कर्नाटक के कृष्णभक्ति साहित्य के कवि कनकदास

Dr. Mulla Adam Ali
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Kanaka Dasa, a poet of Krishna devotional literature from Karnataka, Haridasa saint and philosopher of Dvaita Vedanta, ದಾಸಶ್ರೇಷ್ಠ ಕನಕದಾಸ.

Daasashreshta Kanakadasa

daasashreshta kanakadasa

काव्यकार कनकदास प्रतिभा संपन्न समर्थ कीर्तनकार हैं। शूद्र होकर भी विप्रों से श्रेष्ठ भक्त कवि प्रमाणित हुये हैं। युग के राजगुरु व्यासराय से समाहत हुए।

कर्नाटक के कृष्णभक्ति साहित्य के कवि कनकदास

कर्नाटक के कृष्ण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि कनकदास का कन्नड़ भक्ति साहित्य में विशेष स्थान है। आध्यात्मिक व भावात्मक एकता का चेतनाबोध करने में आपका विशेष योगदान रहा है। कर्नाटक संस्कृति का विकास किया है। कृष्ण भक्ति का प्रचार किया है। वैष्णव भक्ति की परिपुष्ट किया है। वैष्णव धर्म का पुनरुद्धार किया है।

मध्वाचार्य की परंपरा में व्यासराय ने कर्नाटक प्रदेश में कृष्ण भक्ति का प्रसार किया। कनकदास ने अपने कीर्तनों में कृष्ण का लोकरंजनकारी रूप का वर्णन किया है। अपने संकीर्तन से घर-घर जीवियों को हरि भक्ति रसामृत का पान कराया है। सबके लिये भी आत्मोद्धार का द्वार खोल दिया है। हरिनाम, हरिपाद हरि तीर्थ का वर्णन किया है। सत्यंग पर बल दिया है। भक्ति को प्रवाहित किया है। कनकदास ने भगवंत भजन व कृष्ण संकीर्तन को सब कुछ माना है। आपकी भक्ति साधना में नामस्मरण की महिमा है।

कनकदास ने सर्व समर्पण भाव से कर्तव्य कर्म को निभाया था। तन्मय होकर हरिनाम का जप किया था। विरक्ति के सच्चे जानकार थे। वनजनाभ का नाम स्मरण करना पर्याप्त बताया है। जन साधारण में भक्ति से मुक्ति प्राप्त करने की आकांक्षा जागृत की थी। नैतिक आदर्शों को पेश किया था। सामाजिक जागृति उत्पन्न की थी। पाखण्ड और शुष्क पांडित्य के समर्थक नहीं थे।

हरिदास परंपरा के कनकदास जाति से गडरिये थे। धारवाड जिले के बाड के निवासी हैं। आप कृष्णदेवराय के शासनकाल में थे। विजयनगर साम्राज्य की सेना में उँचे पद को सुशोभित किया है। मुक्ति की आकांक्षा से प्रेरित होकर पुरुषार्थी सैनिक अधिकारी ने राजा की सेवा से स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण किया था। गुरु को खोजा था। सात्विक संस्कार संपन्न जिज्ञासु कनकदास में व्यासराय को अपना अंतरंग गुरु बनाया था। धर्म साधना में निरत कनकदास का इष्टदेव बाड़ स्थित कागिनेले का आदि केशव है। यही अंकित आपके कीर्तनों में दृष्टिगोचर होता है।

कनकदास उच्चकोटि के कीर्तनकार भक्त और प्रतिभा संपन्न कवि थे। आपके नाम पर कीर्तनों के अलावा चार कृतियाँ कन्नड़ साहित्य में उपलब्ध हैं- (1) मोहन तरंगिणी, (2) नकचरित, (3) रामधान्य चरित, (4) हरि भक्तिसार। 'नरसिंह स्तव' और 'वासुदेवाय नमो' भी आपकी रचनाएँ मानी जाती हैं। द्रौपदी की लाज रखनेवाली रचना 'वासुदेवाय नमो' भक्ति प्रधान गीत है। इन कृतियों के प्रणेता कनकदास भक्त कीर्तनकार और प्रतिभा संपन्न समर्थ कवि हैं।

कनकदास का 'मोहन तरंगिणि' सांगत विधा में है। इसमें अठारह सौ पद्य हैं। इसमें समकालीन विजयनगर साम्राज्य का जनजीवन चित्रित है। रचना के प्रारंभ में श्री रामानुज का स्तवन है। उनके अनन्य शिष्य ताताचारी के चरणों में वंदना की गई है। बाणासुर की शिव भक्ति, शिव पूजन का भी प्रभावी वर्णन है। इसमें शेवधर्म का प्रभाव लक्षित है। हरिहर अभेद के भागवत धर्म के अनुसार श्री कृष्ण की भक्ति की महिमा भी तन्मयता से वर्णित है। सर्वधर्म समभाव का उदार दृष्टिकोण कवि का रहा है।

मोहन तरंगिणि का अंगीरस श्रृंगार है और अंग रसों में वीर व करूण की व्यंजना है। कृष्ण-रुक्मिणी के शृंगार-विहार और उषा-अनिरुद्ध प्रणय के प्रसंग अतिशय श्रृंगार-पूरित हैं। रचना सुज्ञान वधू को संबोधित है। कवि ने उसे अपनी प्रेयसी माना है। कवि ने इसे 'कृष्णचरित' भी माना है। कृष्ण भक्ति की महिमा का गायन कवि का उद्देश्य है।

कनकदास का दूसरा काव्य 'नल चरित' है जो लोकप्रिय है। यह भामिनी षट्पदी में है। यह कुमार व्यास के भारत का स्मरण दिलानेवाली कृति है। यह वनपर्व की कथा पर आधारित है। सिर्फ पाँच छन्दों में कुमार व्यास ने इसे समेटा है। कनकदास ने तीन सो अस्सी छन्दों में खूब फुलाया है-फैलाया है। कहानी रोचक बन पड़ी है। इसमें नल-दमयंती के मिलन- वियोग-पुनर्मिलन का विन्यास-क्रम है। कहीं शृंगार का अतिरेक नहीं है। विद्वानों का विचार है कि इस रचना पर कुमार व्यास, कुमार वाल्मिकि जैसे कन्नड़ महाकवियों की कृतियों की छाप पड़ी है। सुबोध तत्सम तद्भव-देसी पदावलियों के पुट से रूपायित इसकी शैली बे जोड़ है।

कवि कनकदास का तीसरा काव्य रामधान्य चरित है जिसमें 156 भामिनी षट्पदियाँ हैं। इसमें कवि की अनूठी कल्पना है। भक्त वत्सलता की महिमा सुरक्षित है। कन्नड़ में इसकी पहचान है। 110 भामिनी षट्पदियों की हरि भक्ति सार कवि की चौथी रचना है जिसमें प्रभु की स्तुति-प्रार्थना है। इसकी तुलना भर्तृहरि के नीति-वैराग्य शतकों से की जाती है। कवि की पांचवीं रचना सांगत्य विधा की नृसिंह तत्व है। उसके प्रारंभ में कागिनेले आदि केशव का मंगल स्तोत्र है। पीछे श्री रामानुज जी का स्तवन भी है। भक्त कवि कनकदास जी कन्नड़ के अमर कलाकार हैं।

काव्यकार कनकदास प्रतिभा संपन्न समर्थ कीर्तनकार हैं। शूद्र होकर भी विप्रों से श्रेष्ठ भक्त कवि प्रमाणित हुये हैं। युग के राजगुरु व्यासराय से समाहत हुए। नादोपासना का भक्ति मार्ग मुक्तिदायी बना। कनकदास के पास भी तानपूरा और झोली थी। लेकिन औरों से भीख लेनी नहीं थी। मानव मात्र की भूख मिटाने के लिए कनक ने भगवत्प्रेम की भिक्षा संसार में, घर-घर में बाँटी है।

- शंकरराव कप्पीकेरी

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