प्रथम आदर्श समाजसेविका : सावित्री बाई फुले

Dr. Mulla Adam Ali
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Social reformer and educator who played a key role in improving women's rights in India, mother of Indian feminism, Savitribai Phule Special Story in Hindi.

Savitribai Phule

first ideal social worker in india

सावित्री बाई फुले : भारत की महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले जयंती पर विशेष लेख, नारी-मुक्ति आंदोलन की प्रणेता, देश की प्रथम महिला शिक्षिका और महान समाज सेविका, महिला शिक्षा के प्रति अपनी प्रेरणास्त्रोत सावित्री बाई फुले का जीवन परिचय (savitribai phule biography)

The first ideal social worker: Savitribai Phule

प्रथम आदर्श समाजसेविका : सावित्री बाई फुले

सावित्री फुले का जन्म सन 1831 में हुआ था। सावित्रीबाई अशिक्षित थी। उनका विवाह बाल्यावस्था में समाज सेवक ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। अशिक्षित सावित्रीबाई को ज्योतिराव फुले ने घर पर ही पढ़ाया था। सावित्रीबाई ने विवाह के बाद पढ़ना-लिखना सीखा, मराठी की शिक्षा, अध्यापिका का प्रशिक्षण और अंग्रेजी का ज्ञान भी अर्जित किया। कट्टर पंथियों द्वारा अत्यंत सताये जाने पर भी उनकी पर्वाह न करके अध्यापिका और प्रधान अध्यापिका के रूप में प्रभाव पूर्ण ढंग से अपने आपको स्थापित किया। महात्मा ज्योतिराव फुले की सफलता में सावित्रीबाई का बहुत बडा योगदान है। वे हर समय पति ज्योतिराव फुले के पीछे न रहकर शिक्षा ओर समाज सेवा के कार्यों में उनके कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ती रही।

1847 में उन्होंने मिसेज मिचेल के 'नार्मल स्कूल' में अध्यापिका का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उस समय उनकी आयु केवल 17 वर्ष की थी। इस प्रकार वह महाराष्ट्र की प्रथम प्रशिक्षित अध्यापिका बनी। पति ज्योतिराव फुले ने सन् 1848 में पहली कन्याशालाखोली और छात्राओं की संख्या बढने पर सावित्रीबाई को अध्यापिका का कार्यभार सौंपा। कुछ दिनों के बाद वह श्री भिडे के मकान में शुरु की गई कन्याशाला की प्रधानाध्यापिका बनी। उस समय एक हिन्दू नारी का अध्यापिका बनना धर्म द्रोहीमाना जाता था। जब वह पाठशाला जाती जब प्रतिक्रियावादी उन पर ताने कसते, कीचड, गोबर फेंकते और पत्थर भी बरसाते लेकिन वह अपने पथ पर अटल रहीं। वह कहती थी - "मैं यह काम अपनी बहनों के लिए करती हूँ। मुझ पर बरसाये जानेवाले पत्थर और गोबर की मार मेरे लिए फूलों के समान हैं।"¹

अध्यापन कार्य करते समय सावित्रीबाई ने 'थामस वलार्कसन' की जीवनी पढ़ी । श्री वलार्कसन हब्शियों (नीग्रों) को गुलामी से मुक्त करने वाले एक बड़े नेता थे। उनकी जीवनी से प्रभावित होकर सावित्रीबाई ने यह निश्चय किया कि 'शूद्रातिशूद्रों को गुलामी से मुक्त कराना और उन्हें गुलामी से मुक्त करने के लिए उन्हें शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है। अतिशूद्रों को शिक्षा देने के उद्देश्य से सावित्रीबाई ने अछूतों की बस्ती के एक मंदिर में पाठशाला खोली। सगुणाबाई और सावित्रीबाई घर-घर आकर बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए उनके माता-पिता को समझाया और मनाया करती थी। ज्योतिराव फुले सावित्रीबाई के आदर्श पति, अंतरंग मित्र और पूजनीय गुरु थे। सावित्रीबाई के मन पर ज्योतिराव फुले की सादगी, सदाचार और कार्यशीलता का गहरा प्रभाव पडा। अपने पति का ऋण स्वीकार करते हुए उन्होंने लिखा-

"वे हैं अज्ञानी जनों के गर्णधार

देते हैं उन्हें नित सदविचार

वे हैं कृतिवीर तथा ज्ञानयोगी

झेलते हैं दुख स्त्रियों - शूद्रों की खातिर।"²

सन् 1848 से सन् 1852 के बीच फुले दंपति ने 18 पाठशालाएँ खोलीं। उन पाठशालाओं का संचालन और प्रबंध सावित्रीबाई ही किया करती थी। उन्होंने अध्यापिका, प्रधानाध्यापिका और संचालिका के रूप में ज्योतिराव फुले के कार्य में योगदान दिया। उन्होंने स्वयं ही पाठशालाओं का पाठ्यक्रम बनाया और उसे कार्यन्वित किया। नारी शिक्षा का आरंभ ज्योतिराव फुले ने अवश्य किया लेकिन इस कार्य में स्थिरता लाने और उसे बढाने का श्रेय सावित्रीबाई को ही है। इस बारे में ज्योतिराव फुले के मित्र और बडौदा नरे सयाजीराव के स्नेहभाजन मामा परमानंद के दिनांक 31 जुलाई 1890 को रियासत के दीवान श्रीधामणस्कर को लिखे पत्र में कहा था- "जोतीराव से भी अधिक उनकी पत्नी सावित्रीबाई की जितनी सराहना की जाए कम है। उन्होंने अपने पति को संपूर्ण सहयोग दिया, उनके साथ रहकर मुसीबतों का डटकर सामना किया, कष्ट तथा यातनाएँ सहीं। ऊँचे वर्गों की उच्चशिक्षित महिलाओं में भी ऐसी त्यागी मलिा बिरला ही होगी।"³

सावित्रीबाई ने अपने मायके से दिनांक 10 अक्तूबर 1856 को एक पत्र ज्योतिराव फुले को भेजा था जिसमें लिखा हुआ था - "पुणे में आपके बारे में द्वेश फैलाने वाले बहुत हैं। वैसे ही यहाँ भी हैं। उनके डर से हम अपना कार्य क्यों छोड़ दें। आप सदा अपना कार्य करते रहें। हमें भविष्य में अवश्य ही सफलता मिलेगी।"⁴ सावित्रीबाई का रहन-सहन बहुत ही सादा था। उनकी साडी-छोली कद्दर की बनी होती थी। ज्योतिराव फुले के मार्गदर्शन में सावित्रीबाई ने महिला सेवा मंडल का गठन कर महिला सुधार की पहल की। यह भारत की पहली महिला सेवा संस्था है। इस संस्था की अध्यक्ष मिसेज ई.सी.जोन्स ओर सचिव थी सावित्रीबाई ।

पाठशालाओं के कुछ बच्चों को ज्योतिराव ने अपने घर में रख लिया था। सावित्रीबाई उनकी माँ की तरह पालन-पोषण करती थी। "ज्योतिराव ने अनाथाश्रम खोला और बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी। बालहत्या प्रतिबंधक गृह में विधवाओं की गुप्त और सुरक्षित प्रसूति कराई जाती थी। उनमें से एक विधवा काशीबाई के नवजात शिशु की नाल कटाई सावित्रीबाई ने की थी। उसी बच्चे को सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने गोद ले लिया और उसका नाम रखा यशवंत ।" उसे आगे चलकर डॉक्टर बनाया।⁵

ज्योतिराव फुले के बाद सावित्रीबाई ने 8 वर्ष तक 'सत्यशोधक समाज' और अन्य संस्थाओं का कार्यभार सँभाला। सावित्रीबाई श्रेष्ठ अध्यापिका, उत्कृष्ट वक्ता और कुशल प्रशासिका थी। वह लेखिका और कवइत्री भी थी। उनका 'फुले' नामक काव्य- संग्रह सन् 1854 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने अपनी 'जागो, पढ़ो-लिखो' कविता में कहा......

"उठो, अतिशूद्र भाइयों, जागो !

पारंपरिक गुलामी को तोडने तैयार हो जाओ,

भाइयो, पढ-खिने के लिए जागो !"⁶

'अज्ञान' कविता में वह शूद्रातिशूद्रों से कहती है--

'एक ही है शत्रु हमारा

उसे भगाएँ सब मिलकर

उसके सिवा नहीं है दूजा,

खोजो, मन में सोचो,

सुना गौर से उसका नाम

अज्ञान!'⁷

सन् 1896 में महाराष्ट्र में अकाल पडा। सावित्रीबाई ने सरकार से कहा कि अकाल पीडितों के लिए अनेक कार्य शुरु किए जाँए। सन् 1897 में पुणे नगर में प्लेग का प्रकोप हुआ। उस समय डॉ. यशवंत ने कई रोगियों के प्राण बचाए। सावित्रीबाई घर-घर जाती और रोगियों को ढूँढकर डॉ. यशवंत के पास ले आती थी। इसी दौरान सावित्रीबाई स्वयं उस रोग का शिकार बनी। उपर्युक्त कार्यक्रमों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि सावित्रीबाई फुले देश की प्रथम आदर्श समाज सेविका मानी जाती है।

संदर्भ;

  1. मुरलीधर जगताप : युगपुरुष महात्मा फुले पृ. 111
  2. मुरलीधर जगताप : युगपुरुष महात्मा फुले पृ. 112
  3. मुरलीधर जगताप : युगपुरुष महात्मा फुले पृ. 113
  4. मुरलीधर जगताप : युगपुरुष महात्मा फुले पृ. 113
  5. मुरलीधर जगताप : युगपुरुष महात्मा फुले पृ. 115

- मोहम्मद जमील अहमद

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