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Dr. BR Ambedkar : A Radical Thinker and Messiah of Dalits
Dr. B. R. Ambedkar : 14 अप्रैल डॉ. बी. आर. आंबेडकर जयंती और 26 नवंबर राष्ट्रीय संविधान दिवस पर विशेष आलेख दलितों के मसीहा : भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर। डॉ. अम्बेडकर ने आजीवन दलितों के उत्थान के लिए कार्य किया इसीलिए वे दलितों के मसीहा कहलाये। यह उनके प्रयासों का ही फल है कि दलित संपूर्ण भारत में अपनी राजनैतिक, सामाजिक पहचान बनाने में सक्षण हुए है।
Dalito Ke Maseeha Bharat Ratna Baba Saheb Ambedkar
दलितों के मसीहा : भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर
जल की जिस धारा में प्रवाह की तीव्रता होगी, उद्वेग होगा, गति होगी, वह चट्टानों में से भी अपनी राह बना लेगी। वह धरती का गर्भ चीर कर भी बाहर निकल आयेगी। असाधारण प्रतिभा में भी ऐसी ही धारा होती है, जिसे बहने से कोई रोक नहीं सकता बल्कि मिट्टी के कच्चे किनारों को तोडती झकझोरती वह अपना रास्ता बना ही लेती है। उन कमजोर किनारों को अपने साथ बहने को विवश कर देती है। समय समय पर ऐसी प्रतिभाएं जन्म लेती है स्वयं किनारे उनका अभिन्न अंग बनते जा रहे है।
ऐसा ही प्रतिभा प्रसून, आगे चलकर भारत माता का लाडला पुत्ररत्न 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र के एक महार परिवार में खिला। जिनका नाम था डॉ. भीमराव अम्बेडकर। वे असाधारण प्रतिभा के धनी, विद्वान, विचारक एवं चिंतक थे। कालान्तर में वे एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं विधिवेत्ता के रूप में जाने गए। वह समय भारत की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार दलितों के लिए कठिनाई का समय था अतः दलित वर्ग में जन्म होने के कारण उन्हें भी कठिनाईयों झेलना पड़ी। उस समय पाठशाला जाने वाले बच्चो को अपने बैठने के लिए स्वयं ही टाटपट्टी लेकर जाना पड़ता था। वे उच्च जाति के साथ नहीं बैठ सकते थे। बचपन तो बचपन होता है, वह भेदभाव, ऊँच, नीच को नही जानता। डॉ. अम्बेडकर के कोमल बाल हृदय पर इस भेदभाव एवं छूआछूत का गहरा असर पडा। जो बाद में विस्फोटक रूप में सामने आया। समाज में फैले ऊँच नीच के दुर्भाव से वे त्रस्त थे। ईश्वर ऐसे महापुरुषो की कडी परीक्षा भी लेता है और उन्हें सफलता भी प्रदान करता है। डॉ. अम्बेडकर को परीक्षा में उत्तीर्ण तो होना ही था इसीलिए उन्हें बडौदा के महाराजा गायकवाड जैसे सत्पुरुष मिले। उन्होंने जौहरी की भाँति उस हीरे को परखा और आगे पढ़ाई करने के लिए छात्रवृत्ति दिलवाई। परिणामतः वे स्कूली शिक्षा समाप्त करके मुम्बई के एल्फिस्टन कॉलेज में आगे की पढाई के लिए आ गए।
सन् 1913 में अम्बेडकर ने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. उत्तीर्ण किया। 1916 में उन्होंने यही से 'ब्रिटिश इंडिया के प्रांतों में वित्तीय स्थिति का विश्लेषण' नामक विषय पर पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। उनका यह विषय सामयिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि उन दिनों भारतीय वस्त्र उद्योग व निर्यात ब्रिटिश नीतियों के कारण गहन आर्थिक संकट से जूझ रहा था। सन् 1922 में लंदन विश्वविद्यालय से रूपये की समस्या पर उन्होने दूसरी बार पीएच.डी की डिग्री प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर ने गहराई से भारतीय समाजिक व्यवस्था एवं विदेशों की समाजिक व्यवस्था पर ध्यान देकर विश्लेषण किया। उन्होंने यह महसूस किया कि भारत में छूआछूत की प्रथा से देश को बहुत हानि हो रही है। वे स्वयं इन कठिनाइयों से गुजरे थे, इसलिए उस व्यथा से उत्पन्न दुष्परिणामों को अच्छी तरह से समझ सकते थे। यह एक विडम्बना ही है कि मानव ही मानव को सिर्फ इसीलिए न छुए कि एक का जन्म ऊँची कही जाने वाली जाति में हुआ है तथा दूसरे का जन्म निम्न जाति में आखिर ये फैसला किसने किया ? समाज के कतिपय ठेकेदारों ने? कुछ लोगों ने स्वार्थवश अपने वर्चस्व को प्रतिष्ठित करने के लिए एक घोर स्वार्थपूर्ण नियम बनाये। डॉ. अम्बेडकर का मन इस अन्याय को सह नहीं सकता था। ईश्वर ने तो सभी को एक समान ही बनाया है फिर यह जातिवाद कैसा और आखिर क्यों?
जब भारत में ब्रिटिश शासन अपने चरम पर था उसी समय उन्हें लंदन के 'स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एवं पोलिटिकल साइंस' में प्रवेश भी मिला लेकिन गायकवाड शासन के अनुबंध के कारण वे पढाई छोड़कर वापस भारत आ गए और बडौदा राज्य में मिलट्री सचिव के पद पर कार्यरत हो गए। 1926 में डॉ. अम्बेडकर ने 'हिल्टन यंग' आयोग के समक्ष प्रस्तुत होकर विनिमय दर व्यवस्था पर जो तर्कपूर्ण प्रस्तुति दी थी उसे आज भी मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। डॉ. अम्बेडकर गांधीवादी नीतियों के भी पक्षधर नहीं थे। वे चाहते थे कि भारत में शहरीकरण एवं औद्योगीकरण को बढावा मिले, ऐसा होने पर ही समाज में फैली विषमताएँ दूर होगी। वे प्रजातांत्रिक संसदीय प्रणाली के प्रबल समर्थक थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि प्रजातंत्र ही सरकार का वह तंत्र है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को स्वाधीन महसूस कर सकता है।
1927 में डॉ. अम्बेडकर ने 'बहिष्कृत भारत' पाक्षिक समाचार पत्र निकाला। यहीं से उनका प्रखर सामाजिक चिंतन, सामाजिक बदलाव के परिप्रेक्ष्य में प्रारंभ हुआ। इंडिपेंडेण्ट पार्टी की स्थापना के द्वारा उन्होंने दलित मजदूर और किसानों की अनेक समस्याओं का उल्लेख किया। 1937 में मुम्बई के चुनावों में इनकी पार्टी को पन्द्रह में से तेरह स्थानों पर जीत मिली। हालाँकि अम्बेडकर गांधी जी के दलितोद्धार के तरीकों से सहमत नहीं थे लेकिन अपनी विचारधारा के कारण उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेताओं-नेहरू और पटेल को अपनी प्रतिभा से अपनी ओर आकर्षित किया। यद्यपि नेहरूजी गांधीजी के बहुत प्रिय थे किंतु आधुनिकीकरण की नीतियों के विषय में नेहरूजी की विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। यह सच है कि जिस सूक्ष्म दृष्टि से महात्मा गांधी भारत को देख और समझ रहे थे, दुर्भाग्य से वह दृष्टि किसी नेता, विचारक या चिंतक के पास नहीं थी। लक्ष्य सभी का एक था किंतु रास्ते अलग अलग थे। डॉ. अम्बेडकर भी भारत को अपनी दृष्टि से ही देख रहे थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात उन्हे 3 अगस्त 1947 को विधि मंत्री बनाया गया। इन्हे 21 अगस्त 1947 को भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। संविधान सभा, भारत के विशाल बहुमत की वास्तविक प्रतिनिधि सभा थी। कांग्रेस के तो प्रायः सभी चोटी के नेता इसके सदस्य थे ही, साथ ही अन्य दलों तथा स्वतंत्र व्यक्तियों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, श्री गोपाल स्वामी आयंगर, श्रीमती सरोजिनी नायडू प्रमुख थे।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम अगस्त 1947 में भारतीय संविधान सभा को वैधानिक दृष्टि से और तथ्य रूप में पूर्ण स्वतंत्र एवं संपूर्ण संपन्न संस्था बना लिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, संविधान सभा के स्थायी सभापति चुने गए और संविधान निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। संविधान सभा ने संविधान का प्रारुप तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में सात सदस्यों की एक प्ररूप समिति का निर्माण किया। भारत के लोकतांत्रिक, निरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की संरचना हुई जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्व सुरक्षा की गई। संविधान प्रारूप समिति ने 315 धाराओं तथा आठ परिशिष्टो का मसविदा तैयार कर उसे 5 नवम्बर 1948 को संविधान सभा के समक्ष रखा। संविधान सभा ने अंतिम रूप से 375 धाराओं तर्ता 9 परिशिष्टों का संविधान 26 नवम्बर 1949 को स्वीकार किया। संविधान के कुछ अनुच्छेद इसी दिन से लागू कर दिये गए और 26 जनवरी के ऐतिहासिक महत्व के कारण 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। डॉ. अम्बेडकर के द्वारा न सिर्फ संविधान के अधिकांश महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में अधिककृत रूप से महत्वपूर्ण बिंदुओं का समावेश किया। साथ ही भारत के दलितों, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए शुरूआत में 10 वर्षों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया जिसे 8 तक संशोधनों के द्वारा अब तक लागू किया जा रहा है और उसी की बदोलत आगे चलकर मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़े वर्गों को भी आरक्षण का लाभ आज तक दिया जा रहा है।
25 मई 1950 को डॉ. अम्बेडकर ने दिल्ली में अम्बेडकर भवन का शिलान्यास किया। अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने हिन्दू कोड बिल लागू कराया। इस बिल का उद्देश्य हिंदुओं के सामाजिक जीवन में सुधार लाना था। इसके अतिरिक्त महिलाओं के पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिलाना एवं तलाक की व्यवस्था करना था।
27 सितंबर 1951 में ही डॉ. अम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्हें स्वयं के जीवन में पर्याप्त प्रतिष्ठा एवं सम्मान मिला, लेकिन वे इससे संतुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक व्यवस्था के प्रति निराश ही रहे, शायद इसीलिये 14 अक्टुबर 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। वे नैतिक मूल्यों के आधार पर ही धनार्जन करने की नीति को सही मानते थे। उनका विश्वास था कि सरकारी एवं सामूहिक कृषि के द्वारा ही दलितों का विकास हो सका है। पं. नेहरू भी उनकी राय के समर्थक थे डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता के ऐसी समिति का गठन हो जो दलितों के विकास के लिये कार्य करे। 6 अप्रैल 1955 को ये धूमकेतू सदा के लिए चिरनिद्रा में लीन हो गया।
डॉ. अम्बेडकर ने आजीवन दलितों के उत्थान के लिए कार्य किया इसीलिए वे दलितों के मसीहा कहलाये। यह उनके प्रयासों का ही फल है कि दलित संपूर्ण भारत में अपनी राजनैतिक, सामाजिक पहचान बनाने में सक्षण हुए है। दलितों का आरक्षण मिले-यह भी उनकी नीतियों का हिस्सा था। काशीराम, मायावती, उदितराज जैसे नेता दलितों का नेतृत्व बखूबी कर रहे है। कोई भी राजनीतिक दल, दलितों की उपेक्षा करने में सहयोग नहीं देते। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश का राज तीन बार मायावती संभाल चुकी है, दलित उन्हें अपना आदर्श मानकर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रज्वलित ये मशाल, पथ आलोकित कर रही है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को कोटिशः नमन।
- डॉ. प्रभु चौधरी
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