महारानी जिंद कौर : जानिए 1857 से पहले अंग्रेज़ों से लड़ने वालीं पंजाब साम्राज्य की अंतिम रानी की कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharati Ki Mahan Virangana

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वीरांगना जिन्दां : जानिए कौन थी महारानी जिंदा? भारतीय इतिहास में उनकी क्या भूमिका रही है? सिख साम्राज्य की महारानी जिन्होंने 1857 से पहले अंग्रेज़ों से लड़ा था पढ़िए पूरी कहानी किस्से क्रांतिकारियों के। महारानी जिन्दां को अंग्रेजों के इस कदम से बड़ा आघात लगा। अंग्रेजों ने उनका राज्य छीन लिया था, अतः वह उनसे बहुत नाराज थीं।

Bharatiya Virangana Maharani Jind Kaur

महारानी जिन्दा कौर

अंग्रेजों ने भारत में शासन करने के लिए हमेशा 'फूट डालो और शासन करो' की नीति अपनायी। उन्होंने कभी दो राजाओं को आपस में लड़वाया, तो कभी एक ही राज परिवार में आपस में फूट करवा दी। अंग्रेज इतने क्रूर थे कि उन्होंने महिलाओं को भी नहीं छोड़ा और महारानी लक्ष्मीबाई के समान अनेक महिला शासकों के विरुद्ध षड्यंत्र रचे तथा उनकी सत्ता हथियायी। अंग्रेजों के षड्यंत्र का शिकार होने वाली महिलाओं में एक थी-वीरांगना जिन्दां।

जिन्दां पंजाब के विख्यात महाराजा रणजीत सिंह की छोटी रानी थी। महाराजा रणजीत सिंह जब तक जीवित रहे, पंजाब पर अंग्रेजों ने कभी भी आँख उठाने की हिम्मत नहीं की, किंतु उनकी मृत्यु होते ही अंग्रेजों ने उनका राज्य हड़पने की योजनाएँ बनाना आरम्भ कर दी।

महाराजा रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे दलीप सिंह को पंजाब की गद्दी पर बैठाया गया। दलीप सिंह की आयु बहुत कम थी, अतः सभी सभासदों के सुझाव पर राज्य के दीवान को दलीप सिंह का संरक्षक नियुक्त किया गया और उन्हें ही राज्य कार्य का भार सौंप दिया गया। महारानी जिन्दां बड़ी सरल और धर्मपरायण महिला थीं। उन्हें राजकाज में कोई रुचि न थी। अतः वह राजकाज से दूर ही रहीं।

दीवान जी बड़े सज्जन व्यक्ति थे। उन्होंने दलीप सिंह की शिक्षा दीक्षा के साथ ही राज्य का काम भी भलीभाँति सँभाल लिया। अतः राज्य का कामकाज सुचारु रूप से चलने लगा। किंतु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रही। एक दिन अचानक दीवान जी का देहांत हो गया।

अब राज्य का कामकाज चलाने के लिए एक नये दीवान की नियुक्ति की गयी। नये दीवान राजभक्त थे, किंतु उनकी खालसा फौज के सिपाहियों से नहीं पटती थी। अतः खालसा फौज के सिपाहियों ने उनका विरोध आरम्भ कर दिया।

अंग्रेज इसी अवसर की तलाश में थे। महाराजा रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों की नजरें पंजाब पर टिकी हुई थीं। अंग्रेजों ने इस अवसर को अपने अनुकूल समझा और खालसा फौज के सिपाहियों को भड़काया। खालसा फौज के सिपाही अंग्रेजों की बातों में आ गये और उन्होंने नये दीवान का कत्ल कर दिया।

महारानी जिन्दां ने राज्य की स्थिति को बिगड़ते हुए देखा तो शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली और सुचारु ढंग से राजकाज करने लगीं। वह बड़ी बुद्धिमान और दूरदर्शी थीं। उसके कार्य करने का ढंग ऐसा था कि एक लंबे समय तक खालसा फौज के सिपाही पूरी तरह शांत रहे, किंतु अंग्रेजों के द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रलोभन दिए जाने और भड़काने के कारण उन्होंने महारानी जिन्दां के राजकाज में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया।

महारानी जिन्दां को इसकी आशंका थी, अतः उसने पहले ही इस समस्या का हल ढूंढ़ लिया था। उन्होंने खालसा फौज के सिपाहियों को लूटमार करने के लिए दिल्ली, इलाहाबाद और बनारस की ओर भेज दिया तथा निश्चित होकर राज्य करने लगी।

उस समय दिल्ली, इलाहाबाद, बनारस आदि स्थानों पर अंग्रेजों का राज्य था। खालसा फौज के सिपाहियों द्वारा लूटमार किए जाने के कारण अंग्रेज सरकार महारानी जिन्दां के विरुद्ध हो गयी और उसने महारानी जिन्दां पर गद्दार होने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं तत्कालीन गवर्नर लार्ड हार्डिंग ने महारानी जिन्दां को कड़ा सबक देने के लिए उनके राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया और एक अंग्रेज रेजीडेन्ट की नियुक्ति कर दी तथा बारह हजार पाउन्ड प्रतिवर्ष पेन्शन बाँध दी।

महारानी जिन्दां को अंग्रेजों के इस कदम से बड़ा आघात लगा। अंग्रेजों ने उनका राज्य छीन लिया था, अतः वह उनसे बहुत नाराज थीं।

अंग्रेजों ने महारानी जिन्दां को जो पेन्शन देने का निश्चय किया था, वह भी सशर्त थी। अंग्रेजों ने पेन्शन देने के पूर्व यह शर्त लगा दी थी कि उन्हें पेन्शन तभी दी जाएगी जब वह अंग्रेज रेजीडेन्ट को पूरी तरह सहयोग देंगी और राज्य के कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगी। वास्तव में यह भी अंग्रेजों की एक चाल थी।

महारानी जिन्दां पंजाब की महारानी थीं। उन्होंने पंजाब पर शासन किया था। उन्हें किसी भी प्रकार अंग्रेजों की गुलामी करना स्वीकार नहीं था।

महारानी जिन्दां कुछ समय तो शांत रहीं। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों से बगावत करने का निर्णय लिया। महारानी जिन्दां ने अंग्रेजों के सताये हुए अपने ही समान अन्य राजाओं-महाराजाओं से मिलना आरम्भ कर दिया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध मंत्रणाएँ करने लगीं। महारानी जिन्दां के गुट में राजाओं-महाराजाओं के साथ ही कुछ ऐसे क्रान्तिकारी भी थे जो भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने का बीड़ा उठाये हुए थे।

महारानी जिन्दां के साथियों में एक गद्दार भी था। उसने महारानी जिन्दां की गतिविधियों की सूचना अंग्रेजों को दे दी। अंग्रेज तो ऐसे अवसर की तलाश में थे। उन्होंने महारानी जिन्दां की पेन्शन बारह हजार पाउन्ड से घटा कर मात्र चार हजार रुपया वार्षिक कर दी और उन्हें शाकपुर नामक स्थान पर नजरबंद कर दिया।

महारानी जिन्दां बुद्धिमान होने के साथ ही बड़ी सरल और परोपकारी भी थीं। उन्होंने पंजाब की प्रजा का दुख-सुख में साथ दिया था और समय-असमय हमेशा उसकी सहायता की थी। अतः पंजाब की प्रजा उनका बड़ा सम्मान करती थी। अंग्रेज सरकार इस बात को भलीभांति जानती थी। उसे मालूम था कि पंजाब की प्रजा कभी भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर सकती थी और महारानी जिन्दां को कभी भी सत्ताशीन कर सकती थी। अतः अंग्रेजों ने महारानी जिन्दां को शाकपुर से हटाकर बनारस भेजने की योजना बनायी। अंग्रेज महारानी जिन्दां को इस प्रकार पंजाब के बाहर ले जाना चाहते थे कि पंजाब के लोगों को इसका पता न चले, क्योंकि इससे विद्रोह का खतरा था।

अंग्रेजों ने महारानी जिन्दां को पंजाब के बाहर ले जाने की योजना बड़े गुप्त ढंग से तैयार की। अंग्रेज अधिकारियों के सिवाय इस योजना की जानकारी किसी को न थी। किंतु महारानी जिन्दां के एक विश्वासपात्र सेवक ने किसी तरह इस योजना की जानकारी प्राप्त कर ली और महारानी जिन्दां को सचेत कर दिया।

महारानी जिन्दां बड़ी बुद्धिमान थीं। वह अंग्रेजों की शक्ति और कूटनीति से भलीभाँति परिचित थीं। अंग्रेजों ने भारत के अनेक बड़े-बड़े शक्तिशाली राजाओं और महाराजाओं के राज्य हड़प लिए थे तथा विरोध करने पर उन्हें मरवा डाला था अथवा जेलखानों में डाल दिया था। महारानी जिन्दां इन राजाओं-महाराओं के समान अपनी और अपने राज्य की बर्बादी देखना नहीं चाहती थीं।

महारानी जिन्दां स्वाभिमानिनी और देशभक्त थीं। वह लड़कर अंग्रेजों से अपना राज्य वापस लेना चाहती थीं। किंतु इसके लिए उचित अवसर न था। भारत में अंग्रेजभक्त गद्दारों की भरमार थी। अनेक राजा-महाराजा भी अंग्रेजों से मिल गये थे और उनके गीत गाने लगे थे। इसके साथ ही पंजाब की जनता भी महारानी जिन्दां को चाहती अवश्य थी। किंतु उनके लिए अंग्रेजों से लोहा लेने को तैयार न थी। पंजाब की खालसा फौज के सिपाही पहले से ही उनके विरुद्ध थे। अतः बहुत कुछ सोच-विचार करने के बाद महारानी जिन्दां ने नेपाल जाने का निर्णय लिया।

महारानी जिन्दां का नेपाल पहुँचना भी आसान न था। अंग्रेजों ने उन्हें नजरबंद कर रखा था और उसके चारों ओर कड़े पहरे बैठा दिए थे। फिर भी महारानी जिन्दां किसी तरह अंग्रेजों को धोखा देने में सफल हो गयीं और नेपाल पहुँच गयीं।

महारानी जिन्दां को जिस बात की आशंका थी, वही हुआ। उनके नेपाल पहुँचते ही अंग्रेज सरकार ने नेपाल नरेश पर दबाव डाला कि वह महारानी जिन्दां को अंग्रेजों के हवाले कर दे। किंतु नेपाल नरेश ने महारानी जिन्दां का साथ दिया और उन्हें अंग्रेजों को सौंपने से इंकार कर दिया। किन्तु अंग्रेज सरकार के अधिक दबाव डालने पर नेपाल नरेश झुक गये और अंग्रेज महारानी जिन्दां को उनके बेटे दलीप सिंह के पास इंगलैन्ड भेजने में सफल हो गये।

महारानी जिन्दां का शेष जीवन इंगलैन्ड में ही व्यतीत हुआ। वह एक वीर और साहसी महारानी थीं। वह अपने देश वासियों के साथ मिलकर अंग्रेजों का विरोध करना चाहती थीं, किंतु निरीह और डरपोक प्रजा तथा गद्दार साथियों के कारण उन्हें अपना प्रिय पंजाब छोड़कर अंतिम समय इंगलैन्ड में गुजारना पड़ा। आज वीरांगना जिन्दां नहीं है किंतु उनका नाम अमर है। आज भी पंजाब के लोग बड़ी श्रद्धा से अपनी महारानी जिन्दां को याद करते हैं और उनकी वीरता के गीत गाते हैं।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

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