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Bharati Ki Mahan Virangana
वीरांगना नारायणी : भारत की वीर नारियों की वीर गाथाएं, नारायणी पहले से ही तैयार थी। उसने आज पुलिस को सबक सिखाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। नारायणी ने घर पर रखा हुआ धारदार फरसा उठाया और दरवाजा खोल दिया। पढ़िए पूरी कहानी किस्से क्रांतिकारियों के..
Bharat ki Veer Nariyan
वीर बालिका नारायणी
भारत में अंग्रेज व्यापारी के रूप में आये और शासक बन बैठे। भारतीय शासकों के पारस्परिक झगड़ों और अदूरदर्शी दृष्टिकोण ने अंग्रेजों को उनके पैर जमाने में बड़ी सहायता की और धीरे-धीरे वे तानाशाह बन गये। अंग्रेजों ने कुटीर उद्योगों का विनाश किया और यहाँ की जनता का जमकर शोषण किया। इसके परिणामस्वरूप भारतवासियों में अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा की भावना ने जन्म लिया और वे अंग्रेजों को भारत से भगाने की योजना बनाने लगे। सन 1857 की क्रांति इसी का परिणाम थी।
सन 1857 की क्रांति के असफल हो जाने के बाद एक लंबे समय तक अंग्रेजों ने शांतिपूर्वक राज्य किया। किंतु धीरे-धीरे उनके अत्याचार बढ़ते गये। सन 1885 में कांग्रेस के जन्म के बाद एक बार पुनः अंग्रेजों का विरोध आरम्भ हुआ। महात्मा गाँधी के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद इस विरोध ने एक नया रूप धारण किया और अहिंसात्मक ढंग से अंग्रेज राज्य समाप्त करने का निश्चय किया। इसके साथ ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ जैसे क्रांतिकारियों ने जन-जन में क्रांति की चिनगारी फूँकी और अंग्रेजों की नींद हराम कर दी।
अंग्रेज भी कब चुप बैठने वाले थे। उन्होंने अपना दमनचक्र आरम्भ किया और चुन-चुनकर क्रान्तिकारियों को जेल में दूँसना एवं सजा-ए-मौत देना आरम्भ किया। इन क्रान्तिकारियों में महिला, पुरुष, युवा, वृद्ध सभी थे। भारत की आजादी के बाद इन क्रान्तिकारियों को पर्याप्त मान-सम्मान प्रदान किया गया तथा दिवंगत क्रान्तिकारियों के स्मारक बनाये गये। किंतु बहुत से देश-भक्त क्रान्तिकारी ऐसे थे जो अतीत के अंधेरे में गुम रहे। इन अज्ञात क्रान्तिकारियों में एक विशिष्ट नाम है-नारायणी।
उत्तरप्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर के जुगराजपुर में पंडित रामेश्वर दीक्षित का परिवार एक सभ्य सुसंस्कृत परिवार माना जाता है। पंडित रामेश्वर दीक्षित और उनकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मी देवी दोनों महान देशभक्त और क्रान्तिकारी थे। उन्होंने जीवन भर अंग्रेजी राज्य को भारत से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए। वीरांगना नारायणी इन्हीं दोनों की संतान थी।
वीर बालिका नारायणी बचपन से ही बड़ी तेज चालाक और बुद्धिमान थी। उसके पिता श्री रामेश्वर दीक्षित एक कट्टर क्रांतिकारी थे और उनके निवास पर प्रायः क्रान्तिकारियों की बैठकें होती रहती थी। इन बैठकों में अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की चर्चाएँ होतीं और अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने की योजनाएँ बनायी जातीं।
अंग्रेज पुलिस को भी पंडित रामेश्वर दीक्षित और लक्ष्मीदेवी के घर पर होने वाली क्रान्तिकारियों की बैठकों की जानकारी थी। पुलिस प्रायः रामेश्वर दीक्षित के घर पर छापे भी मारती रहती थी। किंतु क्रान्तिकारियों की बैठकें इतने गुप्त रूप से होती थीं कि पुलिस को कभी भी कोई क्रान्तिकारी उनके घर नहीं मिला। इससे पुलिस झुंझला उठी और रामेश्वर दीक्षित को गिरफ्तार करने के लिए उनके घर पर छापे मारने के साथ ही तोड़फोड़ भी करने लगी।
वीरबाला नारायणी पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा। अब वह किशोरावस्था पार कर चुकी थी और सब कुछ समझने लगी थी। नारायणी जब कभी अंग्रेजों के अत्याचारों की खबरें सुनती अथवा पुलिस के कुकृत्य देखती तो उसका खून खौल उठता। अंत में एक दिन उसने पुलिस को सबक सिखाने का निश्चय किया।
एक बार स्थानीय पुलिस को किसी देशद्रोही से सूचना मिली कि रामेश्वर दीक्षित के घर पर क्रान्तिकारियों की बैठक होने वाली है। पुलिस तो ऐसे अवसर की तलाश में थी। पुलिस के एक दरोगा ने तुरंत अपने साथ बीस-पच्चीस सिपाही लिए और जुगराजपुर आ धमका। पुलिस के आते ही पूरे गांव में सनसनी फैल गयी। लोगों ने अपने-अपने दरवाजे बंद कर लिए और ऊपर चढ़कर झरोखों एवं दरवाजों की दरारों से झाँकने लगे।
पंडित रामेश्वर दीक्षित बड़े बुद्धिमान थे। उन्हें मालूम था कि पुलिस क्रान्तिकारियों को पकड़ने के लिए अवश्य आएगी। अतः उन्होंने एक दिन पहले ही क्रांतिकारियों की बैठक कर ली थी।
पुलिस का दरोगा जब सिपाहियों के साथ नारायणी के घर पहुँचा तो घर पर केवल नारायणी थी। नारायणी को भी पुलिस के जुगराजपुर आने की सूचना मिल गयी थी। अतः उसने अपनी माँ लक्ष्मीदेवी को भी पास के एक मकान में सुरक्षित पहुँचा दिया था।
दरोगा ने नारायणी का घर चारों तरफ से घेर लिया और उसके दरवाजे पर इस प्रकार से दस्तक देने लगा, मानो दरवाजा तोड़ देगा।
नारायणी पहले से ही तैयार थी। उसने आज पुलिस को सबक सिखाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। नारायणी ने घर पर रखा हुआ धारदार फरसा उठाया और दरवाजा खोल दिया।
नारायणी के दरवाजा खोलते ही दरोगा तेजी से अंदर घुसा। नारायणी ऐसे ही अवसर की तलाश में थी। उसने फरसे से दरोगा पर कई वार किए और घर की छत पर आ पहुँची। वह कई मकानों की छतों को पार करती हुई पाण्डव नदी के किनारे आयी और नदी में कूद पड़ी तथा तैर कर पड़ोस के एक सुरक्षित स्थान पर आ गयी।
नारायणी के इस साहसिक कार्य ने स्थानीय पुलिस को हिला कर रख दिया। पहले वह केवल रामेश्वर दीक्षित को गिरफ्तार करने के लिए परेशान रहती थी, अब वह नारायणी के भी पीछे पड़ गयी।
नारायणी ने अपने नये आवास से अपने पिता पंडित रामेश्वर दीक्षित और उनके साथियों से संपर्क किया और पूरी तरह क्रान्तिकारी बन गयी तथा क्रान्तिकारी कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।
धीरे-धीरे एक वीरबाला और क्रान्तिकारी देशभक्त के रूप में नारायणी की चारों तरफ चर्चा होने लगी। अंग्रेज अधिकारी उससे बुरी तरह परेशान थे तथा पुलिस किसी भी कीमत पर उसे पकड़ने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही थी। अंत में पुलिस को सफलता मिली।
एक बार नारायणी क्रान्तिकारियों का एक गुप्त संदेश लेकर जा रही थी, तभी किसी ने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस ने नारायणी को पकड़ने के लिए तुरंत जाल बिछाया। नारायणी को पुलिस के जाल का पता चल गया। किंतु इस वीरबाला ने किसी तरह क्रान्तिकारियों का संदेश सही स्थान तक पहुँचा दिया। लौटते समय नारायणी अपने को न बचा सकी और पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गयी।
पुलिस नारायणी को एक खतरनाक क्रान्तिकारी मानती थी, अतः उसे जेल में सबसे अलग रखा गया। यहीं पर नारायणी देश के अनेक विख्यात क्रान्तिकारियों के संपर्क में आयी।
नारायणी को जेल की काल कोठरी में अधिक समय तक नहीं रहना पड़ा। अदालत में पुलिस उसके विरुद्ध कोई भी आरोप सिद्ध नहीं कर सकी, अतः उसे छोड़ दिया गया।
नारायणी जेल से बाहर आकर पुनः क्रान्तिकारियों से मिल कर उनकी गतिविधियों में भाग लेने लगी। उसने कांग्रेस के अनेक अधिवेशनों में भी भाग लिया। इसी मध्य वह विख्यात स्वतंत्रता सेनानी पंडित कालिका प्रसाद त्रिपाठी के संपर्क में आयी। दोनों एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए और प्रणय बंधन में बँध गये।
नारायणी ने विवाह के बाद एक क्रान्तिकारी के रूप में अपने पति के साथ सक्रिय भूमिका निभायी, लेकिन कभी गिरफ्तार नहीं हुई। भारत की आजादी के बाद नारायणी को अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया। भारत के लोग आज भी नारायणी का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लेते हैं एवं उसे एक वीरांगना के रूप में याद करते हैं।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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