आँगन की धूप : कविता - प्रभा पारीक

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Kavita Aangan ki Dhoop : पढ़िए कविता कोश में प्रस्तुत है प्रभा पारीक की बेहतरीन कविता आँगन की धूप, इस कविता में सुबह का सुंदर चित्रण किया है।

Aangan ki Dhoop : Poetry

आंगन की धूप


सुबह हो रही चंदा भागे,

चंदा से थे तारे आगे,

गई सर्दियां गर्मी आई,

आंगन में आज धूप समाई,

पानी से चावल धूल आया,

उसको चादर में फैलाया,

चावल ऐसा दिखा चमकता,

पेड़ों पर ज्यों ओस की बूंदें,


अब आंगन में लगा है मेला,

चावल मां का बना झमेला,

 खुशबू पा कर कीड़ा किडी आए,

गिलहरी अकेली न आई ,

अपने संग गौरैया लाई,

वह अपने संग बच्चे लाई,

कबूतर भाई कहां थे पीछे,

चुगते दाना आंखें मींचे ,

मानो मां ने ,दावत बुलवाई,

चावल दाना आधा बचा था,

आधे से उनका पेट भरा था,

धूप चिरैया रोज ही आना,

इन जीवों को दाना खाना।


- प्रभा पारीक

भरुच, गुजरात

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