गिलहरी की पूँछ : हिंदी की सचित्र बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Moral Stories Chalak Chiku aur Dusth Bediya book by Parshuram Shukla in Hindi, Kids Inspirational Stories, Bal Kahaniyan.

Gilhari Ki Poonch: Bal Kahani

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बाल कहानी गिलहरी की पूँछ : पिछले कुछ वर्षों से इंसान अपनी व्यस्तता के चलते, दूरदर्शन संस्कृति, तनाव ग्रस्त जीवन आदि के कारण बच्चों को कहानियां सुनाना भूलता जा रहा है, वैसे भी बच्चों को कहानियां सुनने के लिए समय नहीं है। समय है तो बड़ों को कहानियां नहीं आती। इस कमी को पूरा करने के लिए सचित्र बाल कहानी संग्रह चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया से आपके लिए परशुराम शुक्ल की लिखी एक बाल कहानी गिलहरी की पूँछ लेकर आए हैं, पढ़े और शेयर करें।

Hindi Story Squirrel Tail

गिलहरी की पूँछ

बहुत पुरानी बात है। एक बार शालू गिलहरी घूमते-घूमते जंगल से गाँव में आ पहुँची। शालू ने गांव में लोगों को विभिन्न प्रकार के काम करते देखा तो बहुत खुश हुई। उसे किसानों का खेती करना बहुत अच्छा लगा। शालू ने सोचा कि जंगल लौटकर वह भी खेती करेगी। अतः वह मन लगाकर खेती के काम सीखने लगी। धीरे-धीरे छह महीने हो गये। इतने दिनों में शालू ने खेती करना अच्छी तरह सीख लिया।

शालू ने खेती से संबंधित अन्य सभी कार्य भी सीखे और जंगल वापस आ गयी। उसने जंगल के एक छोटे से भाग को बड़ी मेहनत से साफ किया, जमीन के कंकड़-पत्थर बीन- बटोर कर फेंके और खेती योग्य भूमि तैयार कर ली। इसके बाद शालू ने अपने खेत में हल चलाया और गेहूँ के दाने बो दिये।

शालू ने अपने खेत में समय से पानी दिया और उसकी पूरी देखभाल की। उसकी मेहनत रंग लायी और कुछ ही दिनों में उसके खेत में छोटे-छोटे गेहूँ के बालियाँ निकल आयीं। शालू अपना हरा-भरा खेत देखती तो फूली नहीं समाती। जंगल के दूसरे जीव- जन्तु भी शालू का खेत देखते तो उसकी प्रशंसा करते। बस लाल मुँह का बन्दर चिम्पू ही ऐसा था, जो शालू की खेती की हंसी उड़ाता था। उसने शालू के खेत को नुकसान पहुँचाने का भी प्रयास किया, किन्तु शालू हमेशा सावधान रहती, अतः चिम्पू सफल नहीं हो सका।

धीरे-धीरे पाँच महीने हो गये। शालू के खेत में गेहूँ की बालियाँ लहलहाने लगीं। बहुत अच्छी फसल हुई थी, अतः शालू बहुत खुश थी। उसे उसकी मेहनत का पूरा फल मिल गया था। वह अपनी फसल के पकते ही गाँव के लुहार के पास गयी और उससे एक हंसिया ले आयी। उसने बड़ी मेहनत से पूरा खेत काटा और गेहूँ की बालियों का एक बड़ा सा गट्ठर बनाकर अपने घर की ओर चल दी। शालू मन ही मन सोच रही थी कि इस अनाज से साल भर खायेगी और अपने मित्रों को भी खिलायेगी। अगले वर्ष वह फिर खेती करेगी और इसी तरह गेहूँ उगायेगी।

इसी तरह की बातें सोचते हुए शालू आधा रास्ता पार कर गयी। अभी उसका घर काफी दूर था। छोटी सी शालू और बड़ा सा गट्ठर। बेचारी शालू काफी थक गयी थी। अतः उसने कुछ क्षण विश्राम करने का निश्चय किया। इतना भारी बोझ लादकर चलने के कारण उसे प्यास भी लग आयी थी।

शालू ने इधर-उधर देखा और अपना गट्ठर रास्ते में रखकर पास बहती नदी की ओर चल दी। उसने नदी के किनारे पहुँचकर भरपेट पानी पिया और आराम करने लगी। शालू बहुत थकी हुई थी, अतः लेटते ही उसे नींद आ गयी।

शालू की जब आँख खुली तो शाम हो रही थी। वह जल्दी से उठी और अपने गेहूँ के गट्ठर की ओर चल दी।

अचानक शालू की दृष्टि चिम्पू पर पड़ी। वह उसके गेहूँ के गट्ठर पर बैठा आराम से गेहूँ की बालियाँ खा रहा था। चिम्पू बड़ा दुष्ट था। वह जितना गेहूँ खा रहा था उससे अधिक तोड़कर इधर-उधर फेंक रहा था।

शालू ने यह दृश्य देखा तो क्रोध से चीख पड़ी-"क्यों रे दुष्ट बन्दर! तू मेरे गेहूँ क्यों खराब कर रहा है?"

"देख शालू! ठीक से बात कर। ये मेरे गेहूँ हैं। रास्ते में पड़ा सामान जिसके पास होता है, उसी का होता है।" चिम्पू दाँत निकालते हुए बोला।

"चिम्पू ! तुम तो जानते ही हो कि मैंने छै: महीने खेत पर मेहनत करके यह गेहूँ पैदा किया है। यह मेरा गेहूँ है। मुझे प्यास लगी थी, अतः इसे रास्ते में रखकर...." शालू की बात अधूरी रह गयी।

"देख गिलहरी! गेहूँ मेरा है। अपनी बेकार की कहानी सुनाकर मेरा समय बर्बाद न कर।" चिम्पू शालू की बात काटता हुआ बोला।

"अच्छा चिम्पू ! आधा गेहूँ तुम ले लो। मुझे आधा ही दे दो। मैंने बड़ी मेहनत से खेती की है।" शालू गिड़गिड़ाते हुए बोली। वह चिम्पू से झगड़ा करना नहीं चाहती थी।

"अरी गिलहरी! मैंने तुझसे कह दिया कि यह गट्ठर मेरा है और मैं तुझे इसका एक भी दाना नहीं दे सकता। तू चाहे तो जंगल के राजा शेरू के पास जा सकती है।" चिम्पू अकड़ता हुआ बोला और गेहूँ का गट्ठर अपने सिर पर लाद कर एक ओर चल पड़ा।

शालू को अपनी लाचारी पर रोना आ गया। वह कुछ देर खड़ी-खड़ी सोचती रही फिर सीधी शेरू के दरबार में जा पहुँची।

शेरू ने शालू की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और अगले दिन आने को कहा।

दूसरे दिन चिम्पू और शालू दोनों शेरू के दरबार में हाजिर हुए और उन्होंने अपनी बात कही।

शेरू ने दोनों की बातें सुनने के बाद चिम्पू के पक्ष में निर्णय दिया, क्योंकि जंगल का नियम था कि रास्ते में पड़ी हुई चीज उसी की होती है, जिसके पास होती है।

शेरू का न्याय सुनकर शालू बहुत दुखी हुई, किन्तु जंगल का कानून मानने के लिए वह विवश थी।

धीरे-धीरे इस घटना को तीन वर्ष बीत गये।

एक दिन शालू अपने घर लौट रही थी। अचानक उसकी दृष्टि रास्ते में पड़ी एक खूबसूरत मोटी रस्सी पर पड़ी। शालू ने निकट आकर देखा। यह दुष्ट चिम्पू की पूँछ थी। चिम्पू रास्ते के किनारे बैठा-बैठा सो रहा था। उसे अपनी पूँछ की कोई सुध नहीं थी।

शालू के मस्तिष्क में तीन वर्ष पहले की घटना ताजा हो गयी। उसने एक पल के लिए सोचा फिर पूँछ कि निकट जाकर उस पर बैठ गयी। वह तेजी से उसे कुतरने लगी। शालू के दाँत बहुत तेज थे। वह इतनी तेजी से पूँछ कुतर रही थी कि जब चिम्पू की नींद टूटी, शालू उसकी आधी पूँछ कुतर चुकी थी।

चिम्पू को बड़ा क्रोध आया। वह शालू की ओर झपटते हुए बोला - "क्यों री गिलहरी ? तूने मेरी पूँछ क्यों कुतर डाली ?"

"चिम्पू यह तुम्हारी पूँछ नहीं है। जो चीज रास्ते में पड़ी होती है, वह उसी की होती है, जिसके पास होती है।" कहते हुए शालू पुनः पूँछ पर बैठ गयी और अपने तेज दांतों से उसे कुतरने लगी।

चिम्पू को भी तीन वर्ष पहने की घटना याद आ गयी। वह अपने ही जाल में फँस चुका था। अतः गिलहरी शालू का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था।

चिम्पू के सामने अब एक ही रास्ता था कि वह शेरू के पास जाकर न्याय मांगे। जंगल का राजा शेरू उसका मित्र था, इसलिए वह चिम्पू के पक्ष में न्याय कर सकता था।

इधर शालू अपने तेज दांतों से बन्दर की पूँछ कुतरने में लगी थी। उसे यदि कुछ समय और मिल जाता तो वह चिम्पू की पूँछ का वह हिस्सा अलग कर देती, जो रास्ते में पड़ा था। लेकिन तभी चिम्पू ने अपनी पूँछ समेटी और शेरू के दरबार की ओर भागा।

जिस समय चिम्पू शेरू के पास पहुँचा, उस समय विशेष दरबार लगा था और जंगल के बहुत से जीव-जन्तु वहाँ मौजूद थे। उन्होंने चिम्पू की कटी पूँछ देखी तों जोर-जोर से हंसने लगे। चिम्पू के पीछे-पीछे शालू भी आ

पहुँची। शेरू ने चिम्पू की कटी पूँछ और शालू को देखा तो सब कुछ समझ गया। फिर भी उसने

चिम्पू से पूछा- "कहो मित्र चिम्पू ? कैसे आना हुआ ?"

"महाराज! शालू ने मेरी पूँछ काट डाली है। आप इसे दण्ड दीजिये।" चिम्पू रोते हुए बोला। उसकी पूँछ में बहुत दर्द हो रहा था।

"अरे शालू! तुम तो बहुत अच्छी और समझदार हो। तुमने चिम्पू की पूँछ क्यों कुतर डाली ?" शेरू ने शालू को सम्बोधित करते हुए प्रश्न किया।

"महाराज! जंगल का यह नियम है कि रास्ते में पड़ी चीज उसी की होती है, जिसके पास होती है। चिम्पू की पूँछ रास्ते में पड़ी थी। इसलिए मैंने उसे कुतरा। इतना ही नहीं, चिम्पू की पूँछ पर मेरा अधिकार है। इसे काटकर मुझे दिलाइये।" शालू शान्त भाव से बोली।

शेरू ने चिम्पू की भी पूरी बात सुनी। और अन्त में उसे सम्बोधित करते हुए कठोर स्वर में बोला- "मित्र चिम्पू ! यदि शालू की बात सच है तो तुम्हें अपनी पूँछ काटकर इसे देनी पड़ेगी।"

"लेकिन महाराज! आप मेरे मित्र हैं। आपको...." चिम्पू ने भयभीत स्वर में कुछ कहना चाहा। लेकिन उसकी बात अधूरी ही रह गयी।

"न्याय करते समय राजा किसी का मित्र या शत्रु नहीं होता। तुम दोनों हमारे लिए बराबर हो।" चिम्पू की बात काटते हुए शेरू शान्त स्वर में बोला।

"जो आज्ञा महाराज! कहते हुए बन्दर ने अपना सर झुका लिया।"

“नेक शालू ! तुम आगे बढ़कर चिम्पू की पूँछ का वह हिस्सा ले लो, जो रास्ते में पड़ा था।" शेरू ने अपना निर्णय सुनाया।

शालू के चेहरे पर खुशी की चमक आ गयी। उसने आगे बढ़कर, भरे दरबार में चिम्पू की पूँछ काटी और अपनी पूँछ के साथ जोड़कर फुदकती हुई राजदरबार से बाहर आ गयी।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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