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Birthday Gift : Hindi Bal Kahani
बाल कहानी जन्मदिन का उपहार : ऑस्ट्रेलिया सोशल मीडिया उपयोग के लिए 16 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा तय करने वाला पहला देश बन गया है। इसके साथ ही बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर भी बहस तेज हो गई हैं। बच्चों में सोशल मीडिया के दुष्परिणामों को लेकर सभी एकमत हैं। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनको मोबाइल फोन से दूर रखना चाहिए, आजकल के बच्चे खेलने कूदने के बजाय स्मार्ट फोन का उपयोग करते हुए घर में ही अपनी छुट्टियां मनाते है, इससे शारीरिक रूप से वह कमजोर बनते जा रहे हैं और मानसिक रूप से भी। आज ऐसी ही एक बाल कहानी किताबों के महत्व पर बच्चों में जागरूकता लाने में मदद होगी, पढ़िए डॉ. मंजु रुस्तगी की बाल कहानी मयंक की समझदारी और शेयर कीजिए।
Janmdin Ka Upahar Children's Story in Hindi
मयंक की समझदारी
माँ ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला, देखते ही आश्चर्यचकित हो उठी। मयंक माँ के बिना जगाए ही नहा-धोकर कर स्कूल की यूनिफार्म निकालकर पहन रहा था। माँ--"आज सूरज पूर्व से न निकलकर पश्चिम से निकला है क्या?"
मयंक (मुस्कुराकर)--"नहीं माँ आज जल्दी जाना था न ..." मयंक के चेहरे से उत्साह टपक रहा था।
माँ भी पूछे बिना न रह सकी--"कोई खास बात है बेटा?"
"अरे माँ! आप तो भूल ही गईं, आज स्कूल का वार्षिकोत्सव है ना और मेरे दोस्त एक नाटक खेलने जा रहे हैं, फिर उसके बाद कल सबको अपने घर पर आने के लिए इनवाइट भी तो करना है?" उसने बड़े उत्साह से अपनी शर्ट के बटन लगाते हुए कहा।
माँ ने जानकर भोले बनते हुए पूछा--"अच्छा-अच्छा! लेकिन कल क्यों? कल क्या है?"
मयंक माँ के गले में झूल कर बोला-- "माँ कल मेरा जन्मदिन है और पापा मुझे मोबाइल दिलाने वाले हैं।" कहते हुए उसकी आँखों में एक चमक आ गई थी।
मयंक स्कूल पहुँचा तो बस उत्सव शुरू ही होने वाला था। वह भी दर्शकों में अपने दोस्तों के साथ जाकर बैठ गया। पर्दा उठा और स्टेज पर कमरे का सेट लगा हुआ था। कमरे में एक तरफ उसका दोस्त मोबाइल बन कर खड़ा मुस्कुरा रहा था और पास ही किताब बन कर दूसरा दोस्त भी मेज पर बैठा हुआ था।
मोबाइल खड़ा मुस्कुरा रहा था और पास ही रखी किताब को हीन दृष्टि से देख रहा था। बड़ी अकड़ के साथ उसने कहा- " सुनो जी पुस्तक रानी! तुम्हारी और देखता हूँ... तो तुम्हारे प्रति दया उमड़ आती है। मुझे देखो आज के जमाने में मेरी तो पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कड़ाही में है और तुम..... इस कमरे में मखमल में लगे टाट के पैबंद की तरह दिख रही हो।"
किताब मुस्कुरा भर दी और कहा--" यह तुम्हारा भ्रम है।"
मोबाइल ने फिर अभिमान से कहा--- "तो हो जाए दो दो हाथ..... मेरे आगे तुम्हारा कद बहुत बौना है।"
किताब ने कहा-- "अच्छा कैसे?"
मोबाइल - "देखो जी.. मैं ज्ञान और सूचनाओं का सागर हूँ...बस, एक क्लिक....और सब कुछ उपलब्ध... बड़े क्या बच्चे भी मुझे हाथों में उठाए, जेब में लिए घूमते रहते हैं हरदम।"
किताब ने कहा- "तो क्या हुआ? मेरे पास भी ज्ञान का अकूत भंडार है.... मैं उपेक्षित कहाँ? आज भी बच्चे, जवान,बूढ़े सभी की लाडली हूँ मैं....."
"क्यों खुद को धोखा दे रही हो... ज्ञान के साथ-साथ मेरे पेट में कितने खेल समाए हैं.... बच्चों को अपने में हर समय व्यस्त रखता हूँ..."
किताब : "अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने से क्या होगा मोबाइल मियाँ....मैं तुम्हारी तरह बच्चों को बीमार नहीं करती.... देखा नहीं उस दिन टी.वी. में बता रहे थे कि ज्यादा मोबाइल का उपयोग करने से बच्चों की कल्पना शक्ति, रचनात्मक शक्ति, स्मरण शक्ति कम होने लगी है... तुम कितनी बीमारियों का घर हो शायद तुमने सुना नहीं....आँखों के रोग, कान के रोग.... और तो और खेलना, कूदना भूल गए हैं बच्चे ... स्वास्थ्य की दृष्टि से तुमसे घातक कोई और नहीं..... और किस खेल की बात करते हो तुम ....तुम्हारे उस ब्लू व्हेल ने न जाने कितने बच्चों की जान ले ली.... बच्चों को अपने घर वालों से अलग कर दिया है तुमने... एकाकीपन की ओर धकेल दिया है। उनका शरीर रोगों का घर बना दिया है। हमेशा याद रखो यदि हम अपने को दूसरों के लिए आवश्यकता से अधिक सुलभ बना देते हैं तो इसका दुरुपयोग होने लगता है।
मोबाइल : "यह तुम्हारी जलन बोल रही है ...मुझ में बहुत आकर्षण है देखो...."
किताब : "गलत... मेरी साज सज्जा से तुम जलते हो। देखो, देखो.... कितने रंगीन पृष्ठ हैं मेरे और बाहरी कवर..... बच्चे देखते ही खरीदने को लालायित हो उठते हैं। हाथ से छू कर सहलाते हैं , अपनेपन का एहसास कराते हैं और पढ़ते पढ़ते मुझे सीने पर रख कर ही सो जाते हैं। मुझे सहेज कर रखने से उनका मन गर्व से भर उठता है।"
मोबाइल ने भी ऐंठ कर बोला-- "मुझे भी तो...
किताब बोली ...."ना ना ना मोबाइल मियां ... डॉक्टर सोते समय तुम्हें अपने से दूर रखने की सलाह देते हैं।तुम्हारी तरंगें उनके लिए हानिकारक हैं। तुम्हारे नशे से मेरे पन्नों की महक अधिक अच्छी है। इस बात को हमेशा याद रखना 'अति हर चीज की बुरी होती है।'
मोबाइल -- "हाँ,हाँ... पता है लेकिन मैं उन्हें हर विषय का ज्ञान देता हूँ और किताब ....ऊँ ह ...उन्हें हर विषय के लिए एक नई खरीदनी पड़ जाती है।"
किताब -- "तुम यंत्र हो न...तुम क्या जानो... भूलो मत.... मैं उन्हें हमेशा अच्छी बातें ही सिखाती हूँ और तुम ...अच्छे बुरे का भेद भी नहीं कर पाते हो ...मेरा कार्य है विचारों का मंथन कर बच्चों,बड़ों को सफलता के पथ पर आगे बढ़ाना, समझे.... " इतना सुनते ही मोबाइल धड़ाम से नीचे गिर पड़ा क्योंकि उसकी बैटरी खत्म हो गई थी। पर्दा गिर गया था। सभी छात्र जोर-जोर से तालियाँ बजा रहे थे। मयंक ने जल्दी से सबको घर आने का निमंत्रण दिया और बाहर निकल गया जहाँ उसके माँ-पापा उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
मयंक के पैर तेजी से चल रहे थे और विचार भी क्योंकि उसके माँ-पापा बाजार जाकर उसके लिए उसकी पसंद का उपहार खरीदने वाले थे। बाजार पहुँचते ही पापा उसे लेकर मोबाइल की दुकान में घुसने लगे लेकिन मयंक उन्हें लगभग घसीटते हुए पास की किताबों की दुकान पर ले गया। पापा उसे हैरानी से देख रहे थे। उन्हें इसी अवस्था मे छोड़ कर मयंक अंदर गया और बहुत ही सुंदर-सुंदर ज्ञानवर्द्धक किताबों का एक सेट पापा के हाथ में लाकर थमा दिया यह कहते हुए --- "मेरे जन्मदिन के उपहार में मुझे ये सब चाहिए।"
"और वो मोबाइल? " पापा ने हैरान होकर पूछा।
"नहीं चाहिए पापा", मयंक ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया, " पापा मोबाइल से किताबें ज्यादा अच्छी होती हैं।" माँ-पापा अपने लाडले की समझदारी देखकर मुस्कुरा उठे।
- डॉ. मंजु रुस्तगी,
चेन्नई
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