ललकार : संस्कृति और समाज पर कविता

Dr. Mulla Adam Ali
0

Lalkaar Poem by Kanchan Seth, Hindi Poem On Culture and Society, Poems About Indian Culture In Hindi, Indian Society Kavita.

Lalkaar Poem in Hindi

lalkaar kavita in hindi

कविता ललकार : आधुनिकता के चलते समाज में बढ़ रही कुरीतियों को और शहरीकरण के कारण पर्यावरण में बढ़ती प्रदूषण को फर्दाफाश करती कविता ललकार। आज के समाज की आईना है यह समाज के विषय पर बेहतरीन कविता, समाज को आईना दिखाती यह वायरल कविता ललकार, सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती है, पढ़े और शेयर करें।

Hindi ललकार Poems

ललकार


समुद्र की लहरों ने आज

आग उगली है,

मानव की तुच्छ हस्ती को

एक ललकार भेजी है।


स्वार्थ और घमण्ड में चूर-चूर

जो भूल चुका था वह,

मानवता का मार्ग भूल जाने की

उसे सजा भेजी है।


दिल कांप उठता है,

प्रलय का नंगा नाच देखकर,

आत्मा आश्रय ढूँढती है,

धरती का सर्वनाश देखकर।


झोंपड़ियों का कही नामो निशान न रहा

आकाश को छूती मीनारों का,

कहीं कोई चिन्ह भी शेष नहीं

हरी फसलों की बालियाँ लहलहाती थी जहाँ।


जमीन वही आज बंजर पड़ी है

अंगड़ाई हरियाली की दफन हो गयी,

इतना सब हो जाने पर भी

चोंचे भिड़ रही हैं।


राजनैतिक नेताओं की

हार और जीत की,

चली जा रही हैं चाले

मृतक शरीरों पर।


दुर्गन्ध से भरी दुनियादारी के रीति रिवाज

पूजा के नाम पर जीवन आज

चील और कौवों की दावत बनी

लो इसी प्रकार प्राणहीनों की दीवाली बनी।


 - कंचन सेठ

ये भी पढ़ें; कविता : पश्चिमीकरण की अंधी दौड़ में हम कहाँ पहुँच गये हैं

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top