Saphalata Ka Rahasya Children Story Collection Book by Parshuram Shukla in Hindi, Kahani Satsang Ka Phal, Educational children's story in Hindi.
Satsang Ka Phal : Bal Kahani
बाल कहानी सत्संग का फल : घमंड को दूर करके यदि योग्य व्यक्ति का सत्संग किया जाए तो योग्य व्यक्ति के गुण उत्पन्न होने लगे हैं, इसी सीख पर आधारित है बाल कहानी सत्संग का फल, बाल कहानी संग्रह सफलता का रहस्य से डॉ. परशुराम शुक्ल की कहानियां।
Hindi Moral Story
सत्संग का फल
हिम्मत सिंह हाईस्कूल में लगातार तीन वर्षों से फेल हो रहा था। उसके पिता ठाकुर नाहर सिंह गाँव के पुराने जमींदार थे। अपनी शक्ति और धन के बल पर उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया था- इज्जत, शोहरत, सबकुछ । आसपास के क्षेत्र में उनका काफी मान-सम्मान व दबदबा था। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। बस एक चिन्ता थी-बेटे हिम्मत के भविष्य की। हिम्मत उनका इकलौता बेटा था, जिसे उन्होंने बड़े लाड़- प्यार से पाला था।
ठाकुर नाहर सिंह ने गाँव में आदर्श जूनियर हाईस्कूल की स्थापना की थी। वह इस स्कूल की प्रबन्धकारिणी के अध्यक्ष थे। स्कूल के सभी कर्मचारी उनके ही नियुक्त किये हुए थे-प्रधानाध्यापक से लेकर चपरासी तक। अतः जूनियर हाईस्कूल तक की परीक्षा हिम्मतसिंह प्रथम श्रेणी में पास करता गया। वह पढ़ता-लिखता बिल्कुल नहीं था, फिर भी कक्षा में सबसे अधिक अंक उसी को मिलते थे, किन्तु हाईस्कूल परीक्षा में लगातार तीन बार फेल होने पर हिम्मत सिंह की भी हिम्मत टूट गयी।
ठाकुर नाहर सिंह अपने गांव के शेर थे, किन्तु इलाहाबाद में कोई उन्हें ठीक से जानता तक नहीं था, अतः वह बेटे की सहायता करने में असमर्थ थे। एक-दो बार उन्होंने इलाहाबाद जाकर हिम्मत के शिक्षकों को भी धमकाने का प्रयास किया, किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। अन्त में वह हिम्मत को ही डाँट- फटकार कर लौट आये।
हिम्मत के लिए यह अन्तिम अवसर था। परीक्षा में बस एक महीना बचा था। इस बार फेल होने पर उसका स्कूल छूटना निश्चित था-इलाहाबाद के ऐशो आराम की जिन्दगी की भी छुट्टी। हिम्मत जब से शहर आया था, दिन भर दोस्तों के साथ अवारागर्दी करता, सिनेमा देखता या लोगों के साथ बिना वजह मारपीट करता और रात में खर्राटे लेकर सोता । पढ़ाई तो कभी उसने की ही नहीं थी, अतः इस बार भी उसका फेल होना निश्चित था।
हिम्मत किसी तरह इस बार हाईस्कूल पास करना चाहता था, अतः उसने एक योजना बनायी। हिम्मत सीधा बोर्ड ऑफिस पहुँचा और उसने अपने धन के बल पर एक बाबू - भगवानदास से दोस्ती कर ली। हाईस्कूल परीक्षा के प्रश्नपत्र भगवानदास के पास रहते थे। हिम्मत ने सब बातें पहले से तय कर ली थी। भगवान दास भ्रष्ट होने के साथ ही होशियार भी था। उसने हिम्मत सिंह को प्रश्नपत्र आउट करने का वादा तो कर लिया, किन्तु परीक्षा के मात्र एक दिन पहले। हिम्मत ने सोचा कि वह रातभर में सबकुछ याद कर लेगा और दूसरे दिन परीक्षा दे देगा। इस तरह उसे हाईस्कूल परीक्षा पास करना बच्चों का खेल लगा।
हाईस्कूल की परीक्षा अगले दिन से आरम्भ होनी थी। हिम्मत रात में भगवानदास के घर पहुँचा। भगवानदास ने उसे अगले दिन का प्रश्नपत्र दे दिया। हिम्मत खुशी-खुशी घर आ गया। रात के दस बज रहे थे। हिम्मत ने किताब उठायी और पढ़ने बैठ गया। पढ़ते- पढ़ते ग्यारह बज गये। अब उसे नींद आने लगी, लेकिन अभी तक उसने एक चौथाई प्रश्नों के उत्तर भी याद नहीं किये थे। जब नींद अधिक सताने लगी तो हिम्मत ने किताब मेज पर पटकी और सो गया। दूसरे दिन वह परीक्षा में कुछ भी नहीं लिख सका। उसने रात में जो भी याद किया था, घबराहट में वह भी भूल गया। इस तरह उसके सभी पेपर खराब हो गये और वह हाईस्कूल में चौथी बार फेल हो गया।
हिम्मत सिंह को इस बार गहरा आघात लगा।
हिम्मत इलाहाबाद की जिस इमारत में रहता था, उसके ठीक सामने गरीबों की गन्दी बस्ती थी। इसी बस्ती में कमल की झोंपड़ी थी। उसके माँ-बाप मजदूरी करते थे। कमल हिम्मत के साथ ही पढ़ता था और इस बार उसने प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल पास किया।
हिम्मत हमेशा स्कूल से लौटने के बाद कमल को देखता। कमल का रात-भर सड़क के किनारे लैम्प पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ना उसे पागलपन सा लगता। वह मन ही मन उसका उपहास उड़ाता और चैन की नींद सो जाता।
आज वही कमल हिम्मत को अपना आदर्श दिखाई देने लगा था।
हिम्मत के फेल होने से ठाकुर नाहर सिंह टूट से गये। उन्हें लगा कि हिम्मत कभी भी हाईस्कूल पास नहीं कर सकता। वह तो हिम्मत को बी.ए. पास करा के आई.ए.एस. अफसर बनाने का सपना देख रहे थे।
हिम्मत के गाँव आने पर उन्होंने उसकी पढ़ाई बन्द करा देने का निश्चय किया, किन्तु हिम्मत के बहुत अनुनय-विनय करने पर वह उसे एक अवसर और देने के लिए तैयार हो गये।
हिम्मत एक बार फिर इलाहाबाद आ गया, किन्तु इस बार उसने मौज-मस्ती करने वाले अपने दोस्तों का साथ छोड़ दिया और अगले दिन ही कमल से मित्रता कर ली तथा मन लगाकर पढ़ने लगा। कमल बहुत बुद्धिमान और परिश्रमी छात्र था। वह अपनी पढ़ाई के साथ ही थोड़ा-बहुत समय निकाल कर हिम्मत को भी पढ़ा देता था।
कमल की मित्रता और हिम्मत की लगन रंग लायी। अगले वर्ष हिम्मत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ हाईस्कूल की परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ।
ठाकुर नाहर सिंह हिम्मत की सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे। उन्हें जैसे ही हिम्मत के पास होने का समाचार मिला। वह सीधे इलाहाबाद पहुँचे और उन्होंने हिम्मत को गले लगा लिया। इसी समय उनकी दृष्टि मैले- कुचैले कपड़े पहने एक लड़के पर पड़ी।
हिम्मत ने कमल का परिचय पिता से कराया तो उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गये और उन्होंने आगे बढ़कर कमल को भी अपने सीने से लगा लिया।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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