ऋतुओं का स्वामी बसंत पर कविता : अभिनंदन ऋतुपति

Dr. Mulla Adam Ali
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Abhinandan Ritupati

poem on basant panchami

बसंत पंचमी विशेष कविता : कविता कोश में प्रस्तुत है डॉ. मंजु रुस्तगी की ऋतुओं पर लिखी गई सुंदर कविता अभिनन्दन ऋतुपति, ऋतुपति का अर्थ है ऋतुओं का स्वामी बसंत। पढ़िए ऋतुपति राज वसंत पर बेहतरीन कविता और शेयर कीजिए।

डॉ. मंजु रुस्तगी की कविता

अभिनंदन ऋतुपति


पहन धरा ने पीत चुनरिया, पुष्पित किया श्रृंगार,

वसंत पिया से मिलन की खातिर, आकुल ताके द्वार। 


कर्ण में शोभित गेहूँ-बाली, आम्र-.बौर सिर साजे,

यौवन महके, बहके पैजनिया, मधुर गीत हिय बाजे। 


राहें कुसुमित, बाँहें आतुर, आलिंगन करने को,

दुल्हन बनी धरा हुई व्याकुल, प्रिय झलक पाने को। 


तभी मधुर पुरवाई ने आकर, कानों में की सुनगुन,

मधुमास खड़ा बारौठी पर, सुंदर, सजीला पाहुन।  


आहट पाकर ऋतुराज की, शीत ने पाँव सिकोड़े,

नव पात स्वागत को उल्लसित, संयम सौगंध तोड़े। 


अभिनंदन ऋतुपति तुम्हारा, प्रमुदित सबके वदन,

आह्लादित हुए भाव-सुमन और बासंती तन-मन। 


धरना ऐसे चरण कि खिल जाए हर एक आगार,

नवजीवन के संवत्सर, तुम्हें नमन है बारंबार।

नवजीवन के संवत्सर, अभिवंदन बारंबार।


- डॉ. मंजु रुस्तगी, 

चेन्नई, तमिलनाडु

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