चित्तौड़ की महान वीरांगना विद्युल्लता के बलिदान की कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharati Ki Mahan Virangana

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वीरांगना विद्युल्लता : महारानी पद्मिनी की सखियों में एक थी-विद्युल्लता। वह चित्तौड़ के एक राजपूत सरदार की बेटी थी। उसका विवाह समरसिंह नामक एक सैनिक से तय हो चुका था। पढ़िए ये सच्ची कहानी देशभक्ति जुनून की, बलिदान का पर्याय है विद्युल्लता।

True Inspirational Stories in Hindi

Virangana Vidyullata

भारत में एक लंबे समय तक मुस्लिम शासकों ने शासन किया। इनमें से कुछ शासक अकबर के समान ऊँचे आदर्शों वाले थे तथा इन्होंने अपने राज्य के विस्तार के साथ ही साथ हिन्दू, मुस्लिम एकता और भाई-चारे को बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए। कुछ मुस्लिम शासक इस्लाम के कट्टर समर्थक थे और इन्होंने अपनी बुद्धि और शक्ति दोनों का उपयोग इस्लाम के विकास के लिए किया। इन सबसे अलग भारत पर शासन करने वाले कुछ मुस्लिम शासक ऐसे थे, जिनमें न तो इंसानियत थी और न ही इस्लामी कट्टरता। ये बड़े क्रूर, निर्दयी अत्याचारी और चरित्रहीन शासक थे। इस प्रकार के मुस्लिम शासकों में अलाउद्दीन खिलजी का नाम प्रमुख है।

अलाउद्दीन स्त्रियों के रूप और सौन्दर्य का दीवाना था। एक बार उसने चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के सौन्दर्य की चर्चा सुनी और उसे पाने के लिए लालायित हो उठा। अलाउद्दीन ने पहले चित्तौड़ के राणा रत्नसेन को संदेश भेज कर उन्हें महारानी पद्मिनी को सौंपने के लिए कहा तथा राजा रत्नसेन के इंकार कर देने पर उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों की सेनाओं में भयानक युद्ध हुआ। एक ओर अलाउद्दीन की विशाल सेना थी, तो दूसरी ओर राजपूत रणबांकुरे। अलाउद्दीन को शीघ्र ही यह मालूम हो गया कि वह लड़कर महारानी पद्मिनी को प्राप्त नहीं कर सकता, अतः उसने छल के द्वारा रानी पद्मिनी को पाने की योजना बनायी।

अलाउद्दीन ने अपने एक दूत के द्वारा राणा रत्नसेन को संदेश भेजा कि यदि रत्नसेन एक दर्पण में पद्मिनी के रूप के दर्शन करा दे तो वह बिना युद्ध किए वापस लौटे जाएगा।

राजा रत्नसेन बड़े सरल व्यक्ति थे। उन्होंने महारानी प‌द्मिनी से विचार-विमर्श किया और अंत में उन्होंने अनावश्यक रक्तपात से बचने के लिए अलाउद्दीन की शर्त मान ली।

अलाउद्दीन राणा रत्नसेन के महल में पहुँचा और उसने महारानी पद्मिनी के रूप को दर्पण में देखा तो महारानी को पाने की उसकी इच्छा और बलवती हो उठी। उसने राणा रत्नसेन को धोखे से बंदी बना लिया और उनके सामने महारानी को सौंपने की शर्त रखी।

महारानी पद्मिनी भी कम बुद्धिमान न थी। उसने छल का बदला छल से लिया और राणा रत्नसेन को अलाउद्दीन की कैद से छुड़ा लायी। इससे अलाउद्दीन का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुँचा और उसने एक विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी।

अलाउद्दीन की सेना के पास बड़े घातक हथियार थे तथा उसे युद्ध का काफी अनुभव था। दूसरी तरफ राणा रत्नसेन की सेना बहुत छोटी थी। उसके पास न तो अच्छे अस्त्र-शस्त्र थे और न ही युद्ध का अनुभव । किंतु चित्तौड़ के स्वाभिमान की रक्षा के लिए राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहना और अलाउद्दीन की विशाल सेना के सामने आ डटे।

दोनों पक्षों में भीषण युद्ध आरम्भ हो गया। अलाउद्दीन के सैनिकों के पास युद्ध कौशल था तो चित्तौड़ के सैनिकों के हृदय में देशप्रेम और स्वाभिमान ! दोनों किसी से कम न थे।

धीरे-धीरे कई दिन बीत गये।

महारानी पद्मिनी युद्ध की स्थिति को लेकर बड़ी चिंतित थीं। उन्हें लगा कि मेवाड़ के मुट्ठीभर सैनिक अलाउद्दीन की विशाल सेना का अधिक समय तक सामना नहीं कर सकेंगे, अतः उन्होंने अपनी सखियों के साथ जौहर करने का निश्चय किया।

महारानी पद्मिनी की सखियों में एक थी-विद्युल्लता। वह चित्तौड़ के एक राजपूत सरदार की बेटी थी। उसका विवाह समरसिंह नामक एक सैनिक से तय हो चुका था। विद्युल्लता और समरसिंह के विवाह की तैयारियां बड़े जोर-शोर से चल रही थीं। तभी अचानक अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। चित्तौड़ के अन्य राजपूत सैनिकों के समान ही समरसिंह को भी युद्ध में जाना पड़ा।

समरसिंह एक बहादुर योद्धा था। किंतु विद्युल्लता के प्रेम ने उसे कमजोर बना दिया था। वह युद्ध करते हुए मरना नहीं चाहता था, बल्कि विद्युल्लता के साथ सुख से जीवन बिताना चाहता था।

इधर अलाउद्दीन और राणा रत्नसेन की सेनाओं के मध्य होने वाला युद्ध समाप्त ही नहीं हो रहा था। दोनों पक्ष अपनी पूरी शक्ति के साथ एक दूसरे को परास्त करने के लिए जूझ रहे थे। ऐसे में एक दिन समरसिंह चुपचाप युद्ध भूमि से भाग आया और सीधा विद्युल्लता के पास पहुँचा।

विद्युल्लता ने समरसिंह को देखा तो चकित-सी रह गयी। समरसिंह को तो युद्ध भूमि में होना चाहिए था। वह यहाँ कैसे ?

विद्युल्लता के कुछ पूछने के पहले ही समरसिंह ने उसे बताया कि अलाउद्दीन की विशाल सेना बड़ी शक्तिशाली है। चित्तौड़ के मुट्ठी भर सैनिक उसके सामने अधिक समय तक नहीं टिक पाएंगे। चित्तौड़ की हार निश्चित है। अतः वह युद्ध भूमि से भाग कर उसके पास आ गया है। समरसिंह ने विद्युल्लता से कहीं दूर भाग चलने के लिए और सुख से जीवन बिताने के लिए भी कहा।

विद्युल्लता ने समरसिंह की कायरता पूर्ण बातें सुनीं तो उसका राजपूती खून खौल उठा। उसने क्रोध में आकर समरसिंह को कायर एवं कापुरुष तक कह डाला तथा बुरी तरह धिक्कारा।

समरसिंह को विद्युल्लता से ऐसी आशा न थी। वह उससे बुरी तरह अपमानित होकर लौट गया।

समरसिंह को पूरा विश्वास था कि चित्तौड़ की सेना हारेगी और अलाउद्दीन की जीत होगी, अतः उसने चित्तौड़ के साथ गद्दारी की और अलाउद्दीन से जा मिला।

समरसिंह जैसे गद्दारों से अलाउद्दीन को काफी बल मिला। उसे समरसिंह के द्वारा चित्तौड़ के सैनिकों और वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था की बहुत-सी महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, जिन्होंने उसके उद्देश्य को बड़ा सरल बना दिया और शीघ्र ही अलाउद्दीन की सेना ने चित्तौड़ को परास्त कर दिया।

चित्तौड़ की पराजय के बाद समरसिंह कुछ मुस्लिम सैनिकों के साथ विद्युल्लता के निवास की ओर चल पड़ा। वह समझता था कि विद्युल्लता उसे विजेता सैनिकों के साथ देखकर बड़ी खुश होगी और उसके गले में जयमाला डाल देगी।

इधर विद्युल्लता चित्तौड़ की पराजय से दुखी थी। उसने जब समरसिंह को मुस्लिम सैनिकों के साथ आते हुए देखा तो शीघ्र ही सब कुछ समझ गयी। उसे पक्का विश्वास हो गया कि समरसिंह गद्दार हो चुका है और उसकी गद्दारी के कारण ही चित्तौड़ की परायज हुई है।

समरसिंह विद्युल्लता की भावनाओं से पूरी तरह अपरिचित था। उसने आते ही विद्युल्लता को प्यार से पुकारा और उसकी ओर तेजी से बढ़ा।

"दूर हट पापी। देशद्रोही। गद्दार। तेरा स्पर्श भी मुझे अपवित्र कर देगा।" विद्युल्लता दुख और क्रोध से चीखी।

"प्रिये ! मेरी बात तो सुनो। मैं".... समरसिंह ने कुछ कहना चाहा, किंतु उसकी बात अधूरी रह गयी।

"चुप रह नीच ! मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहती। तेरे जैसे देशद्रोही के कारण ही चित्तौड़ की परायज हुई। तेरे जैसे गद्दार के कारण ही महारानी पद्मिनी ने जौहर किया। मैं तुझसे घृणा करती हूँ। यदि तुझमें थोड़ी बहुत भी शर्म बची है तो दूर हो जा मेरे सामने से।" विद्युल्लता समरसिंह की बात काटती हुई बोली।

सिंह विद्युल्लता के प्रेम में अंधा हो चुका था। उसने विद्युल्लता की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसे अपन बाँहों में भरने के लिए आगे बढ़ा।

विद्युल्लता समरसिंह का इरादा समझ गयी। उसने कुछ ही क्षणों में एक भयानक निर्णय ले लिया। समरसिंह उसके निकट आता और उसे आलिंगन में लेता, इसके पहले ही विद्युल्लता के हाथों में एक खंजर चमका और उसके सीने में उतर गया।

समरसिंह ठगा-सा खड़ा सब कुछ देखता रह गया। उसकी कायरता और गद्दारी की उसे सजा मिल चुकी थी। जिस विद्युल्लता के लिए उसने चित्तौड़ से गद्दारी की थी, जिस विद्युल्लता के साथ उसने सुख से जीवन व्यतीत करने के सपने देखे थे, वह विद्युल्लता उसे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थी।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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