प्रेरणा: दोस्तों, मदद मीठी होती हैं - पीयूष गोयल

Dr. Mulla Adam Ali
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Piyush Goel : Motivational Story

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प्रेरणादायक हिन्दी विचार : किसी दोस्त की मुश्किल समय में मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए, दोस्तों की मदद करने से आपको अच्छा महसूस होता है और दूसरों को खुशी देने से आपको भी खुशी मिलती है। आज ऐसे ही एक प्रेरणादायक विचार आपके लिए प्रस्तुत है दर्पण छवि के लेखक पीयूष गोयल की लिखी ये सच्ची कहानी, पढ़िए और शेयर कीजिए।

A Little Help From My Friend

दोस्तों, मदद मीठी होती हैं

मेरे एक मित्र हैं जिनका नाम पीयूष गोयल हैं जो करीब ५७ साल के हैं,मेरी उम्र करीब ३५ साल की हैं, मैं अक्सर पीयूष जी के पास १-२ घंटे जरूर बैठता हूँ, मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं, कई बार पीयूष जी मुझे अपने बड़े- बड़े आयोजनों में ले जाते हैं,मैं अक्सर उनके साथ इस लिए जाता हूँ, मुझे खाने का बहुत शौक हैं, मैं जब भी गया बड़े बड़े अच्छे लोगों से मिला और स्वादिष्ट खाने का आनंद भी लिया।

मैं इंश्योरेंस इंडस्ट्री में काम करता हूँ, एक दिन पीयूष जी के साथ बैठा हुआ था मैं उनसे बोला आजकल आप ख़ाली हैं, आप काम करना चाहोगे आपके लिए काम हैं, पीयूष जी ने हाँ कर दी, तीन दिन की ट्रेनिंग के बाद एक परीक्षा पास की और वो इन्शुरन्स एडवाइज़र बन गए।

एक दिन शाम को घर बापिस के लिए जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक सिटी मेट्रो स्टेशन से लाल कुआं के लिए थ्री व्हीलर में बैठे, करीब ७-८ बजे का समय रहा होगा, एक १०-११ साल की बेटी पेन बेच रही थी, थ्री व्हीलर के पास खड़े होकर बोली साहेब रात बहुत हो गई हैं ये ही बचे हैं ले लो ना साहेब १०० रुपये के हैं साहेब ले लो ना साहेब,पीयूष जी में १०० रुपये जेब से निकाले और वो पेन का पैकेट ले लिया, तभी एक और तुरंत आ गई, साहेब आपने उसके तो ले लिए मेरे पेन भी ले लो बस ये ही बचे हैं, पीयूष जी ने उसके पैकेट को भी १०० रुपये में ख़रीद लिया, मैं बोला पीयूष जी आपने २०० रुपये यूँ ही दे दिए आप भी कुछ नहीं, क्या होगा २०-२२ पेनों का मैं पूरे रास्ते यही कहता रहा।

पीयूष जी बोले मैंने २०० रुपये में पेन नहीं खरीदे मैनें २०० रुपये में एक ऐसी अदृश्य चीज ख़रीदी हैं जो सिर्फ़ भगवान को पता हैं, पता नहीं कहाँ काम आ जाये ये तो वक्त बताएगा, मैंने तो सिर्फ़ वो काम किया जो मेरे मन और मस्तिष्क ने कहा, आगे भगवान की मर्जी और इन २०-२२ पेनों को ज़रूरत बंद बच्चों को बाट दूँगा।

मैं पीयूष जी से बोला वाह क्या बात हैं उधर भी मदद कर दी और इधर भी यानी २० से २२ की आपने मदद कर दी, बात करते करते पता नहीं कब घर का रास्ता गुज़र गया।

पीयूष जी को घर पर छोड़ते हुए मैंने पीयूष जी के पैर पकड़े और बोला, सर “मदद मीठी होती हैं”, मुझे भी आपसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा हैं, और जब ये बात मैंने मम्मी को बताई, उन्होंने भी मुझे ये ही कहा, सीख के कुछ हमेशा स्वादिष्ट भोजन के चक्कर में मत रहा कर।

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