बाणभट्ट की आत्मकथा : हजारीप्रसाद द्विवेदी का ऐतिहासिक उपन्यास

Dr. Mulla Adam Ali
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राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी नेट) हिंदी द्वितीय प्रश्नपत्र के अंतर्गत नवीनतम पाठ्यक्रम में इकाई छह से हिंदी उपन्यास है। एन.टी.ए द्वारा आयोजित नेट हिंदी विषय की इस परीक्षा के अंतर्गत आज हिन्दी का प्रमुख उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

Banbhatta Ki Atmakatha

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Banbhatta Ki Atmakatha Novel by Hazari Prasad Dwivedi, UCC NET Hindi Literature.

Hazari Prasad Dwivedi Novels

बाणभट्ट की आत्मकथा : हिंदी साहित्य यूजीसी नेट में पूछे जाने वाले हिंदी का ऐतिहासिक उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा की समीक्षा (hindi novel) और उपन्यास के मुख्य पात्र, अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न, विगत वर्ष पूछे गए प्रश्न आदि सभी विषयों पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है।

बाणभट्ट की आत्मकथा

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का पहला उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा है। राजकमल प्रकाशन से यह उपन्यास पहली बार 1946 को प्रकाशित किया गया था और 1 सितम्बर 2010 को नवीन प्रकाशन। बाणभट्ट की आत्मकथा आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है, इसमें इतिहास और कल्पना का सुंदर समन्वय है।

  • उपन्यास : बाणभट्ट की आत्मकथा
  • उपन्यासकार : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासों में से बाणभट्ट की आत्मकथा एक है। यह हजारी प्रसाद द्विवेदी का पहला उपन्यास है, हिंदी साहित्य प्रेमी द्वारा पसंद किए जाने वाले उपन्यासों में से हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा भी है। यह उपन्यास ऐतिहासिक पत्रों के साथ कल्पना को जोड़कर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ उपन्यास (best hindi novel)है।

उपन्यास के प्रमुख पात्र :

इस उपन्यास में मुख्य रूप से तीन पात्र है, एक पुरुष पात्र और दो स्त्री पात्र, अन्य गौण पात्र भी इसमें आपको दिखाए देंगे।

  1. बाणभट्ट : इस उपन्यास का नायक पात्र बाणभट्ट है, महाराजा हर्षवर्धन का राज-कवि है।
  2. भट्टिनी : उपन्यास की प्रमुख स्त्री पात्र है, बाणभट्ट की प्रेमिका और अत्यंत रूपवती राजकुमारी है।
  3. निपुणिका : शोषित-दमित साधारण स्‍त्री।
  4. अन्य पात्र : राजश्री, कुमार कृष्णवर्धन, अघोरा भैरव आदि बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास के अन्य पात्र है।

बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास की समीक्षा :

बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास का मुख्य विषय प्रेम है, हर्षवर्धन कालीन सभ्यता एवं संस्कृति का उपन्यास है। हिन्दी साहित्य जगत के श्रेष्ठ रचनाकार हजारीप्रसाद द्विवेदी एक सशक्त साहित्यकार, ललित निबंधकार, मानवतावादी उपन्यासकार एवं निष्पक्ष आलोचक है। बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास (best seller books) इतिहास के तथ्यों पर आधारित है, ऐतिहासिक वातावरण एवं देशकाल की परिस्थितियों की अद्भुत कल्पना शक्ति इनके उपन्यास में देखने को मिलती है।

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भारतीय नारी विषयक वर्तमान दृष्टि :

नारी को भारतीय संस्कृति की पूर्व परम्परा से अलग, आधुनिक और नवीन दृष्टि से आँकने का यत्न बीसवीं शताब्दी में ही हुआ है। यह शताब्दी भारतीय परिवेश में नारी के जागरण और उसकी मुक्ति की शताब्दी है। इतिहास साक्षी है कि भारतीय परिवेश में अपने विविध रूपों में नारी ने पुरुषों को प्रोत्साहन और शक्ति का अवदान दिया है, संस्कृति के विकासात्मक मानदंडों और जीवन-मूल्यों की स्थापना में वह सक्रिय हुई है। इसी कारण किसी समाज के सांस्कृतिक और व्यावहारिक विकास का मानदंड नारी की मर्यादा में स्वीकृत है।

मनु ने जब कहा था कि जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं वहाँ देवता विहार करते हैं तो उन्होंने भारत वर्ष के विशाल इतिहास में नारी की मर्यादा और व्यवस्था के इसी उत्थान-पतन की ओर संकेत किया था।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की नारी विषयक मान्यताएँ :

पुरानी पांडित्य परम्परा के प्रतिनिधि और भारतीय संस्कृति के आख्यता होकर भी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय समाज में नारी का मूल्यांकन सर्वथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया था। उनके उपन्यासों में विन्यस्त, नारी चरित्रों के माध्यम से उनकी नारी- धारणा की मौलिकता, नवीनता और वैज्ञानिकता झाँकती है। उन्होंने चिंतन, सृजण और व्यवहार सभी धरातलों पर नारी शोषण का विरोध एवं नारी जागरण का समर्थन किया।

सामाजिक परिदृश्य में नारी-शिक्षा और नारी जागरण की प्रगति से डॉ. द्विवेदी को आश्चर्य भी था और संतोष भी। वे नारियों को परम्परा के परदे से निकालने के पक्ष में थे लेकिन मर्यादा के अधीन। भारतीय संस्कृति के अनुरूप त्याग, समर्पण और ममता की प्रतिमूर्ति नारियों का सजग-सप्राण चित्रण उन्होंने किया है। नारी को त्याग और समर्पण से अलग कर देखने की कल्पना उनके मन में नहीं थी। आचार्य द्विवेदी ने त्याग और समर्पण को नारी-चरित्र की निधि के रूप में रेखांकित किया है।

नारी को निषेधरूपा प्रमाणित करते हुए आचार्य द्विवेदी ने बताया है कि "नारी आनंद भोग के लिए नहीं, आनंद लुटाने के लिए आती है।" बाणभट्ट की आत्म कथा (ugc net hindi sahitya) में आचार्य द्विवेदी ने बाणभट्ट के मुहँ से कहलाया है- "मैं स्त्री का सम्मान करना जानता हूँ। साधारणः जिन स्त्रियों को चंचल और कुलभ्रष्टा कहा जाता है, उनमें एक दैवी शक्ति भी होती है, यह बात लोग भूल जाते है।"

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बाणभट्ट : नारियों के प्रति अपनी श्रद्धा भावना व्यक्त करते हुए कहना "सारे जीवन मैंने स्त्री शरीर को किसी अज्ञात देवता का मंदिर समझा है।" और इसी प्रकार भट्टिनी अपने नारी जन्म को सार्थक और विशिष्ट अनुभव करती है- "भगवान ने नारी बनाकर मुझे धन्य किया है, मैं अपनी सार्थकता पहचान गई।"

इस प्रकार आचार्य द्विवेदी जी ने नारी को सृष्टि का आधार स्वीकारा है। नारी के बिना पूरी सभ्यता की कल्पना भी नहीं कर सकते अर्थात नारी के बिना संसार अधूरा और निस्सार है। द्विवेदी जी बाणभट्ट की आत्मकथा में महामामा से कहलवाया है- "यह धर्म- कर्म का विशाल आयोजन, सैन्य संगठन और राज्य- व्यवस्थापन सब बुदबुद की भाँति विलुप्त हो जाएँगे, क्योंकि नारी का इसमें सहयोग नहीं है।"

निपुणिका : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेंदी के उपन्यास 'बाणभट्ट की आत्मकथा' की अद्भुत सृष्टि है। निम्न जाति में जन्मी निपुणिका का विवाह, अल्पवय में, एक कान्यविक वैश्य के साथ हुआ था। उसका पति भड़भँजे से वैश्य बना था। गुप्त राज्य में नौकरी पा जाने के कारण उसकी गिनती वैश्य-जाति में होने लगी थी। अतः इस नवोन्नत जाति ने कुछ सामाजिक रीति-नीति विषयक सुधार भी किए थे। विधवा विवाह का निषेध इन समाज-सुधारों में से एक था। निपुणिका एक वर्ष का वैवाहिक जीवन व्यतीत करके, यौवनागम-पूर्व ही विधवा हो गयी थी। इस अभागिन विधवा को न जाने किन दुखों के कारण पतिगृह से पलायन करना पड़ा था। "इस सुकुमार अवस्था में न जाने किस मर्मातक दुख ने इस बच्ची बालिका को ऐसा साहसिक कार्य करने को उदबुद्ध किया।"

निपुणिका ससुराल से भागकर अज्ञात भविष्य की अनिश्चितता की ओर अग्रसर होती है। वह उज्जयिनी जा पहुँचती है। यहाँ बाण से उसकी भेंट होती है। इस समय निपुणिका की उम्र सोलह वर्ष है। बाण निपुणिका के विषय में कहता है- "जिस समय वह पहली बार मेरे सम्पर्क में आयी थी, उस समय कठिनाई से उसकी अवस्था सोलह वर्ष की ही थी। वह बहुत डरी हुई थी।"

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हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनमोल विचार

निपुणिका को बाण ने अपनी नाटक-मण्डली में सम्मिलित कर लिया। वह अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण, शीघ्र ही अभिनय कला में कुशलता प्राप्त कर लेती है। बाण निपुणिका के अभिनय कौशल को देखकर विस्मय-विमुग्ध था। निर्भयता, साहस, शक्ति का संयुक्त विग्रह निपुणिका अपने और बाण के प्राणों को दाँव पर लगाकर मुक्ति-अभियान में सफल हो जाती है। निपुणिका सादगी पसंद नारी है। हर्ष कालीन समाज में निपुणिका को भले ही एक कुल भ्रष्टा और चंचलता माना गया हो पर बाण की दृष्टि में ऐसी नारियों में दैवी शक्ति होती है। वह श्रेष्ठ नारी गुणों से विभूषित है उसका व्यक्तित्व अद्भुत है। उसके चरित्र में प्रेम, त्याग, सेवा भाव, साहस कर्तव्यनिष्ठा आदि गुणों का समावेश है। निपुणिका प्रेम की मूर्ति है। उसने जीवन में बाण को प्रेम किया है, वह प्रेम को पाना नहीं लुटाना जानती है। उसके प्रेम में त्याग है, आसक्ति नहीं।

भट्टिनी : भावगूढ़ता की मूर्ति, अदम्य प्रेम की नायिका, दैवाश्रिता चंद्रदीधिती हर्षकालीन ऐतिहासिक वीर नरेश तुवर मिलिंद की कन्या है। उसका जीवन करुणा की क्रमिक कथा है। वह अशोक-वन की ऐसी श्रोता है, जिसने न पुष्प-वाटिका के राग को निहारा न अवध-सौंध में प्रवेश किया है। न जाने किस अज्ञात अपराध ने उसके जीवन को पीड़ा के अगाध सागर में धकेल दिया है। भट्टिनी की सबसे बड़ी विशेषता है- आत्मगौरव और स्वजनों के प्रति आत्मीयता का भाव। वह अपने चरित्र को पवित्र बनाये रखती है। कुल गौरव का झूठा अभिमान भी वह उचित नहीं मानती। प्रतापी पिता के बिछड़ जाने का उसे बहुत दुःख है। वह राजनीति के छल-कपट से दूर रहना चाहती है। मानव जाति की कुत्सित मनोवृत्ति उसे दुःखी करती है।

भट्टिनी नारी का आदर्श रूप है। यहाँ नारी सुलभ ईर्ष्या-द्वेष, इच्छा-उत्कंठा आदि के लिए कोई जगह नहीं है। भागवत धर्म में एकता में बाँधने की अदभुत शक्ति है यह भट्टिनी का विश्वास हैं।

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि भट्टिनी नारी का आदर्श रूप है। यहाँ नारी सुलभ ईर्ष्या-द्वेष, इच्छा- उत्कंठा आदि के लिए कोई जगह नहीं है। निपुणिका स्वयं कहती है- "भट्टिनी सरल बालिका है, जिसे संसार की कटुता का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। संयम, मर्यादा, आदर्श, सरलता आदि का अद्भुत संयोग भट्टिनी के चत्रित में दिखाई पड़ता है। अत्यंत सरल संकोची स्वभाव की स्त्री होते हुए भी कभी भट्टिनी मुखर हो जाती है, तो भट्ट को उपदेश देते समय उसके आदर्श रूप के भी दर्शन होते हैं। वस्तुतः भट्टिनी का चरित्र जीवंत नारी-आदर्श की एक मोहक कल्पना है।"

महामाया : महामाया उस नारी का नाम है जो बाल्यावस्था में माता की गोद से और पिता की छाया से बलात् छीन ली गई हो तथा एक अज्ञात कुलशील कन्या को कुलूत राज की दुहिता बना दिया गया हो। इस उपन्यास में महामाया का गरिमामय नारी चरित्र के रूप में वर्णन हुआ है। महामाया विघ्न-बाधाओं की आराध्या है वह नारी पिंड को नहीं नारी तत्व को जगाना चाहती है। पुरुषों ने नारी को मुक्त-साधना में बाधक माना यह संसार की भद्दी भूल है। लेकिन यह भी ध्यान देना होगा कि नारी समाज का विकास तभी होगा जब वह दुःख-सुख की लाख-लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़कर दूसरे को तृप्त करने की भावना से परिपूर्ण बन जाय। महामाया के चरित्र में राष्ट्रीय भावना भी तमाम उज्ज्वल धवल पक्ष के साथ मुखरित है।

वस्तुतः महामाया के चरित्र द्वारा लेखक कथा के अनेक सूत्रों को एक कड़ी में पिरोने की कोशिश करता है स जिससे कथा में स्वभाविकता आ जाती है।

सुचरिता : सुचरिता निपुणिका की सखी है। बचपन में ही उसका पति विरतिवज्र सन्यास ग्रहण कर तांत्रिक साधकों में जाकर मिल जाता है। सुचरिता अपने वास्तविक पति की प्रतीक्षा करती है। किंतु स्थाणीश्वर की भ्राँति लोक धारणा से हमेशा दुःखी रहती है। सौभाग्यवश उसे अपना पति मिल जाता है और दोनों की सम्मिलित उपासना आरंभ हो जाती है। बाणभट्ट के माध्यम से रचनाकार कहता है- "तुम सार्थक हो देवि, तुम्हारा शरीर और मन सार्थक है, तुम्हारा ज्ञान और वाणी सार्थक है सबसे बढ़कर तुम्हारा प्रेम सार्थक है। तुम सतीत्व की मर्यादा हो : पातिव्रत्य की पराकाष्ठा हो। स्त्री धर्म का अलंकार हो।" इस प्रकार सुचरिता के माध्यम से उपन्यासकार ने रूढिग्रस्त समाज का दिशानिर्देशन भी किया है।

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हजारी प्रसाद द्विवेदी के कोट्स

मदन श्री : मदन श्री अत्यंत सुंदर गणिका है जो अभिनय के द्वारा ही बाणभट्ट की ओर आकृष्ट हुई थी। नाटक मंडली से भागने के बाद निपुणिका ने मदन श्री के पास ही शरण ली थी। बाद में वह निपुणिका और भट्टिनी की सखी के रूप में वर्णित की गई है।

चारूस्मिता : यह स्थणीश्वर की अत्यंत सुंदर राजनर्तकी है। चारूस्मिता नृत्य प्रवीण थी। उसका मयूर नृत्य पूरे देश में प्रसिद्ध था। लेखक ने उसके सुसंस्कृत भावों एवं नारी सुलभ कोमलता का भी स्वाभाविक वर्णन किया है। निपुणिका के अंतिम संस्कार के बाद वह बाणभट्ट को आश्वस्त करते हुए कहती है-

"चलो आर्य । इस नश्वर जगत में यही शाश्वत सत्य है। निपुणिका स्त्री जाति का श्रृंगार थी, सतीत्व की मर्यादा थी, हमारी जैसी उन्मार्गगामिनी नारियों की मार्गदर्शिका थी।" पृ. सं. (228)

उपसंहार :

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।

यत्रोतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलतः क्रियः ।। मनुस्मृति

मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में - "संसार में जो सत्य है सुंदर है- मैं उसे स्त्री का प्रतीक मानता हूँ।"- पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों का दमन कोई नई बात नहीं है। आरंभ से ही स्त्री कुंठाएँ लिए जीती आ रही है। उसकी इच्छाओं, आशाओं, आकांक्षा का सदा से ही दमन होता आ रहा है। लेकिन भारत के आरम्भिक एवं मध्य काल में स्त्रियों के अगाध पंडिता होने के दृष्टांत पाये जाते हैं। एक विद्वान का कथन है कि यदि किसी देश के सांस्कृतिक स्तर का पता लगाना है तो पहले यह देखो कि स्त्रियों की अवस्था कैसी है। इसी प्रकार पंडित नेहरु ने भी 'हिंदुस्थान की समस्याएँ' में नारी पतन की समस्या को प्रमुख मानकर लिखा है- "पुरुषों से मैं कहता हूँ कि तुम स्त्रियों को अपने दासत्व से मुक्त होने दो, उन्हें अपने बराबर का समझो।"

स्वतंत्रता सृजनात्मकता की नींव तैयार करती है जब तक स्त्री स्वतंत्र नही होगी तब तक विकास की पटरी एक पहिए पर ही आगे बढ़ेगी और समान अवसर से पूर्ण विकास संभव है।

FAQ;

Q. बाणभट्ट की आत्मकथा में प्रमुख नारी चरित्र का नाम क्या है?

Ans. बाणभट्ट की आत्मकथा में प्रमुख नारी पात्र हैं भट्टिनी, मदन श्री, निपुणिका, महामाया, सुचरिता, राजकुमारी चंद्रदीधति, चारूस्मिता, महारानी राज्यश्री।

Q. बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास की शैली है?

Ans. बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास "आत्मकथात्मक" शैली में है।

Q. बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास का उद्देश्य है?

Ans. नारी सम्मान की रक्षा और बाणभट्ट के चरित्र पर लगे लांछन को दूर करना इस उपन्यास का उद्देश्य है। Best Books in Hindi.

Q. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास किस ग्रन्थ को आधार बनाकर लिखा?

Ans. हर्षचरित को आधार बनाकर बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास लिखा गया है।

Q. "इतिहास इस बात का गवाह है कि इस महिमामयी शक्ति की उपेक्षा करने वाले साम्राज्य नष्ट हो गए" यह कथन किस उपन्यास से लिया गया है?

Ans. उपरोक्त कथन बाणभट्ट की आत्मकथा उपन्यास से लिया गया है।

ये भी पढ़ें; हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों में धार्मिक परिवेश

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