समकालीन हिंदी कहानियों में दलित का अस्तित्व

Dr. Mulla Adam Ali
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Dalit existence in contemporary Hindi stories

dalit existence in contemporary hindi stories

हिन्दी में दलित साहित्य की चर्चा और इस पर उठे विवाद ने हिन्दी साहित्य को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। यहाँ एक ओर दलित साहित्य के आलोचक, समीक्षक, दलित साहित्य के अस्तित्व को नकार रहे हैं। वही कुछ लोग यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि दलित साहित्य के लिए दलित ही होना जरूरी नहीं है।

समकालीन हिंदी कहानियों में दलित का अस्तित्व

समकालीन हिंदी कहानियों में दलित चेतना ने अपना स्थान जमा लिया है। युगीन परिस्थितियों के साथ-साथ चलना हर काल मं साहित्य का दायित्व रहा है। इसी में कहानी विधा तो एक सशक्त विधा है ही। वैसे आधुनिक काल में दलित चेतना का साहित्य में शुभारंभ सरस्वती के माध्यम से बीसवीं सदी के दूसरे दशक में 'हीरा डोम' की कविता से हुआ है। परंतु कहानी के परिप्रेक्ष्य में कहना हो तो डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के आंदोलन के समय ही दलित जीवन की वास्तविकता को दर्शान वाली कहानियाँ लिखकर प्रेमचंद जी ने इसमें रचनात्मक सहभागिता दर्ज किया। लगभग इस कालावधि में पांडेय बेचैन शर्मा 'उग्र', सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" आदि ने भी दलित संवेदना को दर्शाने वाली रचना का निर्माण किया। आरंभ से लेकर अब तक कहानी अपनी यात्रा करते हुये 21 वीं सदी में पहुँच गयी हैं। साथ ही यह समकालीन नाम को प्राप्त कर चुकी हैं। समकालीन केवल काल बोधक ही नहीं बल्कि वह उस चेतना का भी वह वाहक है जिसमें हम जीते हैं। इस समय की कहानियाँ भी अपने प्रखर रूप और कटु सत्य के साथ जन्म ले रही हैं। जिसमें समकालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं संस्कृतिक जीवन की गतिविधियाँ एवं उनसे जुझते हुए दलित समाज का चित्रण है।

हिन्दी में दलित साहित्य की चर्चा और इस पर उठे विवाद ने हिन्दी साहित्य को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। यहाँ एक ओर दलित साहित्य के आलोचक, समीक्षक, दलित साहित्य के अस्तित्व को नकार रहे हैं। वही कुछ लोग यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि दलित साहित्य के लिए दलित ही होना जरूरी नहीं है। उनका कहना है कि हिन्दी में दलित समस्याओं पर लिखनेवालों की एक लंबी परंपरा है। ऐसी ही चर्चा के दौरान कथाकार काशीनाथ सिंह ने अपने एक अध्यक्षीय भाषण में टिप्पण की थी 'घोड़े पर लिखने के लिए घोडा होना जरूरी नहीं है। विद्वान कथाकार का यह तर्क किस सोच को उजागर करता हैं? घोड़े को देखकर उसके बाह्य अंग, उसकी डुलकी चाल, उसके पुट्ठों उसकी हिनहिनाहट पर ही लिखेंगे। लेकिन दिन भर का थकाहरा जब वह अस्तबल में भूखा-प्यासा खूँटे से बंधा होगा, तब वह मालिक के प्रति उसके मन में क्या भाव उठ रहे होंगे, उसकी अंतः पीड़ा क्या होगी, इसे आप कैसे समझ पाएंगे? मालिक का कौनसा रूप और चेहरा उसकी कल्पना में होगा इसे सिर्फ घोड़ा ही जानता है।'¹

मैत्रेयी पुष्पा की कहानी 'मन नाही दस बीस' में जातीयता के नियम में चलते पिता की मानसिकता है। प्रस्तुत कहानी में जातीयता को अपने समाज का साथ ही - अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा समझने वाले व्यक्ति और समाज का चित्रण मिलता है। इसी विचार धारा के परिणाम स्वरूप अपने ही कोख से जन्मी कन्या का जीवन दुखमय बन जाता है क्योंकि निडर व्यक्तित्व वाले मर्द से जातीय असमानता के कारण स्वतःपिता ने उससे विवाह का नाता तोड़कर सवर्णता का दंभ भरनेवाले समाज से बचने के लिए एक ऐसे युवक से विवाह करता है जो सवर्ण तो है परंतु मर्द नहीं है। कन्या का जीवन दुखमय हो जाता है। अंत में अपने दलित मित्र के सामने सच्चाई का इजहार करनेवाली सवर्ण जातीय प्रेयसी का अत्यंत सजीव और मर्मस्पर्शी चित्रण इस कहानी में हुआ है।

डॉ जोतिश जोशी 'साहित्य में दलितवाद की प्रसंगीकता' इस लेख के अंतर्गत अपने विचार प्रकट - करते हैं। "इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में निम्न जातियों पर सदियों से अत्याचार होते आ रहे हैं। उनके शोषण और उत्पीड़न की लंबी परंपरा है। जो प्रायः हर युग में चलती रही है। किसी भी जीवित समाज में इस बर्बरता को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।"² डॉ जोतिश जोशी इस विचार के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

ओम प्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'कूड़ाघर'। प्रस्तुत कहानी में जाति प्रथा की मानसिकता को लेखक ने बड़े यथार्थ रूप से चित्रित किया है। कहानी का नायक अजबसिंह देहरादून से आरक्षण बचाव रैली में दिल्ली चले गए थे। परंतु रैली का कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। इसलिए वहाँ से उन्हे निराश होकर ही लौटना पड़ता है। इससे भी अधिक निराश तब हुई जब घर लौटकर पत्नी से इस बात का पता चला कि मकान मालिक डॉ साहब ने घर खाली करने की सूचना दी है। पत्नी कि बात सुनकर को अजब सिंह आशचर्य में डूब गए। पत्नी, सुमित्रा से वास्तविकता को जानना चाहा। अचानक ऐसा क्यो हो गया? दो दिन पहले उनका रावैय्या अच्छा था। तब पत्नी सुमित्रा मालिक की काही बातों को दोहराती हैं। "मकान खाली कर दो...तुम लोगों ने मकान किराए पर लेते समय यह बताया था कि एस.एस.सी. हो।"³ जब तक अजब सिंह की जाति का आभास नहीं हुआ था तब तक मकान मालिक डॉ साहब का परिवार उनके साथ घुल-मिलकर रह रहा था। जाति का पता चलते ही सब कुछ बदल गया। इस तरह के माहौल से मानो सारा शहर ही एक 'कूड़ाघर' में बदल गया हो, जहाँ साँस लेना भी मुश्किल हैं।

सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मानव के बीच के व्यवहार को हम देख सकते हैं। यह हमारे सामने मानव व्यवहार को लेकर यथार्थ स्थिति को सामने रखता है। यह एक मानव या वर्ग का अपने जैसे ही मानव के साथ किस प्रकार संबंध है किस प्रकार की असमानता हैं इस को हमारे कहानीकारों ने अपने कहानियों द्वारा हमारे सम्मुख रखा हैं। 

संदर्भ ग्रंथ सूचीः

  1. ओम प्रकाश वाल्मीकि दलित साहित्य का सौंदर्य शस्त्र - पृष्ट : 10
  2. कथाव्रत दलित विशेषांक नवंबर 2002-पृष्ट : 81
  3. ओम प्रकाश वाल्मीकि 'कूड़ाघर'- पृष्ट :76

- वै. शारदा

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