास्ते से जाने को कहा।
दूसरा रास्ता बहुत लम्बा था और खेतों की तरफ से घूमकर जाता था। उस रास्ते से जाने पर आधा घंटा अधिक लगता था। इससे स्कूल पहुँचने में देर होना निश्चित था।
कलावती सामने खड़ी थीं। उन्होंने रामू को सीधे रास्ते से जाने को कहा और विद्यावती को समझाया कि महेश को भी उसी रास्ते से जाने दें, किन्तु विद्यावती पर कलावती की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। महेश रामू के साथ स्कूल जाना चाहता था, लेकिन विद्यावती के सामने उसकी एक न चली और उसे खेतों वाले रास्ते से स्कूल जाना पड़ा।
शाम को जब रामू और महेश लौटे तो रामू का चेहरा तो सामान्य था, लेकिन महेश का चेहरा उतरा हुआ था। स्कूल में आधा घंटा देर से पहुँचने के कारण पहले तो हेड मास्टर साहब ने परीक्षा में बैठने से मना कर दिया। फिर बहुत हाथ पैर जोड़ने के बाद उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी। इससे महेश का पेपर बिगड़ गया। वह परेशान होने और देर से पहुँचने के कारण आधे प्रश्न भी नहीं हल कर पाया था। दूसरी तरफ रामू ठीक समय पर स्कूल पहुँच गया था और पूरे प्रश्न ठीक-ठीक हल करके आया था।
एक माह बाद परीक्षाफल निकला। रामू, हमेशा की तरह अच्छे नम्बरों से पास हुआ, किन्तु महेश का पास होना दूर की बात, अन्तिम पेपर खराब होने के कारण वह फेल हो गया था। महेश को अपना परीक्षाफल देखकर इतना दुख हुआ कि वह नदी में डूब मरने के लिए चल पड़ा, किन्तु किसी तरह रामू ने उसे रोका और समझा-बुझा कर घर ले आया।
कलावती रामू का परीक्षाफल देखकर बहुत खुश हुई, किन्तु जब उन्होंने महेश का परीक्षाफल देखा तो उदास हो गयीं और महेश को लेकर सीधी विद्यावती के पास पहुँची।
विद्यावती को महेश के फेल होने का समाचार पहले ही मिल चुका था। वह आँगन में सर झुकाये बैठी थी।
"बहन ! उस दिन मैंने तुमसे कितनी बार कहा था कि अंधविश्वासों पर भरोसा मत करो। बिल्ली के रास्ता काट जाने से कुछ नहीं होता। ये सब बेकार की बातें हैं। महेश को स्कूल जाने दो। लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी। देखों, तुम्हारी गलती का फल तुम्हारे बेटे को भुगतना पड़ा।" कलावती समझाते हुए बोली।
"अब मुझे और शर्मिन्दा मत करो बहन ! मैं पहले से ही दुखी हूँ। मेरी नादानी से मेरे बेटे का एक साल खराब हो गया। मुझे तो चन्दन की माँ ने बताया था कि यह मरने....।" दुख के कारण विद्यावती की आवाज गले में ही फंस कर रह गयी और वह फफक-फफक कर रोने लगी।
"कोई बात नहीं बहन ! सुबह का भूला शाम तक घर वापस आ जाये, तो उसे भूला नहीं कहते। अब इन अंधविश्वासों और उल्टी- सीधी बातों पर भरोसा मत करना। आज के युग में इन सब बातों पर कोई विश्वास नहीं करता।" कलावती ने सान्त्वना दी।
"बहन! आज मैं कसम खाती हूँ। अब कभी इन बातों पर भरोसा नहीं करूँगी। काली बिल्ली रास्ता काटे या लाल बिल्ली। अब तो वही करूँगी, जो तुम कहोगी।"
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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