Hindi Poetry by Uttam Kumar Tiwari, Poem on Environment, Old Memories Par Kavita, Yaadein Kavita in Hindi.
Uttam Kumar Tiwari "Uttam"
दुवार वीरान सा लगता है : आधुनिकता के चलते पेड़ पौधे गायब होते जा रहे है, आज घर के सामने आंगन ही नहीं दिखाई देता है। एक समय में हर घर के आगे आंगन में पेड़, पशु, पक्षी दिखाई देते थे, बच्चे दिनभर आंगन में खेलते रहते थे, लेकिन आज आंगन की जगह पार्क को ढूंढना पड़ता है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण के चलते इंसान प्रकृति से दूर होते जा रहा है। आज एक कविता अपने घर और आंगन में पेड़ और पक्षी के साथ जुड़ी यादों को सुंदर प्रस्तुति दी गई है। पढ़िए उत्तम कुमार तिवारी 'उत्तम' की लिखी कविता दुवार वीरान सा लगता है।
पहचान मेरे घर की (कविता) : उत्तम कुमार तिवारी 'उत्तम'
दुवार वीरान सा लगता है
उड़ गये पंछी सारे
जो पेड़ों पर बैठा करते थे ।
तोता मैना की कहानी
बाबा रोज सुनाते थे ।
चिड़िया झुण्ड बना कर आती थी
दिन भर चहका करती थी ।
कोयल बैठ कर डाली पर
सुन्दर गीत सुनाती थी ।।
कौवा काव काव करता था
कठफोड़वा पेड़ों मे छेद बनाता था ।
चढ़ी गिलहरी टिल टिल करती
तोता बोली बोला करता था ।।
हरी भरी डालो से
क्या सुन्दर हवा दिया करते थे ।
कट गये वो हरे भरे पेड़ सब
जिन पर झूला डाला करते थे ।।
गुलर पीपल बरगद नीम
दिन भर छाया रखते थे ।
पंछियो का दिन भर कलरव होता था
पेड़ों की छाया के नीचे पशुओं को बाधा करते थे ।।
जब से पेड़ कटे दुवारे के
घर सूना सूना लगता है ।
खत्म हुई पहचान मेरे घर की
अब दुवार वीरान सा लगता है ।।
- उत्तम कुमार तिवारी "उत्तम"
लखनऊ, उत्तर प्रदेश (भारत)
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