बाल कहानी : प्रकृति का नियम - गोविन्द भारद्वाज

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Bhardwaj Children's Motivational Hindi Story Law of Nature, Prernadayak Bal Kahani Prakriti ke Niyam in Hindi.

Law of Nature : Children Story in Hindi

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बाल कहानी प्रकृति का नियम : बाल साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज लिखी प्रेरणादायक बाल कहानी प्रकृति का नियम। पढ़िए पर्यावरण संरक्षण पर लिखी प्रेरक बाल कहानी।

Prakriti ka Niyam Bal Kahani

प्रकृति का नियम

एक था जंगल। उस जंगल में एक जमाने में पेड़ तो बहुत थे, किंतु धीरे-धीरे करके उनकी कटाई साफ देखी जाने लगी थी।

एक दिन वह भी आया जब बूढ़े पेड़ को भी काट दिया गया। वह बूढ़ा पेड़ बहुत से जीव-जंतुओं और पंछियों का बसेरा था।

बूढ़े पेड़ से सभी पक्षी और जीव-जंतु बड़ा प्रेम करते थे। जब वह पेड़ कट गया तब सब उसे छोड़कर इधर-उधर चले गये।

जाने को तो सोनी चिड़िया और गट्टू गिलहरी भी जा चुके थे, लेकिन वो दोनों बूढ़े पेड़ के ठूंठ से मिलने जरूर आते।

बूढ़े पेड़ का ठूंठ उनकी हमदर्दी पाकर फिर से हरा होने की उम्मीद में रहता।

"देखो दादा तुम घबराओ मत..अब बारिश का मौसम आने वाला है, देखना आप जरूर हरे हो जाओगे।" गट्टू गिलहरी ने उसके जख्मों को सहलाते हुए कहा।

"इसी उम्मीद में ही तो अभी तक जिंदा हूँ। इसलिए तो मैंने अपनी जड़ों को मरने नहीं दिया।" बूढ़े ठूँठ ने जवाब दिया।

"चिंता मत करो दादा..अभी तक आपने न जाने कितने जीव-जंतुओं और मेरे जैसे नन्हे-नन्हे पंछियों को आश्रय दिया है ..उन सबकी दुआएं आपके साथ है।" सोनी चिड़िया ने कहा।

उन दोनों का अपने प्रति लगाव देखकर बूढ़े पेड़ का ठूंठ खुश हो जाता।

कुछ दिनों बाद आसमान में बादल घिरने लगे।काली घटाओं को देखकर ठूँठ मन ही मन बुदबुदाया,"लगता है बारिश का मौसम आ गया है.. हो सकता है इस अमृत वर्षा से मैं पुनः अपने असली रूप में लौट आऊँ।"

देखते-देखते बूँदा-बाँदी शुरू हो गयी।

गट्टू और सोनी भी पहली बारिश से बहुत खुश थे। उन्हें भी ठूंठ के फिर से नये पेड़ बनने की उम्मीद थी।

वर्षा ऋतु अपनी पूर्णता पर थी।

एक दिन सुबह-सुबह गट्टू ने देखा कि ठूंठ पर पत्तियां तो नहीं आई, हाँ एक कुकुरमुत्ता उग आया था।

सोनी भी उड़कर आई और कुकुरमुत्ते पर बैठ गयी। दरअसल कुकुरमुत्ते को जंगलवासी सांप की छतरी भी कहते थे।

"सोनी तुम साँप की छतरी पर बैठी बड़ी सुंदर दिख रही हो।" गट्टू ने कहा।

"सुंदर तो लग रही हूँ, लेकिन तुम इस को कुतर मत देना वरना.. मैं गिर जाऊंगी। सोनी ने जवाब दिया।

गट्टू अब बिल्कुल चुपचाप थी।

"क्या हुआ गट्टू बहन मेरी बात से नाराज़ हो गयी?" सोनी ने पूछा।

"नाराज़ तुझ से नहीं.. पर दुःखी जरूर हो गयी हूँ, इस कुकुरमुत्ते को देखकर।" गट्टू ने उदास मन से जवाब दिया।

"क्यों बहन दुःखी क्यों हो?" सोनी ने पूछा।

"इधर आओ, फिर बताती हूँ।" गट्टू ने ठूंठ से अलग हटकर उसे बुलाते हुए कहा।

सोनी और गट्टू थोड़ी दूरी पर चले गये।

"बताओ गट्टू बहन क्या बात है?" सोनी ने पूछा।

"देखो सोनी.. अपने बूढ़े पेड़ का ठूंठ अब कभी हरा नहीं हो सकता।" गट्टू ने चिंता जताते हुए कहा।

"क्यों?" सोनी भी गंभीर हो चुकी थी।

"मैंने सुना भी है और देखा भी है, जो लकड़ी मृतप्राय हो जाती है उसी में वर्षा ऋतु में सांप की छतरी उग आती है।मुझे लगता है कि ठूँठ की जड़ें सूखने लगी हैं।" गट्टू ने कहा।

यह सुनकर सोनी भी उदास हो गयी।

उनकी बातें कोयल ने सुन ली।

वह ठहरती हुई बोली, "देखो बहनों तुम उदास मत हो। जीवन-मृत्यु तो प्रकृति का नियम है...एक उम्र के बाद बूढ़े पेड़ को मरना ही है, लेकिन तुम ने उसके आस-पास कुछ नया नहीं देखा?" 

"क्या नया?" सोनी ने पूछा।

"देखो बारिश में अपने बूढ़े पेड़ के वंशज नये पौधों के रूप में उग आएँ हैं.. यही तो दादा की असली निशानी हैं।" कोयल ने कहा।

"अरे हाँ.. सचमुच।" गट्टू ने इधर-उधर देखते हुए कहा।

सोनी और गट्टू कोयल की सच्ची बात सुनकर बड़े खुश हुए।

ठूंठ को अब अपने मरने का दुःख नहीं था... उसे तो इस बात की खुशी थी कि उसके आस-पास उसके ही बीजों से नये पौधे नयी पीढ़ी के रूप में अंकुरित हो रहे थे।

- गोविन्द भारद्वाज

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