गर्दिश-ए-ज़माना - ग़ज़ल - पुष्पा राव 'रिदा'

Dr. Mulla Adam Ali
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Gardish-e-Zamaana

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Ghazal in Hindi : पढ़िए हिन्दी में खूबसूरत ग़ज़ल गर्दिश-ए-ज़माना (گردِشِ زمانہ), आजके समाज की सच्चाई को बेनकाब करती ग़ज़ल गर्दिश-ए-ज़माना, सच और झूठ के अंतर पर लिखी गई बेहतरीन हिंदी ग़ज़ल (Hindi Ghazal) गर्दिश-ए-ज़माना पढ़िए और शेयर कीजिए।

Hindi Ghazal - Gardish-e-Zamaana

गर्दिश-ए-ज़माना


आज गर्दिश में ये ज़माना है।

उल्टी राह चलने को दीवाना है।।


आज न बच्चों का लिहाज़

उम्दा भाव मन में कुछ जगाना है।।


अंधी दौड़ चल पड़ी है दौलत की।

खोई गैरव जो, फिर से लाना है।।


धोखों घोटालों का है बाजार गर्म ।

कैसे भी रब का डर दिलाना है।।


सच्चे झूठे का फ़र्क मिटता सा है आज 'रिदा'

जज़्बा पाकीज़गी का अब खुदा से पाना है।।


- पुष्पा राव 'रिदा'

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