Memoirs of Experimental writer and editor of children's literature: Manohar Verma, Hindi Bal Sahityakar, Children's Literature. Dr. Nagesh Pandey 'Sanjay'.
Manohar Verma
संस्मरण : प्रयोगधर्मी लेखक और सम्पादक के रूप मनोहर वर्मा जी ने बाल साहित्य सर्वेक्षण की दिशा में भी अभूतपूर्व कार्य किया। उनके द्वारा निर्मित प्रश्नावलियाँ बाल साहित्य के सार्थक लेखन की दिशा में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुईं।
बाल साहित्य के प्रयोगधर्मी लेखक और सम्पादक : मनोहर वर्मा
- डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’
बाल साहित्य के संसार में मनोहर वर्मा की ख्याति प्रयोगधर्मी लेखक और सम्पादक के रूप में है। उन्होंने बाल साहित्य की अनेकानेक विधाओं में सफल लेखन कार्य किया I वे बाल हंस के सहयोगी संपादक रहे। वे एक सफल विश्लेषक भी थे और एक तरह से बाल साहित्य में अनुसन्धानपरक कार्य के प्रणेता भीI उनके द्वारा सम्पादित भारतीय बाल साहित्य विवेचन ग्रंथ हिंदी बाल साहित्य में पी-एच. डी. उपाधि पाने के लिए आधार ग्रंथ बना। वे ऐसे कर्मठ लेखक थे जिनका काम बोलता है।
मनोहर जी का जन्म 7 अगस्त 1931 को समर्थ व्यवसायी बसंतीलाल के पुत्र के रूप में अजमेर में हुआ थाI यहीं उनका निधन 2 मई 2015 को हुआ।
जीविका के लिए उन्होंने रेल विभाग में कार्य किया। उनका लेखन 1954 में प्रारंभ हुआ। बच्चों के लिए उनकी पहली कहानी नन्हे जासूस मनमोहन मासिक में प्रकाशित हुई थी।
राजस्थान साहित्य अकादमी से उनके अतिथि संपादन में जुलाई-अगस्त, 1967 में प्रकाशित मधुमती पत्रिका का भारतीय बाल साहित्य विवेचन विशेषांक आज भी बेमिसाल है। बाद में इसे पुस्तकाकार भी प्रकाशित किया गया।
1965 में बाल साहित्य वार्षिकी का संपादन करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। वे 1986 से 1992 तक लोकप्रिय पत्रिका बाल हंस के सहयोगी संपादक भी रहे। इसके लिए वे प्रतिदिन अजमेर से जयपुर की यात्रा करते थे।
वर्मा जी ने बाल साहित्य सर्वेक्षण की दिशा में भी अभूतपूर्व कार्य किया। उनके द्वारा निर्मित प्रश्नावलियाँ बाल साहित्य के सार्थक लेखन की दिशा में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुईं।
उन्होंने लगभग दो सौ पुस्तकें लिखीं। इतनी ही पुस्तकों का संपादन भी किया। बाल साहित्य में "बाल बुक बैंक योजना" उन्हीं की देन थी।
वर्मा जी ने बाल कविताओं का भी सृजन किया लेकिन बाल गद्य साहित्य में उनका विशिष्ट योगदान है। उनके लोकप्रिय बाल कहानी संग्रह हैं : चंपक और मचलू, भुलक्कड़ बिन्नी, लड़ाई के मैदान से खत, मैं नेहरू बनने चला, तमाशे में तमाशा, म्याऊँ म्याऊँ, बंटी का स्कूल, चंदा मामा और बुलबुले, केकड़ा पंडित की पाठशाला, भालूदादा का स्कूल, मछलियों का खजाना, मोतियों की खेती, हाथी दांत का पिंजरा, ज्ञान के मोती, लौट आ चूं चूं, अनोखे मेहमान, मचलू का दर्द, बाँसुरीवाला, मोती की चमक, मेढ़कों का आंदोलन, फिर आऊंगा दादी, हाथी बंदर और खरगोश। उनके प्रमुख बाल उपन्यासों में पिलपिली बहादुर, सोनाबाला और बौने, एक थी चुहिया दादी, मधु, लोहा सिंह, थ्री टाइगर्स, हम हारेंगे नहीं, वचन का मोल अपनी नई शैली और अनूठे अंदाज के लिए चर्चित हैं।
उन्होंने सूचनात्मक साहित्य भी लिखा। उनकी पुस्तक शरीर के नव रत्न तो बच्चों में खूब लोकप्रिय हुई। पत्र साहित्य के अंतर्गत चिड़ियों के खत बच्चों के नाम, नाट्य विधा में
गाड़ी रुकी नहीं, नया इतिहास लिखना है, नाटक से पहले और साक्षात्कार विधा में जानवरों से इंटरव्यू जैसी उनकी पुस्तकें यह सिद्ध करती हैं कि बाल साहित्य के क्षेत्र में उनका लेखन बहुविधि और बहु विषयक था। वे पारंगत लेखक थे। उनकी अन्य प्रमुख पुस्तकें हैं:
आओ खेलें, फुटबाल, तमाशे में तमाशा, इनसे भी मिलिए, चंदामामा और बुलबुले, विश्वप्रसिद्ध महिलाएँ, टिमटिम करते तारे, मैं पृथ्वी हूँ, आग का गोला सूर्य, आओ खेलेंः तीन खेल, हमारे समाज सुधारक (दो भाग), हमारे धार्मिक महापुरुष, हमारे संत (दो भाग), हमारे क्रान्तिकारी (दो भाग), हमारे वैज्ञानिक (दो भाग), म्हारो प्यारो राजस्थान, देश की खातिर, हम एक देश एक, पढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ, सेवा के फलः मीठे फल, रोज पढ़ोः रोज गुनो, थकना मतः रुकना मत, तीन टिकट (चित्र कथा), पेड़ मेरा दोस्त (पर्यावरण), गिलहरी का खत आदमी के नाम (पर्यावरण), लोकप्रिय नेता, अंतरिक्ष के शटल इत्यादि।
बाल साहित्य की अनन्य सेवाओं के लिए उन्हें भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय, राजस्थान साहित्य अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान सहित अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया।
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