Effect of Munshi Premchand's Stories on Society, Munshi Premchand ki Kahaniyon Ka Samaj Par Prabhav, Sahitya aur Samaj.
Munshi Premchand Stories
हिंदी उपन्यासों का समाज पर प्रभाव : साहित्य समाज का आईना है, साहित्य का समाज पर गहरा असर होता है, साहित्यकारों ने अपने रचनाओं में समाज की विसंगतियां, असमानता, और कठिनाइयों को दिखाया है। कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की कहानियां हो या उपन्यास समाज सुधार की दिशा में काम करने वाली थी, सच्चे समाज सुधारक के रूप में प्रेमचंद अपनी रचनाओं का व्यक्ति जीवन, समाज और मानवीय मूल्यों पर गहरा प्रभाव होता है, उपन्यास सम्राट प्रेमचंद अपनी कहानियों में पत्रों का चुनाव उपेक्षित वर्ग से ज्यादा किया है, दलित वेदना, सांप्रदायिक सद्भावना, नारी जीवन की समस्याएं, शोषित और गरीब किसानों के लिए संघर्ष वर्णित किया है।
Munshi Premchand Ki Kahaniyan
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का समाज पर प्रभाव
मोटे तौर प्रेमचन्द की जन्मतिथि 31 जुलाई 1880 ई. में बनारस से चार मील दूर "लमही" नामक गांव माना जाता है। हिन्दी साहित्य जगत में उपन्यास सम्राट और कहानी सम्राट के नाम से विख्यात हैं। प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। इनके पिता का नाम अजायबराय था। इनके पिता एक सामान्य कायस्थ जाति के थे। प्रेमचन्द के माता का नाम आनन्दी देवी था। प्रेमचन्द सात वर्ष के ही थे इनके माता देहान्त हो गया। प्रेमचन्द मातृ वात्सल्य से वंचित हो गये।
"ठाकुर का कुआँ" एक ऐसी कहानी है। जिसे पढ़ने पर उसका प्रभाव पाठक एवं विद्वान लोगों पर अवश्य पड़ता है। इस कहानी में उस जमाने के उच्च वर्ण के लोगों ने ऊँच-नीच की भावना अपनाई थी। उच्च वर्ण के लोगों के लिए अलग कुआँ और निम्न वर्ण लोगों के लिए अलग कुएँ का उपयोग होता था। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से अस्पृश्यता को निवारण करने का प्रयास किया है।
मेरे उद्देश्य से क़फन कहानी में समाज में बुराई क़फन न हो कर हमारे समाज का बुरा रिवाज है। मरने वाले व्यक्ति को क़फन चाहिए। यह धार्मिक अंधश्रद्धा है। परन्तु मरनेवाले व्यक्ति को न क़फन चाहिए न ही किसी की सहायता की आवश्यकता है मैं यह कहना चाहता हूँ कि जिस के हृदय से प्राण उड जाते हैं उसे कफन लेकर क्या करना है? समाज में सद्भावनाएँ हो तो समाज सुधर सकता है। क़फन इस कहानी का प्रभाव पाठक एवं विद्वानों पर बहुत पड़ता है।
नशा इस कहानी में निर्धन का पुत्र भी जमींदार का पद झूठ-मूठ ही पा लेता है। तो उसका व्यवहार बिलकुल बदल जाता है। उसके मिजाज से बिलकुल भी यह पता नहीं चलता कि वस्तुतः वह एक गरीब का बालक है। अधिकार को पाने पर आदमी पर उसका नशा छा जाता है। नशा बुरी चीज है। जिससे आदमी अपनी योग्यता से वंचित होना पड़ता है। नशा उतर जाने पर पश्चाताप समाज में छाया रहता है। व्यक्ति पर नशा का प्रभाव किस तरह पड़ता है। इस के माध्यम से लेखक ने बताने का प्रयास किया है।
हिन्दी के इस महान साहित्यकार देहावसान सन् 8 अक्टूबर, 1936 ई. में हो गया। हिन्दी का सबसे प्यारा सपूत जन नायक अपनी जीवित साहित्यिक परम्परा को अपने पीछे छोड़कर इस संसार से चला गया। अपनी साहित्यिक परम्परा के रूप में प्रेमचन्द आज भी हमारे बीच में हैं। आज तो समस्त विश्व एक साथ उनकी वन्दना करता है, उनकी कला कृतियों के सामने नतमस्तक होता है।
- राजपाल
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