मनोरंजक और शिक्षाप्रद बाल उपन्यास नाचू के रंग की समीक्षा - मेघा बंसल

Dr. Mulla Adam Ali
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Naachu Ke Rang : Book Review in Hindi

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बाल उपन्यास की समीक्षा : सुपरिचित बाल साहित्य रचनाकार, गत पचास वर्ष से बाल साहित्य, लघुकथा और व्यंग्य आदि विधाओं में निरंतर रचना कर्म कर रहे श्री गोविंद शर्मा जी का तीसरा बाल उपन्यास 'नाचू के रंग' की समीक्षा (book review) मेघा बंसल जी द्वारा, पढ़िए और शेयर कीजिए।

मनोरंजक और शिक्षाप्रद बाल उपन्यास

  • पुस्तक: नाचू के रंग 
  • लेखक: गोविंद शर्मा 
  • प्रकाशक: पंचशील प्रकाशन, जयपुर 
  • संस्करण: 2024 
  • मूल्य: 150 रुपए
  • समीक्षक : मेघा बंसल

नाचू के रंग

पंचशील प्रकाशन द्वारा वर्ष 2024 में प्रकाशित गोविंद शर्मा जी के नवीनतम बाल उपन्यास ‘नाचू के रंग’ पढ़ने का अवसर मिला। क्रमानुसार ‘दीपू और मोती’ (1976) तथा ‘डोबू और राजकुमार’ (2010) के लंबे अंतराल के बाद प्रकाशित यह इनका तीसरा बाल उपन्यास है। उपन्यास का नायक ‘नाचू' चित्रकला में माहिर है। जीवन की उमंग से भरा बालक ‘नाचू' अपनी आत्मा की पवित्रता और निश्चल व्यवहार के कारण अपने रंगों और ब्रश की सहायता से अनजाने में ही न जाने कितनों का भला कर देता है, कभी चोर को पकड़ना तो कभी डाकुओं को पकड़वाना, कभी पत्थर और दीवारों को इंसानों या जानवरों की तरह रंगकर लोगों को अचंभित करना और अपनी चित्रकला से बच्चों और बड़ों सभी का मनोरंजन करना उसका ध्येय है। ‘परहित सरस धर्म नहीं भाई’ की लीक पर चलते ‘नाचू’ को याद उसके कार्य के लिए श्रेय न भी हमले तो भी वह कभी नाराज नहीं होता। हमेशा हंसते-मुस्कुराते रहना उसकी आदत है। अपने हंसने मुस्कुराने का कारण पूछने पर बड़ी ही सहजता से कहता है- “मुझे आज तक पता नहीं चला कि मैं क्यों हंसता हूं।” बेरंग दुनिया में अपने ब्रुश की सहायता से रंग भरता, इंसानों को ही नहीं जानवरों को भी अपनी मित्र-मण्डली में शामिल करता ‘नाचू’ पढ़ाई में भी होशियार है, “सर, सदा से ही मेरा यह नियम रहा है कि पहले पूरी पढ़ाई, फिर कलाकारी, खेल-कूद या मनोरंजन” पर जब उसे एहसास होता है कि उसके बनाए चित्र किसी का नुकसान भी कर सकते हैं तो वह अपनी चित्रकारी बंद भी कर देता है। परोपकार, समाजसेवा, हरियाली और वृक्षारोपण का महत्व समझाता ‘नाचू’ समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा बड़ी ही सहजता और रोमांचक तरीके से प्रेषित करता है। गोविंद जी द्वारा सृजित यह उपन्यास रोचक और मनोरंजक होने के साथ ही बालकों को संस्कारित करने तथा समाज का उपयोगी नागरिक बनाने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह उपन्यास कल्पना पर आधारित होते हुए भी बालक के निजी जीवन के अनुभवों से इस प्रकार जुड़ जाता है कि जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं का समाधान बाल पाठक स्वयं खोजने में सक्षम हो जाता है। बालकों में साहस, वीरता एवं चतुराई की सिफारिश करता यह उपन्यास मनोरंजक और शिक्षाप्रद बन पड़ा है।

- मेघा बंसल

शोधार्थी, एमजीएसयू बीकानेर

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