तूफान के बाद : बाल निर्माण की हिंदी प्रेरक कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Nanha Krantikari Hindi Children's Story Collection Book by Parshuram Shukla, Kids Stories in Hindi, Bal Kahaniyan.

Bal Kahani : Toofan Ke Baad

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बाल कहानी तूफान के बाद : कहानी लोकप्रिय विधा है बाल साहित्य की, खासकर बच्चों को कहानी बहुत पसंद है, बाल कहानियां ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों को केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि नैतिक शिक्षा भी दें और उनमें मूल्यों का निर्माण भी करें, आज ऐसी ही एक कहानी नन्हा क्रांतिकारी बालकथा संग्रह से परशुराम शुक्ल की लिखी प्रेरक बाल कहानी तूफान के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत है, पढ़े और साझा करें।

Children's Story : After The Storm

तूफान के बाद

एक गाँव में रतनसिंह नामक एक धनी जमींदार रहता था। वह बड़ा दुष्ट और अत्याचारी था। गाँव के गरीब किसानों से वह अपने खेतों पर कड़ी मेहनत कराता और बदले में उन्हें बहुत कम मजदूरी देता

गाँव में रतनसिंह की विशाल हवेली थी। हवेली में बहुत से नौकर-नौकरानियाँ काम करते थे। उन्हीं में एक नौकरानी थी - कमली। कमली बड़ी सीधी-सादी और नेक महिला थी। चार वर्ष पहले उसके पति की बिजली गिरने से मृत्यु हो गयी थी। पाँच वर्ष की उसकी एक बेटी थी- रानी। रानी के अतिरिक्त कमली का संसार में कोई न था। माँ-बेटी दोनों किसी तरह गरीबी में अपने दिन गुजार रही थीं।

जमींदार रतनसिंह के परिवार में भी उसके बेटे मोहन के अतिरिक्त कोई नहीं था। उसकी पत्नी दो वर्ष पूर्व मर गयी थी। जमींदार रतनसिंह ने कुछ ही दिनों बाद दूसरा विवाह कर लिया था, लेकिन उसके अत्याचारों से घबराकर दूसरी पत्नी अपनी मायके चली गयी और फिर कभी नहीं लौटी।

रतनसिंह अपने बेटे मोहन को बहुत प्यार करता था। मोहन उसकी आँखों का तारा था। वह उसे पल भर के लिए अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देता था।

कमली रतनसिंह की हवेली में भोजन पकाने का काम करती थी। वह अपने साथ अपनी बेटी रानी को भी हवेली में ले आती। रानी और मोहन एक साथ खेलते रहते और कमली हवेली में खाना बनाती रहती।

एक दिन कमली रसोईघर में थी, तभी मोहन दौड़ता हुआ आया और दूध माँगने लगा। वह बहुत देर से खेल रहा था, अतः उसे भूख लग आयी थी। रानी उसके पीछे खड़ी थी।

कमली ने मोहन को एक गिलास दूध दिया और फिर अपने काम में लग गयी। तभी रानी ने भी दूध माँगा।

कमली ने उसे डॉट दिया। रानी रोने लगी। मोहन को यह सब बड़ा अजीब लगा। उसने आधा दूध पिया और शेष रानी को दे दिया।

रानी ने दूध का गिलास मुँह से लगाया ही था कि रतनसिंह आ गया। उसने बड़ी क्रोधित दृष्टि से कमली को घूरा और भरपूर हाथ गिलास पर मारा। सारा दूध रसोई में फैल गया।

"अपनी औकात भूल गयी, कमली ? चोरी करती है ? मेरे घर का दूध चुराकर अपनी लाडली को पिला रही थी। चल निकल जा अभी हवेली से, नहीं तो तेरी बोटी-बोटी काट कर फेक दूँगा।" रतनसिंह चीखा।

कमली ने सफाई देने की कोशिश की, लेकिन रतनसिंह ने एक न सुनी। कमली रानी को लेकर सिसकती हुई घर आ गयी।

धीरे-धीरे एक वर्ष बीत गया।

बरसात के दिन थे। कमली मजदूरी करके लौट रही थी। अचानक जोर-जोर से बादल गरजने लगे और तूफान आ गया। वह किसी तरह घर पहुँची। तभी तेज वर्षा आरम्भ हो गयी।

कमली रानी को गोद में लेकर एक कोने में बैठ गयी। झोंपड़ी में तेजी से पानी भर रहा था। बड़ा भयानक तूफान था। ऐसा लग रहा था, मानो प्रलय होने वाली हो।

तभी बाहर से शोर की आवाज सुनकर कमली चौंक पड़ी। उसे लगा मानो सैंकड़ों लोग चीख रहे हों। वह रानी को गोद में उठाये, झोंपड़ी से बाहर निकली।

बाहर का दृश्य देखते ही उसके होश उड़ गये। चारों ओर बाढ़ का भयानक प्रकोप था। लोग अपने-अपने बच्चों को कंधे पर बैठाये तेजी से भागे जा रहे थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थी। सभी को अपनी जान बचाने की फिक्र थी।

कमली ने भी रानी को कंधे पर बैठाया और भीड़ के साथ चल दी।

कमली कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि उसे मोहन की याद आयी। शाम का समय था। वह जानती थी कि इस समय मोहन घर में अकेला होता है। उसके कदम रुक गये। उसके सामने मोहन को भोला-भाला चेहरा घूम गया।

कमली जब हवेली में पहुँची तो मोहन बगीचे में खड़ा कमर तक डूबा पानी में खड़ा रो रहा था। अचानक कमली को देखकर वह जोर से चीखा।

कमली ने दौड़कर उसे संभाला और दोनों बच्चों को उठाकर सुरक्षित स्थान की ओर अकेली ही चल पड़ी।

पाँच दिन बाद पानी और तूफान का प्रकोप समाप्त होने पर कमली गाँव वालों के साथ वापस लौटी।

इधर रतनसिंह की स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो रही थी। वह अपने बेटे की खोज में न जाने कहाँ-कहाँ भटक रहा था। अन्त में उसे विश्वास हो गया कि मोहन उसे अब नहीं मिलेगा।

तभी कमली मोहन का हाथ पकड़े हुए हवेली पहुँची।

रतनसिंह ने झपटकर अपने बेटे को गले से लगाया। मोहन से जब उसे सारी बातें मालूम हुईं तो वह बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने कमली से केवल क्षमा ही नहीं मांगी, बल्कि हमेशा के लिए गरीबों पर अत्याचार करना भी छोड़ दिया।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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