स्वाभाविक समस्याओं का समाधान करता उपन्यास : नाचू के रंग

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma Hindi Children's Novel Naachu Ke Rang Book Review by Manohar Singh Rathore in Hindi, Hindi Bal Upanyas Naachu Ke Rang Ki Samiksha.

Naachu Ke Rang

hindi childrens novel review

नाचू के रंग बाल उपन्यास की समीक्षा : हिंदी में बच्चों के लिए उपन्यास बहुत कम लिखी जा रही है, फिर भी बाल उपन्यास हिंदी में लोकप्रिय विधा है, हिंदी में कई बेहतरीन बाल उपन्यास उपलब्ध हैं, जिसमें एक उपन्यास गोविंद शर्मा जी का "नाचू के रंग" भी है, आज इस बाल उपन्यास की समीक्षा आपके समक्ष प्रस्तुत है जो मनोहर सिंह राठौड़ जी द्वारा लिखी गई है।

स्वाभाविक समस्याओं का समाधान करता उपन्यास

नाचू के रंग

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक : 'नाचू के रंग' (बाल उपन्यास)
लेखक : गोविंद शर्मा
प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन जयपुर
पृष्ठ : 52, मूल्य : 150

भारत विख्यात बाल साहित्यकार श्री गोविंद शर्मा सन 1971 -72 से साहित्य सृजन में अननवरत लगे हुए हैं। मेरा सौभाग्य है कि पिछले 40 से अधिक वर्षो से मेरा इनसे घनिष्ठ परिचय है।आज इनकी 50 पुस्तकें बाल साहित्य की, व्यंग्य संग्रह और लघु कथा संग्रहों को मिलाकर 60 से अधिक कुल पुस्तकें छप चुकी हैं। बालकों की तरह सहज सरल मन के श्री शर्मा जी एक समर्पित बाल साहित्यकार हैं और हर दिन इनकी एक-न-एक नई रचना पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती है। इतना अधिक कार्य करते हुए भी गर्व-गुमान इनके मन को छू तक नहीं गया है। राह चलते इन्हें कोई एक दृश्य दिखाई दे जाए या कोई एक विचार मन में उमड़ पड़े, उसे आधार बनाकर ये तुरंत बालकथा या लघुकथा की रचना कर डालते हैं। कई भाषाओं में इनकी पुस्तकों के अनुवाद हो चुके हैं और कई प्रांतों की पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।

    'नाचू के रंग' इनका एक अनुठा बाल उपन्यास है। अनेक वर्षो पहले इसे शुरू किया था और फिर बीच में छूट गया। अब जब यह सन् 1924 में पूरा हुआ तो यह बाल साहित्य जगत में छा गया। इसकी बनावट, शिल्प-शैली ही ऐसी है कि एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद आप इसे पूरा पढ़ जाएंगे। नाचू नाम का एक बालक ब्रश और रंगों का कलाकार है। वह अपने मनोरंजन के लिए चित्र बनाता, उनमें रंग भरता। फिर मित्रों को खुश करने के लिए, स्कूल व हाॅस्टल को सजाने-संवारने के लिए,बाद में सामाजिक समस्याओं को लेकर चित्र बनाने लगा। जिनका सकारात्मक परिणाम सामने आया । समाज में जिम्मेदारी , जागरूकता बढ़ी। समस्याएं हल होती चली गई। इस प्रकार रंग और ब्रश से खेलने वाला एक बालक सामाजिक सरोकारों से कितनी गहराई से जुड़ सकता है जिससे समाज में बड़ा बदलाव संभव है। यह एक अद्भुत विचार है।शर्मा जी बालकों के मन की परतों को उघाड़ने, उनकी समस्याओं को जानने, बालकों की सहज प्रवृत्तियों,आदतों, कमियों निश्छलताओं का गहन अध्ययन करने वाले बाल मनोविज्ञान के ज्ञाता हैं। इन्होंने बालकों की उन स्वाभाविक समस्याओं का समाधान और उसके द्वारा समाज में आए बदलाव को रेखांकित किया है। 'नाचू के रंग' बाल उपन्यास पाठकों और बाल साहित्यकारों को इतना पसंद आया है कि इसकी अनेक पत्र पत्रिकाओं में विस्तृत, सुंदर समीक्षाएं छपी हैं।

शर्माजी उपन्यास को भी इस प्रकार से लिखते हैं कि वह हमें भारी भरकम नहीं लगता बल्कि एक बालकथा की तरह सहज, सरल ढंग से प्रवाहमयी भाषा में आगे चलता रहता है और हम उत्सुकतावस आगे बढ़ते चले जाते हैं। ये लो, उपन्यास तो पूरा हुआ, अनायास मुंह से निकलता है कि अरे! उपन्यास पूर्ण हो गया।और पढ़ने की प्यास बची रहती है। यही लेखन की सार्थकता है।

समीक्षक:

मनोहर सिंह राठौड़, जोधपुर

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