Barasingha hiran and it's species in Hindi by Dr. Parshuram Shukla, Wildlife in India, Bharatiya Vanya Jeev Swamp Deer in Hindi.
Swamp Deer : Indian Wildlife
Wildlife of India : Barasingha is a type of deer, which is mainly found in the Indian subcontinent. Its scientific name is Rucervus duvaucelii. It is also called "Swamp Deer". Its most distinctive feature is its horns, which can have 12 or more branches, hence it is called "Barasingha". Barasingha is a unique and beautiful deer of India, many conservation efforts are being made to save it.
बारहसिंघा हिरण
Barasingha Hiran
बारहसिंगा (Barasingha) एक प्रकार का हिरन है, जो मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Rucervus duvaucelii है। इसे "स्वैम्प डियर" (Swamp Deer) भी कहा जाता है। इसकी सबसे खास पहचान इसके सींग होते हैं, जिनमें 12 या उससे अधिक शाखाएँ हो सकती हैं, इसलिए इसे "बारहसिंगा" कहा जाता है। बारहसिंगा भारत का एक अनोखा और सुंदर हिरन है, जिसे बचाने के लिए कई संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं।
बारहसिंघा झुण्ड में रहने वाला हिरन है। यह प्रायः 30 से 50 तक के झुण्ड में विचरण करता है, किन्तु कभी-कभी सैकड़ों के झुण्ड में भी देखा गया है। बारहसिंघा के झुण्ड का आकार सदैव बदलता रहता है। कभी इसके झुण्ड में हिरनों की संख्या बहुत कम हो जाती है तो कभी बहुत अधिक । मौसम के अनुसार इसके झुण्ड में निश्चित रूप से परिवर्तन होता है, किन्तु एक दिन में भी इसके झुण्ड का आकार बदल सकता है। इसमें नर और मादा अपना-अपना अलग झुण्ड बनाते हैं। इसके साथ ही समान आयु के अल्पवयस्क बच्चे भी अपना अलग झुण्ड बनाते हैं। नवजात बच्चे तथा छोटे बच्चे सदैव अपनी मां के साथ मादाओं के झुण्ड में रहते हैं। कभी-कभी नर मादा और छोटे बच्चों के मिश्रित झुण्ड भी देखे गये हैं। प्रायः नर और मादा वयस्कों का झुण्ड अल्पवयस्क बारहसिंघा के झुण्ड से छोटा होता है।
बारहसिंघा सांभर के विपरीत, खुले मैदानों में चरता है। इसका प्रिय भोजन छोटी-छोटी झाड़ियां, घास और जंगली वनस्पति हैं। बारहसिंघा के सभी झुण्ड चरते समय एक दूसरे में मिल जाते हैं और शांतिपूर्वक चरते हैं। यह प्रातःकाल सूर्योदय के बाद अपने झुण्ड के साथ चरने के लिये निकलता है और दोपहर में कड़ी धूप होने के पूर्व तक चरता है। इसके बाद किसी वृक्ष की छाया में आराम करता है। शाम को यह सूर्यास्त के बाद कुछ देर और चरता है, किन्तु अधिक रात्रि होने के पहले ही किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाता है। बारहसिंघा सांभर की तुलना में कम रात्रिचर है। इसे पानी से बहुत कम प्रेम होता है। चीतल को भी पानी से विशेष लगाव नहीं होता, किन्तु बारहसिंघा को चीतल से भी कम, पानी से लगाव होता है।
बारहसिंघा सदैव एक निश्चित क्षेत्र में विचरण करता है और इसी क्षेत्र में अपना निवास बनाता है। इसके क्षेत्र में किसी जल-स्रोत का होना आवश्यक नहीं है, किन्तु असम का बारहसिंघा पानी के पास के ऊंचाई वाले क्षेत्र पर अपना निवास बनाता है।
बारहसिंघा सदैव भोजन के बाद दोपहर और रात्रि में घने वृक्षों की छाया में अपने झुण्ड के साथ आराम करता है। इस समय झुण्ड का नेतृत्व एवं सुरक्षा एक अनुभवी और प्रौढ़ मादा करती है। झुण्ड का नेतृत्व करने वाली मादा का प्रजननयोग्य होना आवश्यक है। यह हमेशा सजग रहती है और खतरे की आशंका होने पर पूरे झुण्ड को सावधान करती है। बारहसिंघा का झुण्ड खतरे का आभास होते ही एक विशेष प्रकार की चीख मार कर विपरीत दिशा की ओर भाग खड़ा होता है तथा किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर आश्रय लेता है।
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Barasingha : Swamp Deer |
बारहसिंघा उत्तर और पूर्वी भारत में पाये जाने वाले शेरों का प्रमुख भोजन है। यह बड़ा सीधा हिरन है। शेर या इसी प्रकार के किसी हिंसक जानवरों का शिकार है। बारहसिंघा की संख्या बढ़ कर 118 हो गयी। वर्तमान समय में मध्य प्रदेश में बारहसिंघों की कुल संख्या 200 से अधिक नहीं है तथा दोनों उपजातियों के कुल बारहसिंघा तीन हजार से चार हजार के मध्य शेष रह गये हैं।
बारहसिंघा का एक लम्बे समय से शिकार किया जा रहा है। इसकी त्वचा से अनेक प्रकार की वस्तुएं बनायी जाती हैं, मांस का भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है एवं मृगश्रृंगों से विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं तैयार की जाती हैं।
कुछ लोगों का मत है कि विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों में शेरों ने बारहसिंघों का इतना अधिक शिकार किया कि यह विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया। इन लोगों का मत था कि बाहरसिंघा को बचाने के लिये यह आवश्यक है कि शेरों को इनके पास से हटा दिया जाये। इन लोगों ने 'प्रोजेक्ट टाइगर' योजना का भी जोरदार विरोध किया था। विख्यात जीव वैज्ञानिक एवं भारतीय वन्यजीवन के विशेषज्ञ श्री कैलाश सांखला इस मत के विरोधी हैं। सांखला का मत है कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों पें शेर ने भोजन के लिये बारहसिंघा का अधिक शिकार नहीं किया, बल्कि शासकीय अधिकारियों ने शोधकर्ताओं और वन्य जीवन के चित्र लेने वाले फोटोग्राफरों के लिये बारहसिंघा का शेर के सामने चारे के रूप में अधिक उपयोग किया इसी कारण इसकी संख्या में भारी कमी आयी। बारहसिंघा की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण चारागाहों का अभाव है। पहले जिन स्थानों पर हिरनों के चारागाह थे, आज वहां खेती हो रही है। चारागाहों की कमी के कारण यह चरते-चरते बस्तियों के निकट पहुंच जाता है और गाय-बैल आदि के निकट चरने लगता है। इनसे इसे 'ब्रूसीलोसिस' नामक छूत की बीमारी लग जाती है। इस बीमारी में मादा का गर्भ पूरा होने के पूर्व ही गिर जाता है।
बारहसिंघा की घटती हुई संख्या का कारण कुछ भी हो, किन्तु यह निश्चित है कि इसकी संख्या तेजी से कम हो रही है तथा इसे बचाने के लिये विशेष प्रयास आवश्यक हैं। इस दिशा में यदि समय रहते शीघ्र ही ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब बारहसिंघा भी भारतीय चीते की तरह धरती से समाप्त हो जायेगा।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
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