कविता : पश्चिमीकरण की अंधी दौड़ में हम कहाँ पहुँच गये हैं

Dr. Mulla Adam Ali
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Hum Kaha Pahunch Gaye Hai : Poetry

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कविता इन हिन्दी कहाँ पहुँच गये हैं हम : बढ़ती पाश्चात्य संस्कृति के प्रति जागरूकता दिलाने वाली प्रेरक हिन्दी कविता हम कहाँ पहुँच गये हैं। आज मानव जीवन आधुनिकता के चलते ज्यादा सुखदायक होते जा रहा है, इसमें इंसान अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलकर विदेशी संस्कृति के शिकार होते जा रहा है, पश्चिमीकरण का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Influence of Westernization on Indian Culture) इसी विषय पर आधारित है प्रेरणादायक हिन्दी कविता हम कहाँ पहुँच गये हैं, पढ़िए और शेयर कीजिए।

Inspiring Poem in Hindi

हम कहाँ पहुँच गये हैं


ढोल संस्कृति का बज रहा है

शोर सभ्यता का चम रहा हैं

भारतीयता से निकल युगों दूर

हम कहाँ पहुँच गये हैं।


आधुनिकता का हैं यह वैभवकाल

पश्चिम से प्रेरित आगंतुक आगंतुक

विचार रूप ले रहे विकराल

आगे बढ़ने के नशे में चूर

हम कहाँ पहुँच गये हैं।


जब-जब से बन रहा जनाधार

पावन विचारों की सीमाएँ होती पार

उस सभ्यता का सब कहा है परिचय

ना ही रहा किसी को किसी का भय

भुलकर पथ, अर्थहीन कोलाहल के साथ

हम कहाँ पहुँच गये हैं।


मानक भावनाओं का चक्र हो रहा हैं।

पश्चिमीकरण की अन्धी दौड़ में

भारतीय मूल्यों का हास हो रहा है

इससे अनभिज्ञ हम नही जानते

उस तरफ का सूर्योदय ला रहे है

लेकिन किसे पता

यहाँ की चुगबंधिनी चांदनी को

अंधेरा, धुमित अंधेरा खा रहा है

भारतीय संस्कृति का निशान गिरा जा रहा है।

हम कहाँ पहुँच गये हैं।


- टीकम सिंह शेखावट (सोनइंदर)

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