जिन्दगी इस बेरुखी से बाज आए हम : ग़ज़ल इन हिंदी

Dr. Mulla Adam Ali
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जिन्दगी इस बेरुखी से बाज आए हम

 

दोस्ती की दुश्मनी से बाज आए हम ।

जिन्दगी इस बेरुखी से बाज आए हम ।।


घुन लगे सम्बन्ध जीकर मुस्कुराता है,

आज के इस आदमी से बाज आए हम ।।


चन्द रोज़ा चमक पे इतरा रही है जो,

कलमुँही इस चाँदनी से बाज आए हम ।।


दे न पाये तृप्ति का उपहार प्यासे को,

उस नदी की जिन्दगी से बाज आए हम ।।


आज पाया भी तुझे तो सिर्फ़ खोने को,

वक़्त की कारीगरी से बाज आए हम ।।


ये अँधेरे तो चलो फिर अँधेरे हैं,

बे मुरब्बत रोशनी से बाज आए हम ।।


चाँद-तारे तोड़ना ये सिर्फ ख़्वाबों में,

उम्र की आवारगी से बाज आए हम ।।


- कमल किशोर 'भावुक'

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