बच्चों की नैतिक कहानी: बबलू की दादी

Dr. Mulla Adam Ali
0

Motivational Hindi Moral Children's Stories in Hindi by Dr. K. Vatsala, Hindi Prernadayak Bal Kahaniyan, Moral Stories for Kids in Hindi, Audio Stories Podcast.

Bablu Ki Dadi : Hindi Bal Kahani

bablus grand mother hindi story

बबलू की दादी हिंदी बाल कहानी : परिवार और समाज की शान है हमारे बुजुर्ग, बुजुर्गों का देखभाल करना हमारा प्रथम कर्तव्य है। बूढ़े लोगों का आदर सम्मान करना चाहिए, क्योंकि हमारी पहचान है वे लोग, बच्चों में अच्छे संस्कार देना चाहते हैं तो बड़ों का आदर करना चाहिए। माता पिता परिवार के लिए और समाज में बच्चों की पहचान है, लेकिन आजकल समाज में एकल परिवार देखने को मिलते हैं, बड़े परिवार आज गांवों में भी मुश्किल से देखने को मिलती है, ज्यादातर शहरों में एकल परिवार ही है। घर में बड़ों का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चों को नैतिक शिक्षा अपने बुजुर्गों से ही ज्यादा मिलने की संभावना है। आज ऐसी ही एक बाल कहानी जो पारिवारिक रिश्तों पर आधारित है, बच्चों के मूल्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है डॉ. के.वत्सला की लिखी हिन्दी बाल कहानी बबलू की दादी, पढ़िए और शेयर कीजिए। हिन्दी ऑडियो कहानी, ऑडियो स्टोरी इन हिन्दी।

Bablu's Grandmother : Hindi Children's Story

बबलू की दादी

स्कूल बस की आवाज़ सुनते ही दादी माँ द्वार की ओर दौड़ी। बबलू आकर दादी के गले से चिपट गया। दादी ने उसे अंदर ले जाकर स्कूल की वर्दी बदली और नहला कर दूध और नाश्ता दिया। बबलू ने कहा- हम टी.वी. देखेंगे।

दोनों बैठकर रामायण देखने लगे।

बबलू ने पूछा "दादी माँ। श्रीराम पिता के कहने पर जंगल जाने के लिए क्यों तैयार हुए? वे जाने से मना कर सकते थे न? महल के आराम का जीवन छोड़कर क्यों कष्ट भोगने जंगल गये।"

दादी ने उसके सर पर हाथ फेर कर बोला 'देख बेटा बबलू। अच्छे बच्चे हमेशा बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं। उनसे सवाल नहीं पूछते । तुम्हें भी अच्छा बच्चा बन कर माँ-बाप का कहा मानना है।'

बबलू, यानी कि ललित विजय और रीना का इकलौता बेटा है। विजय एक मशहूर कंपनी में इंजीनियर है। रीना एक आई.टी. कंपनी में ऊँचे पद पर है। दोनों सुबह दफ्तर जाते और रात देर से घर लौटते हैं। बबलू का सारा समय दादी माँ तथा नौकरानी तारा के साथ बीतता है।

दादी और बबलू ने मिलकर एक सुन्दर बगीचा लगाया है। उसमें तरह-तरह के सुंदर रंग-बिरंगे फूल हैं। शाम को स्कूल से आकर बबलू दादी के साथ बगीचे की देख-रेख करता है, पौधों को पानी देता है और फूलों को सहलाता प्यार करता है।

दादी माँ उसे अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाती है और सद्रुपदेश भी देती हैं। उसे अनुशासन के साथ जीना सिखाती है। समय पर खेलना, गृह पाठ करना, समय पर सोना-जागना आदि का महत्व समझाती है। बबलू एक अच्छा अनुशासित लड़का है। स्कूल के सभी अध्यापक उसके व्यवहार से बहुत प्रसन्न हैं। वह पढ़ने में अव्वल होने के साथ-साथ खेल-कूद, चित्र रचना आदि सभी में कुशल है। उसकी दादी माँ एक अवकाश प्राप्त अध्यापिका हैं। उनकी देख-रेख में बबलू एक सुशील और होशियार बच्चा बन गया है।

शाम को बबलू दादी माँ के साथ बैठा था। अपने व्यवहार के विरुद्ध बहुत गुमसुम बैठी है तो बबलू ने कारण पूछा। दादी माँ बात टालते हुए कहने लगी "देख बेटा। मैं रहूँ या न रहूँ तुम्हें हमेशा मेरी बातें याद रखना है और अपना जीवन नियम से चलाना है। तुम भविष्य में एक बहुत बड़ा आदमी बन जाओगे। तब दादी माँ को याद करना।

यों कहते-कहते उन की आँखों से अश्वधारा बहने लगी। बबलू कुछ समझ नहीं पाया। रात को दादी माँ के गले में बाँह डाल कर कहानी सुनते-सुनते वह सो गया।

अगले दिन बबलू को स्कूल के लिए तैयार करते समय दादी माँ की आँखें भरी हुई थीं। बबलू ने पूछा "दादी माँ ! आप क्यों परेशान हैं। मैं शाम को आकर आप को डॉक्टर के पास ले जाऊँगा। शायद आप को कोई परेशानी है जो आप मुझ से छिपाती हैं।"

दादी माँ ने कुछ भी बोले बिना सिर हिलाया।

शाम को स्कूल बस की आवाज़ सुन कर कोई द्वार पर नहीं आया। बबलू ने सोचा "बेचारी दादी माँ, शायद बहुत बीमार हैं। सुबह ही उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना था।

गलती हो गई।" दादी माँ ! दादी माँ ! पुकार कर दौड़ता हुआ वह अंदर गया। कहीं दादी माँ नज़र नहीं आयी तो गृहसेविका से पूछा "आंटी! दादी माँ कहाँ है? उनको क्या हो गया?"

गृहसेविका ने कहा “बेटा ! दादी माँ वृद्धाश्रम चली गई। वापस नहीं आएँगी।" यह सुन कर बबलू रोने लगा। वह उसे नहलाने के लिए ले गई तो वह हठ करने लगा। "नहीं मुझे तुम मत नहलाना, दादी माँ के आने पर ही नहाऊँगा।"

गृहसेविका ने कहा - "देखो बेटा! अब वे कभी वापस नहीं आएँगी।"

बबलू - क्यों ?

"तुम्हारे माँ-बाप ने ही उन्हें भेजा है। वे अब बूढ़ी हो गई हैं न?"

बबलू - जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो मम्मी-पप्पा भी बूढ़े हो जाऐंगे न?

"हाँ"

"तब मुझे भी उन्हें वृद्धाश्रम भेजना होगा न।"

बबलू के पापा-मम्मा उस दिन संयोग से जल्दी घर लौटे थे। अन्दर घुसते समय बबलू और गृहसेविका की बातें सुन कर बाहर ही खड़े रहे। बबलू का आखिरी वाक्य सुनकर दोनों दंग रह गये। उन्होंने आपस में कहा- "बच्चे हमारा व्यवहार देखकर ही सीखते हैं। माँ जी ने अभी तक उसमें अच्छा संस्कार डाला है। लेकिन उनके जाते ही उसके मन में हमारे कारण इस तरह के विचार उठने लगे हैं।"

बबलू की मम्मा ने कहा- चलो ! अभी हम जाकर माँ जी को वापस ले आते हैं। दोनों चुपके से चले गये ।

बबलू उस वक्त अपने कमरे में उदास बैठा था। करीब दो घंटे बाद किसी ने पीछे से आकर उसकी आँखें बंद कीं। मुड़ कर देखा तो बबलू खुशी से कूद पड़ा। उसने दादी को गले से लगाया और उन्हें चूमने लगा।

यह देखकर बबलू के क मम्मा-पप्पा की आँखें भर आयीं।

उन्होंने सोचा- हम ने कितनी बड़ी गलती की बबलू ने हमारी आँखें खोल दीं।

- डॉ. के.वत्सला

ये भी पढ़ें; जन्मदिन का उपहार : हिंदी बाल कहानी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top