वीरांगना पद्मा : मालवा इतिहास की महिला योद्धा

Dr. Mulla Adam Ali
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Indian women warrior padma biography in Hindi, Bharatiya Veer Gathayein Book by Parshuram Shukla, Veer Mahila Padma.

Bharati Ki Mahan Virangana

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वीरांगना पद्मा : मालवा इतिहास की वीर महिला पद्मा का नाम आज भी बड़ी श्रद्धा (Great Ladies of India) से लिया जाता है, चौदह वर्ष की आयु में साहसी कदम उठाकर भारतीय वीरांगनाओं (Great Womens of Indian History in Hindi) में स्थान प्राप्त किया। भारतीय इतिहास की महिला योद्धा (Great Women's of Indian History in Hindi) पद्मा के बारे पढ़ें।

Malwa Warrior Padma

वीरांगना पद्मा

भारतीय नारी ने पत्नी बनकर पति को परमेश्वर के समान पूजा तो कभी माँ तथा बहन के रूप में अपने वीरों को तिलक लगा कर मातृभूमि की रक्षा के लिये भी भेजा। उसने कभी राखी बाँध कर भाई पर अपनी रक्षा का भार सौंपा तो कभी स्वयं केशरिया बाना पहनकर भाई की रक्षा भी की।

पद्मा एक ऐसी ही साहसी नारी थी। मालवा के इतिहास में पद्मा का नाम बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। पद्मा ने मात्र चौदह वर्ष की आयु में ऐसा साहसी कदम उठाया, जिसने उसे इतिहास में अमर कर दिया।

पद्मा का जन्म भोपाल के एक साधारण राजपूत घराने में हुआ था। अभी वह मात्र ढाई वर्ष की ही थी कि एक दुर्घटना में उसके माता-पिता का एक साथ देहान्त हो गया। पद्मा का एक मात्र भाई जोरावर सिंह अभी केवल सोलह वर्ष का था। जोरावर सिंह बड़ा निडर और साहसी था। उसने दुख की इस स्थिति में भी हिम्मत नहीं हारी और माता-पिता का क्रिया कर्म करने के बाद पद्मा का पालन-पोषण अपने छोटे भाई के समान करने का निश्चय किया।

जोरावर सिंह ने पद्मा को राजपूत बालकों के समान घुड़सवारी, तीरन्दाजी तथा तलवारबाजी की शिक्षा दी। पद्मा को आरम्भ से ही युद्ध विद्या में विशेष रुचि थी। वह हमेशा सैनिकों के समान कपड़े पहनती थी तथा उसका व्यवहार भी पुरुषों जैसा था। कभी-कभी तो उसका मर्दाना रूप देखकर जोरावर सिंह को भी भ्रम हो जाता था।

धीरे-धीरे पद्मा बड़ी हो गयी।

जोरावर सिंह अभी तक पिता द्वारा संचित धन से घर का खर्च चला रहा था। धन समाप्त होते ही उसने इधर-उधर काम के लिये प्रयास आरम्भ कर दिये। लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लगी। उन दिनों भोपाल में मुस्लिम नबाव का शासन था, अतः एक राजपूत को काम मिलना अत्यन्त कठिन कार्य था। अंत में मजबूर होकर जोरावर सिंह को एक महाजन से कर्ज लेना पड़ा।

जोरावर सिंह को विश्वास था कि शीघ्र ही कोई काम-धंधा मिल जायेगा और वह महाजन का कर्ज चुका देगा, किन्तु बहुत प्रयास के बाद भी उसे कहीं कोई काम नहीं मिला।

इधर महाजन का कर्ज तेजी से बढ़ रहा था। कुछ समय बाद उसने जोरावर सिंह से अपना धन माँगा।

जोरावर सिंह मजबूर था।

एक बार महाजन और जोरावर सिंह के मध्य कर्ज को लेकर विवाद हो गया। महाजन उसे धमकी देकर गया और उसने नवाब के दरबार में जोरावर सिंह की शिकायत कर दी।

जोरावर सिंह दोषी था, अतः उसे कैद कर लिया गया।

पद्मा अकेली रह गयी। उसे अपने साथ भाई की भी चिन्ता थी। वह बहुत समय तक विचार करती रही और अंत में उसने एक साहसी निर्णय ले लिया।

पद्मा ने राजपूत सैनिक का वेश धारण किया और भोपाल से ग्वालियर आ गयी। उस समय ग्वालियर में महाराजा दौलतराव सिन्धिया का शासन था।

महाराजा सिन्धिया पद्मा के युद्ध कौशल से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उसे अपनी सेना में सैनिक पद पर रख लिया।

पद्मा अब पद्मा से पद्मसिंह बन गयी।

उसी समय सिन्धिया और उनके एक शत्रु के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। यह लड़ाई तीन वर्ष तक चली। पद्मा ने इसमें इतनी बहादुरी का परिचय दिया कि उसे साधारण सैनिक से हवलदार बना दिया गया।

पद्मा अपने वेतन का कम से कम भाग खर्च करती और शेष भाग महाजन का कर्ज उतारने के लिये एकत्रित करती थी।

प‌द्मा अपने नारी रूप को छिपाये रखने के लिये एक सूने तालाब पर स्नान करती थी तथा सामान्यतया सबसे अलग रहने का प्रयास करती थी। उसके साथी साफ दाढ़ी-मूंछ वाले इस बहादुर सैनिक की एकान्त प्रिय आदत के कारण उसे शंकालु दृष्टि से देखते थे। एक दिन एक सेनापति ने पद्मा का पीछा किया और उसे तालाब में स्नान करते देख लिया। उसने इस बात की सूचना महाराजा सिन्धिया को दी।

महाराज को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने तुरंत सैनिक भेज कर पद्मा को दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया।

पद्मा को सैनिक का व्यवहार बड़ा विचित्र लगा, किन्तु उसने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और पुरुष वेश में दरबार में उपस्थित हो गयी।

महाराज बड़ी देर तक प्रशंसात्मक दृष्टि से पद्मा को देखते रहे फिर बड़े प्यार से उन्होंने पद्मा से पुरुष वेश धारण करने का कारण पूछा।

पद्मा अपना भेद खुल जाने के कारण थोड़ी देर के लिये विचलित हुई, किन्तु शीघ्र ही सँभल गयी।

महाराज के मृदु व्यवहार से प‌द्मा की आँखों में आंसू आ गये। उसने सिसकते हुए आरम्भ से अंत तक पूरी कथा सुना दी।

महाराज पद्मा की बहादुरी व साहस से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने पद्मा को सांत्वना दी और तुरंत जोरावर सिंह की रिहाई के लिये पत्र लिखकर एक सन्देश वाहक को भोपाल भेजा।

जोरावर सिंह शीघ्र ही छूटकर ग्वालियर आ गया।

महाराज ने उसे भी अपनी सेना में रख लिया और पद्मा का विवाह अपनी ही सेना के एक नायक से करा दिया।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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