सरकार की उदारता : हिन्दी व्यंग्य

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Satire generosity of the government, Hindi Vynagya Aalekh, Rajnitik Vynagya, Political Satire in Hindi.

Generosity Of The Government

generosity of the government

आवश्यकता से अधिक अधिकार देने वाली हमारी सरकार आज आतंकवादियों की शिकार बनी हुई है।सरकार तो सदैव सुधार का प्रचार करती रही है भले ही आप न सुधरो। सरकार कोई सर्कस तो है नहीं जिसमें शेर, बकरी एक साथ रह सके। सरकार से सभी सहमत हों जाए यह तो संभव नहीं।

हिन्दी व्यंग्य

सरकार की उदारता

समस्याओं के समाधान हेतु सर्वसम्मति से निर्मित हमारी सरकार सचमुच बहुत समझदार है। अपनी इस सरकार से सभी को बेहद प्यार है तभी तो हर व्यक्ति सरकार में आना चाहता है। आम आदमी भी सरकार का पद पाना चाहता है। हमारी यह सरकार विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्ध हुई है। सच मानिए संसार में सबसे उदार सिर्फ हमारी ही सरकार है। जो अपराधी को संरक्षण देकर उसे अपराध करने को उकसाती है। पीछे पुलिस को भेजकर पकड़वाने का झूठा ढोंग रचाती है। यदि मुठभेड़ के दौरान फायरिंग में धोखे से कोई घायल भी हो जाए तो उसके पूरे परिवार को सुविधा मुहिया कराती है। उदारता का प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाहर से बुलवाकर यहां स्थापित किया तथा समस्त रोजगार समाप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दानवीर कर्ण की भांति अपना सर्वस्व लुटाने को तत्पर है सरकार। जनता के लिए जनता के द्वारा चुनी गई सरकार में जनता का मात्र इतना ही अधिकार होता है कि वह अपनी गुहार कर सकती है। जनता की चीख-पुकार का असर सरकार पर भले ही न पड़े पर आम जनता के बीच थोड़ा बहुत तो पड़ ही जाता है। पहले विरोध का शंखनाद मध्यम स्वर में होता है फिर धीरे-धीरे पुरजोर कोशिशों के बावजूद राहत की लहर, सहानुभूति की लहर, देश प्रेम की लहर उठती तो है मगर शीत लहर की भांति अल्पकालीन होती है। भारत में प्रतिवर्ष मंहगाई बढ़ती है तो इसी के साथ गरीबी, बेरोजगारी, बिमारी, जनसंख्या और गुंडागर्दी भी बढ़ती है। विकास में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है, किन्तु उसका अनुपात कम है। भूख से मरने वालों की तुलना में आत्महत्या करने वालों की संख्या ज्यादा हो रही है। भ्रष्टाचार में भी भयानक वृद्धि हुई है। अपने उदार स्वभाव के कारण सरकार कुछ समाचार भी पूर्ण उदारता के तरह छपवाती है। जहां दो मरते हैं वहां चार दर्शाकर शोक संवेदना प्रगट करती है। यदि ऐसा नहीं किया तो जनता स्वयं ही सरकार से त्याग पत्र की मांग करती है जो अनुचित है। बेचारी जनता यह भी नहीं जानती है कि सरकार ने त्यागपत्र दे दिया तो देश में चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और चुनाव के बाद निश्चित रूप से मंहगाई में वृद्धि होगी। मंहगाई की मार से पीड़ित जनता के पास सिवाय चुप रहने के और कोई उपाय नहीं।

अपनी सरकार को सहन करना जनता का सबसे बड़ा धर्म है। कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का हो सकता है पर सरकार का कोई धर्म नहीं। सरकार तो सर्वधर्म सद्भाव को लेकर चलती है। जिस क्षेत्र में जिस समुदाय का दबाव बढ़ता नजर आता उसी के संवर्धन और संरक्षण में सरकार जुट जाती है। अल्प संख्यक समुदाय की सुरक्षा में कई बार तो सरकार स्वयं लुट जाती है। समय आने पर आंतकवादियों के समक्ष झुक जाती है। ऐसी उदार अति कोमल हृदय है हमारी सरकार। अब सारा दोष सरकार पर थोप देना कोई बुद्धिमानी नहीं अपितु नादानी है। सरकार को ऐसा बनाने में हमने भी कोई कसर नहीं छोडी है। असफलता के बीच सरकार को धीरज बंधाने की जगह धिक्कारने का झूठा प्रयास सर्वथा निष्फल रहा फिर भी बार-बार सरकार को धिक्कारने से आप लोग बाज नहीं आए। सरकार को साथ देने की बजाय हाथ खींच लिया। शत्रु से हाथ मिलाने से अच्छा है सरकार के साथ हो जाए। कम से कम विकास का रास्ता तो साफ हो जाएगा। सरकारी समारोह तो अक्सर होते रहते हैं। ऐसे अवसर पर सद्भाव का स्वागत करते हुए सरकार की उदारता पर अच्छा-खासा भाषण दे दिया जाए तो निश्चित ही सारे दोष समाप्त हो जायेंगे। सरकार तो शुरू से ही राग-द्वेष से सनी हुई है किन्तु इस संदर्भ में हमें सावधान रहना पड़ेगा। सरकार को गिराने वाले लोग मिथ्या आरोप लगाकर जनता के दिलों में विष भर रहे हैं। सरकार को कई लोगों ने सार्वजनिक और कई लोगों ने व्यक्तिगत सम्पत्ति मान लिया है। वे चाहे जैसा इसका उपयोग कर ले, कोई नहीं रोक सकता। सरकार भी सरेआम कहती है सरकारी संपत्ति आपकी अपनी है। बस इसी महावाक्य का फायदा उठाकर भोली-भाली जनता पूरा-पूरा लाभ उठा रही है। कुछ सिद्धान्त जनता इतनी जल्दी समझ लेती है कि बात मत पूछो और कई बातें तो बुद्धि में आती ही नहीं। अब ऐसे में सरकार भी क्या करें।

सरकार तो सदैव सुधार का प्रचार करती रही है भले ही आप न सुधरो। सरकार कोई सर्कस तो है नहीं जिसमें शेर, बकरी एक साथ रह सके। सरकार से सभी सहमत हों जाए यह तो संभव नहीं। सरकार तो स्वयं संकट से घिरी रहती है, इसलिए जनता को संकट से मुक्त कराने में देरी लगती है। जरूरी नहीं कि प्रत्येक समस्याओं का समाधान सरकार ही करेगी। सरकार के पास वैसे भी बहुत बड़े-बड़े साधन उपलब्ध हैं। अनेकों आलीशान भवन, करोड़ों कार, लाखों बेरोजगार, सैकड़ों बेकार लोगों को पालने वाली हमारी ये सरकार इतनी भी उदार हो सकती है, इसकी कल्पना न थी। आवश्यकता से अधिक अधिकार देने वाली हमारी सरकार आज आतंकवादियों की शिकार बनी हुई है। हर हाल में दया और करूणा को कायम रखते हुए सहनशीलता को खोना नहीं चाहती। सरकार के सहारे चलने वाले समस्त साहित्यकार इस उदारता पर बेहद मोहित हैं मगर मजबूरी वश प्रशंसा करने में कुछ पीछे रह गये हैं। सरकार के व्यवहार से प्रभावित होकर सारा विश्व चकित है। अनेकों देशों का भारत पर इतना पैसा उधार है कि आम जनता का उद्धार अपने आप ही हो जाना है। सरकार की उदारता देखिए कि विदेशी कंपनियों को शरण दे रही है। ये कंपनियां व्यापार के बहाने आती है और स्वयं अधिकार जताने में जुट जाती हैं। धन कमाने के साथ ही देश को गुलाम बनाने में इन्हें महारत हासिल है। सरकार के समक्ष समस्याओं का अंबार है पर जिन्हें सरकार से प्यार होता है वे समय पर साथ देकर सम्मान पाते हैं। सम्मान पाने वाला महान कहलाता है। हमारे महान देश की महान सरकार उदारता के चक्कर में फंसकर कहीं उदास न हो जाए। जरूरत से ज्यादा उदार होना हमें स्वीकार नहीं फिर आप जानो या आपकी सरकार।

- रामचरण यादव

ये भी पढ़ें; कहावतों-मुहावरों में अभिव्यक्ति का लोकतंत्र

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top