Hindi Moral Stories Chalak Chiku aur Dusth Bediya book by Parshuram Shukla Hindi Children's Stories, Inspirational Kids Stories in Hindi, Bal Kahaniyan in Hindi.
Munmun aur Monu : Bal Kahani
बाल कहानी मुनमुन और मोनू : बाल कहानियां लिखना एक कला है तो उनको सुनाना भी एक कला है। यह कला सभी के पास नहीं होता, हमारे बुजुर्ग इस कला को जानते थे। किसी समय दादा दादी, नाना नानी इस कला में पारंगत थे, बच्चों को पसंद आए जैसे ढेरों कहानियां इन्हें जबानी याद रहती थीं। लेकिन आजकल न तो बुर्जुगों के पास जाकर कहानियां सुनने के लिए बच्चों के पास समय ही नहीं है, पंचतंत्र, हितोपदेश, ईसप, हातिमताई, अलीफ़लैला जैसी कहानियां आज बच्चे जानते तक नहीं है, इस कमी को पूरा करने के लिए आज आपके लिए एक कहानी लेकर आए है पढ़िए बाल कहानी मुनमुन और मोनू और शेयर कीजिए।
Kids Moral Story in Hindi
मुनमुन और मोनू
घने जंगल में मुनमुन बया रहती थी। उसने न जाने कहाँ से घास-फूस और तिनके लाकर अपना घोसला तैयार किया। मुनमुन एक कुशल कारीगर चिड़िया थी। उसने एक-एक तिनके को इस तरह एक-दूसरे में फँसा कर घोंसला बनाया था कि विश्वास ही नही होता था कि यह एक चिड़िया का घोंसला है। मुनमुन का घोंसला सभी पक्षियों से सुन्दर था। दूर-दूर से पक्षी उसका घोंसला देखने आते थे। इनमें बहुत से पक्षी ऐसे थे, जो मुनमुन का घोंसला देखकर खुश होते थे और उसकी प्रशंसा करते थे। मुनमुन का घोंसला वास्तव में बहुत सुन्दर था, बस उसमें एक कमी थी - प्रकाश की।
चाँदनी रातों में तो मुनमुन के घोंसले में प्रकाश रहता था, लेकिन अंधेरी रात में घना अंधकार। इतना घना अंधकार कि मुनमुन को अपनी नन्हीं लाडली बच्ची चिनी भी दिखाई न देती थी।
एक दिन जंगल में खूब पानी बरसा और शाम तक बरसता रहा। पानी इतना तेज था कि मुनमुन दाना चुगने भी न जा सकी।
मुनमुन बहुत भूखी थी। सुबह से उसने कुछ भी नहीं खाया था।
बरसात बन्द होते ही मुनमुन दाना चुगने के लिए अपने घोंसले से बाहर निकली। पहले उसने अपनी चोंच में दाने भरकर नन्हीं चिनी को खिलाये फिर अपना पेट भरने के लिए घने जंगल में चली गयी।
मुनमुन को तेज भूख लगी थी। इसलिए वह बड़ी देर तक दाने चुगती रही। उसे समय की भी याद न रही। रात का अंधेरा होने पर उसे होश आया।
मुनमुन ने अपने चारों तरफ देखा। बरसात की रात। आसमान पर घने बादल और दूर- दूर तक घना अंधकार। चारों तरफ का वातावरण बड़ा डरावना लग रहा था।
मुनमुन भयभीत हो उठी। वह अपने घोंसले का रास्ता भूल गयी। इतने घने अंधेरे में अब वह किसी तरह भी अपने घोंसले तक नहीं पहुँच सकती थी।
मुनमुन को नन्हीं चिनी की याद आ रही थी। वह सोच रही थी। बेचारी चिनी न जाने किस हाल में होगी।
मुनमुन को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। भय और घबराहट के कारण उसकी जान निकली जा रही थी।
तभी मुनमुन की दृष्टि चमकते हुए एक जीव पर पड़ी। यह मोनू जुगनू था। मुनमुन की उदास आँखों में चमक आ गयी। वह फुर्ती से उड़ती हुई मोनू के पास पहुँची।
"मोनू-मोनू ! क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?" बया हाँफते हुए बोली।
"मैं छोटा सा जीव। तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ?" मोनू आश्चर्य से बोला। वह मुनमुन को अच्छी तरह पहचानता था, और उसे प्रतिदिन जंगल में दाने चुगते देखता था।
"मोनू भैया! मैं अपने घर का रास्ता भूल गयी हूँ। नन्हीं चिनी अकेली है। उसकी याद में मैं परेशान हूँ। बेचारी न जाने किस हाल में होगी ? तुम मुझे मेरे घोंसले तक पहुँचा दो।" मुनमुन बड़ी विनम्रता से बोली।
"ठीक है मुनमुन रानी ! मेरे पीछे-पीछे आओ।" कहते हुए मोनू एक ओर उड़ चला।
मुनमुन मोनू के पीछे-पीछे उड़ चली।
मुनमुन मोनू के पीछे उड़ती हुई अपने घोंसले तक पहुँच गयी। उसने मोनू को धन्यवाद दिया और अपने घोंसले में ठहरने का आग्रह किया।
मोनू दिनभर एक पेड़ पर बैठा पानी में भींगता रहा था। उसे अभी भी ठंड लग रही थी। अतः वह मुनमुन के घोंसले में रहने के लिए तैयार हो गया।
जैसे ही मोनू मुनमुन के घोंसले में आया। घोंसला प्रकाश से भर उठा।
मुनमुन की खुशी का ठिकाना न रहा।
मोनू के प्रकाश में मुनमुन ने देखा, नन्हीं चिनी मीठी नींद सो रही थी। मोनू के कारण मुनमुन अपने घोंसले तक पहुँच सकी थी। इतना ही नहीं, उसका घोंसला प्रकाशमान भी हो गया था। अतः उसने मोनू से हमेशा के लिए घोंसले में रह जाने का आग्रह किया। मोनू को भी एक आश्रय की तलाश थी, अतः उसने मुनमुन की बात मान ली।
इसके बाद मुनमुन और मोनू दोस्त बन गये और साथ-साथ रहने लगे।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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