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Bharati Ki Mahan Virangana
वीरांगना मैना : बाल बलिदानी वीरांगना कुमारी मैना की की यह कहानी पढ़े जिन्होंने छोटी उम्र में अपने बलिदान दिया था। जानिए मैना कुमारी को ब्रिटिश ने क्यों जिन्दा जलाया। नाना साहब की पुत्री मैना कुमारी की जीवन गाथा किस्से क्रांतिकारियों के हिन्दी में भारतीय इतिहास।
शहीद बालकों की वीर गाथा
कुमारी मैना की कहानी
भारत की आजादी की लड़ाई में महिलाओं, पुरुषों, वृद्धों, युवाओं सभी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। किंतु इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित होंगे कि भारत की आजादी की लड़ाई में छोटे-छोटे बच्चों ने भी अपने प्राणों का बलिदान किया है। इस प्रकार अपने प्राणों की बलि देने वालों में दो वीरांगनाओं का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है-चम्पा और मैना। चम्पा महाराणा प्रताप की बेटी थी और उसने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध मेवाड़ की आजादी की लड़ाई लड़ रहे अपने पिता को मनोवैज्ञानिक संबल प्रदान करने के लिए अपनी आहुति दी थी। मैना बिठूर के शासक पेशवा नाना साहब की बेटी थी तथा क्रूर अंग्रेजों के दमन चक्र का शिकार हुई थी।
अंग्रेजों की 'फूट डालो और शासन करो' की नीति भारत में पूरी तरह सफल रही। इससे भारतीय राजा-महाराजा तीन भागों में बँट गये। पहले वे राजा-महाराजा थे जिन्होंने अपनी हार मानकर अंग्रेजों की दासता स्वीकार कर ली और शासक बने रहे, दूसरे वे राजा-महाराजा थे जो लार्ड डलहौजी की हड़प नीति का शिकार बने और अपना राज्य गँवा बैठे। इनमें से कुछ विद्रोही हो गये और उन्होंने अपना राज्य हासिल करने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध खुले रूप से अथवा गुप्त रूप से अभियान छेड़ दिया। इन दोनों के साथ ही इनका एक तीसरा वर्ग भी था, जिसमें देशभक्त राजा-महाराजा थे। ये केवल अपने राज्य से ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकना चाहते थे। पेशवा नाना साहब इसी वर्ग के शासक थे।
नाना साहब बहादुर देशभक्त होने के साथ ही साथ बड़े स्वाभिमानी भी थे। अंग्रेजों के द्वारा भारत के अधिकांश भागों पर आधिपत्य जमा लेने के बाद उन्होंने अपने जैसी विचारधारा वाले आजादी के दीवानों का एक संगठन तैयार किया और अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। उन्होंने कुछ ही समय में ऐसे साहसिक कार्य कर डाले कि अंग्रेजों के कान खड़े हो गये और वे उनकी जान के दुश्मन बन गये।
अंग्रेजों के पास अपार शक्ति थी और नाना साहब के पास कुछ सीमित वफादार साथी और दिलेर सिपाही। अतः नाना साहब को बहादुरी और साहस के साथ ही बड़ी बुद्धिमानी से काम लेना पड़ रहा था। वह किसी भी स्थिति में अंग्रेज सरकार के हाथ नहीं आना चाहते थे। दूसरी तरफ अंग्रेज सरकार कुत्तों की तरह उनको ढूँढ़ती फिर रही थी।
एक बार की बात है। नाना साहब ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक शानदार योजना तैयार की। इस योजना को कार्यरूप में परिणित करने के लिए नाना साहब का कुछ समय के लिए बिठूर छोड़ना आवश्यक था। वैसे भी नाना साहब अंग्रेजों से बचने के लिए प्रायः बिठूर से अलग ही रहते थे।
नाना साहब ने अपने प्रस्थान के पूर्व अपनी बेटी मैना को बुलाया और उसे समझाते हुए बोले- "बेटी ! तुम तो जानती ही हो कि मैंने अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए क्रांतिकारियों का एक दल संगठित किया है तथा एक सेना भी तैयार कर रहा हूँ। इसके लिए मुझे बार-बार इधर-उधर जाना पड़ता है। मैं कल फिर...." आगे की बात नाना साहब ने जानबूझ कर अधूरी छोड़ दी।
"पिता जी! मैं सब जानती हूँ। आप जो कुछ भी कह रहे हैं उसकी मुझे पूरी जानकारी है। आपकी अनुपस्थिति में मैं हमेशा सजग रहती हूँ। इसके साथ ही मुझे और क्या करना है ? आदेश दें।" मैना की आवाज गंभीर थी। छोटी-सी भोली-भाली मैना को उसकी परिस्थितियों ने बचपन में ही बड़ों की तरह समझदार बना दिया था।
"बेटी ! अंग्रेज बड़े क्रूर हैं। वे मेरी अनुपस्थिति में यहाँ आ सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं।" नाना साहब भावावेश में आ गये।
"पिता जी! मैं एक क्रांतिकारी की बेटी हूँ। देशप्रेम की ज्वाला मेरे भीतर भी धधक रही है। आप निश्चित होकर जाइए। विश्वास रखिए, अंग्रेज मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।"
"ठीक है बेटी ! अपना ध्यान रखना। माँ भवानी तुम्हारी रक्षा करेंगी।" कहते हुए नाना साहब अपने घोड़े पर सवार हुए और तेजी से बाहर निकल गये। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए उनका राजमहल छोड़ना अनिवार्य था। इस बात को वह अच्छी तरह जानते थे और शायद उनकी बेटी को भी इसका एहसास हो गया था।
मैना राजमहल के मुख्य द्वार पर खड़ी जाते हुए नाना साहब को बड़ी देर तक देखती रही। उसका चेहरा बड़ा शांत था। ऐसा लग रहा था, मानो उसने पहले से ही यह निश्चय कर लिया था कि उसे नाना साहब की अनुपस्थिति में कब क्या करना है।
नाना साहब के जाने के बाद मैना अकेली रह गयी। पूरे राजमहल में मैना अकेली थी। नाना साहब उसकी सेवा के लिए चार-पाँच सेविकाएँ और कुछ सैनिक उसकी रक्षा के लिए छोड़ गये थे।
नाना साहब को महल छोड़े हुए कुछ ही समय बीता था कि कमान्डर हे के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना आ धमकी। उसके साथ जनरल आउटरम भी था। जनरल आउटरम एक खूंखार अंग्रेज अधिकारी था और उसने भारतीय क्रांतिकारियों को सबक सिखाने की शपथ ली थी। उसने महल को चारों तरफ से घेर लिया। किसी देशद्रोही गद्दार ने अंग्रेजों को यह खबर दे दी थी कि नाना साहब अपने क्रांतिकारी सहयोगियों के साथ महल में हैं।
कमान्डर हे ने आते ही सबसे पहले महल के सैनिकों को गिरफ्तार किया और फिर अपने सैनिकों को महल की तलाशी लेने के लिए महल में भेजा। कमान्डर हे के सैनिकों ने महल का कोना-कोना छान मारा, लेकिन उन्हें कुछ दासियों के अलावा और कोई नहीं मिला। हे का अभियान असफल रहा। उसे नाना साहब और उनके क्रांतिकारी साथियों को जिन्दा या मुर्दा गिरफ्तार करने और महल को तोपों से उड़ाने की आज्ञा दी गयी थी। नाना साहब और उनके क्रांतिकारी साथी तो जा चुके थे। अतः हे ने महल को तोपों से उड़ाने की आज्ञा दी।
कुछ ही पलों में कमान्डर कमान्डर हे की तोपें गरजने लगीं। इसी समय रौद्र रूप धारण किए एक शेरनी की भांति मैना प्रकट हुई- "ठहरो हे ! अपनी तोपें बंद करो। इस बेजान महल ने तुम्हारा क्या बिगाड़ है?" मैना की आवाज में आक्रोश था।
"कौन हो तुम? और मुझे कैसे जानती हो? तुम्हें मेरा नाम किसने बताया?" कमान्डर हे को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। उसके सैनिकों ने महल का कोना-कोना देख लिया था। फिर यह लड़की कहां थी? हे को इस बात पर भी आश्चर्य हो रहा था कि यह लड़की उसे कैसे जानती है?
"मिस्टर हे ! मैं नाना साहब की बेटी मैना हूँ और आपको अच्छी तरह जानती हूँ। आपको शायद याद होगा कि एक समय था, जब आप नाना साहब के राजदरबार में आया करते थे। आपकी बेटी मेरी सहेली बन गयी थी। हम दोनों साथ-साथ खेलते रहते थे। कभी-कभी तो आप उसे मेरे पास छोड़ कर चले जाते थे।" मैना ने याद दिलाने का प्रयास किया।
कमान्डर हे को सब याद आ गया। उसने मैना को पहचान लिया। मैना उसकी स्वर्गीय बेटी की सहेली थी। दोनों में बड़ी घनिष्ठता थी। उसे याद आया। मैना ने उसकी बेटी के न रहने पर दो दिन तक कुछ खाया-पिया भी नहीं था।
"बेटी! मैं विवश हूँ। गवर्नर जनरल साहब का हुक्म है, राजमहल गिराने का।
"हे ! तुम फौरन यहाँ से चले जाओ। यदि तुम्हारे भीतर थोड़ी-सी भी इंसानियत है तो....।"
मैना की बात अधूरी रह गयी। इसी समय अंग्रेज सेना का क्रूर जनरल आउटरम आ गया और कड़क आवाज में बोला- "ये लड़की कौन है? और तुमने अभी तक महल को क्यों नहीं गिराया?
"सर! यह लड़की मेरी बेटी की मित्र है और यह महल न गिराने का अनुरोध कर रही है।" हे ने समझाने का प्रयास किया।
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इस लड़की को गिरफ्तार कर लो और महल को तोपों से उड़ा दो। यह मेरा हुक्म है।" जनरल आउटरम ने आदेश दिया।
कमान्डर हे ने आउटरम को समझाने का बहुत प्रयास किया। उसने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग से महल न गिराने की अनुमति लेने का भी अनुरोध किया। किंतु आउटरम नहीं माना। अंत में मैना को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके राजमहल को तोपों से उड़ा दिया गया।
मैना को गिरफ्तार करने के बाद आउटरम ने उस पर बड़े अत्याचार किए और उससे पिता नाना साहब और उनके क्रांतिकारी साथियों का पता बताने के लिए कहा, किंतु मैना टस से मस नहीं हुई।
जनरल आउटरम ने सोचा था कि छोटी-सी बच्ची को प्रताड़ित करके वह शीघ्र ही सब कुछ मालूम कर लेगा। लेकिन जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने मैना को एक सूखे पेड़ से बाँध दिया और उसे धमकाया कि यदि उसने नाना साहब का पता नहीं बताया तो उसे जिंदा जला दिया जाएगा।
मैना फिर भी शांत रही। उसके चेहरे पर गजब का तेज और आँखों में वीरांगनाओं वाली चमक थी।
जनरल आउटरम की बातों का जब मैना पर प्रभाव नहीं पड़ा तो वह गुस्से से पागल हो उठा और उसने सूखे पेड़ में आग लगा दी।
मैना अभी भी शांत थी। उसका शरीर सूखे पेड़ के साथ ही धू-धू कर जल उठा और कुछ ही पलों में राख के ढेर में बदल गया।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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