Maharana Pratap Ki Beti Verr Bala Champa Ki Balidan Ki Kahani, Bharat Ki Veer Balika Virangana Champa Story in Hindi.
Bharati Ki Mahan Virangana
वीरांगना चम्पा : राजकुमारी चम्पा रूपवती होने के साथ ही बुद्धिमती और धैर्यवान भी थी। उसकी आयु अभी बारह वर्ष की भी नहीं हुई थी, किंतु समय और परिस्थितियों ने उसे बड़ों की तरह समझदार बना दिया था। महलों में पली राजकुमारी चम्पा अपने पिता के साथ अरावली के पहाड़ी जंगलों में भी खुश थी और अपने धर्म का पालन कर रही थी। veer bala champa history and biography in hindi, veer gaathayen.
वीर बाल चंपा की बलिदान का इतिहास
Veer Bala Champa
त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। जब कभी भी समाज अथवा देश पर संकट आया तो यहाँ के लोगों ने बड़ी बहादुरी और साहस के साथ उसका सामना किया और आवश्यकता पड़ी तो अपने प्राणों की भी चिंता नहीं की। देश के आत्मसम्मान और इसकी मर्यादा की रक्षा में भारतीय नारियों की उल्लेखनीय भूमिका रही है। यदि हम भारतीय इतिहास पर दृष्टि डालें तो ऐसा लगता है कि यहाँ की छोटी-छोटी बालिकाओं में भी अपनी मातृभूमि के प्रति असीम प्रेम था एवं इसकी रक्षा के लिए इन्होंने हँसते-हँसते अपने प्राणों की बलि दे दी। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाली भारतीय वीरांगनाओं में एक प्रमुख नाम है-चम्पा।
भारत को किसी समय सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस देश की संपन्नता, धन और वैभव के दूर-दूर के देशों में चर्चे थे। अतः मोहम्मद गौरी और महमूद गजनवी जैसे न जाने कितने लुटेरे भारत आये। इन्होंने भारत को बेरहमी से लूटा और अपार धन सम्पदा लेकर लौट गये। भारत में जितने भी लुटेरे बाहर से आये उनमें से अधिकांश वास्तव में लुटेरे थे। उन्होंने यहाँ लूटपाट की और लौट गये। लेकिन कुछ लुटेरों ने यहाँ के राजाओं को परास्त किया और छोटे-छोटे राज्य स्थापित किए।
भारत आने वाले विदेशी लुटेरों में बाबर सर्वाधिक कुख्यात लुटेरा समझा जाता है। बाबर ने भारत के सीधे-सादे लोगों को देखा तो उसने यहाँ विशाल मुगल साम्राज्य स्थापित करने का निर्णय लिया। भारतीय राजाओं की आपसी कलह के कारण इस कार्य में उसे सफलता भी मिली। बाबर के बाद उसके पौत्र अकबर ने मुगल साम्राज्य का विस्तार किया।
अकबर बड़ा चालाक बादशाह था। उसने मुगल साम्राज्य के विस्तार के लिए शक्ति के साथ कूटनीति का भी सहारा लिया। अकबर ने भारत के अधिकांश देशी राजाओं की बहन-बेटियों से विवाह करके उन्हें मुगल दरबार में सम्मानजनक पद देकर तथा इसी प्रकार के अन्य तरीकों से मुगल साम्राज्य का विस्तार किया। अकबर की कूटनीति बड़ी सफल थी। वह किसी राजा को लड़कर परास्त करता तो किसी से संधि करके उसे अपने अधीन कर लेता। इस प्रकार अकबर ने अजेय समझे जाने वाले राजपूताने पर भी फतह हासिल कर ली और उसे मुगल साम्राज्य के अधीन बना लिया। किंतु अभी तक राजपूताने का एक राज्य ऐसा था, जो अकबर की आँख की किरकिरी बना हुआ था-चित्तौड़। चित्तौड़ के महाराणा प्रताप को अपनी मातृभूमि की आजादी अधिक प्रिय थी। अतः उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
अकबर ने पहले तो महाराणा प्रताप को तरह-तरह के प्रलोभन दिए। इसके बाद उन पर मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार करने के लिए अन्य राजपूत राजाओं से दबाव डलवाया। किंतु महाराणा प्रताप अडिग रहे और उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
अकबर बड़ा धूर्त और जिद्दी था। जब वह कूटनीति से चित्तौड़ नहीं पा सका तो उसने शक्ति से चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। महाराणा प्रताप की शक्ति कम थी, अतः उन्हें चित्तौड़ छोड़ कर अरावली के पहाड़ी जंगलों में शरण लेनी पड़ी। महाराणा प्रताप के लिए यह समय अच्छा न था। उन्हें अपनी महारानी और दोनों बच्चों के साथ तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े। कभी उन्हें किसी पहाड़ी गुफा में रात बितानी पड़ती तो कभी खुले आसमान के नीचे तेज धूप और वर्षा में रहना पड़ता। महाराणा प्रताप का राजकीय वैभव समाप्त हो चला था। उन्हें और उनके परिवार वालों को शानदार रेशमी वस्त्रों के स्थान पर फटे-पुराने वस्त्रों से काम चलाना पड़ रहा था तथा स्वादिष्ट भोजन के स्थान पर घास की रोटियाँ खानी पड़ रही थीं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता था कि उन्हें घास की रोटियाँ भी नहीं मिल पाती थीं और भूखे पेट सोना पड़ता था।
महाराणा प्रताप अकेले नहीं थे। उनके साथ उनकी पत्नी, चार वर्षीय बेटा और एक बेटी भी थी चम्पा। महाराणा प्रताप चम्पा को बहुत चाहते थे, किंतु समय ऐसा आ गया था कि उनके साथ चम्पा को भी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रहीं थीं और तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़ रहे थे।
राजकुमारी चम्पा रूपवती होने के साथ ही बुद्धिमती और धैर्यवान भी थी। उसकी आयु अभी बारह वर्ष की भी नहीं हुई थी, किंतु समय और परिस्थितियों ने उसे बड़ों की तरह समझदार बना दिया था। महलों में पली राजकुमारी चम्पा अपने पिता के साथ अरावली के पहाड़ी जंगलों में भी खुश थी और अपने धर्म का पालन कर रही थी।
एक बार महारानी जी ने घास की आठ-दस रोटियां बनायीं और सभी को खाने के लिए बुलाया। शाम का समय था। सभी दिन भर के भूखे थे। अतः महारानी जी की आवाज सुनते ही आ गये। इसी समय एक सेवक ने मुगल सैनिकों के आने की सूचना दी। महाराणा प्रताप ने रोटियाँ वहीं छोड़ीं और महारानी, बेटा तथा बेटी चम्पा के साथ छिपते-छिपाते भाग निकले और रात में एक पहाड़ी गुफा में शरण ली।
महाराणा प्रताप का पूरा परिवार भूखा था। राजकुमारी चम्पा ने भी कुछ नहीं खाया था। उसका छोटा भाई भूख के कारण बिलख-बिलख कर रो रहा था। चम्पा चलते-चलते अपने साथ दो रोटियाँ ले आयी थी। उसने एक रोटी भाई को दी और दूसरी रोटी स्वयं खाने बैठ गयी। अचानक उसके मन में एक विचार आया, अगर भाई को रात में भूख लगी तो क्या होगा ? उसका हाथ रुक गया। उसने रोटी एक पत्ते में लपेटी, पत्थरों की एक दरार में रखी और भूखी ही सो गयी। राजकुमारी चम्पा ऐसा पहले भी कई बार कर चुकी थी।
महाराणा प्रताप उससे कुछ ही दूरी पर लेटे सब देख रहे थे। उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी की यह स्थिति देखी तो सहन नहीं कर सके और उठकर टहलने लगे। उनके हृदय में हाहाकार मचा हुआ था। उनके कारण ही आज उनके परिवार वालों को चिथड़ों से बदन ढँकना पड़ रहा था, कठोर चट्टानों पर सोना पड़ रहा था और घास की रोटियाँ खानी पड़ रही थीं। महाराणा प्रताप बड़ी देर तक चहलकदमी करते रहे और फिर एक पत्र लिखने बैठ गये।
राजकुमार और राजकुमारी चम्पा महाराणा प्रताप ने कुछ दूरी पर सो रहे थे। महाराणा प्रताप एक नजर अपने बच्चों पर डालते और फिर पत्र लिखने लगते। उन्हें एक छोटा-सा पत्र लिखने में दो घंटे लग गये। अचानक राजकुमारी चम्पा उठी और खाँसने लगी। चम्पा की खाँसी बड़ी भयानक थी। खाँसते-खाँसते उसके मुँह से खून निकल आया।
राजकुमारी चम्पा कई दिनों से बीमार थी। पहले तो वह रूखा-सूखा खा लेती थी। किंतु जैसे-जैसे महाराणा प्रताप की मुसीबतें बढ़ती गयीं, चम्पा का खाना-पीना कम होता गया। वह एक ओर महाराणा प्रताप के दुख से दुखी थी तो दूसरी ओर किसी भी कीमत पर राजकुमार को मुसीबतों से बचाये रखना चाहती थी। यही कारण था कि चम्पा प्रायः अपने हिस्से की रोटी किसी पत्थर के नीचे या ऐसे ही किसी सुरक्षित स्थान पर रख देती थी और राजकुमार को भूख लगने पर खिला देती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे चम्पा का स्वास्थ्य गिरता गया और वह कुछ ही दिनों में सूख कर काँटा हो गयी। उसे पिछले कुछ समय से तेज बुखार आ रहा था, लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। वह इस परेशानी की स्थिति में अपनी बीमारी की बात करके अपने पिता की परेशानियाँ बढ़ाना नहीं चाहती थी।
महाराणा प्रताप राजकुमारी चम्पा के खाँसने की आवाज सुनकर परेशान हो उठे। चम्पा की खाँसी बड़ी भयानक थी। वह उठे और चम्पा के निकट जाकर उसके सर पर हाथ फेरने लगे। तभी उनकी दृष्टि खाँसी के साथ आये खून पर पड़ी। महाराणा प्रताप का हृदय चीत्कार कर उठा। आज उन्हीं के कारण उनके परिवार की यह स्थिति हो रही थी। महाराणा प्रताप अपने आपको रोक नहीं सके और फफक-फफक कर रो पड़े।
चम्पा जाग रही थी। उसके चेहरे पर महाराणा प्रताप की आँखों से निकले गर्म-गर्म आँसू गिरे तो उसने आँखें खोल दीं और उठकर बैठ गयी- "अरे पिता जी! आप रो रहे हैं ? ऐसा क्या हो गया ?" चम्पा की आवाज बड़ी धीमी थी।
"बेटी लेट जा ! तुझे तेज ज्वर है।" महाराणा प्रताप चम्पा को अपनी गोद में लिटाते हुए बोले- "बेटी! अब तुम लोगों को पहाड़ों और जंगलों की खाक नहीं छाननी पड़ेगी, चिथड़ों से बदन नहीं ढँकना पड़ेगा, घास की रोटियाँ नहीं खानी पड़ेगी। अब हम फिर से पहले की तरह राजाओं महाराजाओं के समान ठाठ से रहेंगे। बेटी! मैंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए उसे पत्र लिख दिया है।" कहते-कहते महाराणा प्रताप का गला रुंध गया।
"नहीं पिता जी, नहीं! ऐसा मत कीजिएगा। चित्तौड़ की रक्षा करना आपका धर्म है। राष्ट्र व्यक्ति और परिवार से बड़ा होता है। चित्तौड़ के स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक व्यक्ति क्या हजारों व्यक्तियों की बलि दी जा सकती है। एक परिवार क्या हजारों परिवारों को कुर्बान किया जा सकता है। आप अपनी बेटी के....लिए.... अपने...." अचानक चम्पा की आवाज लड़खड़ाने लगी।
राजकुमारी चम्पा के चेहरे पर अलौकिक आभा थी, किंतु बीमारी और कमजोरी के कारण उसे बोलने में बड़ी कठिनाई हो रही थी।
"बेटी ! तुझे क्या हो रहा है ? मुझसे यह सब".... महाराणा प्रताप के मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। उनका हृदय अथाह पीड़ा से फटा जा रहा था।
"पिता जी ! मैं जा रही हूँ। मेरा अंतिम समय आ गया है ? लेकिन मरने के पहले....आप.... कहते-कहते राजकुमारी चम्पा की आँखें बंद हो गयीं। अब उसमें अपनी आँखें खोलने की शक्ति भी नहीं बची थी।"
"बेटी। आँखें खोल ! तू कैसी बातें कर रही है ? मुझसे क्या चाहती है ? बेटी ! बोल ! कुछ तो बोल !" महाराणा प्रताप अधीर हो उठे।
"पिता जी......आप......मु.झे वचन दीजिए ...आप... दुष्ट..... अकबर....की.... अधीनता.... नहीं।" चम्पा की आवाज बुरी तरह लड़खड़ा रही थी।
"हाँ ! बेटी हाँ ! मैं अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार करूँगा। मैं अभी पत्र फाड़ कर फेंक दूँगा। बेटी! तू जो कहेगी, मैं वही करूँगा। अब तो आँखें खोल ! तू जो भी...." महाराणा प्रताप की बात अधूरी रह गयी। अचानक राजकुमारी चम्पा ने एक हिचकी ली और उसका सर महाराणा प्रताप की गोद में एक ओर लुढ़क गया।
"चम्पा....।" महाराणा प्रताप के मुँह से एक तेज चीख निकली। "बेटी ! तेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा मैं तुझे वचन देता हूँ कि मैं अपने जीवन की अंतिम साँस तक चित्तौड़ की आजादी के लिए संघर्ष करूँगा। जब तक मेरे शरीर में रक्त की एक बूँद भी रहेगी; मैं संघर्ष करूँगा। जब तक मेरे शरीर में रक्त की एक बूँद भी रहेगी; मैं संघर्ष करूँगा। जब तक मेरे शरीर में रक्त की एक बूँद भी रहेगी। मैं संघर्ष करूँगा।" कहते हुए महाराणा प्रताप उठे और उन्होंने अधीनता स्वीकार करने वाले पत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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