युक्ति : नैतिक मूल्य पर आधारित सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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STRATEGY : Moral Story

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Moral Story in Hindi : युक्ति कहानी पढ़िए नैतिक मूल्यों से भरपूर मोटिवेशनल हिंदी कहानी, ईमानदारी और सच्चाई (moral kahani) की जीत पर विशेष कहानी, मोरल स्टोरी इन हिंदी स्ट्रेटजी।

Yukti : Naithik Kahani in Hindi

युक्ति / प्रेरक कहानी

विभागाध्यक्ष के सम्मुख अजीब समस्या थी। दो खाली पदों के लिए पहले से ही ऊपर से दो नाम चयन हेतु उनके पास आ चुके थे। उधर वही ऊपर वाले आये दिन सार्वजनिक रूप से यही घोषणा करते कि किसी भी स्तर पर भाई-भतीजाबाद और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। हर काग्र में पारदर्शिता बरती जायेगी, सत्ता के इसी दोहरे चरित्र के मध्य ही विभागाध्यक्ष को कार्य करना पड़ रहा था।

ऊपर द्वारा प्रस्तावित नामों का ही चयन हो, इसके लिए विभागाध्यक्ष ने तीन सदस्यीय चयन समिति में विश्वास के दो लोगों को पहले ही नामित कर दिया था। पर इन नामों को लेकर लोगों के बीच कोई अच्छी धारणा न थी। सभी की आम राय थी कि ये लोग तो रबर स्टैम्प हैं- विभागाध्यक्ष जहाँ चाहेंगे, लगा देंगे। इस धारणा को समाप्त करने और चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता के साथ-साथ निष्पक्षता की मोहर लगाने के निमित्त डॉ. सविता को तीसरे सदस्य के रूप में चयन समिति में नामित किया। डॉ. सविता की ईमानदार और निष्पक्ष छवि के साथ-साथ लोगों के बीच उनके संबंध में यह भी मान्यता थी कि वह मुखर होकर विरोध भले न करें, पर आँख बंद कर मोहर भी नहीं लगायेगी।

चयन प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पहले विभागाध्यक्ष ने तीनों सदस्यों को अपने कक्ष में बुलाया और कहा-ये दो नाम ऊपर वालों ने भेजे हैं। आप लोगों को इन्हीं का चयन भी करना है। जल्दी से साक्षात्कार प्रक्रिया समाप्त करके इन दो नामों के साथ एक और नाम जोड़कर क्रम से तीन नामों की सूची हमें दे दें। डॉ. सविता, जो काफी देर से मौन बैठी सभी की बातें सुन रही थीं, बोल पड़ी- 'जब पहले से ही सब निर्णय हो चुका है। तब इण्टरव्यू की खानापूरी करने की आवश्यकता ही क्या है ?'

'इसके बिना चयन की औपचारिकता कैसे पूरी होगी ?'

विभागाध्यक्ष द्वारा कारण स्पष्ट किया गया तो डॉ. सविता पुनः सवाल कर बैठी -'इण्टरव्यू प्रक्रिया की औपचारिकता पूरी करना आवश्यक तो है पर दो की जगह तीन नामों की सूची किस लिए.... खाली पद तो दो ही हैं'।

चयन - प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए तीन नामों की सूची आप लोग तैयार करेंगे। फिर उनमें से दो को नियुक्ति-पत्र भेज दिया जायेगा। इससे मेरे स्तर पर चयन-प्रक्रिया की निष्पक्षता नजर आयेगी और लोग मेरी और ऊँगली नहीं उठायेंगे। यह समझते हुए कि तीसरे व्यक्ति की योग्यता पर भी ध्यान दिया गया।

विभागाध्यक्ष की बातों का उस समय डॉ. सविता ने कोई उत्तर नहीं दिया, पर मन-ही-मन कोई योजना बना ली थी। उनके चेहरे का आत्मविश्वास ऐसा ही कुछ दर्शा रहा था।

चयन प्रक्रिया प्रारम्भ होते ही सभी अभ्यर्थियों को एक -एक कर बुलाया गया। फिर एक-दो प्रश्न पूछकर वापस कर दिया गया। इस बीच एक उम्मीदवार ऐसा भी आया जिसकी योग्यता और प्रतिभा से सभी सदस्य बहुत प्रभावित हुए, उन्हें लगा कि खाली पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति यही है। सर्वसम्मति से तीसरे नाम के लिए उसके लिए ही सहमति बनी, पर डॉ. सविता उसका नाम तीसरे क्रम में रखने के पक्ष में न थीं। चूँकि उनके अतिरिक्त अन्य सदस्य विभागाध्यक्ष के निर्देशों का ही पालन करना चाहते थे। इसलिए डॉ. सविता ने अन्य सदस्यों से असहमति जताते हुए कहा- 'इतने योग्य और प्रतिभाशाली युवक का नाम आप तीसरे क्रम में यह जानते हुए भी रखना चाहते हैं कि अंत में इसी का नाम ऊपर जाकर काट दिया जायेगा'। उन्होंने सदस्यों को नैतिकता का पाठ भी पढ़ाया- 'आप लोग अपनी कलम से इतना बड़ा अन्याय तो न करें। अयोग्य के हाथों योग्य को पराजित न होने दें।'

भौतिक सुख-सुविधाओं को बटोरने के लिए आज लोग हर अनैतिक कार्य करने को तैयार रहते हैं। जिससे लाभ पाने वाला व्यक्ति खुश होकर उनके सम्मुख कुछ टुकड़े फेंक दे। ऐसे में डॉ. सविता की आदर्शवादी बातों का महत्त्व उनके सम्मुख क्या था। सदस्यों ने उनकी बातों के प्रत्युत्तर में कहा-मैडम ! लिस्ट जल्दी तैयार कराइये, जिससे विभागाध्यक्ष को आगे की कार्यवाही हेतु प्रेषित की जा सके।

डॉ. सविता की आत्मा इतना बड़ा अन्याय सहने को तैयार नहीं हो रही थी। आखिर सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति का नाम नीचे कैसे रखा जाये? सोचती रही वह कुछ देर सारी व्यवस्था को तो वह एक साथ बदल नहीं सकती फिर भी तालाब में एक कंकड़ फेंककर पानी में हलचल पैदा करने का प्रयास तो कर ही सकती हैं। उनका अंतर्मन मुखर हो उठा 'देखिये, तीसरा उम्मीदवार सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए नियमतः उसका ही नाम सबसे ऊपर होना चाहिए। पर आप लोग मेरे सहयोगी हैं और विभागाध्यक्ष के आदेश के विरुद्ध जाना भी नहीं चाहेंगे, इसलिए अच्छा होगा इसका नाम बीच में कर दें, अयोग्यों के साथ एक योग्य का भी कल्याण हो जायेगा।'

डॉ. सविता के प्रस्ताव पर अन्य सदस्य सहमत न हुए क्योंकि वह लोग विभागाध्यक्ष के निर्देशन के विरुद्ध एक कदम भी इधर-उधर जाना नहीं चाहते थे। अंत में सर्वसम्मति से यही हुआ कि विभागाध्यक्ष के कक्ष में चलकर ही अंतिम सूची तैयार की जाये।

विभागाध्यक्ष के सम्मुख सभी सदस्य अपना-अपना पक्ष रख रहे थे। डॉ. सविता के अतिरिक्त वह लोग वही भाषा बोल रहे थे जो उन्हें पहले से पढ़ाई गयी थी। पर डॉ. सविता अन्याय का गला घोटने के पक्ष में कतई न थीं। उन्होंने तर्क दिया- 'चयन की निष्पक्षता के नाम पर बलि का बकरा योग्य व्यक्ति को ही बनाया जाये, यह कहाँ कि नैतिकता और न्याय है ?'

'पर लेना तो दो को ही है, अगर क्रम में परिवर्तन कर देंगे तो उनके दोनों नामों का चयन कैसे हो पायेगा?' विभागाध्यक्ष ने अपनी शंका व्यक्त की।

ठीक है सर दो लोगों का चयन तो ऊपर वाले हर कीमत पर करेंगे ही, चाहे इसके लिए उन्हें कितना भी अनैतिक कार्य क्यों न करना पड़े इसलिए मैं चाहती हूँ कि अयोग्य व्यक्ति के साथ-साथ एक योग्य का भी भला हो जाये तो क्या हर्ज़ है। इसलिए उन दो नामों के बीच इसका नाम प्रस्तावित कर दें।

'क्या बात कर रही हो? उनके आदमी का नाम तीसरे क्रम पर रहेगा तो दूसरे को छोड़कर तीसरे की नियुक्ति के आदेश कैसे कर पायेंगे वह ?'

'यही तो मैं भी आपसे कह रही हूँ।'

'तुम तो मेरी नौकरी ही लेने की सलाह दे रही हो।' विभागाध्यक्ष थोड़ा झल्लाकर बोले- 'व्यर्थ का बकवास बंद करो, और मैं जैसा कह रहा हूँ, वैसी ही सूची तैयार करिये।' 

डॉ. सविता का साँचना कुछ और था, नैतिकता का मुखौटा लगाकर अनैतिकता करने वालों की मानसिकता से वह शायद भली भांति परिचित थीं। बोली- 'ऐसा करने से आपके ऊपर कोई आँच नहीं आयेगी बल्कि लोग आपकी योग्यता की प्रशंसा ही करेंगे, इस तरह एक व्यक्ति को न्याय भी मिल जायेगा।'

'यह कैसे सम्भव होगा? विभागाध्यक्ष को रहस्य जानने की उत्सुकता हुई। शायद उनकी आत्मा अभी इतनी मरी न थीं। सोचने लगे - बिना उनका नुकसान हुए किसी का भला हो जाये तो हर्ज़ ही क्या है ?'

डॉ. सविता ने अनुभव का रहस्य खोला- 'सर! आपने स्वयं अनुभव किया होगा कि ऊपर वाले आम जन के लिए भले कागज़ पर कुछ न करें पर अपने भले के लिए सभी नियम-कानून ताक पर रख देते हैं। और आदेश करते है। इसलिए आप द्वारा प्रेषित सूची में उनके एक आदमी का नाम तीसरे स्थान पर होगा तो कोई-न-कोई रास्ता वह निकालेगे ही।'

'अगर ऐसा नहीं हुआ तो सब गड़बड़ हो जायेगा।' विभागाध्यक्ष ने अपना भय प्रदर्शित किया- 'फिर तो दूसरों को न्याय दिलाने के चक्कर में खुद कहं का न रहूँगा।'

'नहीं सर इतने दिनों से आप विभाग चला रहे और देख रहे हैं कि ऊपर वाले नीचे वालों के कंधों पर ही बन्दूक रखकर सदा चलाते हे किन्तु बात जब कोई बिगड़ती है तो हाथ झाड़कर अलग हो जाते है। आप भी एक बार उनके कंधों पर रखकर देखें, सब ठीक होगा।'

विभागाध्यक्ष उम्र के उस पड़ाव पर थे जहाँ भगवान का डर भी धीरे-धीरे घर करने लगता है। युवावस्था में वह कितना भी नास्तिक क्यों न रहे हों-सहमते हुए उन्होंने डॉ. सविता के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए सदस्यों को अंतिम सूची बनाने का आदेश दिया।

चयनित उम्मीदवारों की सूची बन जाने के बाद विभागाध्यक्ष ने एक कागज़ पर अलग से एक टिप्पणी भी संलग्न की तीन योग्य उम्मीदवारों की संस्तुति इस अनुरोध के साथ की जा रही है कि विभाग के वर्क लोड को देखते हुए एक और अतिरिक्त पद के सृजन की अनुमति प्रदान करने की कृपा की जाय, जिससे तीनों चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र भेजे जा सके।'

निर्णय वही हुआ जो होना था। तीनों उम्मीदवारों को नियुक्ति आदेश निर्गत करने के प्रस्ताव की स्वीकृति के साथ-साथ विभागाध्यक्ष की ईमानदारी, लगन और निष्पक्षता से प्रभावित होकर वर्ष का सर्वश्रेष्ठ अधिकारी सम्मान देने हुतु उनके नाम का प्रस्ताव भी भेज दिया गया।

- राजेन्द्र परदेसी

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