हिंदी भाषा शिक्षण की प्रक्रिया

Dr. Mulla Adam Ali
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Process of teaching Hindi language, Effective Teaching Strategies & Techniques,New Education Policy Hindi Teaching Methods by Dr. Trilok Nath Pandey, Hindi Pedagogy.

Hindi Teaching Methods

hindi teaching methods

Hindi Shikshan ki Vidhiyan

हिंदी भाषा शिक्षण की प्रक्रिया

हिंदी से है जिंदगी

हम हिंदी की ही करते बंदगी

हिंदी ही अपनी रोजी-रोटी

हिंदी को अर्पण अपनी जिंदगी।

आज आपके समक्ष अपनी इस लेखनी के मार्फत से एक शिक्षक के तौर पर एक शिक्षक से जुड़ने आया हूँ। मैं यहाँ ज्ञान बांटने नहीं आया, मैं उसमें सक्षम भी नहीं हूँ और ना ही मेरी इतनी पहुँच है क्योंकि मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे इस लेख को पढ़ने वाले शिक्षक गण या भावी शिक्षक मुझ से कहीं बेहतर काम करते हैं और आगे करेंगे। मैं आप लोगों से सीखता हूँ और आगे भी सीखता रहूँगा। आज मैं आप लोगों से चर्चा ही चर्चा में कक्षा में मैं जो करता हूँ उसे साझा करना चाहूँगा। यदि आप उसे कर रहे हैं तो यह पुनरावृति होगी, नहीं करते हैं, यदि अच्छा लगे तो उसे अपने शिक्षण प्रक्रिया में जोड़ सकते हैं।

मेरी दृष्टि में शिक्षक न बनकर यदि हम सदा विद्यार्थी बने रहें तो सही मायने में हम शिक्षण कार्य को सही ढंग से कर पाएंगे। मैं हमेशा-हमेशा के लिए विद्यार्थी ही रहना चाहूँगा। जहाँ कहीं पर भी ज्ञान बंटता हो मैं दौड़ा जाऊँगा। चाहे वह फेसबुक पर मिले, चाहे वह ट्विटर पर मिले, वेबीनार से मिले, कार्यशालाओं से मिले... व्यक्ति से मिले, प्रकृति से मिले, वस्तु से मिले….। कहने का तात्पर्य है जहाँ तक मेरी पहुँच होगी और जितनी बुद्धि होगी…. जी हाँ आपने सही सुना। बुद्धि भी इसमें अहम भूमिका निभाती है, इच्छा भी अहम भूमिका निभाती है, सामर्थ्य भी अहम भूमिका निभाती है, इन सभी को ध्यान में रखते हुए जहाँ कहीं से भी मुझे ज्ञान मिलेगा, सीखने को मिलेगा, मैं जरूर जाऊँगा, मैं जरूर आऊँगा क्योंकि मैं शिक्षक नहीं विद्यार्थी बने रहना चाहूँगा।

 बच्चे हमें क्यों सुनें?

इस प्रश्न को जो शिक्षक या शिक्षिका अपने हृदय में सदैव गांठ की तरह बांध के रखती हैं या रखते हैं वह कभी भी चैन से नहीं बैठेगा। यह मेरा मानना है। कुछ नया जानने और करने की ललक यही प्रश्न उत्पन्न करता रहेगा। इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपने भीतर के बच्चे को और विद्यार्थी को मरने न दें।

मेरी कक्षा में बच्चे कविता लिखते हैं। मेरी कक्षा की शुरुआत शिक्षार्थी करते हैं- मैं नहीं। यदि उन्हें कुछ कहना है तो भी कविता में कहेंगे चाहे वह टूटी फूटी ही क्यों न हो। बच्चे आपस में शब्दों से खेलते हैं-आनंद का सृजन होता है, उसी आनंद के सृजन में सृजनशीलता एवं भाषा के प्रति खिंचाव उत्पन्न होती है। आखिरकार भाषा शिक्षण का उद्देश्य भी तो यही है।

रुचि जागृत करनी है, अपने शिक्षण को रुचिकर बनाना है तो स्वयं पहले रुचि लेना सीखें। जी हाँ जब तक आप शिक्षण में रुचि नहीं लेंगे तब तक आप के शिक्षण में दूसरा कोई - चाहे वह बच्चा ही क्यों न हो रुचि नहीं लेगा, जब आप रुचि लेने लगेंगे तो बच्चे भी आप से जुड़ेंगे और... और वह रुचि आपके शिक्षण में दिखेगी…..। जिस दिन से रुचि दिखने लगेगी आपकी शिक्षण में उस दिन वह आपकी शिक्षण की विधियों को प्रभावित करेंगी और आपके शिक्षण में परिवर्तन दिखने लगेगा। जैसा कि आप सभी जानते हैं शिक्षण एक कला है, कौशल है…. इसे सीखा जा सकता है। कोई जन्मजात शिक्षक नहीं होता। कोई जन्मजात अर्जुन नहीं होता। कोई जन्मजात द्रोणाचार्य नहीं होता। कोई जन्मजात चाणक्य नहीं होता। कोई जन्मजात चंद्रगुप्त भी नहीं होता। वे स्वयं निर्मित होते हैं। स्वयं को गढ़ते हैं। इसलिए अपने आप को गढ़ना सीखिए। यह मत सोचिए कि कोई आकाश से आकर आपको हाथ में दे देगा…. आशीर्वाद मिल जाएगा और आप 1 दिन में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक बन जाएंगे। अर्जुन को भी कितने वर्ष लगे थे अर्जुन बनने में, द्रोणाचार्य को भी द्रोणाचार्य बनने में समय लगा था। 1 दिन में कोई महान शिक्षक नहीं बन सकता। पहले हम शिक्षक तो बन जाएं।

हम शिक्षक अक्सर एक श्लोक विद्यार्थियों को सुनाते रहते हैं।

 काक चेष्टा, बको ध्यानं,

स्वान निद्रा तथैव च ।

अल्पहारी, गृहत्यागी,

विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥

हिन्दी भावार्थ:

एक विद्यार्थी में यह पांच लक्षण होने चाहिए..

कौवे की तरह जानने की चेष्टा,

बगुले की तरह ध्यान,

कुत्ते की तरह सोना / निद्रा

अल्पाहारी, आवश्यकतानुसार खाने वाला

और गृह-त्यागी होना चाहिए

परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या हम शिक्षक पहले सफल विद्यार्थी के पाँच लक्षण अपने अंदर समाहित किए हुए हैं या नहीं। हम उन पंच लक्षण को आत्मसात किए हैं या नहीं।

यदि नहीं तो इस श्लोक को बोलने का अधिकार भी हमारे पास नहीं है क्योंकि भाई आपके पास जो चीज नहीं है वह दूसरे से आप अपेक्षा कैसे कर सकते हैं?

कहने का तात्पर्य है कि जो काम आप बच्चों को दे रहे हैं सर्वप्रथम आप देख लीजिए कि आप उसमें निपुण हैं या नहीं । जो आप विद्यार्थी से चाहते हैं क्या आप उसे करने में सक्षम हैं या नहीं। यदि हैं तो मुबारकबाद। यदि नहीं तो यहीं पर विचार करने की आवश्यकता है। सिर्फ देना बैंक न बने देने से पहले लेना बैंक भी बनें।

लेना देना बैंक से एक बात मुझे याद आई…. हम शिक्षकों में अहम बहुत ज्यादा होता है। और जहाँ अहम होगा वहाँ हम वहम भी पा लेते हैं। वहम क्या है- हम महापंडित हैं, हमसे बेहतर दूसरा कोई नहीं, मुझे दूसरे से सीखने की आवश्यकता नहीं, अरे उसमें इतनी गलतियाँ हैं, उसमें इतनी अशुद्धियाँ होती हैं, वह सिर्फ बड़-बड़- बड़-बड़ करता है,यदि उसमें अशुद्धियाँ हैं, यदि मेरा शिक्षक मित्र कहीं कमजोर पड़ रहा है, या उसके पास जानकारी की कमी है, या वह तकनीकी रूप से कहीं कमजोर है, तो हम एक शिक्षक होने के नाते क्या कर रहे हैं? जरा विचार कीजिएगा।

क्या हम अपने शिक्षक साथियों के साथ अपने द्वारा नवाचार के मार्फत से जो कुछ कक्षा में सिखा रहे हैं,पढ़ा रहे हैं, उसे साझा कर रहे हैं? क्या हम वीडियो बनाकर शिक्षकों से साझा कर रहे हैं? क्या हम एक दूसरे की मदद कर रहे हैं?

दोस्तों विश्वास मानिए जब तक हम उस अहम से अ को नहीं निकाल कर फेंक देते हैं तब तक हम हम नहीं हो पाएंगे।

जिस दिन हम लोग अहम से अ को निकाल कर फेंक देंगे उसी दिन वहम से व खुद ब खुद निकल जाएगा और हम लोग हम हो जाएंगे। एक साथ मिलकर हिंदी भाषा शिक्षण को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। मिलकर काम करेंगे।

एक दूसरे की मदद कीजिए, एक दूसरे से मदद लीजिए। शिक्षण की दुनिया लेनदेन की दुनिया है। सीखने और सिखाने की दुनिया है। इसलिए शिक्षण की दुनिया में सीखते रहिए और आगे बढ़ते रहिए।

new education policy in hindi

 जिसने भी किया सीखना बंद वो हारेगा अपनी हर जंग।

और मैं जहां कहीं पर भी गया हूँ- वर्कशॉप करवाने के लिए -चाहे वह अहिंदी भाषी क्षेत्र का विद्यालय हो या विद्यालयों का समूह हो या फिर हिंदी भाषी क्षेत्र का विद्यालय का समूह हो -वहाँ पर शिक्षकों का प्रश्न यह आम होता है और सरेआम होता है। शिक्षण को हम प्रभावी कैसे बनाएं? शिक्षण प्रभावी उसी वक्त होगा जब शिक्षक प्रभावशाली होगा। इस पर चर्चा करूंगा।एक और बात सामने आती है या यूं कहूँ- शिकायत आती है कि सर आजकल के बच्चे पढ़ते नहीं हैं?

  1. विश्वास मानिए किसी काल के बच्चे पढ़ते नहीं हैं और हर काल के बच्चे पढ़ते हैं।
  2. यह निर्भर करता है पढ़ाने वाले के ऊपर। कहने का मतलब है आपके ऊपर, हमारे ऊपर।
  3. मैं फिर से उसी प्रश्न पर आना चाहूँगा आखिर बच्चे हमें क्यों सुने?
  4. क्या कभी हमने कक्षा के उपरांत बैठकर मूल्यांकन किया है कि हम कैसा पढ़ा रहे हैं?

  •  मेरी आज की कक्षा कैसी हुई?
  •  आज मुझसे कहाँ कहाँ चूक हुई?
  •  आज की कक्षा में बच्चों ने ध्यान क्यों नहीं दिया?
  •  मुझमें क्या-क्या कमियाँ हैं?
  •  क्या मैं सही से आज पढ़ा पाई यदि नहीं तो क्यों?
  •  क्या मेरा उच्चारण सही है?
  • क्या मेरी लेखनी स्पष्ट एवं सुडौल है?
  •  क्या मेरा क्लास कंट्रोल है?
  •  क्या मेरा लेसन प्लान सही है?
  •  क्या मैंने लेसन प्लान को विधिवत पालन किया है या नहीं?
  •  ऐसे न जाने अनगिनत ‘क्या’ हैं?

जिस दिन से आप अपना स्वयं मूल्यांकन करने लगेंगे या करने लगेंगी... उसी दिन से आप एक बेहतरीन शिक्षक, एक श्रेष्ठ शिक्षिका बनने की और बढ़ जाएंगे।

कमी बच्चों में नहीं, हम में हैं, आप में हैं, हम सब में है, शिक्षण व्यवस्था में है, और वह रहेगी। उसे स्वीकार करना हमारा धर्म है, कर्तव्य है और इसमें ही बुद्धिमता भी है। परंतु स्वीकार करके सिर्फ बैठ जाना यह गलत है। इसलिए अपने शिक्षण को या उसमें आई गलतियों को या फिर त्रुटियों को सुधारें । किस प्रकार आप बच्चों तक पहुँचेंगे इसकी तैयारी कीजिए। जिस दिन आपको या फिर आपके मन में यह बात बैठ जाएगी कि आप बच्चों तक पहुँचना चाहते हैं तो विधियाँ सिद्धियों में परिवर्तित हो जाएंगी। इसलिए शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए सर्वप्रथम अपने आपको तैयार करें और तैयारी दो स्तर पर होती है। एक मानसिक तौर पर दूसरी व्यवहारिक तौर पर । आज इंटरनेट की दुनिया है। एक बटन दबाने के बाद बच्चा आपसे या आपके द्वारा पढ़ाई गई चीजों से बेहतर चीजों को वह हासिल कर सकता है। परंतु प्रश्न यह उठता है कि वह आपको क्यों सुने? भाई जब वह आपको सुनेगा कुछ तो मिलना चाहिए उसे ।उस दुकान पर कोई नहीं जाता जहाँ की चीजें अच्छी नहीं होतीं। इसे अन्यथा न लें। हम अपने सामान को ठीक करें। अपने को ठीक करें। अपने ध्यान को ठीक करें। अपने मान सम्मान को ठीक करें। अपनी पहचान को ठीक करें। जिस दिन यह सारी चीजें ठीक हो जाएंगी और आप प्रयासरत हो जाएंगे , प्रयास करेंगे, विश्वास मानिए आप अपनी शिक्षण विधियाँ स्वयं निर्मित करेंगे। विधियाँ या शिक्षण की पद्धतियाँ जो हैं यह नवाचार की देन है। नवाचार की देन का तात्पर्य है कि जो भी आप पढ़ाते हैं या जो भी कंटेंट है। जो भी सामग्री है ।उसमें आप नया क्या करते हैं? आप किस प्रकार उस ज्ञान को या जानकारी को नए रूप में विद्यार्थियों के पास लेकर जाते हैं ? यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। यदि आपको पढ़ाते वक्त नाचना भी पड़े तो शर्माइए नहीं, यह भी शिक्षण का अंग है…. अंश है….. अनिवार्य तत्व है…. शिक्षण के दौरान यदि आपको गाना पड़े तो गाइए….. बेसुरे ही गाइए….. परंतु गाइए।

बच्चा आप से जुड़ेगा क्योंकि सर्वप्रथम दरवाजे को खटखटाना पड़ता है। जब तक आप दरवाजे को खटखटाएंगे नहीं, बालक के मन के दरवाजे को खटखटाएंगे नहीं, बालक के मस्तिष्क के दरवाजे को खटखटाएंगे नहीं, उसे लुभाएंगे नहीं जब तक डोर बेल बजाएंगे नहीं….. तब तक बच्चा अपना मन का कपाट नहीं खोलेगा….. तब तक वह आपको नहीं सुनेगा। फिर अपने आपको स्वयं सर्वश्रेष्ठ शिक्षक घोषित करते चलिए, अपने आप को महापंडित की उपाधि देते चलिए।परंतु सही मायने में आप भी जानते हैं, समाज भी जानता है, स्कूल भी जानता है, बच्चे तो जानते ही हैं कि आप एक असफल शिक्षक हैं। इसलिए सर्वप्रथम बच्चों से जुड़ना सीखें। चाहे जिस रूप में भी हो... नाच कर, गाकर, चुटकुले सुनाकर। एक बार आप बच्चों से जुड़ जाएं फिर उन तक ज्ञान पहुँचाते रहें। पहले जोड़ना सीखें। जब तक आप जुड़ेंगे नहीं तब तक शिक्षण की दुनिया में आप कुछ बेहतरीन गढ़ेंगे भी नहीं। यदि आप गढ़ना चाहते हैं तो पढ़ना सीखिए, अपने आप से लड़ना सीखिए ,आपके पास जो भी अस्त्र-शस्त्र हैं उसका भरपूर प्रयोग कीजिए। जहाँ आप में गलतियां हैं, कमियाँ हैं उन्हें दूर कीजिए। मेरा यह मानना है कि हम अपने आप को बेहतर जानते हैं। मुझे शोले का वह डायलॉग बड़ा प्यारा लगता है जहाँ पर गब्बर सिंह आकर कहता है- गब्बर से तुम लोगों को कोई बचा सकता है तो वह स्वयं गब्बर। ठीक उसी तरह यदि आपको कोई सुधार सकता है, आपको बेहतर शिक्षक बनने की प्रक्रिया में कोई धकेल सकता है तो वह स्वयं आप ही यह कार्य कर सकते हैं । दूसरा सिर्फ बोलेगा, सिखाएगा, बताएगा, चेताएगा। करना तो आपको ही पड़ेगा। नहीं तो बैठकर अपनी किस्मत को रोते रहिए,और जो कुछ है आपके पास उसे खोते रहिए….वो कहते हैं न समझदार को इशारा ही काफी है।

आप शिक्षक बाई चांस बने हों या बाई चॉइस अब आप शिक्षक हैं।

 दुष्यंत की पंक्ति मुझे इस संदर्भ में बहुत याद आ जाती है-

 जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,

अब तो पथ यही है।

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,

एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,

एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,

आज हर नक्षत्र है अनुदार,

अब तो पथ यही है।

यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,

यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,

यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,

कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,

अब तो पथ यही है।

इसलिए दोस्तों शिक्षण प्याले में रखी चाय नहीं कि कोई आया गटक लिया और महान शिक्षक बन गया। इसमें परिश्रम काफी लगता है। मेहनत काफी करनी पड़ती है। रात-रात भर जागकर पढ़ना-लिखना-समझना और गढ़ना पड़ता है। जब तक गढ़ेंगे नहीं तब तक आप बढ़ेंगे भी नहीं।

इसलिए सर्वप्रथम अपने आपको तैयार करें। B.Ed में जो भी कुछ पढ़ाया गया है। यदि आप उसे बार-बार नहीं पढ़ते हैं तो आप शिक्षण की दुनिया के लिए योग्य नहीं हैं। मेरी बातें कड़वी लगेंगी परंतु क्या करूँ दवाइयाँ अक्सर कड़वी ही होती हैं परंतु अपना कार्य कर जाती हैं। जीवन दान देती हैं। मेरे शब्दों को उन्हीं दवाइयों की तरह गटक लीजिए फिर देखिए ये दवाइयाँ, ये शब्द मूर्छित पड़े लक्ष्मण को पुनः जीवित कैसे करती हैं। फिर मेघनाथ वध निश्चित है। हे मेरे मूर्छित पड़े लक्ष्मण शिक्षक साथियों हनुमान की तरह संजीवनी बूटी लेकर आया हूँ। इसे गटक लें और शिक्षण की दुनिया को झटक लें।

प्रभावी शिक्षक होने के लिए कुछ मूलभूत सिद्धांत हैं। उसे आप चाहे तो लिखकर आंखों के सामने टांग दें। पहला- अपने विषय की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए

कहने का तात्पर्य है कि हिंदी साहित्य के इतिहास की पूरी जानकारी हो... इसके लिए यूट्यूब पर सामग्री पसरी पड़ी हैं... उन्हें सुनिए... सुन तो सकते हैं न... यदि पढ़ने का समय नहीं है तो…

यदि पढ़ने का समय है तो इग्नू की किताब जो है एमएचडी है... ऑनलाइन फ्री है... इग्नू की वेबसाइट से जाकर उसे डाउनलोड करके पढ़ते रहिए…. नामवर जी को जरूर पढ़िए... उन्हें मैं पढ़ता हूं उन्हें नमन भी करता हूं…. उनकी भाषा बहुत ही अच्छी है….. किसी एक रचनाकार को पकड़िए... और उन्हें पढ़ डालिए….

व्याकरण के लिए कामता प्रसाद गुरु को अपना गुरु बनाइए कहने का तात्पर्य है कि नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित पुस्तक हिंदी व्याकरण जोकि कामता प्रसाद गुरु द्वारा सृजित है उसका रसास्वादन करें... वह व्याकरण का बाइबल है, कुरान है, गीता है, अब जो कोई नाम दे सकते हैं दे दीजिए…. उसे धर्म ग्रंथ की तरह रोजाना पढ़िए... और सिर्फ पढ़िए ही नहीं, समझ कर उसका उपयोग भी कीजिए….।

नई-नई शिक्षण विधियाँ शिक्षण की दुनिया में समाहित हो रही हैं... उनका प्रयोग करें…. ब्लूम्स टैक्सनॉमी को अच्छी तरह से समझें-परखें और उसका प्रयोग करें…. जितनी भी पुस्तकें आपके सामने आ रही हैं... पब्लिशर्स के मार्फत से... वे सभी ब्लूम्स टैक्सनॉमी पर ही आधारित हैं... ब्लूम्स टैक्सनॉमी को जानना है तो यूट्यूब पर भी इसकी सामग्री है, आप देखिए समझिए, पढ़िए नहीं हो तो किताबें खरीद लीजिए... B.Ed की हिंदी शिक्षण की पुस्तिका आपके पास होगी। उसका सदुपयोग कीजिए…. वहाँ पर शिक्षण किस प्रकार से किया जाए- गद्य शिक्षण हो, पद्य शिक्षण हो ,रचना शिक्षण हो, सृजन शिक्षण हो,व्याकरण शिक्षण हो- उन सभी की जानकारी विधिवत दी गई है…. ये पुस्तकें ऑनलाइन उपलब्ध हैं…. थोड़ा समय यदि हो, पढ़ने-लिखने की इच्छा हो...यदि नींद से ज्यादा प्रेम न हो तो शोधगंगा में जाकर डुबकी भी लगाया कीजिए... देखिए किस प्रकार से शोध किए जाते हैं... किस प्रकार से शोध पत्र लिखे जाते हैं…. एक्शन रिसर्च किया करें…. सबसे पहले एक्शन रिसर्च खुद पर करें। एक्शन रिसर्च क्या है? इसकी जानकारी आज आप गूगल करके देख लीजिए। कैसे किया जाता है? क्यों किया जाता है? इसके क्या लाभ होते हैं? ये सारी जानकारियाँ आपको गूगल बाबा से मिल जाएंगी।

ये नया भारत है…. नई शिक्षा नीति के साथ आ रहा है…. इसलिए प्रत्येक शिक्षक को अपने बारे में, बच्चों के बारे में, विषय के बारे में, एक्शन रिसर्च के बारे में, शोध के बारे में जानना अति आवश्यक है। उससे भी ज्यादा आवश्यक है अपने आपको तकनीकी तौर पर मजबूत बनाना। आपको वीडियो एडिटिंग आनी चाहिए, आपको पीपीटी बनाना आना चाहिए, गूगल क्लासरूम चलाना आना चाहिए, गूगल फॉर्म पर क्विज बनाना आना चाहिए, हिंदी में टाइप करना आना चाहिए….. चाहे वह बोलकर ही क्यों न हो... कुछ लोग इसके खिलाफ में बोलते हैं... उनका कहना है कि इससे भाषा मर जाएगी... भाषा मरेगी या न मरेगी... लिपि मरेगी या न मरेगी... परंतु इतना तो मैं जानता हूँ कि हमारा हिंदी शिक्षण प्रभावी हो जाएगा। आप 1 दिन में टंकण नहीं सीख सकते हैं। परंतु आधे घंटे में आप बोलकर टाइप करना, शब्दों को शुद्ध करना, परिवर्तित करना सीख सकते हैं। कुछ लोग आज भी पाषाण युग में रहते हैं। ऐसे लोगों से तनिक दूरियां बनाए रखें। परंतु हाँ धीरे-धीरे टंकण करना भी सीख लें... क्योंकि हर जगह इंटरनेट की सुविधा नहीं होती है... तब आप बुरे फंसेंगे.. 1 महीने के भीतर आप टंकण सीख सकते हैं... इसके वीडियोस मेरे खुद के यूट्यूब चैनल पर हैं... हिंदी शिक्षण मंच पर भी आप देख सकते हैं।

साथियों शिक्षण की दुनिया में या भाषा शिक्षण की दुनिया में कुछ कौशल हैं जिस पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है।सारा खेल इन्हीं भाषा कौशलों का संवर्धन का है। आप सभी जानते हैं भाषा के चार कौशल हैं सर्वप्रथम सुनना, द्वितीय बोलना, तृतीय पढ़ना, चतुर्थ लिखना।

हमारी शिक्षा व्यवस्था सबसे ज्यादा चतुर्थ अर्थात लिखने पर बल देती है। पहले 3 का मूल्यांकन हम शिक्षकों के हाथ में छोड़ देती है। और हम में से कौन कितना कहता है और कितना करता है यह सर्वविदित है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है नई शिक्षा नीति 2020 कुछ नया कर दिखाएगी। और भाषा शिक्षण के चार कौशलों पर समान दृष्टि एवं भार एवं महत्व को प्रतिपादित करेगी।

हम शिक्षकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बच्चों से बुलवाने की होती है… हम शिक्षकों को यह जानना चाहिए कि बच्चों को सर्वप्रथम सुनना कैसे सिखाएं?

यह कौशल है अर्थात इसे सीखा जा सकता है। इन चार कौशलों को सिखाने वाला ही भाषा शिक्षक होता है। भाषा शिक्षक का दायित्व बच्चों को इन चार कौशलों में दक्ष करवाने का है। परंतु अफसोस हम सिर्फ और सिर्फ लेखन पर ध्यान देते हैं। और यह स्थिति चतुर्दिक है।

मैं इंटरनेशनल स्कूल्स में भी पढ़ाया हूँ। जो सीधे अमेरिका से जुड़े हुए थे। वहाँ के शिक्षक, कवि लेखक भी आया करते थे तो उनसे भी मैंने बहुत कुछ सीखा। इस दौरान बड़े-बड़े लेखक, कवियों से भी मुलाकात हुई- अंग्रेजी के।

विदेशी स्कूलों में गाइडेड रीडिंग करवाई जाती है। गाइडेड रीडिंग में बच्चा किस प्रकार से पढ़ेगा... लय- ताल- आरोह अवरोह.. इत्यादि की ओर बच्चों को गाइड किया जाता है।

बड़ी अफसोस की बात है अपने हिंदी शिक्षण के अंतर्गत इन चीजों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।

अपने यहाँ तो बच्चों को बोल दिया जाता है हाँ... फालां, उठ जाओ और पढ़ो...और कक्षा समाप्त हो जाती है।

हम शिक्षकों को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चों को कहानियाँ सुनाइए…. अच्छे से सुनाइए... यदि नहीं आता है उन्हें सुनिए जो सुना रहे हैं... इस क्षेत्र के महारथियों से सीखिए... उनसे सीखिए। इसमें कोई शर्म नहीं। मैं सीखता हूँ। हर किसी से सीखता हूँ।

मेरा यह मानना है कि जो शिक्षक सीखना, पढ़ना एवं प्रयोग करना छोड़ देता है। जो अपने आप को अहम् ब्रह्मास्मि की उपाधि से विभूषित कर बैठा है तो उनसे मेरी विनती है कि इस क्षेत्र को छोड़ दें... क्योंकि जो शिक्षक पढ़ना- लिखना- सीखना एवं प्रयोग करना छोड़ देता है वह शिक्षक ही नहीं रहता।

कोई भी शिक्षक या कोई भी हो, वह कभी भी अपने ज्ञान से ऊपर की चीज बच्चों को या किसी को नहीं दे सकता। क्योंकि जितना जिसका दायरा है उसी में से आपको उठा कर देगा। वह कुछ बाहर से नया नहीं कर पाएगा, नहीं कह पाएगा। इसलिए हम शिक्षकों को अपने दायरे को बढ़ाना होगा, पढ़ना होगा, प्रयोग करना होगा, सीखना होगा, जब तक हम पढ़ेंगे नहीं तब तक हम बढ़ेंगे भी नहीं।

साथियों भाषा शिक्षण एक कला है इसके चार स्तंभ हैं या यूं कहूँ चार कौशल हैं। उन्हें सर्वप्रथम आत्मसात कीजिए। स्वयं दक्षता प्राप्त कीजिए। मैं यह नहीं कहता कि मैं दक्ष हो गया हूँ परंतु मैं प्रयासरत हूँ। आगे भी प्रयासरत रहूँगा।

भाषा शिक्षण के अंतर्गत बच्चों को पढ़ना सिखाएं.. उन्हें प्रशिक्षित करें कि वे कैसे करेंगे।

सबसे पहले आदर्श वाचन करना सीखें और बच्चों को भी सिखाएं।

आजकल ऑनलाइन क्लासेस हो रही हैं।

जब मैं कहानी पढ़ाता हूँ या वाचन करता हूँ तो मैं अपने बगल में मोबाइल में कहानी के अनुरूप कुछ बैकग्राउंड म्यूजिक चला देता हूँ। उसके उपरांत उसका वाचन करता हूँ। यह बड़ा इफेक्टिव है। बड़ा प्रभावी है । इसका प्रयोग कर सकते हैं। और देखिएगा कि बच्चों पर कितना प्रभाव पड़ता है। यह करने से पूर्व आपकी अपनी तैयारी भी पहले से हो जानी चाहिए…. यह महत्वपूर्ण है। कक्षा पूरी तरह से आपके कंट्रोल में होगी, तत्पश्चात प्रश्न पूछिए।

B.Ed में आपको पढ़ाया गया होगा कि प्रश्न पूछने की भी अपनी विधि होती है, तकनीक होती है।उसका पालन जरूर कीजिए।

दोस्तों, एक और विधि है- पढ़ाते वक्त जिसका आप इस्तेमाल कर सकते हैं।

मौन वाचन विधि- जी हाँ आपने सही सुना- इस विधि के अंतर्गत बच्चों को एक पैराग्राफ दे दीजिए या यूँ कहूँ एक अनुच्छेद दे दीजिए और समय निर्धारित कर दीजिए। जैसे समय समाप्त हो जाता है वैसे ही कुछ प्रश्न उस पैराग्राफ या अनुच्छेद से संबंधित पूछ लीजिए... इस विधि का प्रयोग आप गद्य शिक्षण, पद्य शिक्षण दोनों के संदर्भ में कर सकते हैं।

और एक महत्वपूर्ण विधि है। कक्षा में जैसे आप प्रवेश करते हैं। आपको 2 मिनट निर्धारित कर देना है। बच्चों को बता देना है कि जैसे मैं प्रवेश करूँगा या करूँगी । कक्षा में आपकी एक वर्तनी की पुस्तिका तैयार होनी चाहिए । पतली-सी कॉपी हो सकती है और उसके अंतर्गत सिर्फ वर्तनी संबंधी अर्थात उस 2 मिनट का काम होना चाहिए।

इसका संचालन आप कैसे करेंगे? जैसे आप कक्षा में प्रवेश करते हैं। प्रथम 1 मिनट के समय के अंतर्गत 5 शब्दों को उच्चरित कीजिए... सही उच्चारण के साथ बोलिए और बच्चों को लिखने को कहिए। याद रहे कि यह वे ही शब्द हों जो बच्चों द्वारा आमतौर पर अशुद्ध रूप में लिखे जाते हैं । कॉपी करेक्शन के समय उन शब्दों को संग्रहित करें और उन्हें उच्चरित करें और बच्चों को लिखने के लिए कहें... यह काम 1 मिनट में हो जाना चाहिए। अगला 1 मिनट जो है उसमें आप श्यामपट्ट पर या फिर श्वेत पट पर या डिजिटल पट पर शुद्ध वर्तनी को अंकित कर दें। उससे पूर्व बच्चों को कह दें कि अपनी कॉपियां एक दूसरे से बदल लें... मैं ऐसा ही करता हूँ….. इससे दो फायदे होंगे।एक बच्चा उन शब्दों को सुनेगा-समझेगा और लिखेगा। कोशिश यह होनी चाहिए कि इन शब्दों की पुनरावृति भी हो। कहने का तात्पर्य है कि 1 सप्ताह के बाद फिर से इन शब्दों को बच्चों से लिखवाएं। उसी 1 मिनट के दौरान फिर से चेक करवाइए । इससे कम से कम बच्चे कुछ शब्दों की वर्तनी जो है, जिसे वे अक्सर गलत लिख देते हैं, अज्ञानता एवं अभ्यास की कमीवश ,उसमें सुधार आपको देखने को मिलेगा। कुछ लोग कहेंगे कि सर वह एक दूसरे की नकल भी कर सकते हैं, देख भी सकते हैं, यही तो हम चाहते हैं। उस समय उस शब्द को ढूंढने का काम या फिर उसकी वर्तनी को देखने का काम उसका मस्तिष्क करेगा और विश्वास मानिए उस चीटिंग के प्रोसेस में भी बच्चा कुछ सीख लेगा। ऐसा हुआ है। ऐसा मैंने किया है और जो किया है वो आपको मैं बता रहा हूँ। आप करके देखिए। लाभ जरूर मिलेगा। इस पद्धति को प्रत्येक स्कूल में लागू करनी चाहिए। इसे कक्षा एक से लेकर 12 तक करवानी चाहिए। इससे प्रचलन में लाना होगा। बच्चा यदि अशुद्ध लिखता है तो दोषी बच्चा नहीं हम हैं। हमारे दोष का परिणाम बच्चा जीवन भर भोगता है। क्या यह सही है? जरा विचार कीजिए।

और कक्षा 35 मिनट या 40 मिनट या 1 घंटे की हो…. जो आखिरी 2 मिनट है उसे प्रश्न उत्तर के लिए बचा कर रखिए- कहने का तात्पर्य है कि कभी भी कक्षा को खाली न छोड़ें- प्रत्येक अनुच्छेद के उपरांत या बीच-बीच में तो आप प्रश्न पूछें ही परंतु कक्षा के उपरांत भी 2 मिनट का प्रश्नोत्तरी का समय रखें या सेशन रखें... प्रश्न भी लंबे नहीं होने चाहिए... लघुत्तरीय या फिर अति-लघुत्तरीय। जैसे क्विज होता है। बच्चे क्विज को बड़ा इंजॉय करते हैं। आपकी कक्षा कभी भी ‘बोरिंग’ नहीं होगी, उबाऊ नहीं होगी। आप सीधे बच्चों के हृदय में बैठेंगे। वे आपका काम सबसे पहले करके रखेंगे। आजमा के देखिए। ये मैं करता हूँ और जो मैं करता हूँ यदि सफल हो जाता हूँ तभी मैं कार्यशाला में या फिर वेबीनार में और आज लिपिबद्ध रूप में आपसे साझा करता हूँ।

इस लॉकडाउन के समय मैंने यह नोटिस (ध्यान) किया है कि गूगल फॉर्म जैसा प्रभावी सामग्री और दूसरी कोई नहीं। विश्वास मानिए गूगल फॉर्म पर आप क्विज लेना शुरू करें। जब आप इसे लेते हैं तो बच्चों के समक्ष निश्चित समय होता है और उसी समय वह अपना उत्तर भी भर देते हैं या चुन लेते हैं और तुरंत ही जमा करते हैं। जिसकी वजह से उनको उसी वक्त परिणाम भी मिल जाता है। जो स्वत: मूल्यांकित होता है। उन्हें अंक भी प्राप्त हो जाते हैं और भी बड़े उत्साह से वह गूगल मीट का जो चैट बॉक्स है वहाँ पर वह अपना नंबर(प्राप्तांक) भी लिखते हैं। साथ ही उन्हें उत्तर भी मिल जाता है कि कहाँ उन लोगों ने गलती की। यह बड़ी ही इफेक्टिव- असरदार विधि है या टेक्निक है या तकनीक है। इसका प्रयोग करना न भूलें। बच्चे बड़ा इंजॉय करते हैं। आपकी कक्षा कतई उबाऊ नहीं होगी।

बच्चों से काम करवाइए। स्मार्ट शिक्षक वह है जो अपना काम करवा ले। स्मार्ट बनिए। कैसे स्मार्ट बनेंगे? सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आपकी तैयारी दुरुस्त हो। जब आप की तैयारी दुरुस्त होगी तो वह आपके कार्य में भी प्रदर्शित होगी। जिसकी तैयारी है दुरुस्त उसकी कक्षा कभी नहीं पड़ेगी सुस्त।

बच्चों को भाषा शिक्षण के अंतर्गत जैसा कि मैंने कहा कि 4 कौशल हैं उसकी ओर उनका ध्यान आकृष्ट करना है। उनको उस में माहिर बनाना है…. जिससे वे आने वाले समय में अपने आप को अभिव्यक्त करने में नहीं अटके, घबराए नहीं... यदि कक्षा में बच्चा सही से नहीं पढ़ पाता है, नहीं लिख पाता है, नहीं बोल पाता है, चुपचाप रहता है, डरा हुआ रहता है, घबराता है तो इसके दोषी हम और आप हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था है। व्यक्ति डरता कब है? जब वह नहीं जानता है। बच्चा उस परीक्षा से डरता है जिस परीक्षा के लिए वह तैयार नहीं होता है। जो बच्चे तैयार होते हैं वे उत्साही होते हैं। कक्षा में ऐसे बच्चे आपको दिख जाएंगे। जो तैयार होंगे उनका हाथ सदेव ऊपर ही रहेगा। परंतु अफसोस की बात है इसकी गिनती बड़ी कम है। दोषी कौन है? हम और आप। इसे अन्यथा न लीजिए सच्चाई है। यह मेरा दायित्व है- भाषा शिक्षक होने के नाते कि मेरा विद्यार्थी ,मेरा शिक्षार्थी इन चार कौशलों में दक्ष हो जाएं।

जब तक आपकी रूचि नहीं होगी तब तक आप दक्षता भी प्राप्त नहीं करेंगे। आपसे तात्पर्य दोनों से है शिक्षक एवं शिक्षार्थी। जी हाँ दोनों से। सुरुचि कब जागृत होगी जब मजा आएगा। मजा कब आएगा जब आपके काम लायक कोई चीज, आपके मन लायक कोई चीज हो…।

शिक्षण को आनंदपूर्ण बनाइए…. रटवाई नहीं... सिखाइए... पढ़ना सिखाइए, बोलना सिखाइए, लिखना सिखाइए, सुनना सिखाइए... यही तो काम है हमारा। हम भाषा शिक्षकों का बस यही काम है।

बच्चों को डिक्शनरी का प्रयोग सिखाएं…. उसमें से नए शब्द एवं अर्थ बच्चों को बुलवाकर... या फिर रोल नंबर वाइज, अनुक्रमांक के अनुसार उन्हें दायित्व दे दें कि बेटा आपको एक शब्द डिक्शनरी से निकालकर कक्षा में अर्थ के साथ बोलना है । साथ में उसे वाक्य में भी प्रयोग करवाना है... इसमें कितना समय लगेगा... इसे कीजिए... यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो 12वीं कक्षा पार कर जाते हैं परंतु उन्हें शब्दकोश में शब्द ढूंढना नहीं आता। अब बताइए दोषी कौन है? आप को सिखाने से किसने रोका है? यदि नहीं रोका है तो आप दिखाते और सिखाते क्यों नहीं?

बच्चों को प्रयोग करना सिखाएं। ये कौशल हैं... इसे रटवाएं नहीं...प्रयोग करना सिखाएं।

बच्चों को कभी भी कॉपी पेस्ट करने वाला परियोजना कार्य न दें।

उन्हें कहानी को कविता के रूप में लिखने के लिए प्रेरित करें…. कविता को कहानी के रूप में लिखने के लिए प्रेरित करें।

साक्षात्कार लेना सिखाएं... साथ ही साक्षात्कार के प्रश्न कैसे निर्माण किए जाते हैं वे सिखाएं -

दिन का टीवी एंकर बनाएं।

कवि सम्मेलन करवाएं।

आशु भाषण करवाएं।

वाद-विवाद प्रतियोगिता करवाएं।

सप्ताह में एक बार बच्चों द्वारा प्रस्तुतीकरण करवाएं -

उदाहरण-पीपीटी, चार्ट, कविता पोस्टर,कविता, स्लोगन, विज्ञापन..... लेखन एवं उसका वाचन

बच्चों को पढ़ने का मौका दीजिए

रोल प्ले करवाइए

बच्चों द्वारा कवि, लेखक, कहानीकार, उपन्यासकारों के विषय में जानकारी इकट्ठा करवाएं, पुस्तकों में कहानीकरों, कवियों की तस्वीर लगवाएं-जिससे बच्चा कहानीकार -कवि को पहचान भी पाएगा।

 प्रतियोगिताएं करवाइए-

आशु भाषण, भाषण

पोस्टर-कविता, कहानी, मुहावरे, नाटक......

काव्य पाठ

श्रव्य दृश्य माध्यम से प्रस्तुति-कहानी, साक्षात्कार, नाटक, सारांश, विचार, भ्रमण, रेडियो नाटक.....

वाद-विवाद

लेखन-कहानी, निबंध, कविता, स्लोगन, विज्ञापन, पत्र.......

ऑडियो वीडियो बनवाएं

महान लेखकों कवियों की जयंती के माध्यम से-

गुरु रविंद्र नाथ, मुंशी प्रेमचंद.......

भाषा दिवस, हिंदी दिवस…….

कक्षा में जब कभी भी आप कहानी या अनुच्छेद या फिर कविता का प्रयोग करवाते हैं तो उनमें शब्द प्रयोग होते हैं….

वहीं से आप व्याकरण करवाएँ…..

अपने यहाँ व्याकरण करवाने का अर्थ यह हो गया है कि बच्चों को परिभाषा रटवा दें, उनके भेद बता दें, या रटवा दें...बच्चा बिना समझे रटता है….और वह पोपट बन जाता है।शाब्दिक एवं लाक्षणिक दोनों रूप में। यहाँ शिक्षण कहाँ है?

व्याकरण पढ़ाते वक्त बच्चे को पता भी न चले कि आपने उसे व्याकरण पढ़ा दिया। व्याकरण से मजेदार विषय और दूसरा कोई नहीं हो सकता।

अपने देश में व्याकरण पर ज्यादा काम नहीं हुआ। विदेशों में एक से एक सरल पुस्तक मौजूद हैं। व्याकरण को सरली कृत करके बताया एवँ पढ़ाया जाता है। परंतु अफसोस अपने देश में जितने भी आप पाठ्य पुस्तक उठा लें। सभी में एक ही चीज मिलेगी। सिर्फ शब्दों के हेरफेर हैं। व्याकरण की पुस्तकों को लिखने वालों से मेरा अनुरोध है कि इस परिपाटी को बदलिए... और तो और नीति निर्माताओं से मेरा अनुरोध है कि व्याकरण की ओर ध्यान दीजिए…. यदि मैं अशुद्ध बोलता हूँ, अशुद्ध लिखता हूँ तो दोष उन शिक्षकों का है जिन्होंने मुझे पढ़ाया है, जिन्होंने मुझे सही से इसका प्रयोग करना नहीं सिखाया…. आज भी बच्चों को छोटी इ और बड़ी ई सिखाई जाती है। क्या कभी हम बोलते वक्त छोटी इ कताब का प्रयोग करते हैं। जब हम नहीं करते हैं तो बच्चों को गलत क्यों सिखाते हैं? हिंदी ध्वन्यात्मक भाषा है ।वैज्ञानिक भाषा है। देवताओं की भाषा है। देवनागरी में लिखी जाती है। इसका उपहास न करें। यदि आप हिंदी शिक्षण के अंतर्गत हैं तो हिंदी को सही से पढ़िए…. सही से जानिए….. भोलानाथ तिवारी को थोड़ा पढ़ लीजिए….उदय नारायण तिवारी को पढ़िए।भाषा विज्ञान को पढ़ना बहुत जरूरी है। आईसीएसई आईएससी में व्याकरण किसे कहते हैं आज तक मुझे समझ में नहीं आया? आप जानकर हैरत में पड़ जाएंगे... व्याकरण के नाम पर 8 अंक या 10 अंक ही निर्धारित हैं... उसमें भी वाक्य शुद्धि के लिए आता है एक नंबर पर्यायवाची याद करें, विलोम याद करें... इत्यादि इत्यादि... सीबीएसई के अंतर्गत भी कुछ ऐसी ही स्थिति है परंतु आईसीएसई से बेहतर है... कहने का तात्पर्य है सिर्फ नाम के लिए व्याकरण न रखें... भाषा बहता नीर है तो व्याकरण उसके दो पाट हैं उसे नियंत्रित करते हैं... नहीं तो अर्थ का अनर्थ तो होना ही है…।

लिंग पढ़ाते वक्त बच्चों को आसान तरीके बताएं... कि देखो बेटा जब कभी भी आपको असुविधा हो शब्द को या शब्द का लिंग निर्धारण में तो वहाँ पर उसका बहुवचन रूप बना लें यदि बहुवचन बनाने के उपरांत नासिक ध्वनि या नाक से ध्वनि आए एं या ओं वे शब्द स्त्रीलिंग हैं…. जैसे- पुस्तक उसका बहुवचन रूप पुस्तकें- कें…. कें...उच्चारण करके... बोलकर बच्चों को सिखाएं... बच्चे हसेंगे... परंतु आनंद जरूर लेंगे…. इस आनंद की प्रक्रिया में…. वे सीख भी लेंगे…. मैं ऐसा ही करता हूँ…. आप करके देखिए…. आपको भी मजा आएगा...इसके अंतर्गत प्राय: सभी शब्द सम्मिलित हो जाते हैं... कुछ अपवाद हैं उनकी जानकारी आप अलग से दे सकते हैं।

वर्तनी शुद्धि के अंतर्गत खास करके छोटी इ या बड़ी ई की ही समस्या आती है...अक्सर विद्यार्थी पूछते हैं कि सर उसने कहा था कि वह कल नहीं आएगा। समझ में नहीं आ रहा है कि यहाँ बड़ी ई होगी या छोटी इ । तो बच्चों को मैं एक उदाहरण देता हूँ-He told me THAT he won't be able to come….यहाँ पर या जहाँ कहीं पर भी दैट that दिखे वहाँ छोटी लगानी है... ऐसे बहुत सारे छोटी-छोटी चीजें हैं जो बच्चों को सिखाई जा सकती हैं…।

यदि बच्चे उच्चारण सही करें तो 90 प्रतिशत अशुद्धियों का निवारण हो जाएगा। बशर्ते शिक्षक भी सही उच्चारण करना सीखें एवँ सिखाएं…।

हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है...हम जो बोलते हैं वही लिखते हैं... इसलिए बोलना अपना ठीक करें... और इसके लिए बच्चों को सुनना सिखाएं... उच्चारण करना सिखाएं... और खुद भी सीखें... अभी के समय में यदि उच्चारण सीखना है, शब्दों पर किस प्रकार से जोर देना है... तो आप अमिताभ बच्चन जी को देखिए- सुनिए….. कुमार विश्वास को देखिए सुनिए…. नसरुद्दीन शाह जी को देखिए और सुनिए….और बच्चों को दिखाइए और सुनाइए।

जब कभी भी बाबा नागार्जुन की कविता बादल को घिरते देखा मैं पढ़ाता हूँ। वहाँ पर डॉ. कुमार विश्वास का वीडियो या ऑडियो बच्चों को जरूर सुनाता हूँ और दिखाता हूँ।

ब्रिटिश काउंसिल में मैंने बहुत सारी कोर्स किए... यह देखने के लिए कि मेरी अंग्रेजी कितनी दुरुस्त है….

वहाँ सबसे बड़ी चीज भाषा शिक्षण के अंदर मैंने देखी कि आपको वे लोग मोटिवेट करते हैं... विदेशियों में मैं यह चीज देखता हूँ कि वे आपको जाने या न जाने यदि आप से रास्ते में टकरा जाएंगे, मुस्कुराएंगे जरूर... इससे मोटिवेशन ,इससे प्रेरणा मिलती है…. कहने का तात्पर्य है कि जब मैं ब्रिटिश काउंसिल के कुछ कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ था तो वहां लिखने पढ़ने बोलने और सुनने इन चारों पर जोर दिया गया ।

उसका प्रयोग मैं हिंदी शिक्षण में भी करता हूँ- सुनने के तौर पर बच्चों को ऑडियो या वीडियो दिया जा सकता है- उसको सुनकर वे दोहराएंगे... फिर आपके सामने भी दोहराएंगे... अरे भाई सबसे पहले बच्चों को सिखाइए कि कैसे सुना जाता है…

ब्रिटिश काउंसिल में वे ऑडियो वीडियो दिया करते थे मैं अपने बच्चों को ऑडियो-वीडियो दोनों देता हूँ... जिसे वे सुनते हैं और वे दोहराते हैं... और उसे रिकॉर्ड करके मुझे भेजते भी हैं... उससे संबंधित प्रश्नों को भी हल करते हैं... बड़ा इफेक्टिव है…इसका प्रयोग करके देखें। फायदे में रहेंगे।

अमिताभ बच्चन के द्वारा वाचन किया गया कोई भी अंश आप दे सकते हैं... जिसमें उन्होंने कविता का वाचन किया हो…. गद्य का वाचन किया हो…

मेरी मुलाकात अनुष्का शर्मा जी से हुई थी…. वे अंग्रेजी की लेखिका हैं... उन दिनों स्कूल में आई थीं... एक कार्यशाला के लिए... मैं 2008 की बात बता रहा हूँ.. मैं ताक्सी इंटरनेशनल स्कूल सिक्किम में पढ़ाता था... उनकी बहुत सारी रचनाओं का वाचन अभिनेताओं ने किया है…. यह बहुत बड़ी बात है... इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है….।

अब मान लीजिए आपके पाठ्य पुस्तक से एक कहानी का वाचन अमिताभ बच्चन जी ने किया है... बच्चों पर कितना प्रभाव पड़ेगा... पब्लिशर्स से... नीति निर्माताओं से... पुस्तक निर्माताओं से मेरा विनम्र निवेदन है हिंदी के अंतर्गत ऐसा कार्य एवं प्रयोग करने की आवश्यकता है... शुद्ध वाचन की ओर बच्चों को आकर्षित करना जरूरी है... एनिमेशन की आवश्यकता है….. वह प्रभावपूर्ण होता है…. हम में से बहुत लोग यह कार्य करते हैं…. अपनी आवाज देते हैं... मैंने भी दी है... दोनों भाषाओं में... सैमसंग के लिए भी दी है मैंने अंग्रेजी में…. बहुत सारी ऐड कंपनियां हैं... वॉइस ओवर मैंने की है हिंदी में... वहाँ पर भी लोग मिक्सिंग करते हैं उसके बाद आवाज़ की क्वालिटी बदल जाती है... सुनकर अच्छा लगता है... हम क्यों नहीं कर सकते... हम भी कर सकते हैं... अपनी कक्षाओं में, अपनी कक्षाओं के लिए... बोलकर... वीडियो बनाकर…. पाठ्य पुस्तक में आए गद्य-पद्य का वाचन करें…. म्यूजिक के साथ करें….. प्रस्तुत करें….. अपलोड करें….. साझा करें... जिससे सभी लाभान्वित हों………. सीखें, सिखाएं और आगे ।हिंदी को बच्चों तक पहुँचाना है... वह भी रुचि पूर्ण तरीके से... यह संभव तभी होगा जब हम लोग इनीशिएटिव लें... पहल करें... जब हम लोग इस क्षेत्र में अपना योगदान देंगे तभी संभव है... अशुद्धियाँ हैं तो होने दीजिए गलतियाँ हो रही हैं होने दीजिए…. गलतियों से डरना नहीं है... क्योंकि डर के आगे ही जीत है….. मैं यह जानता हूँ और इस पर पूरी तरह से अमल भी करता हूँ। सदा याद रखिए कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती... कोशिश तो आपको ही करनी पड़ेगी... कोशिश तो हमें ही करनी पड़ेगी…. कोशिश शिक्षा नीति निर्माताओं, पब्लिशर्स को करनी होगी, लेखकों को करनी होगी, कहानीकारों को करनी होगी...।

बस इतना ही कहना चाहूँगा कि

 झुरमुटों से मुस्कुराएगा रवि

तेरे दिल में मेरे दिल में आस अब भी है बंधी।

‪Dr. Trilok Nath Pandey

trilok nath pandey biography

डॉ. त्रिलोक नाथ पांडेय

एम.ए (हिंदी)., बी.एड., एम.एड., पीएचडी (हिन्दी).,

शोधार्थी-शिक्षा शास्त्र ।

(हिंदी विभागाध्यक्ष - कलकत्ता ब्वॉयज स्कूल, कोलकाता)

(गेस्ट लेक्चरर - सैंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ एजुकेशन, कोलकाता)

अतिथि वक्ता साठेय कॉलेज मुंबई हिंदी विभाग

हिंदी शिक्षण : संस्थापक

समाज्ञा: वरिष्ठ पत्रकार

(शिक्षक, कवि, लेखक, पत्रकार, प्रेरक एवं सार्वजनिक वक्ता, कार्यशाला विशेषज्ञ, आदि)

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शिक्षक, छात्र,अभिभावक, यूनिसेफ़, मधुबन, सरस्वती, भारती भवन,कॉर्डोवा, ऑल इंडिया रेडियो, ओवरसीज बैंक, भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारियों के लिए हिंदी एवं अंग्रेजी में अब तक 350 से भी ज़्यादा कार्यशालाएं आयोजित किए हैं। ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन, एफ एम रेडिओ (गंगटोक-कोलकाता), यूट्यूब चैनल, ताज़ा टीवी, इत्यादि पर कई वार्ताएँ कीं। सैमसंग, बंगाल वाटर, ट्रेक्स स्मार्ट, आदि के लिए वॉयस ओवर (हिंदी और अंग्रेजी दोनों में)। कई कार्यक्रमों की मेजबानी की और कवि सम्मेलन आदि में भागीदारी। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों के अनगिनत साक्षात्कार किए हैं। कई किताबें लिखीं। एस चांद, मधुबन, सरस्वती, मैकमिलन , वीवा के सलाहकार मंडली के सदस्य। कई लेख, कहानियाँ, कविताएँ,साक्षात्कार हिंदी एवं अंग्रेजी समाचार पत्रों, पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित हुईं। हिंदी समाज्ञा दैनिक में वरिष्ठ पत्रकार।

टीचर इनोवेशन अवार्ड,शिक्षा में नवाचार के लिए श्री अरविंद सोसाइटी से सम्मानित,अभिव्यक्ति सम्मान, मधुबन सम्मान, सरस्वती सम्मान, वीवा सम्मान, समाज्ञा सम्मान,टेलीग्राफ लिटरेरी सोसायटी सम्मान, इत्यादि।

ये भी पढ़ें; प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी बोलने की शिक्षा देने के प्रभावी तरीके

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