हिंदी कविता : यह चाहा का सागर

Dr. Mulla Adam Ali
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This sea of desires

yah chah ka sagar kavita

कविता यह चाहा का सागर : इंसान की चाह कभी खत्म नहीं होती, कोई प्यार चाहता है तो, कोई पैसा और कोई कुछ। यह चाह एक सागर जैसी है जिसका कोई अंत नहीं, मानव जीवनभर चाहत में बांधे रहता है, कल की उम्मीद लेकर बैठा रहता है। आज ऐसी ही एक चाहत की कविता यह चाहा का सागर पढ़िए और शेयर कीजिए।

Kavita: Yah Chah Ka Sagar

यह चाहा का सागर


यह चाहा का सागर, कभी सूखने न पाये।

दुआ है, पल-पल हम और करीब आये।।


यह चाहा का सागर, कभी सूखने न पाये।

दुआ है, पल-पल हम और करीब आये।।


रहे न सूखा चमन, डाल-डाल लहराये।

जमी रहे सदा, तलाश ऐसी बाहार लाये।।


लग गले खोते रहे खुशियों में हरदम ।

कै छाटे-छाटे यह चाहा हर दिल पे छाये ।।


सुनके जिसे झूम उठे यह संसार सारा।

सजा साजो को, आओ ऐसे कोई गीत गाये।।


करते रहे सब याद, ओ देते रहे दाद।

आओं आज यहाँ ऐसा कुछ नया कर जाये।।


न पनपे कभी कोई स्वार्थ दिल में हमारे।

हम पावन धरा के कण-कण के बने साये ।।


प्राणों के रहते न आँच आने देगे वतन पे।

आओ मिलके सबके सब यह कसम खाये ।।


हमारी वीरता की गाथा गाता रहे इतिहास।

सह सीने पे वार, मातृभक्त हम कहलाये ।।


- डॉ. जयसिंह अलवरी

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