राष्ट्रीय बाल साहित्य पुरोधा : श्रीकृष्णचंद्र तिवारी 'राष्ट्रबंधु'

Dr. Mulla Adam Ali
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Shri Krishna Chandra Tiwari 'Rashtrabandhu'

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श्रीकृष्णचंद्र तिवारी 'राष्ट्रबंधु': लगभग हिंदी बाल साहित्य को 70 कृतियाँ प्रदत किए तथा बाल कल्याण-सेवार्थ समारोहों का आयोजन कार्य किया 'राष्ट्रबंधु' (Rashtrabandhu) जी।

राष्ट्रीय बाल साहित्य पुरोधा : श्रीकृष्णचंद्र तिवारी 'राष्ट्रबंधु'

Rastriya Bal Sahitya Purodha : Shri Krishna Chandra Tiwari 'Rashtrabandhu'

मैंने राष्ट्रीय बाल पत्रिकाएँ, महाराष्ट्र शासन बालभारती पाठ्यक्रम अध्यापन एवं विशेष 'धर्मयुग' के माध्यम से श्रद्धेय डॉ. राष्ट्रबंधुजी की रचनाएँ अध्ययन की है। उनसे संवाद का अवसर भाई ललितनारायणजी उपाध्याय द्वारा ही प्राप्त हुआ था। उनसे व्यक्तिगत् भेंट वार्ता भीमताल (उत्तराखण्ड राज्य) राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी जून 2014 में हुयी थी। वहीं उन्होंने कहा नांदेड़ में दक्षिण की गंगा गोदावरी तथा गुरु गोविंद सिंह जी के पावन स्थल पर आना चाहता हूँ। गत दिसंबर 2014 को सानंद राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी उन्हीं की छत्र-छाया में गांधी राष्ट्रीय हिंदी विद्यालय संस्था में सम्पन्न हुई।

जीवन जीना अपने आप में एक सर्वश्रेष्ठ कला है। जो इसे सही ढंग से संजोकर चलाते हुये जीवन को जीता है, वही सच्चा जीवन का कलाकार है। मैं मानता हूँ कि, इस मायने में डॉ. राष्ट्रबंधुजी सच्चे जीवन के अधिकारी हो गये है। हिंदी गीतधारा के राजहंस पं. रमानाथ अवस्थीजी की कुछ पंक्तियाँ उदधृत है-

"आज इस वक्त आप है, हम है

कल कहाँ होंगे कह नहीं सकते,

जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें-

देरतक साथ बह नहीं सकते,

आपने चाहा हम चले आए

आप कह देंगे लौट जाएँगे,

एक दिन होगा हम नहीं होगे,

आप चाहेंगे हम न आएँगे।"

डॉ. राष्ट्रबंधुजी जिससे मिलते उसे वे अपना ही बना लेते थे। उनके कर्मनिष्ठ व्यापक स्वरूप को मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूला पाउँगा। वे स्वच्छंदवादी विचारधारा एवं निर्मल, स्वच्छ हृदय के व्यक्तित्व थे। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि, उनकी इच्छानुसार यहाँ नांदेड़ (महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय हिंदी बाल साहित्य संगोष्ठी का सुअवसर मुझे प्राप्त हो पाया है।

दि. 25 दिसंबर 2014 को सुबह प्रधानाचार्य डॉ. गिरीश सिंह पटेल के कक्ष में जलपान करते हुये अखिल भारतीय क्षेत्रीय मंच के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. ठा. प्यारेलालजी गहलोत से उन्होंने कहा था कि, मैं हर वर्ष 24 एवं 25 दिसंबर (पू. साने गुरुजी जयंती पर्व) को यहाँ आऊँगा। कितना विलक्षणीय वह क्षण था, सभी कर्तव्य दक्ष स्वयं सेवकों के साथ आनंदपूर्ण तथा सुखद वार्ता हुयी थी।

एक स्थान पर उन्हीं की यह माँ सरस्वती के उपासना में पंक्तियाँ-

"माँ सरस्वती दो वरदान।

हमको हो अभिमान नहीं।।

घटे देश की शान नहीं।

छोटे हैं माँ ध्यान दो।।

हम ओछे इन्सान नहीं।

हमसे बढ़े तुम्हारा मान।।"

लगभग हिंदी बाल साहित्य को 70 कृतियाँ प्रदत किए तथा बाल कल्याण-सेवार्थ समारोहों का आयोजन कार्य करते हुये इस नश्वर संसार से सदा के लिए हम से विदा हो गये। उनकी प्रेरणादायी सुचलवार्ता आज भी मेरे कानों में गूंज रही है- "मैं दुर्गा सप्तपदी स्त्रोत का पाठ कर रहा हूँ, आपकी सारी बाधाएँ दूर होगी, मैं नांदेड़ आपके घर आ रहा हूँ।" त्यागमूर्ति दाता में सर्वश्री प्रो. राजाराम चट्टमवार सर, प्रधानाचार्य डॉ. गिरीशसिंह पटेल, दै. भास्कर संवाददाता श्री हमेचंदजी जैन, हिंदी लोकमत समाचार पत्र के उपसंपादक श्री पन्नालालजी शर्मा, नत्रकार स. रविंद्र सिंहजी मोदी तथा श्री किरण नारायण शिंदे आदि नाम उदधृत है। वे आज शरीर रूप से हमें दिखाई नहीं देगें, पर सदैव उनकी विचारधारा के रूप में हमारे प्रेरणास्थान बने रहेंगे। 2 मार्च 2015 को उनके देहवसान पर कोटि-कोटि प्रणाम सश्रद्ध श्रद्धांजलि!

- डॉ. अशोकसिंह सोलंकी

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