अब अलविदा : ग़ज़ल - परशुराम शुक्ल

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Parshuram Shukla Ki Ghazal

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Ghazal in Hindi : आपके लिए प्रस्तुत है परशुराम शुक्ल की लिखी हिन्दी ग़ज़ल अब अलविदा, पढ़िए और शेयर कीजिए ये खूबसूरत ग़ज़ल (Ghazal) खामोश और अलविदा।

Ab Alvida : Hindi Ghazal

अब अलविदा

पहचानिए कुछ कह रहीं ख़ामोश हवाएँ।

मुद्दत से बोझ सह रहीं ख़ामोश हवाएँ।

क़िस्मत कभी नहीं खुली ख़ामोश रहीं जो,

ये सोच कर कुछ कह रहीं ख़ामोश हवाएँ।

वाज़िब नहीं ये सोचना सरकार आपका,

जुल्मो सितम से ढह रहीं ख़ामोश हवाएँ।

पुरज़ोर क़यामत लिये आयेगा ज़लज़ला,

बन कर सुनामी बह रहीं ख़ामोश हवाएँ।

ताक़त से बेख़बर रहे इनकी इसीलिए,

'अब अलविदा' यूँ कह रहीं ख़ामोश हवाएँ।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

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