वफादार कुत्ता : बालमन की सुन्दर प्रेरणादायक हिन्दी कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Nanha Krantikari Hindi Children's Story Collection Book by Parshuram Shukla, Kids Stories in Hindi, Bal Kahaniyan.

Bal Kahani : Vafadar Kutta

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बाल कहानी वफादार कुत्ता : बच्चों मन ओस की बूंद की तरह।साफ होता है, बच्चों को बचपन से ही अच्छी आदतें सिखाना चाहिए और उनमें मूल्यों का विकास करने के लिए अच्छी अच्छी कहानियां सुनाना चाहिए, क्योंकि बच्चों को कहानियां सुनाना बहुत पसंद है और कहानियों के माध्यम से बच्चों में सकारात्मक सोच बढ़ती है और उनमें सच्चाई, ईमानदारी, मेहनत आदि भावनाएं जगाने में कहानियां सहायक सिद्ध हो सकती हैं, तो ऐसी ही एक कहानी नन्हा क्रांतिकारी बाल कहानी संग्रह से संग्रहित वफादार कुत्ता आपके लिए प्रस्तुत है, पढ़िए ये रोचक और प्रेरणादायक बाल कहानी।

Children's Story Loyal Dog

वफादार कुत्ता

एक गाँव में एक शिकारी रहता था। उसके पास भयानक भेडिये जैसा एक कुत्ता था। शिकारी जब कभी भी शिकार के लिए जाता, तो अपने कुत्ते को अवश्य ले जाता। शिकारी अपनी बन्दूक से शिकार करता, किन्तु उसका कुत्ता बिना बन्दूक के ही दो-चार खरगोश मार लेता।

एक बार शिकारी बीमार पड़ गया। उसके न पत्नी थी, न बच्चे। न माँ-बाप, न कोई बहन। वह अपने परिवार में बिल्कुल अकेला था। कुछ दिन तक गाँव वाले शिकारी को खाना-पीना पहुँचाते रहे, किन्तु जब वह एक महीने तक ठीक नहीं हुआ, तो धीरे-धीरे उन्होनें उसके घर आना बन्द कर दिया।

शिकारी के पास उसका वफादार कुत्ता चौबीस घंटे बैठा रहता। वह अपने स्वामी की बीमारी से बड़ा दुखी था। इसी दुख में उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया था।

शिकारी बड़ा चिंतित था। उसकी बीमारी ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी। पिछले दो दिनों से एक अन्न का दाना उसके मुँह में नहीं गया था। बीमारी और भूख ने उसे इतना चिड़चिड़ा बना दिया था, कि उसने एक दिन सवेरे-सवेरे अपने वफादार कुत्ते को मारकर घर से निकाल दिया।

कुत्ता बड़ा समझदार था। वह सीधा जंगल पहुँचा और दो बड़े-बड़े खरगोश मारे। उसने उन्हें अपने मुँह में दबाया और दोपहर होने से पहले ही अपने स्वामी के सामने आ खड़ा हुआ।

शिकारी का भूख के मारे बुरा हाल था।

बीमारी ने उसका शरीर इतना अशक्त बना

दिया था कि वह हिलडुल भी नहीं पाता था। बिस्तर पर पड़ा-पड़ा वह दुखी हो रहा था। तभी दो खरगोश देखकर वह चौंक पड़ा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

भोजन देखकर शिकारी के शरीर में न जाने कहाँ की शक्ति आ गयी। उसने उठकर अपने वफादार कुत्ते की पीठ थपथपाई और खरगोश साफ करके उन्हें भूनने लगा। शिकारी ने एक खरगोश स्वयं खाया और एक अपने कुत्ते को खिलाया।

पन्द्रह दिन तक यही क्रम चलता रहा। शिकारी का कुत्ता प्रतिदिन प्रातः जंगल जाता और दोपहर को दो-तीन खरगोश मारकर ले आता।

शिकारी कुछ दिनों में ठीक हो गया।

अब वे दोनों फिर से पहले की तरह शिकार करने लगे।

धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गये।

एक बार शिकारी का कुत्ता बीमार पड़ गया। शिकारी ने उसे दो-चार दिन खाना- पीना दिया और फिर लापरवाई करने लगा। बेचारा कुत्ता झोंपड़ी के एक कोने में चुपचाप पड़ा रहता।

कुछ ही दिनों में कुत्ते की बीमारी शिकारी को अखरने लगी। वह बिना बात की बात उसे मारता और खाना-पीना देना बन्द कर * देता। बेजबान निरीह प्राणी सब कुछ चुपचाप सहन कर लेता।

एक दिन शिकारी को जंगल में कोई शिकार नहीं मिला। वह क्रोध से झुंझलाता हुआ आधी रात को घर लौटा और सारा गुस्सा कुत्ते पर उतारा। उसने बीमार कुत्ते को चमड़े की बेल्ट से पीटा और घर से निकाल दिया।

बेचारा कुत्ता, रात भर अपने अत्याचारी स्वामी के दरवाजे पर पड़ा कराहता रहा।

दूसरे दिन सुबह जब शिकारी बाहर आया तो कुत्ते को देख उसे पुनः क्रोध आ गया। उसने फिर उसे मारा और रस्सी से बाँधकर जंगल ले गया। जंगल में कुत्ते को उसने एक पेड़ से बाँधा और वापस आ गया। शिकारी ने सोचा कि पेड़ से बँधे कुत्ते को जानवर खा जायेंगे या वह वहीं बँधा-बँधा मर जायेगा। वह बीमार कुत्ते को किसी भी कीमत पर अपने पास नहीं रखना चाहता था।

कुत्ते को जंगल में छोड़कर शिकारी ने राहत की साँस ली। अब वह अकेले ही शिकार करता, खाता-पीता और मस्त रहता।

धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गये।

शिकारी अब बूढ़ा हो गया था। उसमें जंगल जाने और शिकार करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। फिर भी अपना पेट भरने के लिये वह जंगल जाता और शिकार करता।

एक दिन शाम का समय था। शिकारी एक मरा हुआ जानवर झोले में डालकर जंगल से लौट रहा था। अचानक उस पर पीछे से एक तेंदुए ने हमला कर दिया।

शिकारी के पास बन्दूक थी, किन्तु तेंदुए ने हमला इस तरह एकाएक छुपकर किया था, कि उसे गोली चलाने का अवसर ही न मिल सका। वृद्ध होने के कारण उसमें तेजी और फुर्ती भी नहीं रह गयी थी।

तेंदुए के आक्रमण से शिकारी जमीन पर आ गिरा। तेंदुए ने शिकारी पर दूर से ही छलांग लगायी। अतः वह भी अपने को न संभाल सका और शिकारी के साथ ही जमीन पर गिरा।

शिकारी से तीन-चार फिट की दूरी पर पड़ा तेंदुआ उठकर खड़ा हुआ और फिर झपटा।

शिकारी ने भय से आंखें बन्द कर लीं। उसने समझ लिया कि अब उसका अन्तिम समय आ गया है। तभी अचानक 'धप' की आवाज हुई और एक अन्य जानवर न जाने कहाँ से आकर तेंदुए से भिड़ गया।

शिकारी ने चौंककर आँखें खोली।

उसने जो कुछ भी देखा, तो देखता ही रह गया। एक लम्बा-चौड़ा खूंखार जंगली कुत्ता तेंदुए से जूझ रहा था। शिकारी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। यह उसका अपना वफादार कुत्ता था, जो जंगल की ताजी हवा में रहकर काफी तन्दुरुस्त हो गया था।

शिकारी कुछ पल यंत्रवत् सा यह दृश्य देखता रहा। उसकी घबराहट अभी गयी नहीं थी।

तभी वह सचेत हुआ। उसके वफादार कुत्ते की जान खतरे में थी। अतः उसने अपनी बन्दूक संभाली और निशाना लेकर दो फायर तेंदुए पर कर दिये।

तेंदुआ वहीं ढेर हो गया।

शिकारी ने झपटकर अपने कुत्ते को गोद में उठा लिया। उसका वफादार कुत्ता अंतिम साँसें ले रहा था। खूंखार भेडिए ने उसका पूरा शरीर लहूलुहान कर दिया था।

अपने मालिक की गोद में पहुँचते ही कुत्ते की आंखों में आँसू आ गये। उसने एक बार प्यार से अपने मालिक के हाथ पर जुबान फेरी और सदा के लिए शान्त हो गया।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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