Hindi Moral Story Collection Book Chalak Chiku aur Dusth Bediya, Parshuram Shukla Stories for Kids in Hindi, Children's Moral Story The Swan And The Owl.
Parshuram Shukla Ki Bal Kahani
बाल कहानी उल्लू की सीख : वीरता, शौर्य, दया और करुणा, पराक्रम, नेकी, मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई, अहिंसा जैसे सद्गुणों की बाल कहानी संग्रह चालाक चीकू और दुष्ट भेड़िया से परशुराम शुक्ल की सचित्र बाल कहानी उल्लू की सीख। ullu ki seekh kahani in Hindi.
The Swan And The Owl Story In Hindi
उल्लू की सीख
एक बार चीकू हंस अपनी हंसनी लारा के साथ लम्बी यात्रा पर निकला। दोनों को उड़ते-उड़ते शाम हो गयी। हंसनी लारा बहुत थक गयी थी। उसने चीकू हंस से कहा- "प्रिय चीकू ! हमें अभी बहुत दूर जाना है। अब शाम हो गयी है, क्यों न थोड़ा सा विश्राम कर लें?"
"हाँ, प्रिय लारा! तुम निश्चित रूप से थक गयी होगी। मैं भी थक गया हूँ। हम किसी अच्छे स्थान पर सारी रात विश्राम करेंगे और प्रातः फिर अपनी यात्रा आरम्भ करेंगे। चीकू ने लारा की बात को समझा और नीचे की ओर उतरने लगा।"
चीकू और लारा ने इधर-उधर घूमकर देखा। चारों ओर जंगल ही जंगल था। रात होने वाली थी। चीकू ने एक बड़ा मोटा पेड़ रात्रि के विश्राम के लिए चुना और हंसनी लारा के साथ उसी पेड़ पर उतर आया।
उस पेड़ पर डब्बू नाम का उल्लू अकेला रहता था। चीकू और लारा को देखकर डब्बू ने कड़ककर पूछा- "तुम दोनों कौन हो?
यहाँ कैसे आये? चले जाओ यहाँ से! यहाँ मेरे सिवाय कोई नहीं रह सकता।"
"मैं चीकू हूँ और यह मेरी हंसनी लारा है। हम लोग परदेशी हैं। लम्बी यात्रा पर जा रहे हैं। बहुत थक गये हैं। रात भर विश्राम करके कल प्रातः ही चले जाएंगे।" चीकू ने अत्यंत विनम्रता से कहा।
"ठीक है, आज की रात रह सकते हो। कल प्रातः ही चले जाना।" चीकू और लारा पर दया करके डब्बू ने उन्हें रात भर पेड़ पर विश्राम करने की अनुमति दे दी।
दिन भर का थका चीकू बरगद की एक मोटी डाल पर तुरन्त सो गया। हंसनी लारा भी उसके साथ सो गयी, किन्तु डब्बू को रात में जागने की आदत थी। वह एक-दो बार चीकू और लारा के निकट भी गया। वे दोनों गहरी नींद में सो रहे थे।
प्रातः सूर्य की किरणें निकलते ही डब्बू ने चीकू और लारा को उठाया। दोनों आंखें मलते हुए उठे और लम्बी यात्रा के लिए तैयार हो गये।
"अच्छा भाई डब्बू! तुमने रात भर के लिए हमें आश्रय दिया, इसके लिए हम तुम्हारे बहुत आभारी हैं।" कहते हुए चीकू ने हंसनी लारा को साथ लिया और उड़ने के लिए पंख फैलाये।
"अरे-अरे चीकू! यह क्या कर रहे हो ? तुम मेरी पत्नी लारा को कहाँ लिये जा रहे हो ? यह लारा तुम्हारी नहीं, मेरी पत्नी है।
मैंने तुम्हें रात भर आश्रय दिया और अब तुम मेरी ही पत्नी को लिये जा रहे हो?" कहते हुए डब्बू ने आगे बढ़कर चीकू और लारा का रास्ता रोक लिया।
बेचारे चीकू और लारा इस आकस्मिक स्थिति से घबरा गये। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि एक उल्लू हंसनी को अपनी पत्नी बनाने की कोशिश करेगा। चीकू और लारा को लम्बी यात्रा करनी थी, अतः उन्होंने धैर्य और शांति से डब्बू को समझाने का प्रयास किया।
"देखो भाई डब्बू! तुम अलग जाति के हो! हम अलग जाति के। भला एक हंसनी तुम्हारी पत्नी कैसे हो सकती है? चीकू ने विनम्रता से कहा, किन्तु उसकी बात का डब्बू पर कोई असर नहीं हुआ। वह अपनी जिद पर अड़ा था। चीकू भी लारा को अकेली छोड़कर कैसे जा सकता था? धीरे-धीरे दोपहर हो गयी। अब दोनों ने यह तय किया कि इस बात का निर्णय करने के लिए जंगल के जीवों की पंचायत बुलायी जाये।
चीकू के लिए, पंच के कार्य करने वाले जंगल के सभी पशु पक्षी अपरिचित थे, लेकिन डब्बू सबको जानता था। वह सब पंचों के पास गया। सबसे पहले वह जंगल के राजा शेरू के पास गया और बोला- “देखो शेरू जी ! आज मेरे यहाँ पंचायत है। तुम्हें आना है। मैंने एक हंसनी लारा को अपनी पत्नी बनाया है। तुम मेरा साथ दोगे, चीकू हंस का नहीं।"
"अबे डब्बू! तू कैसी बात करता है। मैं जंगल का राजा हूँ। सरपंच हूँ। मैं न्याय करूँगा। भला एक उल्लू की पत्नी एक हंसनी कैसे हो सकती है ?" शेरू ने क्रोध से कहा।
"शेरू जी! गुस्सा मत करो। मेरी बात ध्यान से सुनो। तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हारे बच्चे के नाम का एक ढेला कुएँ में डाल दूँगा और तुम जानते हो, जैसे-जैसे ढेला घुलेगा, तुम्हारा बच्चा भी......." डब्बू ने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
"नहीं-नहीं डब्बू भाई! ऐसा मत करना। मैं तुम्हारा साथ दूँगा। जैसा तुम कहोगे वैसा ही करूँगा।" अपने बच्चे की मृत्यु की कल्पना से शेरू भयभीत हो गया था।
शेरू से विदा लेकर डब्बू जंगल के अन्य छोटे-बड़े जानवरों एवं पक्षियों के पास पहुँचा और सभी को इसी प्रकार की धमकी दी तथा अपने पक्ष में बोलने के लिए राजी कर लिया।
शाम होते ही जंगल के सभी जीव-जन्तुओं और पक्षियों की पंचायत बैठ गयी।
पंचायत में सबसे पहले चीकू बोला- "भाई पंचों ! मैं और मेरी हंसनी लारा दूर यात्रा पर जा रहे थे। बहुत थक जाने एवं रात हो जाने के कारण हम आराम करने के लिए बरगद पर रुक गये। सुबह जब हम चलने के लिए तैयार हुए तो डब्बू बोला कि हंसनी लारा तुम्हारी नहीं मेरी पत्नी है। भला ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या एक हंसनी उल्लू की पत्नी हो सकती है ?"
डब्बू ने अपनी बात कही- “देखो भाई पंचों ! यह हंस कहीं से कल अकेला ही आया था। इसने मुझसे रात भर के लिए पेड़ पर आराम करने की अनुमति माँगी। मैंने इसे रात भर पेड़ पर सुलाया। सुबह-सुबह यह अपने साथ मेरी पत्नी को भी ले जाने लगा तो मैंने इसे रोका। अब आप लोग हमारा फैसला कीजिये।"
सभी पंच तो पहले से ही डरे हुए थे। उन्होंने बिना अधिक बात किये फैसला कर दिया। सभी पंचों ने एक होकर कहा- “भाई हंस! तुम अकेले ही आये थे, अकेले ही जाओ। डब्बू की पत्नी लारा उसके साथ रहेगी।"
पंचों का फैसला सुनकर चीकू उदास हो गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि पंच अन्याय कर सकते हैं। वह तो पंचों को परमेश्वर मानता था। हंसनी लारा से बिछुड़ने की कल्पना करके हंस रो पड़ा और बेसुध होकर जमीन पर गिर पड़ा।
सभी पंच धीरे-धीरे उठ गये।
"उठो चीकू! यह रही तुम्हारी हंसनी लारा। आज की रात हमारे मेहमान बनकर रहो। कल प्रातः अपनी यात्रा आरम्भ करना।" डब्बू के ये शब्द हंस चीकू के कानों में पड़े तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ। डब्बू कह रहा था- "भाई चीकू ! कहीं हंसनी भी उल्लू की पत्नी हो सकती है? यह सब पंच भी जानते थे। मैंने सब पंचों को डरा दिया था, इसलिए वे हंसनी को मेरी पत्नी बनाकर चले गये। तुम बहुत सीधे हो। तुमने मुझ अजनबी पर विश्वास किया। तुम्हें लम्बी यात्रा करनी है। आज के युग में कदम-कदम पर खतरे हैं, जिनसे सतर्क रहना चाहिये। अतः मैंने यह सब तुम्हें सावधान करने के लिए किया था। आजकल न्याय करने वाले भी डर और दबाव में आकर न्याय के स्थान पर अन्याय कर रहे हैं। इसलिए बड़ी होशियारी से आगे की यात्रा करना।"
चीकू बड़े ध्यान से डब्बू की बातें सुन रहा था। पास ही हंसनी लारा खड़ी थी। डब्बू की साफ, स्पष्ट और सच्ची बातों ने लारा का मन मोह लिया।
चीकू और लारा रात भर डब्बू के मेहमान बनकर रहे और अगले दिन प्रातः दोनों ने डब्बू से भावभीनी विदा ले कर अपनी यात्रा आरम्भ की।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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