Indian Deer and Antelope book by Dr. Parshuram Shukla, Wildlife of India in Hindi, Bhartiya Vanya Jeev in Hindi.
INDIAN DEER and ANTELOPE
Wildlife in India : Our India is world famous for its wildlife. The number of species and subspecies of animals found here is not found anywhere else except Africa. The animals living in forests are a unique gift of nature. They are not just the beauty of forests but are also true well-wishers and friends of humans. The entire life of humans depends on forests and wildlife. If forests and wildlife are destroyed, then humans will also be destroyed..
भारतीय हिरन और गवय
भूमिका
बच्चों! आपने हिरनों के विषय में अवश्य सुना होगा। इनके चित्र भी देखे होंगे। आप लोगों में से कुछ ने तो चिड़ियाघरों में इन्हें इधर-उधर घूमते हुए या आपस में लड़ते हुए भी देखा होगा। बीसवीं सदी के आरम्भतक हमारे देश में हिरनों की संख्या लाखों में थी और ये गांवों के निकट खेतों के पास अक्सर विचरण करते हुए मिल जाते थे, किन्तु अब तो ये केवल राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों या चिड़ियाघरों में ही शेष बचे हैं। इनके अवैध शिकार तथा जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने हिरन ही नहीं, भारत के बहुत से वन्यजीवों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। भारतीय चीते का तो इतना अधिक शिकार किया गया कि यह भारत से पूरी तरह समाप्त हो गया। अब हम भारतीय चीते को कभी भी नहीं देख सकेंगे। इस समय भी बहुत से भारतीय वन्यजीवों की स्थिति अच्छी नहीं है। इन्हें बचाने के लिये विशेष प्रयासों की आवश्यकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो चीते की तरह धीरे-धीरे सभी भारतीय वन्यजीव इस धरती से विलुप्त हो जायेंगे।
अपनी बांत को आगे कहने से पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मानव जीवन, पर्यावरण और वन्यजीवों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये स्वच्छ पर्यावरण आवश्यक है और
स्वच्छ पर्यावरण वन एवं वन्यजीवों के अभाव में सम्भव नहीं है। मानव, पर्यावरण और वन्यजीव तीनों एक दूसरे से सम्बद्ध ही नहीं है, बल्कि एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जिस दिन धरती से हमारे वन्य जीव समाप्त हो जायेंगे, उसी दिन धरती से मानव भी समाप्त हो जायेगा। अतः मानव की सुरक्षा के लिये पर्यावरण और वन्य जीवों की सुरक्षा आवश्यक है।
वन्यजीवों की सुरक्षा का दायित्व केवल सरकार का ही नहीं, हम सब का है। हम चाहें तो भारतीय वन्यजीवों को सुरक्षित ही नहीं रख सकते, बल्कि उनके विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिये आवश्यकता है वन्यजीवों के सम्बन्ध में जानकारी की। वन्यजीवों की जानकारी प्राप्त करके ही हम उन्हें समझ सकते हैं तथा उनके महत्त्व को जान सकते हैं। भारत में वन्यजीवों पर अभी तक विशेष शोधकार्य नहीं किये गये हैं। यही कारण है कि इनके सम्बन्ध में स्तरीय पुस्तकों का अभाव है। बच्चों के लिये तो अभी तक इस विषय पर कुछ भी नहीं लिखा गया है, विशेष रूप से हिन्दी में। कभी-कभी कुछ समाचार-पत्र अथवा पत्रिकाओं में जीव-जन्तुओं पर लेख देखने को मिल जाते हैं, किन्तु इनका कोई स्तर नहीं होता। प्रायः इस प्रकार के लेखों को रोचक बनाने के लिये इनमें अनेक भ्रामक तथ्य जोड़ दिये जाते हैं, जिससे इनकी प्रामाणिकता और विश्वनीयता संदिग्ध हो जाती है।
भारतीय वन्य जीवों में हिरनों का विशेष महत्त्व है। हिरनों से हम सभी परिचित हैं और हममें से बहुत से लोगों ने तो हिरनों को देखा भी होगा, किन्तु हिरन किस प्रकार के वन्यजीव हैं? कहां रहते हैं? क्या खाते हैं? इनकी शारीरिक संरचना किस प्रकार की होती है? भारत में कितने प्रकार के हिरन पाये जाते हैं? आदि अनेक ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर आप सरलता से नहीं दे सकते। यदि आपसे यह कहा जाये कि भारत में एक ऐसा हिरन भी पाया जाता है जो तैरते हुए भूखण्डों पर रहता है तो आप इस बात पर सरलता से विश्वास नहीं करेंगे, किन्तु यह सत्य है। विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां तैरते हुए भूखण्ड हैं तथा इन भूखण्डों पर एक विशेष प्रकार का हिरन रहता है। इन भूखण्डों और इन पर रहने वाले संगाई नामक हिरन को आप मणिपुर के केईबुल लमजाओ राष्ट्रीय उद्यान में देख सकते हैं।
हिरनों का जीवन बड़ा रोचक और आकर्षक होता है। कुछ हिरन घने जंगलों में रहते हैं तो कुछ खुले मैदानों में, कुछ पर्वतीय वनों में रहते हैं तो कुछ दलदल वाले भागों में। हिरनों की शारीरिक संरचना भी बड़ी विलक्षण होती है। आपको गाय की तरह बड़े आकार के हिरन मिल जायेंगे और कुत्ते के समान छोटे हिरन भी। हिरनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि इनके मृगश्रृंग (एन्टलर्स या एक प्रकार के गिरने वाले सींग जो वास्तव में सींग नहीं होते) प्रति वर्ष समागम काल के पूर्व निकलते हैं और समागम काल समाप्त होते ही स्वतः गिर जाते हैं।
भारत में हिरन की तरह का ही एक वन्यप्राणी पाया जाता है, जिसे गवय (एन्टीलोप) कहते हैं। यह देखने में तो हिरन जैसा लगता है, किन्तु हिरन नहीं होता है। आप हिरन और गवय की बड़ी सरलता से पहचान कर सकते हैं। हिरन के मृगश्रृंग प्रतिवर्ष निकलते हैं और गिर जाते हैं, जबकि गवय के सींग जीवन में केवल एक बार निकलते हैं और जीवन के अन्त तक बने रहते हैं। भारत में हिरनों की नौ जातियां पायी जाती हैं। ये हैं- सांभर, बारहसिंघा, हांगुल, संगाई, चीतल, सूकरमृग, कांकड़, कस्तूरी मृग और पिसूरीमृग। इनके साथ ही कृष्णमृग, नीलगाय, चिंकारा और चौसिंघा नामक चार गवय भी पाये जाते हैं। इन सभी के सम्बन्ध में पूरी जानकारी इस पुस्तक में दी गयी है। पुस्तक का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग इसका परिचय है। परिचय में हिरनों और गवयों से सम्बन्धित सामान्य जानकारी के साथ ही विश्व के प्रमुख हिरनों और गवयों से सम्बन्धित रोचक तथ्य एवं इनके कीर्तिमान भी दिये गये हैं, अतः विभिन्न जातियों के हिरनों और गवयों के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के पहले परिचय अवश्य पढ़ियेगा। यह पुस्तक मूल रूप से बच्चों के लिये लिखी गयी है अतः इसमें सरस और सरल भाषा का उपयोग किया गया है। भारतीय हिरन और गवय का मुख्य उद्देश्य बच्चों को हिरनों और गवयों के सम्बन्ध में रोचक जानकारी प्रदान करके उनमें इन सुन्दर वन्य जीवों के साथ ही सम्पूर्ण भारतीय वन्य जीवन के प्रति रुचि उत्पन्न करना है तथा इसके साथ ही हिरनों और गवयों के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रामक धारणाओं को दूर करने का भी पूरा-पूरा प्रयास किया गया है। इस पुस्तक की रचना में मैंने व्यक्तिगत अनुभवों के साथ ही वन्य जीवन पर लिखी गयी अनेक पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का सहयोग लिया है। इनकी सूची पुस्तक के अन्त में दी गयी है। भारतीय हिरनों, गवयों एवं वन्य जीवों के सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन के इच्छुक बच्चे इन पुस्तकों और पत्रिकाओं को पढ़ कर इनके सम्बन्ध में सूक्ष्म और गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
'भारतीय हिरन और गवय' आपके हाथों में हैं। यह पुस्तक आपको कैसी लगी? इसे पूरा पढ़ने के बाद मुझे अवश्य लिखियेगा।
अनुक्रम;
- हिरन (DEER)
- गवय (ANTELOPE)
- सांभर (SAMBHAR)
- बारहसिंघा (SWAMP DEER)
- हांगुल (KASHMIR STAG)
- संगाई (BROW-ANTLERED DEER)
- चीतल (SPOTTED DEER)
- सूकर-मृग (HOG DEER)
- कांकड़ (MUNTJAC)
- कस्तूरी-मृग (MUSK DEER)
- पिसूरी-मृग (CHEVROTAIN)
- नीलगाय (BLUE BULL)
- कृष्ण-मृग (BLACK BUCK)
- चिंकारा (CHINKARA)
- चौसिंघा (FOUR-HORNED ANTELOPE)
पारिभाषिक शब्दावली सन्दर्भ-ग्रन्थ
भारतीय हिरन और गवय : डॉ. परशुराम शुक्ल
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भारतीय हिरन और गवय : डॉ. परशुराम शुक्ल |
परिचय
हमारा भारत वन्य जीवों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां जीव-जन्तुओं की जितनी जातियां और उपजातियां पायी जाती हैं, उतनी अफ्रीका को छोड़कर और कहीं भी देखने को नहीं मिलतीं। वनों में रहने वाले जीव-जन्तु प्रकृति की अनुपम देन हैं। ये वनों की शोभा-मात्र ही नहीं हैं, बल्कि मानव के सच्चे हितैषी और मित्र भी हैं। मानव का सम्पूर्ण जीवन वनों और वन्य जीवों पर ही निर्भर करता है। वन और वन्यजीव समाप्त हो गये तो मानव भी समाप्त हो जाएगा। वन और वन्य जीवों ने आरम्भ से ही मानव को प्रभावित किया है। ये हमेशा से मानव की प्रगति के प्रेरणास्रोत रहे हैं। निर्भय हो कर विचरण करते हुए सिंह, चीते और तेन्दुए, सूंड उठा कर मस्ती में चिंघाड़ते हाथी, वृक्षों पर उछलकूद करते हुए बन्दर तथा आकाश में कलरव करते हुए पक्षी देख कर किसका मन वश में रहेगा? कभी-कभी तो वन में विचरण करते हुए जीवों को देख कर इतना अच्छा लगता है कि मन करता है कि बस इन्हें देखते ही रहें। कवियों और लेखकों को तो वन्य जीवों ने इतना अधिक प्रभावित किया है उन्होंने इन पर अगणित ग्रन्थ लिख डाले हैं।
वनों में मस्ती में कूदते-फांदते अथवा चौकड़ी भरते हुए हिरनों की शोभा सर्वाधिक न्यारी होती है। हिरन एक ओर तो वनों का सौन्दर्य हैं तो दूसरी ओर बड़े हिंसक जीवों का प्रमुख भोजन। वनों में इनका होना अत्यन्त आवश्यक है। हिरनों की कमी होने पर ही हिंसक जीव भोजन की खोज में गांवों और बस्तियों में आने लगते हैं तथा प्रायः नरभक्षी हो जाते हैं।
हिरन से हम सभी परिचित हैं, किन्तु हिरन के विषय में कुछ नहीं जानते। भारत में हिरन की तरह के तीन प्राणी और भी देखने को मिलते हैं, कृष्णमृग, चौसिंघा और चिंकारा। इन्हें लोग हिरन ही समझते हैं, किन्तु ये हिरन नहीं गवय (एन्टीलोप) हैं। भारत में गवय की एक और जाति पायी जाती है, जिसे नीलगाय कहते हैं। प्रायः इसे लोग गाय समझते हैं, किन्तु यह गाय नहीं, गवय है। अब आइये! हिरनों और गवयों के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा की जाये।
- परशुराम शुक्ल
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