प्रेरणाप्रद आलेख: गुरु गोविंद सिंह जी के बलिदान को न भूलें

Dr. Mulla Adam Ali
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Guru Gobind Singh Jayanti Shahidi Saptah

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गुरु गोविंद सिंह जयंती : सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह का शहीदी दिवस 26 दिसंबर पर विशेष जानें गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों की शहादत का इतिहास, जिनके बलिदान पर मनाया जाएगा वीर बाल दिवस। गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर हर साल 26 दिसंबर को मनाया जाएगा वीर बाल दिवस। भारत के वीरों की ऐतिहासिक वीर गाथाएं पढ़िए और शेयर कीजिए।

Veer Bal Diwas Special

गुरु गोविंद सिंह जी के बलिदान को न भूलें

- डॉ. राकेश चक्र

     भारत के इतिहास के महानायक अमर योद्धा गुरु गोविंद सिंह जी एवं परिवार की बलिदान की अमर गाथा के बारे में जानते हैं, जो मुगलों की क्रूरताओं का काला अध्याय दर्शाती है। सभी सीमाओं को लाँघती है।

जाग जाओ भारतीयों माटी से प्यार करने वालो!

बच्चों 21 दिसम्बर से लेकर 27 दिसम्बर तक) इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। 21 दिसम्बर को गुरू गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) द्वारा परिवार सहित आनंदपुर साहिब किला छोड़ने से लेकर 27 दिसम्बर तक के इतिहास को हम भूला बैठे हैं?

एक वो भी एक युग था, जब पूरे पंजाब में इस सप्ताह सभी ज़मीन पर सोते थे, क्योंकि माता गूजर कौर ने उस रात दोनों छोटे साहबजादों (जोरावर सिंह व फतेह सिंह) के साथ, नवाब वजीर खां की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज में गुजारी थी। यह सप्ताह सिख इतिहास में शोक का सप्ताह होता है।

पर आज देखते हैं कि पंजाब समेत पूरा हिन्दुस्तान क्रिसमस के जश्न में डूबा हुआ है एक दूसरे को बधाईयाँ देता है।

गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानियों को इस अहसान फरामोश मुल्क ने सिर्फ 300 साल में भुला दिया?? 

जो संतानें अपना इतिहास–अपनी बलिदानों को भूल जाती हैं, वे स्वयं इतिहास बन जाती है।

21 दिसंबर:

श्री गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।

22 दिसंबर:

गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था, उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।

चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजा़दा श्री अजीत सिंह (Sahibzada Ajit Singh) महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजा़दा श्री अजीत सिंह (Sahibzada Jujhar Singh) सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।

23 दिसंबर :

गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों की मुखबरी मोरिंडा के चौधरी गनी खान से की और तीनों को गनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया और गुरु साहिब (Guru Sahib) को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।

24 दिसंबर :

तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।

25 और 26 दिसंबर:

छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान (Nawab Wazir Khan) की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।

27 दिसंबर:

साहिबजादा जोरावर सिंह (Sahibzada Zorawar Singh) उम्र महज 8 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह (Sahibzada Baba Fateh Singh) उम्र महज 6 वर्ष को अनेक क्रूरता की हद पार करने के उपरांत जिंदा दीवार में चिनवाने के उपरांत गला रेत कर शहीद किया गया था। यह समाचार सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने प्राण त्याग दिए थे।

धन्य हैं गुरु गोविन्द सिंह जी जिन्होंने धर्म रक्षार्थ अपने पुत्रों को शहीद कर दिया।

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धन्य हैं वह माता जिसने अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह को जन्म दिया। धन्य है वे लाल जिन्होंने अपनी भारत भूमि, अपने धर्म और अपने संस्कार की रक्षा हेतु माँ के दूध का कर्ज चुकाया और यौवन आने के पहले मृत्यु का वरण किया।

चमकौर की गढ़ी का युद्ध में एक तरफ थे मधु मक्खी के छत्ते की तरह बिलबिलाते मुगल आक्रांता और दूसरी तरफ थे मुट्ठी भर रण बाकुँरे देश पर प्राण न्योछावर करने वाले सच्चे भारतीय, सिर पर केसरिया पगड़ी बाधें, हाथ में लपलपाती भवानी तलवार लिये, सामने विशाल म्लेच्छ सेना और फिर भी बेखौफ!

दुष्टों को उनहोंने गाजर-मूली की तरह काटा। वीर सपूत गुरुजी के दोनों साहबजादे – 17 साल के अजित सिंह (Ajit Singh) और 14 साल के जुझार सिंह (Jujhar Singh) – हजारों-हजार मुगलों को मार कर शहीद हुये।

विश्व इतिहास में यह एक ऐसी अनोखी घटना है, जिसमें पिता ने अपने तरुण सपूतों को धर्म वेदी पर शहीद कर दिया और विश्व इतिहास मे अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया। क्या दुनिया के किसी और देश में ऐसी मिसाल मिलती है? शायद कदापि नहीं।

यवन शासक ने उन रण बाँकुरों से उनके धर्म और संस्कृति के परिवर्तन की माँग की थी, जिसको उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया। गुरू महाराज के उन दो छोटे सिंह शावकों ने अपना सर नहीं झुकाया। इस पर दुष्ट यवन मुगल बादशाह ने 7 साल के जोरावरसिंह और 5 साल के फतेह सिंह को जिंदा दीवाल मे चिनवा दिया।

कितना विशाल हृदय रहा होगा वीर सपूतों का, कितनी गर्माहट और कितना जोश होगा उस वीर प्रसूता माँ के दूध में – जो पाँच और सात साल के बच्चों की रगों मे रक्त बन कर बह रहा था कि उनमें इतना जज्बा ,इतना जोश था कि अपने धर्म संस्कृति की रक्षा के लिये इतनी यातनादायक मृत्यु का वरण किया।

और कितने दुष्ट, कितने नृशंस, कितने कातिल और कितने कायर थे वे म्लेच्छ जिनका मन फूल जैसे बच्चों को जिन्दा चिनवाते नहीं पसीजा था! और किस लिये? सिर्फ इसलिये कि मुसलमान बन जाओ! आखिर क्या अच्छाई हो सकती है ऐसे धर्म मे जो निरीह अबोध बच्चों को भी जिन्दा दीवार में चिनवा दे?

कितना महान मजहब है यवन और मुगलों का। आज भी कुछ कट्टरपंथी और देश को हर तरह से नुकसान पहुँचाने वाली सोच रखने वाले लोग देश को कमजोर करने पर आमादा हैं। कर्तव्यों की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं, देश से उन्हें प्रेम नहीं , बस अधिकारों की जंग कर रहे हैं नित्य। आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। जहाँ भी अवसर मिल रहा है, वह छोड़ नहीं रहे हैं।

यह भूमि वीर प्रसूता और हम गुरू गोविंद सिंह और उनके साहबजादों को श्रृद्धा और विनम्रता से सदैव याद करती रहेगी।

हम में से अधिसंख्य को इन वीरों के बलिदान की जानकारी भी नहीं होगी, क्योंकि हमने तो अकबर महान और शाहजहाँ का काल स्वर्ण काल पढ़ा है; हमने तो इन वीर महान पुरुषों के विषय में किसी किताब के कोने में केवल दो लाइनें भर पढ़ी होंगी बस।

इतिहास की जानकारी हमारे बच्चों को देना हमारा कर्तव्य है, यह आवश्यक है कि हम अपने इतिहास और पुरखों के बारे में जानें। पुरखों के बलिदान को कभी न भुलाएं। जाति-पांति न बंटें, भेदभाव न करें। तभी देश व सनातन संस्कृति सुरक्षित रहेगी। देश महान बनेगा एवं आगे बढ़ेगा।

- Dr. Rakesh Chakra

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