जनसंचार : दृश्य श्रव्य माध्यमों में हिंदी

Dr. Mulla Adam Ali
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Mass Media and Hindi Language, Jansanchar aur Drishya Shravya Madhyam Me Hindi, Hindi and Globalisation, World Hindi Day.

Drishy-Shravya Avam Jansanchar Madhyam

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विश्व हिंदी दिवस विशेष : 10 जनवरी अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस (world hindi day) पर विशेष जनसंचार : दृश्य श्रव्य माध्यमों में हिंदी आलेख आपके लिए प्रस्तुत है। हिन्दी आज विश्व भाषा की ओर अग्रसर है, भारत में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (hindi diwas) प्रति वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। आज हिन्दी कई लोगों की जीविका बन चुकी हैं, विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाले भाषाओं में से हिन्दी एक है।

Mass Communication : Hindi in audio-visual media

जनसंचार : दृश्य श्रव्य माध्यमों में हिंदी

जनसंचार आज बहुआयामी हो गया है। इसके उद्भव से परस्पर संदेशों का आदान-प्रदान करके जनसंचार से आज सभी लाभ उठा रहे हैं। आज तो मुद्रण, पत्र डाक, दूरभाषा, टेलिग्राफ, रेडियो, दूरदर्शन आदि संचार के दृश्य एवं श्रव्य कई माध्यम हो गये हैं। जनसंचार के माध्यमों में श्रव्य दृश्य साधनों और प्रदर्शनियों का विशिष्ट महत्व है। आज सभी सुंदर काव्यों का प्रबंध, महाकाव्य नाटक आदि दृश्य काव्य के रूप में जनसंचार के उपकरणों में प्रयोग किया जा रहा है। सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ सुसंस्कृत आज भव्य साधनों एवं माध्यमों के द्वारा साधारण जनमानस तक पहुँचाया जाता है। आज तो सभी जनसंचार के माध्यमों में एक से बढ़कर एक नयी वस्तु आती जा रही है। आज अंतरिक्ष में कैमरों की सहायता से उपग्रहों के धरातल के चित्र उपलब्ध हो चुके हैं। उपग्रहों के माध्यम से दूरदर्शन पर संसार के किसी भी कोने के चित्र देखे जा सकते हैं।

श्रव्य-दृश्य माध्यमों के द्वारा हम आज राष्ट्र एवं विश्व की समस्या का समाधान करने की चेष्टा कर रहे हैं, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं कई विषयों की विसंगतियों को भी इन माध्यमों से देखकर उन्हें दूर करने के कई कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। भ्रष्टाचार, दहेज- प्रथा, बाल-विवाह, छुआछूत, गाँव और शहर की समस्याएँ आदि इन माध्यमों का महत्व अत्यंत बढ़ गया है। इन माध्यमों का कर्तव्य है कि आज धूमिल होते वातावरण को दूर करें। सरकार और जनता का कर्तव्यबोध इन माध्यमों के द्वारा निश्चित हैं।

अब विश्व में भाषाओं की होड़ में हमारी हिंदी भी एक है। वैश्विक स्तर पर हिंदी को लाने की चेष्टा भारत सरकार एवं हमारे संचार माध्यम कर रहे हैं। यह एक अच्छा प्रयास है कहा जायेगा।

हमारे देश का बढ़ाव एक बार हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत कर सबको चकित कर दिया है। राष्ट्रसंघ में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी में बोलकर सबको चकित कर दिया था, हमारी हिंदी का गौरव भी बढ़ा है।

आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने हिंदी के विषय में कहा है- "अंग्रेजी की छाया में रहकर किसी भी भारतीय भाषा का विकास नहीं हो सका है। आज जो भी त्रुटि या अभाव है, वह सभी भाषाओं में समान है। उसमें मुक्त होने के लिए अन्य भाषाएँ उत्सुक हैं और हिंदी भी उत्सुक है। सभी का लक्ष्य एक है- निरंतर प्रगति और विकास। यह लक्ष्य परस्पर सद्भाव और सहयोग से ही पूरा हो सकता है। इसमें न तो संदेह का अवकाश है, न आपत्ति का।"

जनसंचार माध्यम के द्वारा हिंदी भाषा का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः हिंदी के प्रसार के लिए चलचित्र का दृश्य माध्यम बहुत ही प्रचलित है। बड़े और छोटे पर्दों में हिंदी कार्यक्रम सार्थक हैं। इन कार्यक्रमों के द्वारा भारत में हिंदी को समझने में आम जनता समर्थ है। प्राचीन माध्यम से लेकर नवीनतम माध्यमों तक हिंदी को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है।

दूरदर्शन पर कोई धारावाहिक के रूप में सूचना, घोषणा, संदेश देने में जनसामान्य के लिए हिंदी ऐसा माध्यम है जिसे सभी क्षेत्रों के लोग समझते और व्यवहार में लाते हैं। गैर-सरकारी माध्यमों से भी हिंदी का प्रसार- प्रचार हुआ है। हिंदी की विकास-यात्रा में सक्रिय रहे हैं। नागरी प्रचारिणी सभा, हिंदी साहित्य सम्मेलन, हिंदुस्तानी अकादमी, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा आदि संस्थाएँ हिंदी को दृश्य एवं श्रव्य माध्यमों से सफल बनाती आयी हैं। हिंदी में इन माध्यमों का और इन माध्यमों में हिंदी का बहुत बड़ा महत्व रहा है।

इस तरह संचार माध्यमों में जो दृश्य माध्यम हैं। इनमें भाषागत अंतरंगता, बहुरूपता, बहुआयामी है। इन माध्यमों में भाषा प्रयुक्ति का विशेष स्थान है। संचार तथा जनसंचार के साधन सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आज की स्थिति में दूरदर्शन में हिंदी के विकास का कार्य बहुत हो रहा है। नये प्रयोग शब्द जो सामान्य लोग नहीं जानते थे। उसका इस दृश्य माध्यम ने इतना प्रचार किया कि लोग वो समझ सकते हैं। हिंदी के कई धारावाहिक देश-विदेशों में भी अपनी व्यापकता प्रदान की है।

डॉ. प्रभाकर शुक्ल का विचार इस संबंध में- "दूरदर्शन के माध्यम से हिंदी भाषा का जो नया स्वरूप विकसित हो रहा है, उसे सतर्क दृष्टि से लक्षित करना आवश्यक होगा। उसमें दिनोंदिन खुलापन बढ़ता जा रहा है। यही प्रयोजनमूलक दूरदर्शन हिंदी आज व्यावहारिक भाषा का एक मानक रूप धारण कर सकती है।"

सामाजिक विकास स्तर बढ़ने से भाषा विकसित होती है। भाषाओं का विकास आज अनुवाद के माध्यम से होने लगा है। हमारा देश बहुभाषी देश है। यहाँ अनेक जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसकी सामाजिक सांस्कृतिक विशेषता है कि अनेक होते भी हम एक हैं। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत जैसे बहुभाषी महान राष्ट्र के लिए प्रचार भाषा की आवश्यकता है। सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से भाषाओं का प्रचार-प्रसार किया, इस क्रम में लाखों लोगों ने हिंदी सीखी। जनसंचार में भाषा के अतः संबंध के विषय में हिंदी केवल संस्कृतनिष्ठ हिंदी नहीं है, भारतीय भाषाओं के मेल से तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों से संबंधित है।

दूरदर्शन में हिंदी प्रयोजनमूलक होती है। प्रसिद्ध क्रीड़ा क्षेत्र की, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय घटनाएँ, सेमिनार आदि विशेष अपेक्षा रखते हैं। जनसंचार माध्यम दृश्य - श्रव्य का उपयोग का स्थान सर्वोपरि है। इस आधुनिकता में भी हमारे माननीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने रेडियो पर 'मन की बात' कार्यक्रम द्वारा इसकी शोभा और भी बढ़ गयी। हिंदी की उन्नति एवं विकास के लिए इस जनसंचार माध्यम के द्वारा प्रचार एवं प्रसारण का बहुमूल्य योगदान है। हिंदी भाषा एवं साहित्य का उज्जवल सोपान माना जाता है।

संदर्भ ग्रन्थ;

  1. जनसंचार माध्यमों में हिंदी - चंद्र कुमार - पृ. 57- 59
  2. जनसंचार माध्यमों में हिंदी - चंद्र कुमार - पृ. 85

- डॉ. ई. सुनिता

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