Laghukatha in Hindi Heart touching Short Story Tuition by Mirror Man of India Piyush Goel Motivations, Prernadayak Kahani.
Short Story : Tuition
लघु कहानी ट्यूशन : मिरर मैन ऑफ इंडिया नाम से प्रसिद्ध पीयूष गोयल जी की लिखी हिन्दी लघुकथा ट्यूशन (short kahani), दर्पण छवि के लेखक पीयूष गोयल जी की ये प्रेरक लघुकथा पढ़िए और शेयर कीजिए।
Laghukatha in Hindi: Tuition
लघुकथा : ट्यूशन
मेरे पिता जी का ट्रांसफर जलालाबाद (थानाभवन) से बदायूं हो गया, बदायूं के पास एक छोटा सा गाँव था तातागंज, वहाँ मैं कुछ दिन ही रहा, मेरे पापा डॉक्टर थे, नीचे अस्पताल था ऊपर मकान जिसमें हम लोग रहते थे, मकान की ख़ाशियत ये थी की दरवाज़े तो थे पर कुंडी नहीं थी, उस गाँव में मुझे याद हैं सब्जी बेचने वाले के पास भी तमंचा होता था. उस गाँव में खोयें का काम होता था और अक्सर किसी ना किसी के यहाँ से रोज़ाना खोयाँ आ जाया करता था, मेरी मम्मी खोयें में चीनी डाल कर सबको दे देती थी अक्सर खौएँ को हम खा कर कटोरी छत पर ही छोड़ देते थे, और बड़े मजे की बात कौआ आकर उस खाली कटोरी को अपनी चोंच में लेकर उड़ जाया करता था और हम सब चौंच में कटोरी ले जाते हुए कौएँ को उड़ता हुए देखते थे बड़ा ही मज़ेदार दृश्य होता था, और वो कटोरी हमारे घर पर वापिस आ जाती थी, कारण जो मुझे लगता था एक तो कटोरी स्टील की थी और दूसरा उस पर पापा का नाम लिखा होता था. मैं वहाँ पर कुछ दिन ही रहा, इस गाँव में एक प्राइमरी स्कूल था जो नदी किनारे था, सूरज को उगते हुए देखना, पेड़ों की छांव, नदी में जलमुर्गियों का देखना सब ग़ज़ब था. कुछ दिनों बाद मैं अपने ननिहाल आ गया, इसी बीच पापा का ट्रांसफर वहाँ से जिला सहारनपुर के सबदलपुर गाँव में हो गया और मैं भी ननिहाल से सबदलपुर मम्मी पापा के पास आ गया. यहीं पर ही मेरी और मेरे भाई की प्राइमरी की शिक्षा हुई,पापा ने हम दोनों भाइयों के लिए एक ट्यूशन लगा दिया. जो मुल्ला जी के नाम से प्रसिद्ध थे, और उन्होंने हमें प्रारंभिक पढ़ाई में बहुत मजबूत बना दिया, और हम दोनों भाइयों की ट्यूशन की फीस १०-१० रुपये थी, जब हम दोनों भाई ४-५ कक्षा में आए तो पिता जी ने एक नया ट्यूशन लगा दिया, जिस स्कूल में हम पढ़ते थे उसी स्कूल के एक अध्यापक से जिनका नाम था सेठ पाल जी जो रोज़ाना करीब १० किलोमीटर दूर साइकिल से आया करते थे.मेरे ट्यूशन के २५ रुपये और छोटे भाई के १५ रुपये लिया करते थे. एक दिन पता लगा की पिता जी का ट्रांसफर सबदलपुर से मथुरा के एक गाँव चौमुहां हो गया. ये वो जगह हैं जहाँ पर मेरी ज़िन्दगी के सबसे सुनहरे दिन बीते, करीब ७ साल में हम लोगों ने बाँके बिहारी मंदिर के लगभग पचासियों बार दर्शन किए होंगे. यहाँ पर भी पापा ने मेरा ८-१२ वी तक का ट्यूशन लगवा दिया, जिनका नाम S.N.Singh जी था और जिनकी फ़ीस महीने की १०० रूपये हुआ करती थी जो १२ तक यही रही, और मजे की बात यह रही वो आर्ट साइड के अध्यापक थे और मैं साइंस साइड का विद्यार्थी, आपको बताता चलू Singh Saheb कौन थे, आप सब ने बीआर चौपड़ा जी के महाभारत सीरियल का नाम तो जरूर सुना होगा, उस सीरियल में जिसने द्रोणाचार्य का रोल निभाया था उनके सगे बड़े भाई थे.स्कूल का नाम था “सर्वोदय इंटर कॉलेज” मैं साइंस साइड का विद्यार्थी था और आर्ट साइड के अध्यापक से ट्यूशन पढ़ता था स्कूल के साइंस साइड के अध्यापकों से ये कई बार सुना की साइंस साइड का विद्यार्थी आर्ट साइड के अध्यापक से ट्यूशन पढ़ता हैं और कक्षा में खुन्नस भी निकाला करते थे. जब हाई स्कूल का रिजल्ट आया और मेरी हाई स्कूल में फर्स्ट डिवीज़न आ गई और सिर्फ़ पूरे स्कूल में दो ही विद्यार्थियों के फर्स्ट डिवीज़न आई थी, बाद में हम दोनों पक्के दोस्त हो गए, जो लोग ये कहा करते थे साइंस साइड का विद्यार्थी आर्ट साइड के अध्यापक से ट्यूशन पढ़ रहा हैं कहना बंद कर दिया.उसके बाद तो गुरु जी के पासा ट्यूशन की लाइन लग गई, गुरु जी ने तीन शिफ्ट्स में ट्यूशन पढ़ाने शुरू कर दिए. दोस्तों, यहाँ पर मुझे एक लड़की से प्यार हो गया, और सन १९८४ में मैं मथुरा से मुजफ्फरनगर आ गया इंजीयरिंग करने और मेरा प्यार ऐसे ही ख़त्म हो गया,मोबाइल तो दूर फ़ोन भी नहीं थे बात नहीं हो पाई आज तक नहीं मिल पाए पता नहीं कहाँ हैं, कुछ भी हो पहला प्यार भुलायें नहीं भूलता, सच में ट्यूशन ने मुझे बहुत कुछ दिया और जीवन जीने का तरीका भी सिखाया.
- पीयूष गोयल
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