चुगलखोर का अन्त : सचित्र बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Parshuram Shukla Ki Bal Kahani

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बाल कहानी चुगलखोर का अन्त : बच्चों के लिए दया करुणा, वीरता, शौर्य, पराक्रम, नेकी, ईमानदारी, सच्चाई, मेहनत, अहिंसा की सचित्र बाल कहानी संग्रह चालक चीकू और दुष्ट भेड़िया से  परशुराम शुक्ल की कहानी चुगलखोर का अन्त। chugalkhor ka anth bal hindi kahani.

Moral Story in Hindi

चुगलखोर का अन्त

खूंखार और हिंसक जीव-जन्तुओं से भरे घने जंगल में एक चुगलखोर सियार रहता था। वह प्रतिदिन दो जानवरों को चुनता और उनकी एक-दूसरे से बुराई करता। जंगल के सीधे-सादे जीव उसकी बातों में आ जाते और आपस में लड़ बैठते। जंगली जीवों की लड़ाई बड़ी भयानक होती। दो में से एक अवश्य मरता।

सियार इसी अवसर की तलाश में रहता और जैसे ही एक जानवर मरता, वह पहुँच जाता और बड़े आराम से उसको अपना आहार बनाता। इस तरह सियार को बिना श्रम किये भोजन मिल जाता था।

एक दिन सियार के मन में शेर का मांस खाने की इच्छा हुई। शेर जंगल का राजा था। उसका शिकार कोई साधारण पशु नहीं कर सकता था। सियार बड़ी देर तक विचार करता रहा और अन्त में उसने शेर और जंगली सूअर को आपस में लड़वाने का निश्चय किया।

सियार सीधा शेर के पास पहुँचा और अभिवादन करने के बाद बोला- 'शेर दादा ! तुम जंगल के राजा हो। किन्तु कल शाम को जंगली सूअर कह रहा था कि.... सियार ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।"

"जंगली सुअर क्या कह रहा था ?" शेर दहाड़ा।

"जंगली सुअर कह रहा था कि वह शेर से नहीं डरता। यदि शेर चाहे तो सुबह-सुबह नदी के किनारे मुझसे लड़ सकता है।" सियार ने डरने का अभिनय करते हुए अपनी बात पूरी की।

"ठीक है, मैं कल सुबह सुअर को देख लूँगा।" शेर क्रोध से बोला।

इसके बाद सियार जंगली सुअर के पास पहुँचा और उसे शेर के खिलाफ भड़काया। जंगली सुअर काफी शक्तिशाली था। वह भी क्रोधित हो उठा और उसने भी अगले दिन नदी के किनारे शेर को ठिकाने लगाने का निश्चय किया।

अगले दिन सवेरे-सवेरे जंगल के दोनों शक्तिशाली जीव नदी कि किनारे पानी पीने एक साथ पहुँचे। उनमें पहले कुछ तकरार हुई और फिर वे बिना पानी पिये ही एक-दूसरे से भिड़ गये। सियार पास ही खड़ा था। वह बड़ी कुटिलता से दोनों का युद्ध देख रहा था।

शेर और जंगली सुअर दोनों बहुत

शक्तिशाली थे। उन्हें लड़ते-लड़ते शाम हो गयी। वे बुरी तरह घायल हो गये थे, किन्तु उनमें से कोई भी अपनी हार मानने के लिए तैयार नहीं था।

सियार सुबह से भोजन की प्रतीक्षा करते- करते थक गया था, अतः पास के एक ठूंठ पर बैठ गया। यह बबूल का दूँठ था, जिसे एक लकड़हारे ने एक दिन पहले ही काटा था। अचानक शेर की आँखों में चमक आ गयी।

जंगली सुअर का दांत शेर के मस्तक से टकराया और शेर गिर पड़ा, लेकिन गिरते- गिरते शेर ने घायल जंगली सुअर को दोनों पंजों से पकड़ा और अपने तेज जबड़ों से उसका गला चबा डाला।

जंगली सुअर भी इस भयानक आक्रमण को न सहन कर सका और वहीं ढेर हो गया।

दोनों खूंखार हिंसक जीव ऐसे गिरे कि फिर उठ नहीं सके। सियार ने कुछ क्षण प्रतीक्षा की और जब उसे विश्वास हो गया कि दोनों मर चुके हैं तो उसने शेर का मांस खाने के लिए ठूंठ से उठने का प्रयास किया, किन्तु उठ न सका। वह बबूल के पेड़ से निकले गोंद से चिपक गया था। शेर ने एक हाथ का सहारा लेकर उठना चाहा तो उसका हाथ भी चिपक गया। सियार ने ठूंठ से उठने के लिए बहुत जोर लगाया। लेकिन वह जितना जोर लगाता, उतना ही चिपकता जाता। कुछ ही समय में सियार लाचार होकर ढीला पड़ गया।

अगले दिन जंगल के जीव-जन्तुओं ने देखा कि जंगल के दो महारथी मरे पड़े थे और उनके पास ही उन्हें लड़ाने वाला सियार भी ठूंठ से चिपका मरा पड़ा था।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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