Former Queen of the Malwa kingdom Ahilyabai Holkar Story in Hindi, Biography of Indian Brave Woman Warrior Ahilyabai Holkar, Tribute to Ahilyabai Holkar, Ahilyabai Holkar Punyatithi.
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वीरांगना अहिल्याबाई होळकर : कौन थीं महारानी अहिल्याबाई होलकर? क्या है माता अहिल्याबाई होल्कर की कहानी, क्यों रखा गया महाराष्ट्र के अहमदनगर का नाम देवी अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर, पढ़िए पूरी कहानी किस्से क्रांतिकारियों के हिन्दी में महारानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती पर विशेष।
Story of Ahilyabai Holkar
अहिल्याबाई होल्कर
भारतीय वीरांगनाओं में महारानी अहिल्याबाई का नाम बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। इनके पिता श्री माणको जी शिंदे एक निर्धन मराठा थे। किंतु अहिल्याबाई का विवाह मालवा के शासक श्री मल्हार राव होल्कर के बेटे श्री खण्डू जी के साथ हुआ था। अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य के मालवा के शासकों में मल्हारराव होल्कर को एक न्यायप्रिय, शक्तिशाली एवं कुशल शासक के रूप में जाना जाता है।
अहिल्याबाई के विवाह के सम्बन्ध में मालवा में एक कहानी प्रचलित है। कहते हैं कि अहिल्याबाई बचपन से ही शिव की उपासक थीं और नियमित रूप से शिव मंदिर में पूजा करने जाती थीं। एक बार शिव मंदिर के निकट मल्हार राव होल्कर अपने सैनिकों के साथ डेरा डाले पड़े थे। प्रातःकाल का समय था। अहिल्याबाई हमेशा की तरह शिव मंदिर पहुँची, पूजा-अर्चना की और अपनी एक सहेली के साथ वापस आ गयी। उसी मध्य मल्हारराव ने उन्हें देखा और अपनी बहू के रूप में पसंद कर लिया। अहिल्याबाई की आयु उस समय मात्र बारह वर्ष थी।
अहित्याबाई विवाह के बाद राजसी ठाठ से रहने लगीं, किंतु उन्होंने दया, क्षमा और शिवभक्ति को कभी नहीं छोड़ा। ईश्वर की कृपा से उन्होंने एक बेटे भालेराव और एक बेटी मुक्ताबाई को जन्म दिया, किंतु कुछ समय बाद ही उनके दुर्भाग्य की कहानी आरम्भ हो गयी। अहिल्याबाई के पति खण्डू जी की एक युद्ध में तोप का गोला लगने से मृत्यु हो गयी और वह युवावस्था में ही विधवा हो गयीं। अहिल्याबाई ने पति के शव के साथ सती होने का निश्चय किया, किंतु मल्हारराव ने उन्हें सती होने की अनुमति नहीं दी। कुछ समय बाद मल्हारराव होल्कर की भी मृत्यु हो गयी। इसी समय अहिल्याबाई का बेटा गंभीर रूप से बीमार पड़ा और बहुत इलाज करने के बाद भी न बच सका ।
अब अहिल्याबाई अकेली रह गयीं। उनकी आयु अधिक नहीं थी, किंतु मालवा में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी कि अहिल्याबाई को राज-काज संभालना पड़ा। अहिल्याबाई ने जिस समय मालवा का शासन संभाला उस समय राज्य की स्थिति अच्छी नहीं थी। राजकोष खाली था और राज्य के अधिकारी भ्रष्टाचार और प्रजा के शोषण में लिप्त थे। अहिल्याबाई का महामंत्री गंगाधर यशवन्त एक बेईमान और लालची व्यक्ति था। वह मालवा की स्थिति का अनुचित लाभ उठा कर पूरी शक्ति अपने हाथों में लेना चाहता था। अतः उसने अहिल्याबाई को सलाह दी कि वह शासन न करें और किसी बच्चे को दत्तक पुत्र बना लें। अहिल्या बाई बड़ी बुद्धिमान थीं। उन्होंने गंगाधरराव के इरादे को भाँप लिया और उसकी बात मानने से इंकार कर दिया। अपने पहले प्रयास में असफल होने के बाद गंगाधर यशवन्त ने सैनिक विद्रोह करा दिया। रानी अहिल्याबाई जितनी बुद्धिमान थीं उतनी ही साहसी और बहादुर भी। उन्होंने इस विद्रोह को बुरी तरह कुचल दिया। इसी समय अहिल्याबाई के सेनापति तुकोजी होल्कर की अनुपस्थिति में चन्द्रावत राजपूतों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए अहिल्याबाई ने स्वयं तलवार उठायी और सेना का संचालन किया तथा चन्द्रावत राजपूतों को रौंद डाला। इसी तरह एक वार राज्य के भीलों ने विद्रोह किया। इस विद्रोह का भी अहिल्याबाई ने सफलतापूर्वक दमन किया और भीलों के सरदार को पकड़ कर उसे फाँसी पर लटका दिया।
अहिल्याबाई के पुत्र भालेराव की मृत्यु के बाद राघोबा पेशवा ने भी मालवा को हड़पने की योजना बनायी और इसके लिए सैनिक तैयारियों आरम्भ कर दीं। अहिल्याबाई को जब यह समाचार मिला तो वह विचलित नहीं हुई, बल्कि उन्होंने बड़ी बुद्धिमानी से कार्य किया। अहिल्याबाई जानती थीं कि राघोबा पेशवा की विशाल सैनिक शक्ति के सामने वह टिक नहीं सकेंगी। अतः उन्होंने स्त्रियों की एक सेना तैयार की और राघोबा पेशवा को संदेश भेजा कि यदि वह स्त्री सेना से जीत गये तो उन्हें कोई यश नहीं मिलेगा, किंतु यदि वह हार गये तो बड़ी बदनामी होगी। अहिल्याबाई की यह चाल काम कर गयी और राघोबा पेशवा ने मालवा पर आक्रमण करने का विचार छोड़ दिया।
अब अहिल्याबाई ने एक कुशल शासक के समान राज्य में सुधार आरम्भ किए। उन्होंने सेना का नये ढंग से गठन किया, नारी सेना को सुदृढ़ बनाया तथा राज्य के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कठोर कदम उठाये। इसके लिए उन्होंने अनेक भ्रष्ट सभासदों को निष्कासित कर दिया और उनके स्थान पर नये सभासद नियुक्त किए।
रानी अहिल्याबाई एक धर्म परायण और साध्वी शासक थीं। उन्होंने बड़ी-बड़ी सड़कों का निर्माण कराया तथा इनके किनारे धर्मशालाएं बनवायीं एवं गोंड और भील लुटेरों को नियंत्रित किया। इसके परिणाम स्वरूप राज्य का व्यापार बढ़ा और खाली राजकोष भरने लगा। अहिल्या बाई के शासन काल में ही कलकत्ते से बनारस तक पक्की सड़क बनवायी गयी, सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया गया तथा गया में विष्णु मंदिर, बनारस में विश्वेश्वर मंदिर आदि की स्थापना की गयी।
अहिल्याबाई रानी होते हुए भी सादा और सरल धार्मिक जीवन व्यतीत करती थीं। वह सूर्योदय के पूर्व उठती, दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पूजा-पाठ करतीं और स्वयं भोजन करने के पूर्व निर्धन व्यक्तियों को नियम से भोजन करातीं। इसके बाद दरबार में आकर राजकाज के कार्यों में जुट जाती और शाम छः बजे तक दरबार में रहतीं। राजदरबार से जाने के बाद पुनः ईश्वर की पूजा करतीं और फिर रात्रि के भोजन के बाद अपने सभासदों के साथ राज्य की समस्याओं के संबंध में विचार-विमर्श करतीं। इस प्रकार अहिल्याबाई ने मालवा का शासन संभालने के बाद अपना अधिकांश समय अपनी प्रजा की प्रगति और ईश्वर की भक्ति में व्यतीत किया। अहिल्याबाई बहुत सादा भोजन करती थीं, सफेद कपड़े पहनती थी और आभूषणों से तो उन्हें अंशमात्र भी लगाव नहीं था। उनके शासन काल में प्रजा बड़ी सुखी और संपन्न थी। अहिल्याबाई ने तीस वर्षों तक राज्य किया और 13 अगस्त, 1795 को इस संसार से विदा ली।
मालवा के लोग अहिल्याबाई को एक संत वीरांगना के रूप में याद करते हैं और उनके गीत गाते हैं। इन्दौर का राजबाड़ा और उससे कुछ दूर बनी होल्कर शासकों की छतरियां आज भी अहिल्याबाई के यश और गौरव का गान कर रही हैं।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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