हिन्दी बालकथा: पानी में पैसा - गोविंद शर्मा

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Children's Story Money In Water by Govind Sharma Ki Bal Kahani Paani Me Paisa Kids Story in Hindi, Bal Kahaniyan.

Bal Katha : Paani Mein Paisa

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बालकथा इन हिन्दी पानी में पैसा : बच्चों के लिए गोविंद शर्मा की लिखी प्रेरक बाल कहानी "पानी में पैसा" आपके लिए प्रस्तुत है बाल साहित्य में। पढ़िए बच्चों की ये प्रेरणादायक हिन्दी बाल कहानी और साझा कीजिए।

Children's Story : Money In Water

पानी में पैसा

     सड़क पर अपनी अपनी साइकिल पर कुछ युवक जा रहे थे। वह सब एक फुटबॉल टीम के सदस्य थे। सड़क नदी के किनारे पर बनी थी। अचानक उन्हें नदी के किनारे कूड़े का एक ढेर दिखाई दिया। वह अपनी अपनी साइकिलों से नीचे उतरे और कूड़े के ढेर की तरफ चले। उन्होंने देखा, नदी के किनारे कई जगह वैसे ही कूड़े के ढेर हैं। एक तेरह-चौदह वर्ष का बालक भी कभी यहां तो कभी वहां नदी में झांक रहा है। कूड़े के ढेर देखकर टीम का कैप्टन बोला- मुझे लगता है यह आसपास के गांव वालों की करतूत है। नदी के किनारे इतने बड़े-बड़े कूड़े के ढेर? यह तो नदी के पानी का अपमान है। चलो, गांव वालों को समझाते हैं कि ऐसा नहीं किया करें।

    टीम का एक सदस्य बोला-: कूड़े को देखकर लगता है कि यह किसी गांव का नहीं है। यह किसी शहर के बड़े बाजार का हो सकता है । 

    कप्तान ने कहा ज्यादा समझदार मत बनो। पहले हमें वही करना चाहिए जो करना जरूरी है।

       वह बालक जो बार-बार नदी के पानी में झांक रहा था, वहां आ गया। उसने सब बातें सुन ली थी। बोला - भैया गांव वालों को समझाने की जरूरत नहीं है। वे समझ गए हैं और समझ भी रहे हैं।

    तुम कौन हो ?

    मैं मदन हूं। पास के गांव का रहने वाला हूं ।आज स्कूल में छुट्टी थी, इसलिए इधर आ गया। यह कूड़े के ढेर गांव वालों ने अपने घरों से कूड़ा लाकर यहां नहीं लगाए हैं। मेरे गांव और पास के दूसरे गांवों के लोग मिलकर यहां आए और नदी में पीछे से बह कर आए कूड़े को नदी से निकाला है। यहां नदी में थोड़ा सा घुमाव है। इसलिए पीछे से बहकर आया कूड़ा यहां अटक जाता है। गांव वालों की कई घंटे की मेहनत के बाद यह कूड़ा बाहर निकल सका है। श्रमदान करते हुए वे थक गए थे और कुछ को घर खेत के कुछ जरूरी काम निपटाने थे । इसलिए एक बार वे चले गए। फिर आएंगेवे, कूड़े के इन ढेरों को निपटाने के लिए। 

    टीम का कैप्टन एक बार तो चुप हो गया फिर बोला- मैं देख रहा था कि तुम बार-बार पानी में झांक रहे थे। क्या देखना चाहते थे तुम? मछली, कछुआ, मगरमच्छ या कुछ और ? 

    कुछ और भैया। मेरे दादाजी कहा करते थे कि उनके बचपन में नदी का पानी इतना स्वच्छ था कि हम तांबे का एक पैसा इसमें फेंक देते तो वह हम बाहर खड़ों को नदी के पानी में दिख जाता था। पर बाद में हम इंसानों ने ही इसे इतना प्रदूषित कर दिया है कि पैसा तो क्या, किसी कार या स्कूटर का पहिया फेंक देते तो वह भी वह दिखाई नहीं देता। मैं देख रहा था कि आज इतनी सफाई के बाद क्या मेरे दादाजी के वे तांबे के पैसे दिखते हैं? मुझे पानी में पैसे नहीं दिखे।

     एक बार तो फुटबॉल टीम के सदस्य और कप्तान चुप हो गए। फिर कप्तान ने मदन को गले लगाते हुए कहा - हमने ही अपनी नदियों को इतना प्रदूषित कर दिया है, उसने पैसा दिखाई नहीं देता है। पर हमने नदियों में पैसा फेंकना तो नहीं छोड़ा , बल्कि उन्हें साफ रहने देना छोड़ दिया है। यह अच्छी बात है कि तुम्हारे आसपास के गांव के लोगों को यह बात समझ में आ गई है। हम नदी के उस तरफ के गांव के रहने वाले हैं। जब तुम्हारी तरफ के गांव के लोग नदी की सफाई करेंगे, उस समय हम भी अपनी तरफ की नदी की सफाई करेंगे ।

    इसके अलावा हम जब भी फुटबॉल मैच खेलने किसी शहर में जाएंगे दर्शकों को बताएंगे कि गांव के लोग समझ गए हैं ।तुम भी समझ जाओ कि नदी को कूड़े से मुक्त रखना जरूरी है ।जिस दिन हम सब यह बात समझ जाएंगे और नदी के पानी को साफ रखना शुरू कर देंगे, तब देखना नदी में तुम्हारे दादाजी का फेंका हुआ तांबे का पैसा जरूर दिखाई देगा।

   अब मदन के होठों पर मुस्कान थी और आंखों में चमक। 

- गोविंद शर्मा
ग्रामोत्थान विद्यापीठ
संगरिया । जिला हनुमानगढ़ राजस्थान

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